Thursday, August 3, 2023

नकल पड़ोसन की (कहानी )

नकल पड़ोसन की 

   सुशीला के घर का संपूर्ण छत गर्म कपड़ों से भरा हुआ था ।ऐसी बात नहीं की जेठ की इस चिलचिलाती धूप और बेशुमार गर्मी में सुशीला के घर किसी को गर्म कपड़े पहनने का शौक चर्राया है,जिसके लिए उसकी तैयारी की जा रही है बस सुशीला की छोटी बेटी रश्मि ने कमरे को धोते वक्त यह ध्यान नहीं लिया की गट्ठरों में बंधे कंबल-रजाई भीग जाएंगे अंधाधुंध पानी छिड़कती गई कमरे में।
 सुशीला कमरे की सफाई से जितना खुश हुई,रजाई और कमलों को गीला देख उतना ही खीज उठी ।रश्मि को एक गरमा- गरम डांट सुनाई और रजाई- कम्बलों को गठरियों के बंधन से मुक्त कर उन्हें धूप में फैला दी। जब धुन सवार हो ही गया तो क्यों ना संदूक से भी सारे गर्म कपड़े निकाल कर थोड़ी धूप दिखा दी जाए। इस तरह सारे गर्म कपड़े छत पर सीखने डाल दिया।
उसकी नकलची पड़ोसन विमला की नजर जब इन कपड़ों पर पड़ी तो वह व्याकुल हो उठी।
रेखा ! बिंदु !  एक साथ अपनी दोनों बेटियों को पुकार कर बुला ली थोड़ी देर बाद विमला की पूरी छत गर्म कपड़ों से भर गयी ।
सुशीला की बेटी रजनी का ध्यान जब उस ओर गया तो वह मांँ को बुला लाई और विमला चाची के छत पर फैले कपड़ों को दिखाकर बोली - यदि मैं छत पर से कूद पड़ू तो चाची रेखा , बिंदु को भी छत पर से धकेल देंगी।
 यह सब छोड़ो भी कल मुझे लकड़ी से चाय बनाते देखी तो वह भी लकड़ी की दुकान से लकड़ियांँ मंगवा ली।मैं कोई मंगाने थोड़ी गई ।वह वह तो किबाड़ बनवाने से जो कटी-छटी लकड़ियांँ बच गयी ।उसी से बनाई थी । फिर दोनों मांँ बेटी के स्मृति-पटल पर विमला और उनकी बेटियों द्वारा नकल उतारने के कई प्रयत्न तेजी से विचरण करने लगे ।
सुशीला अपने लिए जैसी साड़ी व गहने खरीदती विमला भी अपने लिए ठीक वैसे ही कपड़े व गहने कपड़े खरीद लेती ।जैसे बर्तन और सामान सुशीला के घर रहते वैसे विमला के घर भी आ जाते ।
ऐसी बात नहीं की नकल उतारने की यह प्रवृत्ति सिर्फ विमला में थी ।उसकी बेटियांँ उससे दस कदम आगे ही थी। रजनी या रश्मि जिस प्रकार चोटियाँ गुथती दूसरे दिन रेखा और बिंदु भी ठीक वैसा ही चोटी बना लेती। जैसी चप्पलें और श्रृंगार प्रसाधन खरीदती, ठीक  वैसी की वैसी वे भी ले लेती।जिस किसी से ये दोस्ती करती उससे वे भी सांठगांठ करना प्रारंभ कर देती।
नकल उतारने के इस होड़ में ईश्वर ने भी उनकी पूरी मदद की थी सुशीला के दो बेटे और दो बेटियांँ थी तो विमला के भी। सुशीला के सास-श्वसूर जिंदा थे तो विमला के भी। यहांँ तक की किसी कारणवश सुशीला के साथ बेटी के घर गई हुई थी तो विमला भी लड़-झगड़ कर अपनी सास को उलाहना दे डाली कि क्या बेटे बहू ही सब दिन मांँ-बाप को रखें बेटियांँ नहीं रख सकती ? इस प्रकार विमला की सास भी अपनी बेटी के साथ जबरन उसके घर चली गई। एक बार सुशीला अपने पिताजी को कुछ दिनों के लिए लाई थी तो विमला भी अपने पिताजी को बुला ली। पिछली बार होली के अवसर पर सुशीला ने अपने भैया- भाभी को बुलाया तो दशहरे के अवसर पर विमला ने भी अपने भैया -भाभी को बुला लिया ।सुशीला कभी मायके जाती तो एक-दो दिन के अंतराल में विमला भी अपने मायका चल पड़ती।
 दोनों के पति नौकरी करते थे सुशीला के पति किसी निजी फर्म में थे उन्हें 8:00 बजे सुबह ही दफ्तर जाना रहता था।इसलिए वह सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाते थे।इस पर भी अक्सर विमला का अपने पति से तकरार चलते रहता। देखो तो एक आलोक बाबू है सात बजे तक नहा धोकर तैयार हो जाते हैं ।और एक तुम हो कि आठ बजे तक पलंग पर ही डटे रहते हो।  रोज के चख-चख से तंग आकर विमला के पति इंद्रदेव जी भी 8:00 बजे नहा धोकर नाश्ते की मांँग कर देते तो विमला घर में कोहराम मचा कर रख लेती। इंद्रदेव जी कहते - आलोक बाबू को सुबह 8:00 बजे खाना मिलता है मुझे क्यों नहीं ? विमला हाथ नचाती हुई कहती -हाय! उनकी तरह इतनी जल्दी खाना मांगते हो, सुविधाएं भी झूठा रखी है उनकी  तरह? वे तो एक स्लाटोव लाकर रख दिए हैं।चट-चट चार पम्प और फट से रोटी सब्जी बनाकर खिला  देती है ।
लेकिन तुम्हें तुम्हें तो दाल चाहिए सब्जी चाहिए भाजी चाहिए और जाने क्या-क्या चाहिए ।
अरे चाहिए,चाहिए तो मैं सारा सामान ला भी तो देता हूंँ। स्टोव की क्या जरूरत है? एक साथ दो बर्नर वाले गैस के चूल्हे हैं । फिर सुशीला बहन से दो घंटे ज्यादा समय भी तो मिल जाता है तुम्हें । इंद्रदेव जी खींजते हुए कहते।
        सुशीला का नाम आते ही विमला नागिन की तरह फुफकार उठती । बस-बस तुम मर्दों में यही तो बुराई है। दूसरों की बीवियां कितनी भी बेपरवाह और कामचोर हो सुघड़ लगती हैं और अपनी बीवी कितनी ही सुशील और कार्य कुशल हो फूहड़ लगती है।
और तुम औरतों में यह कमजोरी नहीं कि दूसरे के पति कितना भी निकम्मा आलसी और मक्कार क्यों ना हो महा विष्णु के अवतार लगते हैं और अपना पति कितना भी विद्वान और जागरूक क्यों ना हो जाहिल लगता है। फिर तो दोनों में काफी तू-तू मैं-मैं हो जाती। नतीजा विमला पलंग पर, और इंद्र देव जी बेटियों से कुछ रुखा- सुखा बनवा कर खा लेते या भूखे पेट को सहलाते हुए दफ्तर का रुख लेते और दूसरे दिन से 8:00 बजे तक पलंग पकड़े रहने का अपना पुराना रवैया अख्तियार कर लेते।
 पहनावे -ओढ़ावे के मामले में भी इंद्रदेव जी को कुछ यूं ही झेलना होता। जैसा कपड़ा आलोक बाबू पहनेंगे वैसा ही उन्हें भी पहनना पड़ता।सुशीला और उसकी बेटियांँ हमेशा आपस में बोलती चाची को तो हम लोग से अच्छे कपड़े और सामान लेने चाहिए,क्योंकि चाचा को पगार भी पिताजी से ज्यादा मिलती है साथ-साथ ऊपरी आमदनी भी है।
 कई दिनों से विमला के पैर में मोच पड़े हुए थे ।घरेलू उपचार से जब कोई लाभ नहीं हुआ तो घर के सदस्यों में विचार हुआ कि अस्पताल जाकर डॉक्टर को दिखाया जाए और सुशीला रिक्शे पर सवार हो अस्पताल चल दी। उसे जाते विमला का छोटा बेटा बिट्टू ने देख लिया ।दौड़ा हाँफ्ता घर पहुंँचा और विमला से बोला - माँ !जानती हो चाची बाजार गई हैं।
 किसने कहा ?
 किसी ने नहीं । मैंने स्वयं उन्हें रिक्शे पर जाते हुए देखा है । 
हाँ माँ ! यह कहता है सिट्टू ने कहा-अभी थोड़ी देर पहले जॉनी रिक्शा लेकर आ रहा था ।
 चाची अवश्य किसी विशेष काम से बाजार गई होगी। बिंदु ने आशंका व्यक्त की ।
और विशेष काम क्या ? दशहरा निकट आ गया है। कपड़े आदि लाने गई होंगी । रेखा ने अपनी समझदारी दर्शाते हुए बात स्पष्ट की।
हांँ ऐसा ही होगा । क्योंकि कल ही जैकी बोल रहा था अब के दशहरे में मैं फुल-पैंट सिलवा लूंँगा। बिट्टू ने रेखा की बातों की पुष्टि की ।
अरे हांँ, जैकी बोल रहा था, मेले जूते फट गए हैं नए जूते लाने मांँ को बोला हूंँ। नीतू ने भी अपनी तोतली बोली में कहा।
तब तो रजनी और रश्मि के भी कपड़े आयेंगे ? रेखा माँ की ओर देखती हुई संदेश-युक्त स्वर में बोली ।
 तो क्या करूंँ मैं भी चली जाऊंँ बाजार विमला ने सभी से मशविरा लिया ।
हांँ- हांँ क्यों नहीं ? सभी के मुंँह से लगभग एक साथ ही निकला । जब चाची आज ही कपड़े ले आएंगी, तो हम भी क्यों पीछे रहें भला ? हम लोग उनसे किस बात में कम हैं ?बिंदु चुटकी बजाती हुई बोल उठी।

लेकिन उतने पैसे तो पास में है नहीं ? मैं तो सोचती थी कि महीने की पगार मिलेगी तब ले आऊंँगी कपड़े और सामान। विमला ने आहें भरते हुए दुःखी स्वर में कहा।
     कहीं से रुपए का बंदोबस्त नहीं हो सकता ? बिंदु ने प्रश्न किया तो विमला को मानो अंधेरे में रोशनी मिल गई।
 हांँ- हांँ जा न गोलू की मांँ के पास हमारे चार हजार रुपए हैं और सोहन की मांँ को भी कहना दो चार दे दे। बहुत जरूरी काम है दस दिनों में पगार मिलेगी तब लौटा दूंगी ।
इतने पैसे से हो जाएंगे ? रेखा ने पूछा ।
क्यों नहीं होंगे बिंदु ने झट से कहा कुछ पैसे हम लोग भी दे देंगे । सभी को उनका सुझाव पसंद आया। सभी ने अपने अपने गुल्लक फोड़ डाले। विमला भी अपने बक्से से खोज-ढूंढ कर कुछ पैसे निकाल लाई। सभी के अठन्नी चवन्नी और सिक्के मिलाकर एक छोटी- मोटी पोटली तैयार हो गई ।
विमला ने तुरंत बिंदु को गोलू के घर और बिट्टू को सोहन के घर पैसे लाने भेज दिया ।

दोनों जल्द ही रूपए लेकर आ गए। रुपयों का बंदोबस्त विमला जल्दी से तैयार हो गई ।
बिट्टू ने कहा जॉनी का फूल पैंट सिलवाएगा। इसलिए मेरा भी फूल-पेंट सिला देना ।
 जैकी के नए जूते आएंगे सौ मेरे लिए भी लेते आना बिट्टू के बोलते ही निट्भीटू भी बोल पड़ा ।
और देखना न माँ चाची कौन-कौन सी दुकान जाती है उसी दुकान में जाकर तुम उन्हीं के जैसे कपड़े और सामान ले लेना बिंदु बोली ।
अरे सारे सामान लाऊंगी कैसे ? थैले-वैले भी दोगी या यूं ही ले आऊंगी । सुशीला क्या पाँच थैले से कम थोड़े  ही ले गई होगी और तू टुकुर-टुकुर देख क्या रहा है ? जैकी उसे रिक्शा ला कर दिया तू नहीं ला सकता ? वह बिट्टू को घूरती हुई बोली तो वह उछलता हुआ दौड़ पड़ा रिक्शा लाने।
तब- तक बिंदु और रेखा खोज -ढूंढ़ कर दो-चार थैले जुटा लिए।
इधर ऊपर वाले भी अपनी चांँद-सूरज जैसी बड़ी-बड़ी आंँखों से सारा तमाशा देख रहे थे। उन्होंने सोचा यह सच्चे मानव ही तो मुझ पर पूर्ण विश्वास कर कहते हैं- "जैसा मन में ध्यान ।
वैसा पूरा करें भगवान।"
इनके अआगे तो आना ही पड़ेगा ,स्वयं पर विश्वास बनाए रखने के लिए। वे शरारत से मुस्कुराए और एमवस्तु के भाव से आंखें बंद कर ली ।
बाहर रिक्शे की झनझनाहट हुई ।सभी ने झांँक कर देखा बिट्टू रिक्शा लेकर आ गया। जल्दी करो रेखा और बिंदु ने एक साथ कहा।
 विमला जल्दी से चप्पल पहन कर चल पड़ी।एक तो चप्पल भींगा हुआ,दूसरा वर्षा से आँगन में काई की फिसलन।पैर ऐसा फिसला कि धड़ाम से आंगन में चारों खाने चित गिरी ।
सभी बच्चे पकड़ कर उसे उठाए ।पर उई माँ कहती हुई फिर से गिर पड़ी। शायद पैर की कोई हड्डी टूट गई थी ।
किसी प्रकार सहारा देकर सभी ने उसे रिक्शा पर चढ़ाया।
थैला घर में ही पड़ा रह गया ।रेखा के माँ के साथ अस्पताल जाने के लिए रिक्शे पर बैठ गई और बिट्टू को पिताजी को बुलाने के लिए दफ्तर भेज दी।
 बिंदु और बिट्टू दरवाजे पर खड़े चाची की तरह मांँ को भी रिक्शे पर जाते देख रहे थे।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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