लिए जनम मुरारी,जग हितकारी,
बिलख उठी महतारी।
जब पता चलेगा,इसे मारेगा,
कंस है अत्याचारी।
भए प्रकट कृपाला,दीन दयाला,
गूढ़ बात समझाये।
मुझको लेकर,पहुँचा दें नन्द घर,
उनकी कन्या ले आएँ।
खुल गए ताले,सो गए रखवाले,
टूट गई उनकी बेड़ी।
रात अँधियारी , हुई उजियारी,
छाई घटा घनेरी।
उन्हें सूप में लेकर, रख माथे पर,
वसुदेव चले वृंदावन।
उफनायी यमुना, छूने को चरणा,
बालकृष्ण के पग पावन।
बादल गरजे , झम-झम बरसे,
शेषनाग सिर छत्र धरे।
लक्ष्मण-रघुराई, मिले दोउ भाई,
पुलकित चित आनन्द भरे।
गोकुल के नन्द ,घर में आनन्द,
कान्हा जी हैं जनम लिए।
कन्या को लेकर , पहुँचे तत्पर,
रखवाले सब जाग गए।
कंस जब जाना,जनमी कन्या,
लगा पटकने हाथ पकड़।
हाथ से छुटकर ,नभ में उड़कर,
महामाया का रूप धर।
बोली रे कंस, सुन देवकी का अंस
पहुँच गया वृंदावन में।
सुन रे दुराचारी,तुझ पर वह भारी,
सोंच जरा अपने मन में।
यह प्रभु की लीला,परम सुशीला,
जो जन आनंद से गाबे।
दुख न सताबे ,सब सुख आबे,
निश्चित ही सुफल पाबे।
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
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