Tuesday, August 29, 2023

रेशम की डोरी (लघुकथा)

रेशम की डोरी

कसीदाकारी की हुई चांँदी की सुंदर भारी राखियांँ संभालती हुई मिनाक्षी ने कहा -"सुनो जी !अब आपकी बहन नहीं आने वाली।उसे पता था कि मुझे भी अपने भाइयों को राखी बांँधने जाना है। फिर भी आने में इतनी देर की।हो सके तो मुझे स्टेशन का छोड़ दो। मैं स्वयं ही चली जाऊंगी ।
"लेकिन बच्चों का कल से टेस्ट है ?".. 
"इसीलिए ना तुम्हें छोड़ा है। तुम इनका टेस्ट दिलवाना मैं दो-तीन दिन बाद ही आउंगी ।सोचा था  दो-चार दिन तुम्हारी बहन को यहांँ रोककर आराम से मैके घूमुंगी।" फिर वह भाई-भाभियों को देने वाली महंगे संदेशों से भरा बड़े बैग को घसीटती हुई बाहर निकल गई । 
सुशील ने घड़ी देखी और मामले की गंभीरता को देखते हुए गाड़ी निकाल ली ।थोड़ी देर बाद ही वे स्टेशन पर थे। 
कुछ देर के इंतजार के बाद ट्रेन आई और मीनाक्षी उस पर सवार होकर अपने मायका चल दी।
 गाड़ी को प्लेटफार्म छोड़ते ही सुशील को ध्यान आया। सचमुच आज सुगंधा न आई और न ही फोन कर अपने आने अथवा नहीं आने की कोई सूचना ही दी।उसने फोन का नम्बर मिलाया पर फोन स्विच ऑफ।उसका मन परेशान हो उठा। आखिर बात क्या है ?
उसने दोनों बच्चों को गाड़ी में बैठाया और गाड़ी को सुगंधा के घर की ओर मोड़ ली।
उसके घर में लटक रहे ताले को देख कर उसका मन और भी घबरा उठा।
बगल वाले से जाकर पूछा तो पता ‌चला कि उन्हें गाड़ी वाले को सरकारी नर्सिंग होम ले चलने के लिए कहते सुना।
वहाँ पहुंच उसने सुगंधा सिन्हा का नाम लिया तो रिशेप्शनिष्ट ने कहा ग्यारह नम्बर कमरा।वहाँ जाकर देखा -सुगंधा बेड पर पड़ी थी और बेड के निकट पालने में फूल -सी सुंदर और कोमल बच्ची........
उसकी सासु माँ ने पुकारा -"देख बहू तेरे भैया अपनी भांजी को देखने आ गये।
भांजी ....? सुशील का मन खुशी से झूम उठा। मैंने कई बार फोन किया लेकिन...............
बहू की तबियत अचानक इतनी खराब हो गई कि हमें फोन बगैरह लेने-सुनने की सुध ही नहीं रही।
सुगंधा ने कहा -"भैया की राखी भी घर ही में रह गयी।"फिर उसने अपने हाथ में बंधी उस रेशम की डोरी को खोली जिसे सुबह पंडित जी ने सुरक्षा का आशीर्वाद-मंत्र पढ़ते हुए उसकी कलाई पर बाँधी थी।उसे खोल उसने झट उसके तीन टुकड़े कर डाले।
सासु-माँ ने कहा -क्यों थोड़ी इसे पूरा बाँध देती ?"
लेकिन उसने कहा - "एक डोरी मेरे भैया की और दो  इनकी।" उसका संकेत भतीजों की ओर था।
फिर उसने तीनों के दीर्घ और स्वस्थ जीवन की कामना के साथ बड़े प्यार से उनकी कलाइयों पर बांँध दी। सुशील ने उसे आशीष देते हुए अपने बेटों से कहा -"देखो आज तुम दोनों की भी 'राखी' बहना आ गयी।"
सभी नवजात बच्ची के नामकरण पर हँस पड़े । सुशील की नजरें अपने कलाई पर बंधी प्यारी डोरी पर ........
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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