Saturday, August 31, 2024

जय-जय हिन्दी बोलिए

जय-जय हिन्दी बोलिए 

सबसे प्यारी हिन्दी भाषा, हिन्दी में सब बोलिए।
इसके संग किसी भाषा को,पलड़े में मत तोलिए।

सीखिए कोई भी भाषा, सीखना-सीखाना धर्म है,
सबके रंग में अपनी भाषा, हिन्दी के रंग घोलिए।

चुनना हो कोई भाषा तो, हिन्दी को अपनाइए,
इससे न अच्छी कोई भाषा,इधर-उधर मत डोलिए।

सभी भाषा से सरल है,इसे सीखना आसान है,
विशेषता है हिन्दी की,यह राज सारे खोलिए।

राष्ट्रीय भाषा भी बने यह,इसका मान बढ़ाइए,
बहुत विदेशी भाषाओं को,आज तक हम ढो लिए ।

हिन्दी दिवस मनाइए, हिन्दी के गुण गाइए,
देशवासी जाग जाएंँ, नींद गहरी सो   लिए।

संस्कृत की प्यारी बिटिया, बड़ा सलोना रूप है,
हिन्द के माथे की बिंदी,जय-जय हिंदी बोलिए 
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 29, 2024

हिन्दी वर्णमाला

                    हिन्दी वर्णमाला 

अल्फाबेट बहुत सीखे हम, सीखें हिंदी वर्ण।
हर वर्ण का मान बड़ा है ,जैसे लगता स्वर्ण।।

मानक वर्ण हिन्दी केभाई,होते हैं पूरे बावन।
कभी-कभी भी आते हैं, नहीं छोड़ते दामन।।

तेरह वर्ण पहले सीखो,जिसको कहते स्वर।
स्वर की मात्राएं सदा,लगती है व्यंजन पर।।

ग्यारह वर्ण स्वर के ऐसे,जिनका पूरा थाह।
इसके दो वर्णों को, कहते हैं आयोग वाह।।

व्यंजन वर्णों के भी हैं,बहुत ही बड़ा समुह।
स्वर से मिल पूरा होते,जब भी खोलो मुँह।।

पाँच वर्णों के होते हैं,यहाँ पर पूरे पाँच वर्ग।
प्रथम वर्ण के नाम पर,कहाते कवर्ग-चवर्ग।।

चार वर्ण कहलाते हैं, जान  लें अंतस्थ वर्ण।
चार वर्ण घर्षण पा, कहलाते हैं ऊष्म वर्ण।।

चार वर्ण कहलाते यहाँ, सुनिए संयुक्त व्यंजन।
दो वर्ण नीचे बिंदु पा,कहाते उत्क्षिप्त व्यंजन ।।

हिन्दी वर्णों के इस समुह,को कहते वर्णमाला।
आसानी से इसे सीखते, हैं बालक और बाला।।

             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

हिन्दी वर्णमाला

अल्फाबेट बहुत सीखें तुम,सीखो हिन्दी वर्ण।
हर वर्ण का महत्व बहुत है, जैसे धातु स्वर्ण।
ग्यारह वर्ण स्वर के ऐसे, होता महत्व अथाह।
इसके दो वर्णों को हम,कहते हैं आयोगवाह।

Wednesday, August 28, 2024

जन्माष्टमी (मन हरण घनाक्षरी)

जन्माष्टमी (मन हरण घनाक्षरी)

अंधेरी,आधी रात में,
    भादों के बरसात में,
       शुभ दिन जन्माष्टमी,
           नाच  रहे  जन   हैं।

आये कान्हा गोद में,
   झूमों मंगल - मोद में,
        वसुदेव-देवकी का,
              पुलकित  मन  है।

विष्णु के अवतार हैं,
    करते  बेड़ा  पार हैं,
       मथुरा निवासियों का,
              खुश   चितवन  है।

कान्हा सबको तारते,
     संताप  से   उबारते,
         दीन-हीन सेवकों को,
               देते  धन - जन  हैं।

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

हिन्दी भाषा जिन्दाबाद (गीत)

हिन्दी भाषा जिंदाबाद 

हिन्दी भाषा बोलो सब मिल,
सदा ही रखना इसे आवाद।
कहो हिन्द के हिन्दी-भाषी,
हिन्दी  भाषा  जिन्दाबाद।।
कहो हिन्द के.............

हिन्दी भाषा बड़ी मनोहर।
गर्व करो इसको अपनाकर।
हिन्दी ने परतंत्रता तोड़ी-
 हुआ हमारा देश आजाद।।
कहो हिन्द के.............

रच हिन्दी में छंद तुम प्यारे।
कथा-कहानी ग्रंथ तू न्यारे।
विदेशी भाषा को अपनाकर-
हिन्दी को मत कर बर्बाद।।
कहो हिन्द के............

कागद हिन्दी से सिंचित हो।
गीत-कविता से गुंजित हो।
क्षेत्रीय भाषाओं में भी तुम-
हिन्दी शब्दों को रखना याद।।
कहो हिन्द के...........

पढ़ो अगर तुम हिन्दी भाषा।
रखो मन में यह अभिलाषा।
हर भाषा के ग्रंथों का होवे-
हिन्दी भाषा में अनुवाद।।

कम न हो हिन्दी की महिमा।
सदा रहे बनी इसकी गरिमा।
हिन्दी से ही है हिन्द हमारा-
मिटाता जो मन के अवसाद।।
कहो हिन्द के..............
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, August 25, 2024

कृष्ण भजन


कृष्ण भजन 

सुन लो पुकार मेरी कृष्ण कन्हैया।
पकड़ पतवार, मझधार मेरी नैया।
सुन लो......
भटक रही आज मुझे राह नहीं सूझे।
करो न निराश मुझे आस नहीं दूजे।
दिखा दो तुम राह मुझे वंशी बजैया।
सुन लो .......
दिल की तड़प मेरी कोई न जाने।
समय पर अपने भी होते बेगाने।
मन के क्लेश मिटा रास रचैया।
सुन लो...........
एक विनती प्रभु सुन लो तू मेरी।
पूर्ण कर आज काज,लगाओ न देरी।
मेरी नौका के तुम ही हो खेवैया।
सुन लो......
हाथ जोड़ समृद्धि करती पुकार है।
दूर कर मन में जो आता दुर्विचार है।
हे कृष्ण द्रौपदी के लाज बचैया।
सुन लो......
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, August 20, 2024

अनपढ़ बुढ़िया कहानी

अनपढ़ बुढ़िया (कहानी)

बार-बार मोबाइल में कॉल करती और रिंग होते ही काट देती।उसे हिम्मत नहीं हो रहा था कि अनुपमा मैम से बात करे। ऑनलाइन क्लास में उनकी खनकती आवाज से ही लगता है कि वह किसी खास व्यक्तित्व की मल्लिका हैं।इस कॉलोनी में रहने आई तो उसे इस बात की खुशी हुई की उसकी मैम भी इसी कॉलोनी में रहती हैं ।कॉलेज में एडमिशन होते ही लॉकडाउन लग गया और ऑनलाइन क्लासेस स्टार्ट हो गए।उससे बड़ा मुश्किल लगता ऑनलाइन क्लास में कुछ समझ में आएगा कि नहीं ?
लेकिन नहीं क्यों ? मैं इतनी संजीदगी से क्लास लेती हैं ।बहुत ही बारीकी से हर चैप्टर को पढाती हैं।
लेकिन कुछ कैप्टरों को वह फिर से मैम से पढ़ना चाहती है।इसलिए जब मॉर्निंग वॉक पर निकली तो वापसी में ख्याल आया मैं से कॉल कर पूछ लूं, किस रोड में रहती हैं ।
वाह!मैम ने जो रोड बताया वह तो उसी रोड में चल रही है। उसने हाउस-नंबर पूछा और चल पड़ी। यह क्या यह तो वह अपने ही किराए के मकान के निकट पहुंच गई।
 मैम हाउस का कोई नाम भी है ?
 हांँ है ना , "अनमोल विला" उसने पढ़कर देखा उसे अपने आप पर बड़ी जुंझलाहट महसूस हुई। इस घर में इतने महीने से रह रही है और उसका नाम तक नहीं पढ़ सकी। 
मैम से फोन पर बात करती-करती वह घर के अंदर घुसी मैम ने कहा मैं लेफ्ट साइड के बरामदे में पिंक साड़ी पहने बैठी हूंँ। वह आगे बढ़ी । मैम यहाँ रहती है, और मैंने उन्हें कभी देखा तक नहीं ? 
वह लपकती हुई मैम के सामने पहुंच गई।
अरे ! यहांँ तो उसकी मकान मालकिन बैठी मिली ।
मुझे अनुपम मैम से मिलना है ।
हांँ हांँ मैं ही हूंँ अनुपमा ।
उसके सिर पर घड़ों पानी पड़ गया ।
जिनकी वेश-भूषा देख वह उन्हें अनपढ़ बुढ़िया कहती थी, वह उसकी तेज दरार अनुपमा मैम हैं। उसे सारी बातें याद आने लगी जब वह अनुपमा मैम को कुछ पूछे जाने पर उनसे ऐठ कर उत्तर देती थी कि आपको समझ नहीं आएगा। पढ़ाई के बारे में पूछे जाने पर वह बोलती कि हमारा ऑनलाइन क्लास होता है आप क्या जानें यह सब ।वह तो भली महिला थीं जो 
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 8, 2024

देश हमारा (लघुकथा)

देश हमारा (लघुकथा)

अंतरराष्ट्रीय खेल क्रिकेट मैच का अंतिम दिन था। पिछले दिन की पारी में भारत की बढ़त से भारत के नगरों-शहरों के लोग ही नहीं बल्कि छोटे- छोटे कस्बों और गांँवों के लोग भी अत्यंत उत्साहित थे।जीत की आस  प्रत्येक क्रिकेट-प्रेमी के दिल में लगाये थे।जहाँ जाओ वहाँ क्रिकेट की ही चर्चा छिड़ी होती।सभी मना रहे थे कि अपना देश 'भारत' जीत जाए।
तभी कहीं से कुछ शोर सुनाई पड़ी।उस शोर को सुन भरत उधर देखने लगा....
"जीतेगा भई जीतेगा !
देश हमारा जीतेगा !
भारत प्यारा जीतेगा !
क्रिकेट खेल का-
विश्वगुरु भारत जीतेगा !"
तरुण वर्ग के बच्चों का समुह नारे लगाते हुए वहाँ से चले जा रहे थे ।
    उन बच्चों को उत्साह उमंग और आत्मविश्वास देख मुहल्ले वासियों हृदय प्रफुल्लित हो गया।
वहाँ बैठी तरुणा चाची ने मुँह बनाते हुए कहा-"क्रिकेट खेल का उद्गम स्थल इंग्लैंड है, फिर भारत क्रिकेट खेल का गुरु कैसे बन गया ?"
जनक दादा ने कहा -"निसंदेह क्रिकेट खेल इंग्लैंड में प्रारंभ हुआ। और,यह खेल इंग्लैंड और श्रीलंका का राष्ट्रीय खेल भी है।परन्तु भारतीय खिलाड़ी अधिक कुशलतापूर्वक इस खेल को खेलते हैं। इन्हें इस खेल में जितनी महारथ प्राप्त है उतना किसी देश के खिलाड़ियों को नहीं।"
वहीं बैठे सोहन चाचा ने कहा -"सच पूछिए तो इस खेल का उद्गम स्थल भी भारत है।"
"वह कैसे?"
"भारत के पौराणिक खेलों में अत्यंत  रोमांचकारी और प्रभावी खेल गिल्ली डंडा और पिट्टो इत्यादि रहे हैं।ये खेल भी लगभग क्रिकेट जैसा ही खेला जाता है। भारतीय खिलाड़ी इन खेलों के माध्यम से उच्च कोटि के गेंदबाज व बल्लेबाज हो जाते हैं ।इसलिए भारत निरंतर क्रिकेट मैच में न केवल जीत ही हासिल करते हैं,बल्कि क्रिकेट खेल में विश्व 'चैम्पियन' भी कहलाते हैं ।"
   "जीत गया जी जीत गया!
  विश्व गुरु भारत जीत गया S S S
सामने वाले घर में टेलीविजन पर मैच देख रहे क्रिकेट खेल के दीवाने जोर से ताली बजा कर चीख पड़े और पटाखे की आवाज से पूरा देश..
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, August 6, 2024

जटाधारी शिव (विजया घनाक्षरी)

जटाधारी शिव ( विजया घनाक्षरी )

सदाशिव विश्वेश्वर, 
   महाकाल महेश्वर, 
      पशुपति पंचवक्त्र,
         जटाधारी शिव शिव ।

नील लोहित शंकर,
   विश्वपाक्ष शुभंकर,
      शिवाप्रिय गंगाधर,
         त्रिपुरारी शिव शिव।

वीरभद्र वामदेव,
   शूलपाणि महादेव,
     ललाटाक्ष महाकाल, 
        दानी भारी शिव-शिव।

गिरिधन्वा,अनीश्वर,
    गिरिप्रिय गिरीश्वर,
      जगद्गुरु कृपानीधि,
         दुःख-हारी शिव शिव। 

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 1, 2024

श्रद्धा कर्म (कहानी)

श्रद्धा कर्म 

आज स्वर्गीय पूर्णिमा देवी जी का बारहमा है।सात गाँव की भोज व्यवस्था ।एक सौ आठ ब्रहामणों का वस्त्र -छंदा सहित भोज। स्वजन तथा दूर-दूर के नाते-रिश्तेदार न्योते पर पधारे हैं।अपना घर तो क्या पास-पड़ोस के घरों में मेहमानों को ठहराया गया है।सभी के रहने एवं खाने पीने की उत्तम व्यवस्था।भोज के सारे भोजन पूर्णिमा देवी के पसंद के बनाए जा रहे हैं।
सेज दान का कार्यक्रम चल रहा है। बड़ी बहू ने सुंदर सा दीवान पर मुलायम तोसक- तकिया,मसनद और सुंदर कीमती चादर लगवाते हुए कहा -मांँ जी को दीवान का बहुत शौक था इसलिए मैंने दीवान बनबाया। बड़े बेटे ने श्रद्धा पूर्वक सोने की अंगूठी चढ़ाते हुए कहा-माँ ने अपने सारे गहने बेचकर मुझे इंजीनियरिंग पढ़ाया इसलिए मैंने माँ के लिए यह अँगूठी खरीदी है।   
   मंझली बहू उसपर कीमती श्रृंगार-प्रशाधन रखते हुए कहा-माँ जी को सजने-संवरने का बहुत शौक था। इसीलिए मैंने श्रृंगार के सारे सामान दिए हैं।
पमंझला बेटा नोटों से भरा बटुआ रखते हुए कहा -माँ-ने घर-खर्चे में कटौती कर मुझे शिक्षा दिलवाई इसलिए एक महीना का पगार मैं माँ के नाम दान करता हूंँ।
    सभी के मुँह से वाह-वाही सुन बेटियांँ भी कहाँ चुकने वाली थीं। बड़ी बेटी  पायल और बिछिया तथा छोटी बेटी मंगलसूत्र और सिंदूर की डिबिया चढ़ाती हुईं बोली माँ ने हम दोनों की शादी में खेत,आधा घर और बगीचे बेचकर दोनों दामाद इंजिनियर लाया हमने भी माँ के लिए यह पसामान लाया है।
उनकी ननद, देवरानी,बहनें,भाभी व अन्य रिश्तेदारों के तरफ से भी कपड़े, श्रृंगार -प्रसाधन मिठाइयांँ,फल मेवे इत्यादि चढ़ाएं जा रहे थे।
उनके सबसे छोटे बेटे के पास जाकर चाचाजी ने सलाह देते हुए कहा -बेटा तुम भी अपनी कमाई का कुछ अंश माँ के नाम दान कर दो ,माँ को स्वर्ग में सुख मिलेगा। लेकिन वह अफसोस भरी नजरों से सारे सामानों को देखता रहा।
    क्यों तुम नहीं दोगे कुछ ?
 बड़े भाई ने प्रश्न किया तो पिताजी ने कहा नहीं!
क्यों नहीं ? दोनों बड़े भाइयों के मुँह से एक साथ निकाला।
क्योंकि यह श्राद्ध कर्म में नहीं श्रद्धा कर्म में विश्वास करता है।
     श्रद्धा कर्म ?
हाँ श्रद्धा-कर्म ।तुम्हारी माँ ने दुःख सहकर, जमीन-जायदाद,जेवर गहने बेचकर तुमलोग को पढ़ाया-लिखाया, अच्छे घर में ब्याह किया   इसलिए तुम सभी ने मरने के बाद दिखावा करने हेतु इतने सारे सामान दान किया। लेकिन जब इतने दिनों से माँ बीमार थी तो इलाज करवाने का भी समय और पैसे नहीं थे तुम लोगों के पास।माँ के अंतिम दर्शन करने हेतु भी नहीं आ सके। लेकिन मेरा यह बेटा सीमित कमाई में भी अपनी माँ का इलाज-पानी ,सेवा -सुश्रुषा बड़ी श्रद्धा और प्रेम से किया।    जिंदगी भर तुम्हारी माँ टूटी खाट पर सोती रही और उसपर से ही गिरने के कारण उसकी कमर की हड्डियां टूट गयीं तब कोई उसे एक खाट-चौकी तक नहीं दिया यही एक महीने का वेतन उस दिन दिया होता तो शायद उसका अच्छे-से इलाज हो गया होता।यही मेवे-फल उस दिए होते तो जीते जी उसकी आत्मा तृप्त होती।अब मरने के बाद इन सामानों को दान का ढकोसला और दिखाबा करने से क्या लाभ ? "यदि किसी को ज्यादा श्रद्धा और प्रेम दिखाना है तो उसके जीवन में करो , मरने के बाद  वह व्यक्ति स्वयं इस आकांक्षाओं से मुक्त हो जाता है।सारे दान-दक्षिणा, भोज-भात लोग समाज के दिखाबे के लिए करते हैं।" इसलिए -"मान करो दान नहीं।श्रद्धा में विश्वास करो श्राद्ध में नहीं।"
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'