Friday, August 11, 2023

कर्मों का फल (लघुकथा)

कर्मों का फल
सोनिया को देखते ही शशिकला जी ने बुरा सा मुंँह बनाया और दूसरी ओर मुड़ गई।पोता मोनू ने कहा -"यहीं बैठो दादी देखो मेरी दादी भी यही हैं।हम यही पार्टी मनाएंँगे।”लेकिन शशिकलाजी मोनू को खींचती हुई दूसरी ओर मुड़ गई ।यह देख दमयंती जी ने पूछा -"क्यों पड़ोसन से कुछ कहा- सुनी हो गई है ?आपको देखते ही उधर चली गईं।सोनिया ने कहा- "कुछ कहा सुनी तो नहीं हुई है। बस मोनू को लेकर ही उनके मन में विषाद रहता है। वह मुझे अपनी दादी कहता है,और मेरे पास आता है तो उन्हें लगता है वह मेरे बहकावे मैं ऐसा करता है।" दमयंती जी ने कहा -"जब आप उसकी देखभाल करती हैं, खिलाती -पिलाती हैं, गोद लेकर घुमाती हैं,प्यार-दुलार करती हैं, तो नहीं देखती। इतना करने पर तो किसी को लगाव हो जाएगा। कहते हैं -'बच्चा प्यार का भूखा होता है' फिर उन्हें आपसे शिकायत कैसी?'सोनिया ने कहा यह सब मेरी किस्मत का दोष है। मैं जिसकी भलाई करती हूँ,वह मेरा दुश्मन बन जाता है ।दमयंती जी ने कहा -"जाने दीजिए,इसमें किस्मत की कोई बात नहीं अक्सर लोग किसी की अच्छाइयों से ईर्ष्या करते हैं ,और मन के जलन के कारण किसी को भला- बुरा कहते हैं ।कर्म का फल यहांँ नहीं मिलता ।ऊपर वाले सबके कर्मों को देखते हैं, और उसी अनुसार फल भी देते हैं। आपने अच्छे कर्म किया है तो फल भी अच्छा अवश्य मिलेगा।"दमयंती जी की बातें सुन सोनिया के मन को बड़ी तसल्ली मिली।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

No comments:

Post a Comment