Tuesday, October 10, 2023

मन-दर्पण (दोहे)

मन-दर्पण (दोहे)

दर्पण में सब देखिए,अपना रुप स्वरूप।
क्या दिखता यह रूप है,इस जग के अनुरूप।।

मन के दर्पण में जरा, देखें आप निहार।
अपने सुंदर रूप में, कर लें आप सुधार।।

त्वचा को लीप-पोतकर,निखार लिए रंग।
मन तो मैला ही रहा,दिखता है बदरंग।।
 
कान में पहने झुमके,इत-उत मारे डोल।
शोभा कानों की बढ़ा, सुनकर अच्छे बोल।।

नयनों में काजल लगा,सुंदर करते आप।
नजरों में समता भरो,मन को कर निष्पाप।।

नाक में नथ पहन लिए, बहुत बड़ा आकार।
गंध की पहचान नहीं,नथिया है बेकार।।

होठ को तो रंग लिए,लेपन लाली नाम।
बोली मीठी है अगर,लाली का क्या काम।।
      
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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