बन जाएंँ हम सब मिलकर रेल
आओ सब मिलकर खेलें खेल।
बन जाएँ हम सब मिलकर रेल।
लाल रंग का देखो है इंजन मेरा।
डब्बे बनकर हम लगा रहे फेरा।
हाथों से हम हैं डब्बों को जोड़ें।
एक -दूजे का हम साथ न छोड़ें।
पाँव चल रहा है पहिया बनकर।
पटरी पर चलता दौड़ लगाकर।
छुक-छुक,छुक हम करते जाएँ।
दिल्ली -मुम्बई घुमकर आ जाएँ।
टिकट-विकट का काम नहीं है।
पैसे- कौड़ी भी का नाम नहीं है।
ऊं ऊं ऊं कर सीटियांँ भी बजाएँ।
स्टेशन आया हमसब रुक जाएँ।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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