Friday, August 11, 2023

दो निशाना (लघुकथा)

दो निशाना 

मानसी का मन बड़ा विचलित था। मन के कड़वाहटों को निकालने के लिए उसने दोहरी चाल चली।भाभी के साहित्य उपलब्धियों से मन में जितनी व्यग्रता उत्पन्न हुई,ननद को मिले पुरस्कारों को देख ईर्ष्या की अग्नि ज्वाला बनकर धधक उठी।किसे सुनाएंँ अपने मन की व्यथा ।हाँ ! एक रास्ता है। मोबाइल फोन उठाया और नम्बर......... जैसे ही भाभी ने फोन उठाया , प्रणाम के बदले बहुत ही तीखी आवाज में दाँत पीसते हुए कहा -"मन बहुत खुश है सम्मान पत्र प्राप्त कर ?"
भाभी ने कुछ कहना चाहा उससे पहले ही बोल पड़ी - "तारीफ है उस फोटोग्राफर का जो सम्मान- पत्र के साथ इतना सुंदर चित्र खींचा है"
 भाभी ने कुछ बोलना चाहा उससे पहले ही बोल पड़ी -"नहीं-नहीं बड़ा सुंदर बना दिया । जानती हैं दो दिन पूर्व मेरी ननद को भी पुरस्कार मिला है। विश्वास न हो तो फेसबुक पर देख लीजिए।फिर बिना कुछ कहे फोन काट दिया।उसकी बोली का तीखापन पिघले शीशे के समान उसके कर्णपटल पर पड़ा और मन मस्तिष्क में तिलमिलाहट पैदा कर दिया।पर वह बेपरबाही से ननद को....... ननद ने भी जल्दी की फोन उठा लिया।उसके प्रणाम के जवाब में वही कड़वी बोली - "कौन बनाया था तुम्हारे काव्य-पाठ का वीडियो ? बड़ा अच्छा बनाया।"
"धन्यवाद भाभी !"
"धन्यवाद तो उस वीडियोग्राफर को कहो।जिसने तुम्हारी ऐसी-वैसी रचना का विडियो ऐसा बनाया कि तुमने पुरस्कार भी पा लिया। वैसे मेरी भाभी भी बहुत अच्छा लिख लेती हैं। सुंदर काव्य -लेखन के लिए उन्हें सम्मानित किया गया है। देखना ना फेसबुक पर। सम्मान पत्र लेकर खड़ी हैं मंच पर। ठीक।और फोन...........
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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