Friday, March 7, 2025

होली गीत

जय माँ शारदे 🙏 🙏 

होली गीत होलास्टक हेतु 

मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री ! २
फूल -फूल पर भौर उड़त हैं,
बीतत फागुन मास सखी री!२

क्षीर समुंदर विष्णु जी बैठे,
शंख में टेरे तान सखी री !
ऐसे टेर सुनाबत विष्णु,
शंख से उड़त गुलाल सखी री !
उड़कर रंग गया लक्ष्मी की चुनरी,
और रंगा गोरे गाल सखी री!
मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री!

मधुवन में श्रीराम खड़े हैं,
धनुष से छोड़े तीर सखी री!
ऐसे तीर चलाबत रघुवर,
तीर से उड़त गुलाल सखी री !
उड़कर रंग गयी सीता की साड़ी,
और रंगा गोरे गाल सखी री।
मंद-मंद समीर चलत हैं ,
फूल खिले कचनार सखी री!

यमुना के तीर में कृष्ण कन्हैया,
वंशी में छेड़े तान सखी री!
ऐसे वंशी बजाए कन्हैया,
वंशी से उड़त गुलाल सखी री!
उड़कर रंग गयी राधा की चोली,
और रंगा गोरे गाल सखी री!
मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री!

कैलाश गिरी पर बैठ महादेव,
डम-डम डमरू बजाबे सखी री !
ऐसा डमरू बजाबे सदाशिव,
डमरू से उड़त गुलाल सखी री!
उड़कर रंग गया गौरा की चुनरी,
और रंगा गोरे गाल सखी री!
मंद-मंद समीर चलत हैं,
फूल खिले कचनार सखी री 
फूल -फूल पर भौर उड़त हैं,
बीतत फागुन मास सखी री।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, March 6, 2025

संस्कार (लघुकथा)

जय माँ शारदे 🙏🙏 

संस्कार (लघुकथा)

मन बहुत घबराता है सिम्मी की......!
 काहे खातिर.........?
 तुम तो कुछ समझती ही नहीं। अरे हमारी बेटियांँ जवान हो गई। आजकल के छोरों के रंग-ढंग तो देख ही रही हो । छोकरियों को देखते ही किस कदर.........
उनकी नादानियों की सजा हम अपनी बिटिया को क्यों..........
अरे हम उन मनचलों को रोक नहीं सकते । पर,अपनी बिटिया को तो घर में सुरक्षित.........।
हांँ-हांँ बेटियाँ ही ना बलि का बकरा हो सकती.......।
बेटों को तो छुट्टा साढ़..........
अरे हम यह नहीं कहते कि बेटों को.....
पर बिटिया को समझ कर घर में...........
 हमें बिटिया को समझा कर घर में नहीं.........
बेटों को समझाकर बाहर भेजना है कि लड़कियों के साथ किसी भी तरह की.............. पाप है जैसे तुम्हारी मांँ-बहन की आबरू है ।वैसे ही पराई लड़कियों और........।
 अपनी मांँ- बहन की तरह अन्य लड़कियों की सुरक्षा भी तुम्हारी........।
 तब देखना हमारी बिटिया भी सुरक्षित और बेटे भी व्यवहारिक और समझदार..........।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, February 26, 2025

जाएँ बोल कहाँ हम

अंध कक्ष से झांक रही मैं,
               भारत का रूप निराला।
नव भारत के स्वतंत्र रूप में,
                 सबका मुंँह है काला।
भारत माँ बैठी सिसक रही 
                नहीं है कोई रखवाला।
रक्षक ही इसको लूट रहे,
                 करते गड़बड़-घोटाला।
एक स्तम्भ है बेकारी का,
               एक पूर्ण भ्रष्टाचारी का।
ये दोनों शक्ति भूज है,
            रिश्वतखोर अधिकारी का।
दोनों के बीच दबा हुआ है,
             हम नवयुवकों का गर्दन।
मन कुण्ठित जीवन असुरक्षित,
         बस रहा भविष्य का चिंतन।
नव भारत के नव वृंद हम,
                    छुपा रहे हैं मुखड़ा।
यहाँ सभी हैं एक सरीखे,
                   किसे सुनाएंँ दुखड़ा।
घोटाले कर लूट रहे हैं,
                   भारत माँ को रक्षक।
सिसक रही बैठी माँ मेरी,
                बेटे बन बैठे हैं भक्षक।
त्रस्त-भविष्य की असह पीड़ा से 
                      व्याकुल हो रहै हम।
भ्रष्ट हो गया अपना ही घर,
                   जाएँ और कहांँ हम।

                  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, February 21, 2025

हुआ सवेरा

हुआ सवेरा 

हुआ सवेरा, छटा अँधेरा
     आया स्वर्ण- विहान। 
नीड़ में सोयी चिड़िया जागी, 
      गायी स्वागत- गान। 
 रंग - बिरंगे  फूल खिलें है, 
     मुख पर ले मुस्कान। 
रंग- बिरंगी उड़ी तितलियाँ,
      कर  रहे  रस  पान। 
कली- कली पर भौरें गाते। 
       छेड़ मनोहर तान।
गैया जागी बछड़ा जागा, 
    शोभ रहा है बथान। 
आओ हम सब भी कर लें, 
      कुछ नवल संधान। 

  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, February 20, 2025

श्रद्धा कर्म



श्रद्धा कर्म 

आज स्वर्गीय पूर्णिमा देवी जी का बारहमा ......।
सात गाँव की भोज व्यवस्था ........
एक सौ आठ ब्रहामणों का वस्त्र -छंदा सहित भोज........
 स्वजन तथा दूर-दूर के नाते-रिश्तेदार न्योते पर पधारे हैं।
     अपना घर तो क्या पास-पड़ोस के घरों में मेहमानों को ठहराया गया है।सभी के रहने एवं खाने पीने की उत्तम व्यवस्था.....भोज के सारे भोजन पूर्णिमा देवी के पसंद के बनाए जा रहे ............।

    सेज दान का कार्यक्रम........। बड़ी बहू ने सुंदर सा दीवान पर मुलायम तोसक- तकिया,मसनद और सुंदर कीमती चादर लगवाते हुए कहा -"मांँ जी को दीवान का बहुत शौक था इसलिए मैंने दीवान......।"
 बड़े बेटे ने श्रद्धा पूर्वक सोने की अंगूठी चढ़ाते हुए -"माँ ने अपने सारे गहने बेचकर मुझे इंजीनियरिंग पढ़ाया इसलिए मैंने माँ के लिए यह अँगूठी खरीदी है।"   
   मंझली बहू कीमती श्रृंगार-प्रशाधन रखते हुए -"माँ जी को सजने-संवरने का बहुत शौक था। इसीलिए मैंने श्रृंगार...... ।"
मंझला बेटा नोटों से भरा बटुआ रखते हुए  -" माँ-ने घर-खर्चे में कटौती कर मुझे शिक्षा दिलवाई इसलिए एक महीना का पगार मैं माँ के नाम..........।"
    सभी के मुँह से वाह-वाही सुन बेटियांँ भी कहाँ चुकने वाली थीं। बड़ी बेटी  पायल और बिछिया तथा छोटी बेटी मंगलसूत्र और सिंदूर की डिबिया चढ़ाती हुईं बोली -"माँ ने हम दोनों की शादी में खेत,आधा घर और बगीचे बेचकर दोनों दामाद इंजिनियर लाया हमने भी माँ के लिए यह सामान..........."
उनकी ननद, देवरानी,बहनें,भाभी व अन्य रिश्तेदारों के तरफ से भी कपड़े, श्रृंगार -प्रसाधन मिठाइयांँ,फल मेवे इत्यादि.........।
उनके सबसे छोटे बेटे के पास जाकर चाचाजी ने सलाह देते हुए कहा -"बेटा ! तुम भी अपनी कमाई का कुछ अंश माँ के नाम दान कर दो ,माँ को स्वर्ग में सुख मिलेगा।"
 लेकिन वह अफसोस भरी नजरों से दान के सारे सामानों को देखता रहा।
   " क्यों तुम नहीं दोगे कुछ ?"
 बड़े भाई ने प्रश्न किया तो पिताजी ने कहा -"नहीं!"
     "क्यों नहीं ?" दोनों बड़े भाइयों के मुँह से एक साथ निकाला।
        "क्योंकि यह श्राद्ध कर्म में नहीं श्रद्धा कर्म में ...............।"
     "श्रद्धा कर्म ?"
"हाँ श्रद्धा-कर्म ।तुम्हारी माँ ने दुःख सहकर, जमीन-जायदाद,जेवर गहने बेचकर तुमलोग को पढ़ाया-लिखाया, अच्छे घर में ब्याह किया   इसलिए तुम सभी ने मरने के बाद दिखावा करने हेतु...........।
 लेकिन जब इतने दिनों से माँ बीमार थी तो इलाज करवाने का भी समय और पैसे नहीं थे.....।माँ के अंतिम दर्शन.......
 लेकिन मेरा यह बेटा सीमित कमाई में भी अपनी माँ का इलाज-पानी ,सेवा -सुश्रुषा बड़ी श्रद्धा और प्रेम से किया।    जिंदगी भर तुम्हारी माँ टूटी खाट पर सोती रही और उसपर से ही गिरने के कारण उसकी कमर की हड्डियां टूट गयीं तब कोई उसे एक खाट-चौकी तक नहीं दिया ।यही एक महीने का वेतन उस दिन दिया होता तो शायद उसका अच्छे-से इलाज....
यही मेवे-फल उस दिए होते तो जीते जी उसकी आत्मा तृप्त होती।अब मरने के बाद इन सामानों को दान का ढकोसला और.............. ?         "यदि किसी को ज्यादा श्रद्धा और प्रेम दिखाना है तो उसके जीवन में करो , मरने के बाद  वह व्यक्ति स्वयं इस आकांक्षाओं से मुक्त हो जाता है।सारे दान-दक्षिणा, भोज-भात लोग समाज के दिखाबे के लिए करते हैं।" इसलिए -"मान करो दान नहीं।श्रद्धा में विश्वास करो श्राद्ध में नहीं।"
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

ओ माँझी

ओ माँझी

ओ मांझी ! ओ मांझी!
आजा मेरे प्यारे देश में। 
बार-बार मैं तुझे बुलाऊँ,
 विनती के संदेश में। 
ओ मांझी! ओ मांझी! 

इस देश की है नाव पुरानी। 
पुरवाई बहती बड़ी तुफानी। 
क्या बैठा रहेगा तू जग में? 
बस पत्थर के वेश में। 
ओ मांझी! ओ मांझी! 

तुझ बिन नाव डगमग डोले। 
तुम न आते,न कुछ ही बोले। 
पतवार तेरे हाथ में है तो, 
बैठा क्यों परदेश में? 
ओ मांझी! ओ मांझी ! 

भाई-बंधु आपस में झगड़े। 
कोई दुर्बल है,तो कोई तगड़े। 
क्या बोलोगे नहीं कभी तुम, 
जन-मन के इस क्लेश में। 
ओ मांझी! ओ मांझी! 

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, February 19, 2025

मैं तेरी हमराज़ हूँ ( गज़ल )

तुम मेरे सरताज हो और मैं तुम्हारी लाज हूंँ।
तुम ही मेरी जिंदगी हो, मैं तेरी हमराज हूंँ।

सज रही महफ़िल यहांँ,गायकी के वास्ते,
तुम मेरी संगीत बन जा,मैं तुम्हारी साज हूंँ।

हो रहा है गान अब, हम भी मिलकर गाएंँगे,
तुम हमारी गीत बन जा, मैं तेरी आवाज़ हूंँ।

मेरे सुर में सुर मिला, साथ सरगम लो बजा,
तुम मेरे आलाप हो और,मैं तेरी अंदाज हूँ।

देखो अब सारे जहांँ में, प्यार का सम्राज्य है,
तुम यहांँ सम्राट बन जा, मैं तुम्हारी ताज हूंँ।

मेरे मन में उठ रही,पूरी कर दो कामना 
तुम मेरे मन भेद रख लो,मैं तुम्हारी राज हूँ।

खुशनुमा लगता जहां,जब तुम्हारा साथ हो,
संग मेरे हर कल रहोगे,संग तुम्हारे आज हूंँ।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, January 28, 2025

चोट )लघुकथा/

चोट (लघुकथा) 

पत्नी की तीखी बोली से संजीव का मन बड़ा आहत था। इतनी बेरूखी से सबके सामने डांँटेगी । यह तो कभी उसने सोचा.......... 
क्या हो गया उसे ?
 इतना भी नहीं सोंचा ऐसे अपमान भरे लहजे से मेरे दिल पर....... 
यदि मैं सबके सामने उसे ऐसे ही...............? 
करते तो हो........        हमेशा... .....
हर जगह.........हर समय 
बडो़ं के सामने...... 
छोटों के............सहेलियों .......
पडोसियों........परिवारों ......
सहकर्मियों ..........नौकरों..... 
उसने एक बार.......... 
अपमान से दिल लहू-लुहान........ 
लेकिन वह हमेशा अपमान का घूट पीती है ।तो........... ?
तेरे जैसा उसका दिल..........? नहीं- नहीं! मुझे भी........। उसके सम्मान का...............। 

  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, January 20, 2025

नृत्य गीत

नृत्य गीत

मोर नाचे, मोर नाचे, मोर नाचे।2
सर र सर र सर सर सर। 2
झूम-झूमकर, झूम-झूमकर, झूम-झूमकर। 
मोर नाचे............. 
भारत की भूमि पर मोर नाचे। 
हिमालय की चोटी पर मोर नाचे। 
मोर नाचे........... 
ता ता थै थै, ता ता थै थै
ताक धिन धिना धिना 
ता ता थै थै ता 
गंगा की तट पर मोर नाचे। 
शांति निकेतन पर मोर नाचे। 
धिनकिट-धिनकिट धा
धा धा धिनकि धा
धा धा ,धा धा, धा
आम की डाली पर मोर नाचे । 
कमल के फूल पर मोर नाचे। 
ता ता तैयम तै तै ता आम। 
ता ता, ता ता, ता ता,ता
ताक तुन, धुन धुन धा। 
शिशु मंदिर पर मोर नाचे। 
माँ सरस्वती की वीणा पर मोर नाचे। 
धा धिन, धिन धिन धा 
धिन धिन, धिन धिन धा
तत् तत् थुन थुन दिग्दा दिग् दिग् तै
दिग्दा  दिग् दिग् तै
दिग्दा दिग् दिग् तै 2

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, January 18, 2025

सात रंग है घोला

सात रंग है घोला 

सात रंग की ओढ़ चुनरिया, 
सात रंग का चोला। 
भारत को रंगीन बनाने, 
सात रंग है घोला। 
हाँ जी हाँ हमने घोला, 
मिलकर घोला, सात रंग है घोला। 
रंग बैंगनी💜 कहता है
सारे प्राणी एक समान। 
आसमानी रंग कहता है
स्वतंत्रता अपना है अभिमान। 
भेदभाव मिटा देता है, 
मिलकर रंग यह नीला 🔵। 
भारत को रंगीन.............. 
हरा 💚 हरियाली फैलाता है, 
केसरिया बल बन जाये। 
लाल🔴 रंग है भारत माँ का
जग में मान बढ़ा जाए। 
सुख-समृद्धि को सदा बढाए, 
अपना रंग यह पीला💛। 
भारत को रंगीन........... 
सात रंग की............ 
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, January 16, 2025

रघुपति राघव राजा राम

रघुपति राघव राजा राम। 
पतित पावन सीता-राम। 
ईश्वर अल्लाह तेरे नाम। 
सबको सुम्मति दो भगवान्। 

गाँधी के हम तीन बंदर। 
छल-कपट नहीं मन अंदर। 
रघुपति........... 
मुंह बंद हम अपना रखते।
बुरी बात हम कभी न कहते। 
रघुपति............ 
कान बंद रखते हम भाई। 
कभी न सुनते कोई बुराई। 
रघुपति.............. 
आँखें बंद हम रखते हैं। 
बुरा कभी नहीं देखते हैं
रघुपति............... 
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, January 11, 2025

छोटा मुँह बड़ी बात

छोटा मुँह बड़ी बात

भाई मानो तुम मेरी बात। 
 मत कर छोटा मुंँह से बड़ी बात। 
मत कर छोटा मुँह............
नहीं बडो़ से कभी मुंँह लगाना। 
नहीं उनके आगे गाल बजाना। 
बुरा मत बोलो कभी अठात। 
मत कर छोटा मुंँह........ 
बड़े लोगों का मत करो निरादर। 
मधुर बोली बोलो तुम सादर। 
झूठ न दो किसी को मात।
मत कर छोटा मुँह........
तीखी बोली कभी न बोलो। 
बोलने से पहले मन में तोलो।
दुखी न हो उनका ज्जबात । 
मत कर छोटा मुंँह..............
सुजाता प्रिय समृद्धि'

Tuesday, January 7, 2025

भगवान भला करना (माहिया छंद)

माहिया छंद 

भगवान भला करना 
मेरे संकट को
तुम आकर अब हरना।

तेरे दर आए हैं।
चाहत मन में हम
कुछ लेकर आए हैं।

दुनिया दीवानी है।
कुछ वर पाने की
मन अपने ठानी है।

तुम जग अधिकारी हो।
झोली भर मेरी,
तुम दानी भारी हो।

सब हाल सुनो मेरी।
मेरे दुःख हर लो
तुम करो नहीं देरी।

स्वीकार करो विनती।
भक्तों में अपने 
मेरी तुम कर गिनती।

नित टेकूं सिर अपना।
 पूरण कर दें तू
है मेरा जो सपना।


सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

गणेश वंदना

गणेश वंदना (हरि गीतिका छंद)

हे गजानन, चढ़ मूषक वाहन, गृह आप मेरे पधारिए।
प्रारंभ किया जो काज मैंने,आप उसको संवारिये।।
आये यदि कोई विघ्न तो,प्रभु आप उसको टालिए।
कोई बिगड़े बात तब,प्रभु आप उसको संभालिए।।

आपके चरणों में प्राणि,जब झुकाता माथ है।
आशीष हेतु आपका,उठता सदा ही हाथ है।
आप ही शुभ काज करते,आप दीनानाथ हैं।
जिनका न कोई साथ देता,आप उनके साथ है।

आपके पग को पकड़ हम,विनती करते आज हैं।
हम जो मुख से बोलते ,यह हृदय की आवाज है।।
अब आपके ही हाथ में ,भगवन् हमारी लाज है।
आपसे न है हमारा,छुपा हुआ कोई राज है।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, January 3, 2025

गांधी जी के तीन बंदर

रघुपति राघव राजा राम। 
पतित पावन सीता-राम। 
ईश्वर अल्लाह तेरे नाम। 
सबको सुम्मति दो भगवान्। 

गाँधी के हम तीन बंदर। 
छल-कपट नहीं मन अंदर। 
रघुपति........... 
मुंह बंद हम अपना रखते।
बुरी बात हम कभी न कहते। 
रघुपति............ 
कान बंद रखते हम भाई। 
कभी न सुनते कोई बुराई। 
रघुपति.............. 
आँखें बंद हम रखते हैं। 
बुरा कभी नहीं देखते हैं
रघुपति............... 
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, January 2, 2025

नववर्ष

नववर्ष (सवैया छंद)

आगत का सब स्वागत ले कर,
         आज सभी खुश होकर भाई।
मान अभी अपने मन में सब,
           बीत गया अब ले अंगड़ाई।।
वर्ष नवीन अभी फिर सुंदर,
           वर्ष यही अब हो सुखदायी।
ईश मना सब शीश झुकाकर,
           मांँग सभी मन से वर भाई।।

मास बिता कर जो तुम बारह,
             आगत वर्ष रखें पग प्यारे।
कर्म करो सब नेक तभी यह,
               वर्ष हमार रहे सब न्यारे।।
नेक किये जब काम सभी तब,
              साथ रहे सुर पांँव पसारे।
कर्म सभी चित में रखते तब,
           ही खुश हैं भगवान हमारे।।

आ अब भूल गिले-शिकवे हम,
          आपस में निज हाथ मिला लें।
जो जन रूठ गये उनको भी,
         पास बुलाकर आस दिला लें।।
आज नया दिन है यह सुंदर,
              प्यार भरा मधुमास मना लें।
हैं नव - रुप सजा यह सुंदर,
               आ सबको हम पास बुला लें।।

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'