Sunday, April 25, 2021

वर्तमान में वर्धमान की आवश्यकता



हे महावीर त्रिशला के नंदन।
हाथ जोड़ कर तुझको वंदन।
सिद्धार्थ पिता के पुत्र वर्धमान।
जैन के अंतिम तीर्थंकर महान।

सत्य का आज हुआ घोटाला।
झूठ-फरेब का है बोल-बाला।
तेरे सिद्धांतों पर हम चलते।
मक्कारी नहीं हृदय में पलते।

अहिंसा के यदि पाठ हम पढ़ते।
हिंसा के हम पथ पर नां चलते।
दुनिया में अब आतंक ना होता।
निर्भय होकर हर मानव है सोता।

अगर औचर्य का मार्ग अपनाते।
सबको सुख दे, स्वयं सुख पाते।
कहीं नहीं होता अब भ्रष्टाचार।
मुसीबत में नहीं घिरता संसार।

ब्रम्हचर्य को जीवन में हम लाते।
जनसंख्या को नियंत्रित कर पाते।
यहां न करता कोई भी व्यभिचार।
बहनों का न कभी होता बलात्कार।

अपरिग्रह की अगर लेते हम शिक्षा।
'मैं'और 'मेरा'की मिटाने की दिक्षा।
देश की गरीबी हम हैं दूर भगाते।
अमीर-गरीब का सब भेद मिटाते।

जीओ और जीने दो का सिद्धांत।
अपनाकर मन यह हम करते शांत।
हे भगवान हमारे महावीर वर्धमान।
आवश्यकता तेरी चाहता वर्तमान।

        स्वरचित, मौलिक
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
         रांची, झारखण्ड

Saturday, April 24, 2021

वृक्षों की चेतावनी



मिटाकर तुमने हमें तमाम।
लो यह देख लिया अंजाम।

जंगल के वृक्षों को काट।
लताओं-झाड़ियों को छांट।
दिए तुम मरूभूमि में पाट।
महल बनाकर करते ठाट।
काट वृक्षों को कियेआराम।
लो यह देख लिया अंजाम।

 देख प्रकृति है तुझसे क्रुद्ध।
काम किए हों इसके विरुद्ध।
पर्यावरण को कर अशुद्ध।
वायु के लिए कर रहे युद्ध।
कभी न रखे इसपर ध्यान।
लो यह देख लिया अंजाम।

आया समय बड़ा विकराल।
बीमारी बनकर आया काल।
पहुंच रहे हो सभी अस्पताल।
नाकों में आक्सीजन डाल।
तड़प रहे अब सुबह-शाम।
लो यह देख लिया अंजाम।

अगर धरा पर वृक्ष लगाते।
थोड़ी छाया का सुख पाते।
पौष्टिक मीठे फल भी खाते।
सांसों में शुद्ध वायु भी पाते।
सब बातों से रहकर अंजान।
लो यह देख लिया अंजाम।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
        स्वरचित, मौलिक

Wednesday, April 21, 2021

माता महागौरी



हे माता महागौरी! तुझको सहस्त्र कोटि नमन।
स्वेत वृषभ पर आरूढ़,स्वेत वस्त्र तेरा स्वेत वरण।
सदा पवित्र रह महादेव को करती हो आनन्द प्रदान।
हे सृष्टि की आदि देवी, करती त्रिदेवों का ध्यान।
भुवनेश्वरी, प्रत्यंगिरा, सीता, सावित्री सरस्वती।
ब्रह्मानंद,कला तुम ही मां तुम ही हो पराशक्ति।
सम्पूर्ण जगत में तुम ही माता,हो केवल अविनाशी।
सम्पूर्ण चराचर में व्याप्त,सब जीवों की सहवासी।
महाशक्ति तुम ही हो, आधारभूता प्रकृति सदावरण।
मायाधीश तुम हीहो,संहारकारिणी,सदाकरण।
तुम ही आद्या नारायणी, शक्ति,तुम ही प्रकृति विस्तारक।
तुम ही भर्ता,तुम ही भोक्ता,तुम ही शाश्वत संचालक।
तुम्हीं दया हो, तुम्हीं क्षमा हो, तुम्हीं क्षुधा-तृष्णा स्मृति।
तुम्हीं निद्रा तुम्हीं श्रद्धा, तुम्हीं तृप्ति, भक्ति मातृ धृति।
तुम्हीं तुष्टी, तुम्हीं पुष्टि,लोभ , लज्जा कांति।
समस्त शक्ति तुम ही माते, तुम्हीं शांति तुम्हीं क्रांति।
तुम्हीं राधा तुम्हीं सीता, तुम्हीं लक्ष्मी सती दुर्गा।
तुम्हीं दुर्गति नाशिनी, तुम मेनका पुत्री नवदुर्गा।
साधुओं की तुम रक्षा करती, दुष्टों की करती संहार।
हे धर्म की रक्षक माता, तुझे नमन है बारम्बार।

जय मैया शेरोंवाली 🙏🙏🙏🙏🙏
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
               स्वरचित, मौलिक

Sunday, April 18, 2021

अयोध्या नगर को प्रणाम



अयोध्या नगर को प्रणाम, जहां श्रीराम जन्में।
दशरथ के घर को प्रणाम, जहां श्रीराम जन्में।
भारत भूमि को प्रणाम, जहां श्रीराम जन्में।

राम जी जन्में और भरत जी जन्में।
जन्में लखन शत्रुघ्न, जहां श्रीराम जन्में।

पिताजी की आज्ञा पालन को रामजी।
गये चौदह बरस वनवास, जहां श्रीराम जन्में।

रामजी के प्रेम में सीता और लक्ष्मण,
दोनों गये उनके साथ, जहां श्रीराम जन्में।

भरत जी अयोध्या में राज्य चलाए,
सिंहासन पर रखकर खड़ाऊ, जहां श्रीराम जन्में।

शत्रुघ्न जी भरत जी संग में रहते,
भाई थे चारो महान, जहां श्रीराम जन्में।

राम लड़े जब रावण से जाकर,
लखन को लगा शक्ति वाण, जहां श्रीराम जन्में।

संजीवनी के लिए पर्वत ले आये,
रामभक्त वीर हनुमान,जहां श्रीराम जन्में।

राम जी के जैसा राज्य न मिलता,
ढूंढ लो दुनिया-जहान, जहां श्रीराम जन्में।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                 स्वरचित, मौलिक

Wednesday, April 14, 2021

तेरी चुनरी मां (माता रानी के गीत)



   
तेरी चुनरी मां!
कि आय हाय तेरी चुनरी मां।

तेरी चुनरी लाल मैया,अंग तेरे शोभे।
तेरी चोली हरी मैया,संग उसके शोभे।
चमक उसमें शोभे रे,शोभे रे, शोभे।
लगा गोटा मां! 
कि आय हाय लगा गोटा मां।

तेरे मांग में मैया, सिंदूर-टीका शोभे।
तेरे माथे में मैया , लाल बिंदिया शोभे।
नाक तेरे शोभे रे, शोभे रे, शोभे।
तेरा नथिया मां!
कि आय हाय तेरा नथिया मां!

तेरे कानों में मैया , स्वर्ण झुमक शोभे।
तेरे हाथों में मैया,चूड़ा - कंगन शोभे।
तेरे गले शोभे रे, शोभे रे, शोभे
तेरी माला मां!
कि आय हाय तेरी माला मां!

तेरे पावन चरणों में,तेरा पायल शोभे।
तेरे पायल में झुन-झुन झनक घुंघरू शोभे।
वो संग में शोभे रे, शोभे रे, शोभे,
तेरी बिछिया मां!
कि आय हाय तेरी बिछिया मां।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित, मौलिक

Tuesday, April 13, 2021

आराधना। (मां जगदम्बे गीत )



उड़हुल फूलों का हार, 
लेकर आई तेरे द्वार,
जगदम्बा पहनाऊंगी,
 तेरे गले डार।
कर लो विनती स्वीकार, 
सबको दे दो अपना प्यार।
जगदम्बा मनाऊंगी,तुझको बारम्बार।

कर जोड़ खड़ी हूं मैं मां तेरे द्वारे।
हम सबका जीवन तुम ही संवारे।
पकड़ मां मेरी भी पतवार,
कर दो नैया उस पार,
जगदम्बा मनाऊंगी तुझको बारम्बार।
उड़हुल फूलों का हार...........

करके आराधन तुझको पुकारें।
दुःख-दारिद्रा से तुम ही उबारे।
सुख की गिरती है फुहार,
मुख से निकले जय-जयकार,
जगदम्बा मनाऊंगी, तुझको बारम्बार।
उड़हुल फूलों का हार.........

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
            स्वरचित, मौलिक

Sunday, April 11, 2021

वसंत अब जवान हो रहा



बालेपन अपना है खो रहा।
हां वसंत अब जवान हो रहा।

झड़ गई पेड़ों की मंजरियां।
लटक गईं असंख्य निबौरियां।
यौवन से लदे हुए पेड़ों के,
फलों में बीज है बो रहा।
हां वसंत अब ज़बान हो रहा।

कर रहा प्रकृति से ठिठोलियां।
मधुर बयार से कर हठखेलियां।
किलोल कर रहा है प्रेम से,
भोलापन अपना है खो रहा।
हां वसंत अब जवान हो रहा।

तितलियों के नृत्य जम रहे।
भंवरों के मीठे गीत थम रहे।
सुगंध से सुवासित दिशां-दिशा,
कोयल भी मीठा तान खो रहा।
हां वसंत अब जवान हो रहा।

इच्छा प्रवास की ले प्रबल।
बुला रहा ग्रीष्म को हो विकल।
विदाई में हाथ को डुला कर,
दो दिनों का मेहमान हो रहा।
हां वसंत अब जवान हो रहा।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
          स्वरचित, मौलिक

स्वामी दयानंद सरस्वती


स्वामी दयानंद सरस्वती

बारह दो अठारह सौ चौबीस।
अवतरण लिए वे थे पर हित।
नाम उनका  था मूल  शंकर।
विद्या-बुद्धि- गुण से थे प्रखर।
पैतृक गांव उनका था  टंकारा।
जहां के थे वे आंखों का तारा।
करशन जी थे पिताजी उनके।
यशोदा वाई माता थी जिनकी।
गुरु उनके विरजानंद दण्डीश।
शिक्षा देते थे  वे उन्हें अहर्निश।
राष्ट्रीयता भारतीय,धर्म था हिन्दू।
संस्कृत भाषा थी जीवन की बिंदू।
धार्मिक पाखंडों का कर खंडन।
सहज छुड़ाए  सब  झुठा बंधन।
सत्य का उन्होंने ज्योत जलाया।
समाजिक बुराई को दूर भगाया।क्ष
ईश्वर भक्त थे सरस्वती दयानंद।
ईश्वर भक्ति से उनको था आनंद।
वेदों की ओर लौटो उनका नारा।
वेदों से होगा जीवन  उजियारा।
वेदों के भाष्य से ऋषि कहलाए।
महता वेदों की सबको बतलाए।
आर्य समाज के थे वे संस्थापक।
गुरुजनों के थे वे आज्ञापालक।
महाऋषि थे और महान चिंतक।
सदा अनुआयी रहते नतमस्तक।
सिद्धांत,पुनर्जन्म,ब्रह्मचर्य,संन्यास।
थे उनके दर्शन -  स्तम्भ ये खास। 
सत्यार्थ प्रकाश थी उनकी रचना। 
लक्ष्य आर्य समाज का प्रचार करना।
स्वतंत्रता-संग्राम के थे प्रणेता।
इनके कारण हम बने विजेता।
अजमेर उनकी पुण्य भूमि,राज्य राजस्थान।
अंतिम सांस लिए जहां,महात्मा पूज्य महान।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
               रांची, झारखण्ड
              स्वरचित, मौलिक
             अप्रकाशित रचना

Friday, April 9, 2021

संकल्प हमारा



हम देश को बनाएंगे, गुलशन से भी प्यारा।
बन जाए हिन्द मेरा, संसार में न्यारा।

इसकी गली-गली में,बसे प्यार के ही घर हों।
बसी प्यार की ही बस्ती,बसे प्यार के नगर हों।
पंगडंडियां प्यार की हों,और प्यार के डगर हों।
मंदिर भी प्यार की हो, पूजा जिधर-जिधर हो।
स्वर प्यार के ही गूंजे, संकल्प हमारा।
बन जाए हिंद मेरा..............

इसके वन-उपवन में,लगे वृक्ष प्यार के हों।
पेड़ों की डालियों में,लगे फल भी प्यार के हों ‌।
फुलवारियों में खिलती क‌लियां भी प्यार की हो।
पर्वतों पर इसकी, चोटियां भी प्यार की हों।
नदियों के दोनों कूल में,बहे प्रेम की धारा।
बन जाए हिंद मेरा.................

हम रोशनी करेंगे, प्यार के दिये जलाकर।
दूर होगा अब अंधेरा, नफरतों को मिटाकर।
हम भेद-भाव छोड़े,मन से सभी हटाकर।
दुखित-पीड़ित जनों को,अपने गले लगाकर।
हम एक सुर में बोलें, मिल्लत का नारा।
बन जाए हिंद मेरा...................

हम मातृ भू की मस्तक, सत्कर्म से मढ़ेंगे।
पग-पग कदम मिलाकर,ऊपर तलक चढ़ेंगे।
जब राह ना मिले तो,नव पंथ हम गढ़ेंगे।
हम साथ-साथ चलकर, मंजिल तरफ बढ़ेंगे।
अपने सभी जनों को, देकर के हम सहारा।
बन जाए हिंद मेरा.................
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
     स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित

Wednesday, April 7, 2021

महक की जरूरत



फूल सुंदर बहुत है चमन में,
    बस महक की जरूरत उन्हें।
 रंग देकर बनाया विधाता,
      है बहुत खूबसूरत उन्हें।

गुल महक के बिना है अधूरा,
       चाहे जितना वो सुंदर दिखे।
 दूर रहती हैं उनसे तितलियां,
         चाहे रूप का समंदर दिखे।
तान भौरों की हो जाती धीमी,
           फूल लगता है मूरत उन्हें।
फूल सुंदर बहुत है चमन में,
       बस महक की जरूरत उन्हें।

जब बहारों का मौसम है आता,
     तो फिज़ा में है गुल मुस्कुराता।
एक भीनी-सी खुशबू हो जिसमें,
    गुल वही है सभी जन को भाता।
रूप चाहे हो जितना भी प्यारा,
           गुण से भाता है सूरत उन्हें।
फूल सुंदर बहुत है चमन में,
         बस महक की जरूरत उन्हें।

फूल तब ही नजर हमको आता,
      जब उसके निकट हम हैं जाते।
पर महक है स्वयं उड़ के आती,
       हम गंध से सुवासित हो जाते।
जिन फूलों में गुण हो महक की,
        लोग कहते हैं खूबसूरत उन्हें।
फूल सुंदर बहुत है चमन में,
         बस महक की जरूरत उन्हें।

           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
              स्वरचित मौलिक

कर्म बदलते भाग्य



कर्म किए जा लगन लगाकर, करके तू ये आस।
कर्म हमारे भाग्य बदलते,मन में रख विश्वास।

कर्म हमारा सच्चा साथी,हर पल चलता संग।
मेहनत से जो काम करें हम,लाता एक दिन रंग।
कर्म के पथ पर बढ़ते जाओ,मत कर मन उदास।
कर्म हमारे भाग्य बदलते,मन में रख विश्वास।

कर्म करो तो इक दिन तुझको मिलेगा इसका फल।
कर्म करने वाले का होता,जीवन सदा सफल।
सफलता तेरे पग चूमेगी, भर जीवन में  उल्लास।
कर्म हमारे भाग्य बदलते,मन में रख विश्वास।

कर्म को अपने बुरा न करना,कर्म ही जीवन सार।
जीवन जीने का मर्म यही है,करो कर्म से प्यार।
कर्म हमारा जीवन धन है,कर्म के हम हैं दास।
कर्म हमारे भाग्य बदलते,मन में रख विश्वास।
                स्वरचित, मौलिक
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                

Friday, April 2, 2021

माफ करो मेरी गुस्ताखी



अपने चेहरे पर रखकर हाथ।
मुनियां रानी ने ढक लीं आंख।

जिज्ञासा वश कलम को खोली।
स्याही को कापी  पर उढ़ेली।

तभी वहां पर पिताजी आये।
शरारत देख फटकार लगाए।

बिटिया तुने क्या कर डाला।
सारे पन्ने को कर दी काला।

डर से उसका मन घबराया।
नयनों में उसके भय समाया।

अनजाने में काम बिगाड़ी।
कलम से गिरी स्याही सारी।

मन-ही-मन में बोली बात।
छुपी नज़रों में थी जज़्बात।

अपराध बोध मन में आया।
उसने दांतों से जीभ दबाया।

आंखें ढक कर मांगी माफी।
पिताजी माफ़ करो गुस्ताखी।

देख पिता का मन भरमाया।
उठा बिटिया को गले लगाया।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
         स्वरचित, मौलिक

हम भारत की बेटियां हैं



हम भारत की बेटियाँ हैं , इसका मान  बढ़ाएँगे।
देश की रक्षा के निमित हम,हँसकर प्राण गवाँएगें।
कोई भारत माँ पर अपनी,बुरी नजर अब डालेगा।
इसकी धरती पर कब्जे की मन में सपने पालेगा।
हम संहार के लिए खड्ग ले रणचण्डी बन जायेंगे।
देश की रक्षा के निमित्त...........।
हम सती के पुण्य धरोहर, माता दुर्गा की अवतार।
हम मैदां में डटकर रहती,लेकर हाथ खड्ग-तलवार।
हम काली कपालिनी बनकर रिपुदल को मार भगाएंगे।
देश की रक्षा के निमित्त....................।
अब किसी की गुलामी, हमको है स्वीकार नहीं।
मेरी पावन धरती पर,किसी का हो अधिकार नहीं।
अपनी जौहर की ज्वाला में दुश्मन को जलाएँगे।
देश की रक्षा के निमित .................।
हम भारत की नूतन आशा,मन में रखती हूं उल्लास।
कर्मपथ पर बढ़ती जाती, लेकर मन में दृढ़ विश्वास।
हम देश के पावन पन्ने पर नव इतिहास रचाएंगे।
देश की रक्षा के निमित्त...................।
सीमा की रक्षा की खातिर,हम प्रहरी बन जाएगें।
अपने घर के वीरों को भी,अपने साथ लगाएँगे।
हम चुड़ावत की हाड़ा बन,मुण्डमाल बन जाएँगे।
देश की रक्षा के निमित................।

          सुजाता प्रिय'समृद्धि'
     स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित