किसी कारण वश मैं रात में अकेली यात्रा कर रही थी।भाई ने टिकट कटवाकर बस में बैठा दिया।यूँ तो टिकट काउंटर पर आश्वासन देते हुए कहा गया कि किसी महिला यात्री को ही बगल की सीट दी जाएगी।पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से भाई ने दूसरे सीट का भी टिकट कटवाकर मुझे थमा दिया और शख्त हिदायत दी कि यदि कोई महिला इस सीटपर बैठना चाहे तो टिकट के पैसे लेकर बैठा लेना अन्यथा यह सीट भी आपके लिए सुरक्षित है। मैं अपना बैग बगल वाली सीट पर रख ली ताकी कोई उस सीट पर ना बैठे।
दूसरी ओर की सीट पर एक उम्र दराज महिला बैठी थी।अगले ही पल उसी उम्र की एक अन्य महिला पहुँची, जिनके साथ सात- आठ साल का एक बालक भी था, कण्डक्टर ने उन्हें उस सीट पर बैठाते हुए कहा सीटें बड़ी हैं ।आप दोनों के बीच में यह बच्चा भी बैठ जायेगा।और, सचमुच उन दोनों के बीच वह बच्चा आराम से बैठ गया।पर पहली महिला को यह बात नागवार लगी कि उसके बच्चे को बैठने में थोड़ी सी जगह उसकी सीट की भी लगी।उन्होंने झट से अपने दोनों पैरों को सीट पर चढ़ाते हुए पालथी के रूप में फैलाकर आसन लगा लिया। जिस कारण बच्चे को वहाँ बैठने में कठिनाई होने लगी।बच्चा उठकर खिड़की की तरफ चला गया।
अब दोनों महिलाएँ पास-पास थीं। आसन लगायी महिला का घुटना दूसरी महिला की कमर में गड़ रहा था।वह जितना सिमटती पहली महिला के पैरों का दायरा भी बढ़ते जाता।दूसरी महिला ने अनुनय भरे स्वर में कहा-बहनजी! आप अपना घुटना थोड़ा समेट लें,तो मुझे बैठने में थोड़ी सुविधा होगी।
पहली महिला ने झिड़कते हुए कहा- एक सीट पर दो लोग बैठेगें तो दिक्कत तो होगी ही ।
दूसरी महिला ने कहा-बच्चा है।साथ-साथ बैठ गया।बेकार में एक सीट का किराया लगता।आपने पैर ऊपर कर लिया इसलिए दिक्कत हो रही है।
पहली महिला ने कहा-मैं अपनी सीट पर कुछ भी करूँ।पूरी सीट का किराया दिया है ।अपने पैर नीचे रखूँ या ऊपर ।आपको मतलब ?
इस प्रकार दोनों महिलाओं के बीच लगातार कहा- सुनी होती रही।दूसरी महिला के निवेदन पर पहली महिला बार-बार यही कहती।मैने सीट का पैसा दिया है।अपनी सीट पर जैसे चाहूँ वैसे रहूँ।आप बोलने वाली कौन ?
महिला का जवाब सुनकर मुझसे रहा न गया।मैंने गौर से उनकी तरफ देखा।सचमुच पहली महिला अपनी सीट पर बैठी अवश्य थीं परन्तु उनका घुटना बगल वाली आधी सीट तक फैला हुआ था।बेचारा बच्चा आधी सीट में पीछे की ओर दुवका बैठा था, और महिला आगे की ओर लटकी बैठी थी।तेज रफ्तार के कारण बस में झटका होता तो उसकी स्थिति फिसलने जैसी हो जाती। उन महिला की स्थिति पर मुझे बड़ी दया आई।मन किया पहली महिला से कह दूँ कि आप अपनी सीट पर बैठी अवश्य हैं पर आपने अपना घुटना दूसरे की सीट तक फैला दिया है।किन्तु कुछ उन महिला की उम्र का लिहाज और कुछ उनकी समझारी पर विचार करती हुई चुप रही।जिस महिला की सोंच खुद इतनी विकृत है कि मैं अपनी सीट का इस्तेमाल जैसे करूँ।जो खुद किसी की तकलीफ नहीं समझ पातीं,जो किसी की अनुनय विनय नहीं सुनतीं वह क्यो मेरी बातें सुनेंगी।
मैंने कुछ विचार करते हुए दूसरी महिला से कहा- चाची आप बच्चे को मेरे पास भेज दें।
महिला शायद मेरी सीट नहीं देखी थी।उन्होंने पूछा - आपके पास जगह है ?
मैंने कहा हाँ।मेरी दो सीटें है न।
उन्होंने बच्चे को मेरे पास बैठने की इजाजत दे दी।
मैंने अपना बैग नीचे रख लिया।वह खुश होता हुआ मेरे पास बैठने आ गया।
थोड़ी- सी बात- चीत से मैने जान लिया कि वह बच्चा सर्दी की छुट्टियाँ बिताने अपनी दादी के साथ बड़े पापा के पास जा रहा है।थोड़ी देर बाद वह सो गया।
मैने पलटकर उसकी दादी की तरफ देखा। वह भी बेफिक्र होकर अपनी सीट पर सो रहीं थीं।
बगल वाली महिला की ओर देखा।वह भी शांतिपूर्वक नींद ले रहीं थीं।अब उनके पाँव सीट से नीचे लटक रहे थे और शरीर अपनी सीट तक ही सीमित था।
उनके व्यवहारों के बारे में सोंचते-सोंचते ना जाने कब मेरी भी आँखें लग गयी।किसी पड़ाव पर बस रुकी थी।बच्चे की दादी उसे पुकार कर जगा रही थी मेरी भी नींद खुल गयी।बच्चा दादी के साथ जा रहा था ।दादी के इशारे पर उसने मुझे नमस्ते किया।
फिर उसकी दादी ने भी अपने दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया । मैं भी नमस्ते कहते हुए उनकी ओर देखाी।उनकी आखों में कृतग्यता के भाव दिख रहे थे।
बस आगे बढ़ी ।घंटे भर बाद बस रुकी तो पहली महिला भी उतरने लगी।मैं उनके व्यवहारों से दुःखी थी ।उनकी ओर देखना मुझे अच्छा नहीं लगा।
प्रणाम! आवाज की दिशा में मैंने नजरें घुमया।पहली महिला हाथ जोड़कर मेरे निकट खड़ी थी ।मुँह से बोल नहीं फुट रहे थे पर आँखों में आत्मग्लानी और पाश्चाताप के भाव अस्पष्ट झलक रहे थे।
मेरे भी दोनों हाथ स्वतः जुड़ गये।भारी कदमों से महिला बस से नीचे उतर गईं।
सुबह होने वाली थी।सूर्य की लालिमा कोहरे की धुंध हटाने का प्रयास कर रही थी।सप्ताह भर बाद सूरज हँसने वाला था ।
बस फिर आगे बढ़ी ।अगली मंजिल मेरी थी।ठंढ की कपकपाहट भी दिल को कुुछ सुकून दे रहा था।
सुजाता प्रिय
Monday, December 30, 2019
आत्मग्लानी ( एक सच्ची घटना )
Friday, December 20, 2019
न्याय
न्याय-न्याय तो सब चिल्लावे,
अन्याय न कोई छोड़े रे।
मन में न्याय कोई न लावे,
अन्याय से नाता जोड़े रे।
न्याय पर चलना सभी बतावे,
उस राह से स्वयं मुख मोड़े रे।
स्वाचरण सुधार न पावे,
पराचरण पर मारे कोड़े रे।
अपना सिर तो सभी बचावे,
दूजे का सिर फोड़े रे।
न्याय तंत्र को बुरा बताबे,
लोकतंत्र को रोड़े रे।
जन जागरण तो बहुत करावे,
मन भी जगा लो थोड़े रे।
न्याय सभी को तभी मिलेगा ,
जग हित से स्वयं को जोड़े रे।
सुजाता प्रिय
Thursday, December 19, 2019
कुल्हड़ की चाय
खूब फरमाया आपने
कुल्हड़ में चाय पीने का
मजा ही कुछ और है।
गौर तलब हो कि क्यूँ
कुल्हड़ में चाय पीने का
मजा ही कुछ और है ?
हाँ जी हाँ मैं ही बताये देती हूँ।
भलि प्रकार
आप सबको समझाये देती हूँ।
क्यों
चाय पीने का मजा कुल्हड़ में है।
अजी प्याले में वो खुशबू कहाँ
जो हमारा प्यारा कुल्हड़ में है।
स्वदेशी माटी की सोंधी- सोंधी,
भीनी -भीनी खुशबू से भरपूर।
पवित्रता व प्यार के लिए
सारी दुनियाँ में मशहूर।
अगर चाय मिट्टी के चुल्हे पर
गोइठे की आँच पर बनी हो।
तो कुछ और मजा आता है।
चाय मिट्टी की पतीली में बनी हो
तो कुछ और मजा आता है।
चाय में चीनी की जगह,गूड़ मिला हो
तो कुछ और मजा आता है।
पाउडर के बदले गैया का दूध मिला हो
तो कुछ और मजा आता है।
वैसे,इक राज की बात बताऊँ।
सच्ची है बात, अभी समझाऊँ।
मैं खुद चाय नहीं पीती,
लेकिन सबको पिलाती हूँ।
इतने सारे अनुभव मैं,चाय
पीने वालों से ही पाती हूँ।
अगर आपको भी पीनी है,
देशी माटी की पतीली में,
देशी गाय के दूध की बनी,
सोंधी और मीठी चाय।
तो अपनी माटी की कुल्हड़ में,
गरमा- गरम पिलाऊँ।
कहें तो थोड़ा अदरक और
तुलसी भी डाल स्वाद बढ़ाऊँ।
सुजाता प्रिय
Wednesday, December 18, 2019
जीवन के पाठ
पाँच पाठ जीवन के पढ़ लो,
जनम सफल हो जाएगा।
दुःख वेदना दारिद्र कभी भी,
पास न तेरे आएगा।
प्रथम पाठ संयम का भाई,
हँसकर इसको गले लगाओ।
मन में अधीरता जब भी आए,
झट से उसको दूर भगाओ।
धैर्य धरो तो धाम तुम्हारा,
चलकर तुझ तक आएगा।
दया का दूजा पाठ रे प्यारे,
प्राणि जन पर दया करो।
निर्दयता को दूर भगाकर,
प्रेम परस्पर सदा करो।
सबसे बढ़कर प्रेम दान है,
तुझे भी मिलता जाएगा।
है तीसरा पाठ क्षमा का,
क्षमाशील बन दिखलाओ।
क्षमा प्रार्थी के अपराधों को।
कभी न मन में तुम लाओ।
अनजाना अपराध भी तेरा,
क्षम्य सदा हो जाएगा।
चतुर्थ पाठ त्याग का है,
जीवन में कुछ कर ले त्याग।
नंगे को कुुछ वसन दे अपना,
भूखे को भी दो रोटी -साग।
जितना दोगे भंडार तुम्हारा ,
उतना ही बढ़ता जायेगा।
पंचम पाठ मनोबल का है,
मन को सुदृढ़ बनाते जाओ।
दृढ़ विश्वास जगाकर मन में,
ऊँचे तक तुम चढ़ते जाओ।
सदा सफलता स्वयं तुम्हारे,
कदम चूमने आएगा।
सुजाता प्रिय
Friday, December 13, 2019
अलाव के निकट
निकट बगीचे से मंगली चाची,
सुखी लकड़ियाँ बीनकर
लायी।शाम ढली तो
वह घर के आगे,
उसे जोड़कर
अलाव
जलायी।
अलाव देखकर लक्ष्मी दादी,
लाठी टेक लपकती आई।
पारो काकी भी जब
देखी,झट से
आई फेक
रजाई।
चौका-पानी कर गौरी बूआ,
हाथ-पाँव फैला गरमाई।
टोले के बच्चों को
उसने,'पूस की
रात' कथा
सुनाई।
नेहा ,बबली ,चुन्नी , रानी,
गुड़िया लेकर दौड़ीआई।
पप्पु ,मुन्ना राजू चुन्नु ने,
चटपटे चुटकूले
खूब
सुनाई।
कल्लू चाचा बीरन दादा ने,
गाये रामायण की चौपाई।
बूआ, दादी, चाची
मिलकर,भजन
करी बड़ी
सुखदाई।
अलाव की यह सोंधी खुशबू,
हर पीढी के मन में भाई ।
ठिठुरन दूर किया
हम सबका,सर्दी
ने जब हमें
सताई।
एकता का प्रतीक अलाव,
एक सूत्र में सबको
बंधबाई।अलाव
ने सबको गर्मी
देकर,जग
हितकारी
संदेश
सीखाई।
सुजाता प्रिय
Sunday, December 8, 2019
ऐ मनुज
ऐ
मनुज
तू फूल बनकर,
इहलोक को कर दो सुगंधित।
अमर धरा पर रहो सदा,
इस बाग को करके सुसज्जित।
दुर्गंध
कहीं आने पाये,
दुर्भावनाओं की कभी।
वातावरण ऐसी महकाओ,
जीव सारे हो जाये पुलकित।
दुराचरण
मैला वसन है,
खोल इसको फेक दो।
छल-कपट, फरेब से मत,
कर कभी सुख ,नाम अर्जित।
अहंकार
को तुम दूर कर ,
अंतःकरण को स्वच्छ कर,
दुर्विचारों,दुर्गुणों को,
मन से,अपने कर दो वर्जित।
फूल-सी
मुस्कान तुम,
बिखेर अपने होठ पर,
हँसो और सबको हँसाओ,
जिससे सारा जग हो जाये हर्षित।
सुजाता प्रिय