Sunday, September 3, 2023

प्रेम नगर का झूला रे

प्रेम नगर का झूला रे।

काहे की डांडी ?काहे की डोरी?
काहे का लटका झूला रे ?
प्यार की डांडी। प्रेम की डोरी।
प्रीत का लटका झूला रे।

कौन झूले को कस कर बांध्यो?
किसका बंधन खुला रे ?
विनम्र झूले को कस कर बांध्यो,
उद्दंड का बंधन खुला रे।

कौन झूले पेंग बढ़ाकर ?
कौन मद में फूला रे ?
संस्कारी झूले पेंग बढ़ाकर,
अहंकारी मद में फूला रे।

कौन झूले चाक-चौबंद हो ?
कौन सुध-बुध भूला रे ?
स्वार्थी झूले चाक-चौबंद हो,
नि:स्वार्थी सुध-बुध भूला रे।

कौन झूले को यत्न से राख्यो ?
कौन पड़ायौ धूला रे ?
समझदार झूले को यत्न से राख्यो।
नासमझ पड़ायौ धूला रे।

छलिया मन में कपट रख झूले,
मन में राखे शूला रे।
कहे 'समृद्धि' निष्कपट हो झूलो,
हृदय न राखों हुला रे।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

2 comments:

  1. इस जगत में चरित्र और व्यवहार के अनुसार झूलते हैं सभी.
    सटीक रचना.

    पधारिये - संस्कृति - विकृति

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  2. हार्दिक आभार भाई

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