सुबह का भूला
रक्षाबंधन की थाली सजाती हुई सुमीता आज कुछ ज्यादा ही उत्साहित थी।आज उसकी थाली में दो राखियांँ थीं।एक अपने भाई के लिए जो आज सुबह ही आया था और एक सुधीर बाबू के लिए।
सुधीर बाबू द्वारा अपने लिए छोटी बहना का सम्बोधन और आँखों में स्नेह युक्त प्यार देख सुनीता आत्म-विभोर हो जाती। उनके चेहरे के भाव से मन पुलकित हो जाता।
लेकिन उनका चेहरा जाना पहचाना -सा लगना उसे विचलित कर देता।आखिर कब कहांँ देखा है उन्हें? बातों-बातों में एक दिन वह उनसे भी पूछ लिया -"भैया !मुझे ऐसा लगता है आपको मैंने कहीं देखा है।" लेकिन उन्होंने साफ इंकार कर दिया कि वे कभी मिले थे।खैर जो भी हो एक बड़े भाई का प्यार और आशीर्वाद पाकर ही वह धन्य थी।
तभी उसके ममेरे भैया ने कॉल कर बताया की उसकी राखी उन्हें मिल गई है ।जब भी वहांँ आऊंँगा तो तुम्हारे लिए उपहार लेकर आऊंँगा।"
ऊंssहूंss! वह ठुनकती हुई बोली -"आप मुझे हमेशा यही दिलासा देते हैं। कभी आते तो नहीं !"
उन्होंने कहा -आऊंँगा ।हो सकता है जल्दी ही आऊंँ।अब तो मेरा एक दोस्त भी तुम्हारे शहर में रहता है । शायद उसके बेटे का विवाह होने वाला है दो महीने बाद।"
"कौन दोस्त ?"
" एक सुधीर नाम का दोस्त मेरी शादी में अपनी मांँ के साथ आया हुआ था।"
नाम सुनते ही उसकी आंँखों के सामने सुधीर बाबू का चेहरा घूम गया।
अच्छा!अब उसे समझ आया। सुधीर बाबू उसे देखे-देखे से क्यों लगाते हैं ।
वह अतीत के घेरे में पहुंँच गई ।आज से 25 साल पूर्व वह अपने ममेरे भाई की शादी में गई हुई थी ।भैया का एक दोस्त अपनी मांँ के साथ आया हुआ था भैया ने जब उसे उसका परिचय करवाया तो उसने भैया के दोस्त के रूप में उसे भी हाथ जोड़कर नमस्कार किया ।परंतु जब-तक वह उस शादी में रही सुधीर की निगाहों को सदा स्वयं को घूरती महसूस किया। वह अजीब प्यासी-प्यासी नजरों से उसे देखता रहता।उसकी नज़रों की भाषा वह खूब समझती थी । कभी-कभी उसे भैया कहकर पुकार दिया तो उसके चेहरे पर नागवारी के भाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता दिखा ।किसी तरह शादी खत्म होने पर अपने घर आने पर भी इन बातों की कड़वाहट से का मन बेचैन हो जाता ।फिर उसकी भी शादी हो गई ।समय के साथ वह उन कड़वाहटों को भूल गई ।
आज वही सुधीर उसे एक भाई का प्यार उड़ेल रहा है ।क्या वह उनके उन भावों को याद रखें या आज के। जिन भावों की आकांक्षा उसने 25 साल पहले सुधीर बाबू से की थी वह आज प्राप्त हो रहा है। लेकिन उनके व्यवहारों के लिए माफी देना क्या न्याय -संगत है ? दिल ने कहा -जाने दो कम-से-कम अब तो रिश्ते के भाव समझ आया। अंत में वह यह निर्णय कर बैठी -अतीत के कड़वाहटों को भूल हमें वर्तमान की मृदुलता में जीना चाहिए।और वह थाली उठाकर उन्हें राखी बाँधने बढ़ गई।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'