Tuesday, August 1, 2023

प्रेम का दीप (गीत)

प्रेम का दीप

का दीप मन में जलाते चलो।
घर-घर से अंँधेरा भगाते चलो।

हम जिधर भी चले तम उधर दूर हो।
रोशनी पास आने को मजबूर हो। 
अपनी मेहनत से तुम जगमगाते चलो।
घर-घर से अंँधेरा............
हर मानव में आए नयी चेतना।
दूर हो अज्ञानता का अँधेरा घना। 
मानवों को मानवता सिखाते चलो।
घर- घर से अँधेरा.............
भेद-भाव का कोई भरम न रहे।
जीवों के लिए हम बेरहम न रहें
अन्याय को मन से मिटाते चलो।
घर-घर से अंधेरा.........
चांँद सूरज से रौशन है सारा जहाँ।
कटुता का अँधेरा क्यों छाया यहाँ।
विषमता को मन से हटाते चलो।
घर-घर से अंधेरा........
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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