Thursday, December 31, 2020

नये साल का नया संकल्प (लघुकथा)



आज साल का पहला दिन है। समृद्धि ने नींद से जागते हुए कहा-नया साल सबको मुबारक हो।नये साल में कुछ नया करने का संकल्प लेना चाहिए। इससे जीवन में नयापन आता है और हम दृढ़ता से कुछ करने की ओर अग्रसर होते हैं।
      मां की आवाज सुन शुभ बिस्तर पर उठकर बैठता हुआ बोला-आज से मैं जल्दी उठकर अपना गृहकार्य कर लूंगा।
 खुशी दौड़ती हुई आई और बोली-वह तो ठीक है पर उससे पहले भगवान को और सभी बड़ों को प्रणाम करना है।खुशी के साथ  शुभ और उसकी दीदी प्रिया ने सभी को चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लिये।
मां को रसोई में जाते देख प्रिया ने कहा-आज से हमें मां को काम करने में हाथ भी बंटाना है और दादा-दादी की देखभाल भी करना है।
पिताजी दरवाजे पर खड़े होकर मुस्कुरा रहे थे। सभी बच्चे उनके बताए रास्ते पर अग्रसर थे।नये साल के लिए उन्होंने भी यह संकल्प लिया था कि अपने बच्चों को सुसंस्कारित बनाएंगे। नहीं तो वह इन छोटी छोटी बातों के लिए पत्नी को ही दौड़ाते रहते थे। विचारी काम कर करके थक जाती है और अक्सर बीमार हो जाती है। बच्चों और उनके सहयोग से उसका कुछ काम हल्का हो जाएगा।
तभी दादी मां कुछ पुराने कपड़े और बचे हुए खाने लेकर बाहर निकलीं।
सभी लोग आश्चर्य से उन्हें देख रहे थे कि दादाजी बोले- मैंने ही कहा है उन्हें कि बेकार पड़े कपड़े और बचे हुए भोजन को जरूरतमंदों को बांट दिया करो। सभी लोग खुश हो गये।नये साल में परिवार के सभी लोग कुछ -न-कुछ नया संकल्प लिए।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                 स्वरचित, मौलिक

Wednesday, December 30, 2020

आशीष २०२० का

🙌🙌आशीष २०२० का🙌🙌

विगत बरस बन मैं जा रहा हूं,
        तुम्हें मुबारक नया बरस हो।
मेरे अनुज संग सुखी रहो सब,
    आगामी जीवन सदा सरस हो।

तुम्हें शिकायत अगर है मुझसे,
      कि मैंने सबको बहुत सताया।
तूने कहा- मैं हूं बीस विषैला,
        पूरी दुनिया में विष फैलाया।
अगर तू मुझसे दुःखी हुए तो,
 कभी-भी दुःख का नहीं दरस हो।
मेरे अनुज संग सुखी रहो तुम,
    आगामी जीवन सदा सरस हो।

मगर ये सोंचो, जरा तू मन में,
   अगर तू खोये तो बहुत ही पाये।
चुनौतियों से लड़े तुम डटकर,
      जिम्मेदारियों को गले लगाये।
आत्मनिर्भर,श्रमजीवी बने तुम,
     जिससे मन में तुम्हें  हरस हो।
मेरे अनुज संंग सुखी रहो तुम,
    आगामी जीवन सदा सरस हो।

उलझनों को सुलझाना सीखा,
         जीवन सुगम-सरल बनाये।
मितव्यई ,स्वयंसेवी बनकर,
       विषम घड़ी में भी मुस्कुराए। 
साकारात्मकता मन में आया,
        निर्माण करने की ललक हो।
मेरे अनुज संग सुखी रहो सब,
    आगामी जीवन सदा सरस हो।

परदेश से तुम स्वदेश लौटे,
       परिजनों संग समय बिताये।
नई उम्मीदों के संग जीये,
      उत्थान करने का मन बनाये।
मैं जा रहा हूं आशीष देकर,
  आगामी स्वर्णिम सभी बरस हो।
मेरे अनुज संग सुखी रहो सब
    आगामी जीवन सदा सरस हो।
🙌🙌🙌🙌🙌🙌🙌🙌
 
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
         स्वरचित , मौलिक

जैसी बहे बयार ( लघुकथा )



कार्तिक महीने में स्नान -दान ,वर्त त्योहार करने वाली झुमनी दादी कार्तिक पूर्णमासी के बाद से एकदम अलग तरीके से काम काज करने लगी। सूर्य उगने से पहले नहाने वाली दादी के नहाने खाने का समय ही बदल गया।एक टब में पानी भर कर रख देती जिससे दादी-दादा दोनों का स्नान हो जाता। पड़ोस के बच्चे किलोल करते हुए पूछते क्या दादी ! हर महीने आपलोग के नहाने का अंदाज बदल जाता है। कार्तिक में सूर्योदय पूर्व नदी -स्नान और अगहन में धूप में गर्म किये हुए जल- स्नान और पूस में एक, दो दिन बाद-स्नान।यह कौन-सा फार्मूला है स्नान करने का? जरा हमें भी बताइए।
        झुमनी दादी ने कहा-जैसी बहे बयार , पीठ तब तैसी कीजे।
कार्तिक में सुबह स्नान का महात्म्य सूर्य उपासना के कारण भी है और पर्व-त्योहार में शरीर की पवित्रता के कारण भी है। क्योंकि इस महीने पर्व-त्योहार भी ज्यादा होता है और उन दिनों ठंड भी कम रहती है। इसलिए सूर्योदय पूर्व स्नान कर लेती हूं।
 अगहन में ठंड बढ़ने के कारण गर्म जल से स्नान लाभकारी है। खासकर धूप में तप्त जल शरीर को निरोग रखता है।
 पूस में ठंड चरम सीमा पर होती है ।इसलिए शरीर को स्वस्थ रखने के लिए नित्य स्नान से परहेज़ भी आवश्यक है। स्नान का महत्व शरीर को स्वच्छ रखना तो है ही स्वस्थ रहना भी है।इतनी ठंड में हम नित्य स्नान करेंगे तो बीमार भी पड़ सकते हैं। इस लिए इस महीने में गर्म पानी में कपड़ा भिगो कर शरीर को पोछ लेती हूं। फिर धीरे-धीरे ठंड घटने पर नहाने की प्रक्रिया में अपने आप परिवर्तन आ जाता है।
       बच्चे दादी के शिक्षा प्रद बातों से प्रभावित हो सोंचने लगे। सचमुच हमें स्वच्छता के साथ-साथ स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना  चाहिए।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
     स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित

Friday, December 25, 2020

हे सुख करनी मां तुलसी



सदा विराजो आंगन मेंरे,
हे दुःख हरणी मां तुलसी।
मेरे घर का कष्ट हरो तुम,
कष्ट निवारिणी मां तुलसी।

रोज सवेरे जल अर्पित कर,
सांझ को दीपक दिखलाऊं।
रोज भजन और करुं आरती,
तेरी महिमा मैं गाऊं।
सुख-सौभाग्य अटल तुम रखना,
हे वरदायिनी मां तुलसी।
सदा विराजो................

जिस घर तेरा वास रहे मां,
उस घर से दुःख दूर रहे।
जिस घर में तेरी सेवा होता,
धन -दौलत भरपूर रहे।
कुल का गौरव सदा बढ़ाना,
हे सुख करनी मां तुलसी।
सदा विराजो..................

तेरे पत्ते के सेवन से मां,
बढ़ती है सबकी स्मृति।
तेरे मंजर को खाने से,
बांझन पाती संतति।
सर्वांग तुम्हारा महाऔषधि,
रोग विनासिनी मां तुलसी।
सदा विराजो................

तुमसे मेरा एक विनय है,
जग के सब संताप हरो।
रोगी के सब रोग हरो मां,
पापी के सब पाप हरो।
शीश झुका कर करूं मैं विनती,
हे प्रभु-प्यारी मां तुलसी।
सदा विराजो.................
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
            स्वरचित , मौलिक

Wednesday, December 23, 2020

हे किसान



धरा से प्यार है तुझको।
            बड़ी आलार है तुझको।
तू इसका पूत है प्यारा,
              बड़ी दुलार है तुझको।

खिलाते हो धरा को तुम।
           पिलाते हो धरा को तुम।
खिलाकर अन्न,पिला पानी,
          जिलाते हो धरा को तुम।

तेरे खाए हुए अन्न को,
         धरा इक दिन उगलती है।
वह तेरा सेर खाती है,
        तो कितने मन उगलती है।

तेरे लहू सम पसीने की,
             तुम्हें वह मोल देती है।
तेरे मेहनत और सेवा की,
         सिला दिल खोल देती है।

तुमपर शान है मुझको ,
       बड़ा अभिमान है मुझको।
तेरे श्रम पर हैं नतमस्तक,
         तुम पर आन है मुझको।

कृषि से प्यार है तुझको,
       मिला रोजगार है तुझको।
सुनो तुम मेरे अन्नदाता,
        नमन सौ बार है तुझको।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
       स्वरचित, मौलिक

Monday, December 21, 2020

मानवाधिकार का अर्थ



नित्य की भांति आज भी अनुपमा विद्यालय जाने के लिए पव्लिक बस में बैठी थी।आज विद्यालय में मानवाधिकार के अर्थ पर परिचर्चा थी। वह सोंच रही थी क्या बोलूंगी? तभी एक महिला अपने तीन बच्चों को साथ लिए बस में सवार हुई।कण्डकटर ने एक सीट पर उसे यह कहकर बैठने के लिए कहा कि कुछ ही देर में साथ वाली सीट खाली हो जाएगी फिर वहां बच्चों को बैठा लेना। वह एक बच्चे को गोद में लेकर और दो बच्चों को अपने आगे खड़ा कर बैठ गई। उसके साथ वाली सीट पर बैठे व्यक्ति को शायद बच्चे को खड़ा देख कर दया आ गई। उसने दोनों में से छोटे बच्चे को उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया।तभी वह व्यक्ति जो पहले महिला वाली सीट पर बैठा था आया और महिला से कहा- यह सीट छोड़ कर उठ जाओ यह मेरी सीट है।
महिला ने कहा -यह आपकी सीट कैसे हुई मैंने इस सीट का किराया दिया है और मुझे कण्डक्टर ने यहां बैठाया है।
तभी कण्डक्टर ने आकर कहा- हां यह सीट इन्हीं की है। ये पहले से यहां बैठे हुए थे।
लेकिन आपने तो कहा कि यह सीट खाली । महिला ने गुस्से से कहा।
हां कहा था पर जब ये उतरे तो इनका विचार हुआ कि ये अगले शहर तक जाएं। इसीलिए चले आए।पहले से बैठे थे तो सीट इन्हीं का न है।
महिला ने खीजते हुए उठकर कहा -ठीक है मेरे पैसे वापस करिए। मैं दूसरी बस से चली जाउंगी।
पैसे क्यो वापस करुं ? आप एक ओर खड़ी रहिए जब सीट खाली होगी बैठ जाइएगा। आपने बस का किराया दिया है तो बस में सफर करना आपका मानवाधिकार है। ये सीट पर पहले से बैठे थे तो वहां बैठना उनका मानवाधिकार है।कण्डकर ने उसे रोकते हुए कहा।
अचानक उस महिला के बगल वाली सीट पर बैठा पुरुष उठ खड़ा हुआ और बिफरते हुए कहा- क्या मानवाधिकार की बात करते हो। मानवाधिकार का अर्थ समझ में आता है तुम्हें?एक तो तुमने एक सीट खाली देकर दो सीटों के किराए ले लिए। दूसरे उतरे हुए यात्री को फिर से बैठाने के लिए इस महिला को उठा रहे हो।क्या यही मानवाधिकार है। ये भाई साहब जहां तक का किराया दिए थे बस वहीं तक बैठना उनका अधिकार था।
और मैं अपनी सीट को छोड़ रहा हूं क्योंकि तुमने इनसे इस सीट का किराया ले लिया है।अब इस सीट पर भी इन्हीं का अधिकार है।
आप क्यों परेशान हो रहे भैया!कण्डक्टर ने मनुहार करते हुए कहा।
उस व्यक्ति ने उसे सचेत करते हुए कहा- मानवाधिकार का अर्थ किसी मानव को छलना,ठगना और वेवकूफ बनाना और सिर्फ अपना अधिकार लेना ही नहीं होता।
'मानवाधिकार का अर्थ एक मानव द्वारा दूसरे मानव को उसके अधिकारों की जानकारी देना, उसके अधिकार की सुरक्षा देना, और उसके अधिकारों को सुनिश्चित कर उसके अधिकारों को उपलब्ध कराना भी है ।'
कण्डक्टर ग्लानि से सिर नीचे कर लिया ।
अौर अनुपमा को परिचर्चा के लिए मानवाधिकार का अर्थ समझ में आ गया।
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                  स्वरचित , मौलिक

Sunday, December 20, 2020

गज़ल



अपने मन में प्यार पालकर देखो।
एक नजर मुझपर डालकर दैखो।

माना, मैं कोई  हूर की परी ना हूँ,
अपने रूप को खंगालकर देखो।

बहकावे  में कतराओ ना  मुझसे,
दिल में मुझको संभालकर देखो।

मैं बुरी लगती हूँ महफिल में  तुझे,
दिल में मेरा अक्श डालकर देखो।

क्यूँ  इतराते हो खुद पर मीत मेरे,
मन में जरा यह सवाल कर देखो।

तुझसे मेरी बस यही गुजारिश है,
मेरे साथ खुद को ढाल कर देखो।

नजरिया बदल ले जरा नजरों की ,
'प्रिय' तुम  यह  कमाल कर देखो।

      सुजाता प्रिय'समृद्धि'
         स्वरचित मौलिक

Tuesday, December 15, 2020

सीता-हरण की पटकथा (रौद्र रस)



एक लड़की कागज कलम ले,
                  रास्ते में जा रही थी।
लिखने कागज पर कलम से,
                भूमिका बना रही थी।
लिखने मिला था वर्ग में, 
           सीता-हरण की पटकथा।
सोंच रही थी कैसे लिखुंगी,
                 नारी की अन्तर्व्यथा‌।
अनायास उसको एक लड़का,
                बाजुओं में भर लिया।
बंदूक दिखाकर उसको बोला,
             हमने तुझको हर लिया।
बोला- कि तुम न चीखना,
            चुप मेरे संग चलती रहो।
मार दूंगा जान से ,
              इंकार में कुछ ना कहो।
सिर झुका कर चल पड़ी वह                                     
             उसकी बताई राह पर। 
छोकरा तब मुस्कुराया,
            उसकी झुकी निगाह पर।
कुछ दूर जा वह मुक लड़की,
                   घूम कर पीछे मुड़ी।
नागिन सी फुफकार कर,
          उसपर अचानक टुट पड़ी।
प्रहार वह करने लगी,
                पकड़ मुट्ठी में कलम।
चेहरे को उसके गोदने,
                  लगी वह हो बेरहम।
पलट हमले से पराजित,
           लड़के ने खोया होश तब।
गिरा धरा पर बंदूक तो,
         ठंडा  पड़ा कुछ जोश अब।
खोल सैण्डल सिर पर उसके,
                  चोट वह करने लगी।
अपने हरने वाले का अब,
                  प्राण वह हरने लगी।
नाखुनों  से नोच डाले,
                      मनचले के चेहरे।
पीटने का प्रमाण देकर,
                   मुंह में लगाईं मुहरें।
कागज पर उसके लहु के,
                छींटें भी कुछ थे पड़े।
नारी के अपमान के,
         स्वाभिमान बनकर थे खड़े।
इस तरह उसने लिखे,
            सीता-हरण की पटकथा।
मन में कुछ संतोष पाया,
             मिट गयी मन की व्यथा।

               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                   स्वरचित, मौलिक

Sunday, December 13, 2020

गज़ल (देखकर मुस्कुराते गये)



        

देखकर  मुस्कुराते  गये।
मुझको दिल में बसाते गये।

तिरछी नजरों से देखकर,
मुझको थोड़ा लुभाते गये।

मुझको पाने की ले आरजू ,
दिल अपना लुटाते गये।

दिल की दीवानगी में मुझे,
अब तक भरमाते गये।

सुलगा प्यार की आग में,
तीर हमपर  चलाते गये।

चोट दिल पर पहले दिया,
फिर मरहम लगाते गये।

जख्म गहरा दिया है मुझे,
दे दवा फिर सुखाते गये।

संग-संग जीने की 'प्रिय',
कसमें भी हैं खाते गये।
       
 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
   स्वरचित, मौलिक

Wednesday, December 9, 2020

कलवरी(भारतीय नौसेना दिवस पर विशेष)


 
लंदन देखी, पेरिस देखी,और देखी जापान।
अमेरिका देखी, रसिया देखी,देखी पाकिस्तान।
घूम-घूम कर देखी हूं भाई,मैं सारा जहान।
सारे जग में कहीं न दिखती, कलवरी जैसी शान।

इसके जैसा कहीं न दिखती नौसेना में पनडुब्बी।
छुपकर तन्मयता से,हमले करना है इसकी खूबी।
भारत ने निर्माण किया खुद, इसका है अभिमान।
सारे जग में कहीं न .................

टाइगर शार्क सी शक्ति शाली, डीजल से चलनेवाली।
मझगांव में निर्मित, इलेक्ट्रिक अटैक करनेवाली।
भारत की रक्षा करने वाली,देश की है यह जान।
सारे जग में कहीं न..............

भारत मां की रक्षा करते हैं , इसमें बैठ सिपाही।
योगी बनकर साधना करते, दृढ़- संकल्प ये राही।
आठ दिसंबर ,नौसेना दिवस पर, रखें इसका मान।
सारे जग में कहीं न...............
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                स्वरचित, मौलिक

Tuesday, December 8, 2020

तुझपर है विश्वास हमें



आई है विपदा घोर,
       विवश यहां सब लोग खड़े।
दिशा-दिशा चहुं ओर,
          सब हैं अपने घर में पड़े।
बड़ा भयंकर रोग,
            छाया है दुनियां भर में।
यह कैसा संयोग,
            युक्ति नहीं कोई नर में।
सबके जीवन में आज,
            फैला है अंधकार घना।
बंद पड़े सब काज,
         आना-जाना सब है मना।
कटता नहीं है दिन,
          मास दस अब बीत गए।
पल-पल,छन-छन गिन,
    सब जन अब भयभीत भए।
होगी अपनी जीत,
            आज हैं हम हारे-हारे।
घर में रहें सब मीत,
         विमुख होंगे संकट सारे।
उबारो हमको आज,
      भगवन तुझपर आस हमें।
कहां छुपे महाराज,
          तुझपर है विश्वास हमें।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                स्वरचित, मौलिक

Sunday, December 6, 2020

संयुक्त परिवार



दादाजी खटिया बुन रहे हैं , नीम पेड़ के नीचे।
दादी माँ सहयोग में,रस्सियों को पकड़कर खींचे।

मंझली बूआ बैठ चरखे से , सूत कात रही है।
पाँव पर रख  फूफाजी की चिट्ठी बाँच रही है।

बड़ी दीदी कुएँ से खींचकर,पानी भरती जाती।
छोटी दीदी घड़े उठाकर,आँगन में है पहुँचाती।

सँबरी गैया आकर घड़े से, पी रही है पानी।
पिताजी जा रहे हैं देने , बैलों को गुड़धानी।

कुत्ते को देखो भूख लगी है,झाँक रहा है खपड़ी।
बछड़ा लिए आस खड़ा है,मिलेगी रोटी की पपड़ी।

अम्मा ने आकर खबर सुनाई,भोजन है तैयार।
चलें साथ बैठकर खालें, हिल-मिल पूरा परिवार।

गाँव में यह परिवार हमारा, सदा रहते खुशहाल।
सब मिल सब काम करते किसी को नहीं मलाल।

                सुजाता प्रिय,राँची
                  स्वरचित,मौलिक

Friday, December 4, 2020

लोकगीत (मगही भाषा में)



अगहन महीनमा में,अइलै सजनमा,
गवनमा लेके ना।घबराए मोर मनमा,
गवनमा लेके ना।................

छुटतै दलनमा औ छुटतै अंगनमा,
और छुटी जइतै ना, मोरा बाबा के भवनमा।
छुटी जैतै ना मोर....................

छुट जैतै गलियां,छुटतै फूल डलिया।
छुटी जैतै ना,बचपन के सहेलिया।
छुटी जैतै ना।....................

आरे-बारे कही के करैला जेवनमा,
देखाइ के चंदा ना, बहलाबे हला मनमा।
देखाइ के चंदा ना।..................

बेटिया जन्म बाबा बड़ी दुख भारी,
पराया धन ना,माने सारा भुवनमा।
पराया धन ना।..................

काहे लागी बेटिया के माने परायी,
बदल देहो ना,येहो जग के चलनमा।
बदल देहो ना।......................

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
            स्वरचित, मौलिक