Saturday, July 27, 2024

सुबह का भूला

सुबह का भूला 

रक्षाबंधन की थाली सजाती हुई सुमीता आज कुछ ज्यादा ही उत्साहित थी।आज उसकी थाली में दो राखियांँ थीं।एक अपने भाई के लिए जो आज सुबह ही आया था और एक सुधीर बाबू के लिए।
सुधीर बाबू द्वारा अपने लिए छोटी बहना का सम्बोधन और आँखों में स्नेह युक्त प्यार देख सुनीता आत्म-विभोर हो जाती। उनके चेहरे के भाव से मन पुलकित हो जाता। 
लेकिन उनका चेहरा जाना पहचाना -सा लगना उसे विचलित कर देता।आखिर कब कहांँ देखा है उन्हें? बातों-बातों में एक दिन वह उनसे भी पूछ लिया -"भैया !मुझे ऐसा लगता है आपको मैंने कहीं देखा है।" लेकिन उन्होंने साफ इंकार कर दिया कि वे कभी मिले थे।खैर जो भी हो एक बड़े  भाई का प्यार और आशीर्वाद पाकर ही वह धन्य थी। 
तभी उसके ममेरे भैया ने कॉल कर बताया की उसकी राखी उन्हें मिल गई है ।जब भी वहांँ आऊंँगा तो तुम्हारे लिए उपहार लेकर आऊंँगा।"
ऊंssहूंss! वह ठुनकती हुई बोली -"आप मुझे हमेशा यही दिलासा देते हैं। कभी आते तो नहीं !"
उन्होंने कहा -आऊंँगा ।हो सकता है जल्दी ही आऊंँ।अब तो मेरा एक दोस्त भी तुम्हारे शहर में रहता है । शायद उसके बेटे का विवाह होने वाला है दो महीने बाद।"
 "कौन दोस्त ?"
 " एक सुधीर नाम का दोस्त मेरी शादी में अपनी मांँ के साथ आया हुआ था।"
 नाम सुनते ही उसकी आंँखों के सामने सुधीर बाबू का चेहरा घूम गया। 
अच्छा!अब उसे समझ आया। सुधीर बाबू उसे देखे-देखे से क्यों लगाते हैं ।
वह अतीत के घेरे में पहुंँच गई ।आज से 25 साल पूर्व वह अपने ममेरे भाई की शादी में गई हुई थी ।भैया का एक दोस्त अपनी मांँ के साथ आया हुआ था भैया ने जब उसे उसका परिचय करवाया तो उसने भैया के दोस्त के रूप में उसे भी हाथ जोड़कर नमस्कार किया ।परंतु जब-तक वह उस शादी में रही सुधीर की निगाहों को सदा स्वयं को घूरती महसूस किया। वह अजीब प्यासी-प्यासी नजरों से उसे देखता रहता।उसकी नज़रों की भाषा वह खूब समझती थी । कभी-कभी उसे भैया कहकर पुकार दिया तो उसके चेहरे पर नागवारी के भाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता दिखा ।किसी तरह शादी खत्म होने पर अपने घर आने पर भी इन बातों की कड़वाहट से का मन बेचैन हो जाता ।फिर उसकी भी शादी हो गई ।समय के साथ वह उन कड़वाहटों को भूल गई ।
आज वही सुधीर उसे एक भाई का प्यार उड़ेल रहा है ।क्या वह उनके उन भावों को याद रखें या आज के। जिन भावों की आकांक्षा उसने 25 साल पहले सुधीर बाबू से की थी वह आज प्राप्त हो रहा है। लेकिन उनके व्यवहारों के लिए माफी देना क्या न्याय -संगत है ? दिल ने कहा -जाने दो कम-से-कम अब तो रिश्ते के भाव समझ आया। अंत में वह यह  निर्णय कर बैठी -अतीत के कड़वाहटों को भूल हमें वर्तमान की मृदुलता में जीना चाहिए।और वह थाली उठाकर उन्हें राखी बाँधने बढ़ गई।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, July 26, 2024

सफलता का मंत्र

सफलता का मंत्र 

निज प्रगति मेंआप ही,होते बाधक लोग।
आलस्य इसका कारण है,कहते हैं संयोग।।

असफल होकर कोसते, व्यर्थ भाग्य को आप।
काम सदा जो टालते,रखते उर संताप।।

कभी नहीं जो मानते, गुरुजनों की बात।
पछताते जीवन भर, कुढ़ते हैं दिन रात।।

शेखी जो बघारते, मात-पिता के संग।
काहिल रहते हैं सदा,सीख न पाते ढंग।।

सक्रियता से जीवन में, करते हैं जो काम।
कर्मठता से काम कर,पाते सभी मुकाम।।

कल पर काम न टालिए, तुरंत करें सब काम।
महामंत्र है जीव की, मिलता सुख आराम।।

प्रतिस्पर्धा सबसे करें, लेकर मन में होड़।
मिले सफलता आपको , जीवन हो बेजोड़।।

          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

मुहावरा आधारित (आस्तीन का साँप )


 
 विश्वासघात

सोच समझ कर करो मित्रता,
सोच समझ कर आस करो।
आस्तीन में साँप न पालो,
सोच समझ विश्वास करो।

सामने से भोले बनते जो,
पीठ-पीछे कुछ खेल रहे।
आगे में माया खूब दिखाते,
पीछे जाकर धकेल रहे ।

सांत्वना वे बहुत हैं देते,
चौड़ी करते वे छाती हैं।
रंग बदलते गिरगिट जैसे,
जब बारी कुछ आती है।
   
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, July 25, 2024

शिव शंकर ने डमरू बजाया (गीत)

शिव-शंकर ने डमरू बजाया

शिव शंकर ने डमरू बजाया,
डम-डम,डम-डम,डम-डम-डम।
डमरू के संग ताल मिलाकर,
नाचे कहकर बम - बम - बम।
शिव शंकर.....................
डमरू की आवाज सुनी तो,
पार्वती माँ दौड़ी आईं।
डमरू के संग ताल मिलाकर,
वो भी नाचीं छम - छम - छम।
शिव शंकर.......................
डमरू की आवाज सुने तो,
गणपति बप्पा दौड़े आये।
डमरू के संग ताल मिलाकर,
वे भी नाचे धम - धम - धम।
शिव शंकर.....................
डमरू की आवाज सुने तो,
कार्तिक प्यारे दौड़े आये।
डमरू के संग ताल मिलाकर,
वे भी नाचे ढम - ढम - ढम।
शिव शंकर...................
डमरू की आवाज सुने तो,
भक्त जन सब दौड़े आये।
डमरू के संग ताल मिलाकर,
वे भी नाचे झम - झम - झम।
शिव शंकर.......................
नाच देख शिव शंकर दानी,
प्रसन्न हो मन में मुस्काते,
भक्तों के सब संकट हर लिए,
हर लिए उनके सारे ग़म।
शिव शंकर.....................
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि' 


Monday, July 22, 2024

पहला सोमवार

पहला सोमवार 

शिव के मंदिर में भक्त हजार हैं,
पहला सोमवार है जी पहला सोमवार है।
सभी मिलकर करते जयकार हैं,
पहला सोमवार है जी पहला सोमवार है।
औढरदानी शिव हैं,सभी को वर देते हैं।
भक्तों के दुखड़े,सुन हर लेते हैं।
शिवजी को भक्तों से,सुनो बड़ा प्यार है।
पहला सोमवार है जी पहला सोमवार है।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, July 18, 2024

हिन्दी की आराधना।

               हिन्दी की आराधना 

हिन्द देश के वासी कर लो, हिन्दी की आराधना।
जब मुख खोलो हिन्दी बोलो, होगी सच्ची साधना।।

अपनी है यह प्यारी हिन्दी,इसे सभी सम्मान कर।
दुनिया में जाकर हिन्दी का,खुलकर तुम गुणगान कर।
सारी दुनिया में यह छाये,मन में रख लो कामना।।
जब मुख खोलो हिन्दी बोलो, होगी सच्ची साधना।।

हर भाषा को लिखना-पढना, माना अच्छी बात है।
हर भाषा का ज्ञान बढाना,जीवन की सौगात है।
हिन्दी भाषा सबसे अच्छी,रख लो मन में भावना।
जब मुख खोलो हिन्दी बोलो,होगी सच्ची साधना।

संस्कृत की बेटी है हिन्दी, सुंदरता की खान है।
हर अच्छी बोली-भाषा को,इसपर ही अभिमान है।
देश की क्षेत्रीय भाषा की,करती  है यह सामना।
जब मुख खोलो हिन्दी बोलो, होगी सच्ची साधना।

अपने प्यारे हिंद देश की, हिन्दी से पहचान है।
हिन्दी से ही प्यार हमें है, हिन्दी पर ही शान है।
इसे तज विदेशी भाषा में, स्वयं को तुम न बांधना।
जब मुख खोलो हिन्दी बोलो, होगी सच्ची साधना।
                         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

माँ जगजननी गीत

बोल -सौ साल पहले मुझे तुम से प्यार था 

माँ जगजननी को, भक्तों से प्यार था,
आज भी है और कल भी रहेगा।

जो मैया के निकट जाता,माँ उसकी झोली भरती हैं।
जो हैं दुःख-चिंता से व्याकुल,उनका संकट भर्ती हैं।
शेरोंवाली मैया को भक्त हजार था,
आज भी है और कल भी रहेगा।
माँ जगजननी को.........
माँ के अंखियों में देखो,छवि भक्तों की बसी प्यारी।
माँ का हर रूप न्यारा,इनकी ममता है न्यारी।
मैया जी को बेटों से सदा ही दुलार था ,
आज भी है और........
सुन विनती माँ अम्बे, हमें बल-बुद्धि दो इतनी।
हम सबके हैं साथी, सहायता माँगे जो जितनी।
युग-युग पहले माँ का सजा दरबार था,
आज भी है और.........
                             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, July 17, 2024

तुलसी पूजा गीत

तुलसी गीत 
बोल जगदम्बा से लाड़ो सुहाग मांगे )

मेरे आंगन में शोभे श्याम तुलसी।
श्याम तुलसी,हरे राम तुलसी।

सोने सुराही में गंगा-जल भरके,
नित उठ पटाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की डलिया में बेली चमेली,
तोड़ -तोड़ चढ़ाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की थाली में दाख-छुहारा,
नित भोग लगाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की दीया, रेशम की बाती,
घृत डाल जलाऊँ मैं श्याम तुलसी ।

सोने की थाली कपूर की बाती,
नित आरती उतारूँ मैं श्याम तुलसी।

मेरे आँगन में शोभे......
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, July 13, 2024

मेरा वृक्ष मेरा परिवार (दोहा)

मेरा वृक्ष,मेरा परिवार (दोहा )

मत काटो तुम वृक्ष को,यह मेरा परिवार।
इनका भी मेरी तरह, धरती पर अधिकार।।

इनके कारण जी रहे, धरती पर सब जीव।
फिर इसको जन काटते, बातें लगे अजीब।।

यह देता भोजन हमें, इंधन देता साथ।
सांस लेने शुद्ध हवा,इसे झुकाओ मार।।

छाया देता धूप में,तब दें शुद्ध समीर।
गर्मी से व्याकुल रहें,होता जीव अधीर।। 

वृक्ष हमारे मित्र हैं,ईश प्रदत्त उपहार।
काम आते हमें सदा , बनकर ये परिवार।।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

बच्चे (चौपाई )

बच्चे  (चौपाई )

बच्चे सबसे अच्छे होते।
भोले -भाले सच्चे होते।।

मन में कोई कपट न लाते।
मिलजुल रहना हमें सीखाते।।

सीखते हमसे हमें सिखाते 
जैसे ढालों वह ढल जाते।।

तुतली बोली इनकी भाती।
खूब लुभाती खूब हँसाती।।

सबको भाते नटखट बच्चे।
सबको लगते हैं ये अच्छे।।
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, July 11, 2024

केवट की विनती (मगही भाषा)

केवट की विनती (मगही भाषा)

पाँव न सटैहा,हो रघुरैया।
नारी न बन जाए कहीं मोर नैया।
पाँव न सटैहा......
तू जो पथलवा में पाँव सटैला।
पल भर में ओकरा तू नारी बनैला।
पैला जग में बडै़या हो रघुरैया।
पाँव न सटैहा .........
जब तोहें चढ़बा नैया में हमर।
चरण पखारे के दें दा तू अवसर।
नै लेबो हमें चरणा-धोलैया हो......
पाँव न सटैहा.......
पहले हम रामजी के पाँव पखारब।
और सीता मैया के चरण फखारव,
फखारब तब तोर लक्ष्मण भैया 
पाँव न सटैहा...............
हँस कर रामजी नाव में बैठला।
लखन जी राम के पीछे बैठला।
संगबा में बैठली सीता मैया।
पाँव न सटैहा........
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, July 10, 2024

लक्ष्य (मुक्तक)

लक्ष्य (मुक्तक )

लक्ष्य पाने के लिए तुम,सत्य पथ पर बढ़ चलो।
राह में पर्वत भी आये, हौसला ले चढ़ चलो।
दृढ़ हृदय ले बढ़ते जाओ,राह तुम भटको नहीं-
राह कोई न दिखे तो,नव रास्ते गढ़ते चलो।

चाह रखो तुम हृदय में,राह भी मिल जाएगी।
दृढ़ हो निश्चय तुम्हारा, चट्टान भी हिल जाएगी।
ठोक कदमों से उसे तुम, दूर कर दो राह से -
पाषाण की छाती को चिर, सुंदर कली खिल जाएगी।

हृदय में हिम्मत बढ़ा चल, तुम कभी मत हारना।
जीतकर ही आयेंगे हम,मन में रखो धारना।
रास्ते के ठोकरों को, ठेलकर बढ़ते चलो-
पग कभी उसपर पड़े तो, तुम भी ठोकर मारना।

अधिकार तेरा लक्ष्य पाना, लक्ष्य पाना धर्म है।
लक्ष्य हेतु संग्राम करना, भी हमारा कर्म है।
जीत कर संग्राम को तुम, लौट कर घर आओगे-
तब तुम्हें यह ज्ञात होगा, लक्ष्य ही तो मर्म है।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

देखने को बहार

देखने को बहार, देखने को बहार ।
कान्हा चले मधुबन में,देखने को बहार,
बसंत के बहार , कान्हा चले 
आगे आगे कान्हापीछे से गोपियांँ,
हाँ जी राधा चली उनके साथ।
देखने को बहार ।
कोकिल कूके,पपीहा गाबें,
हाँ जी मोर दिखाते नाच,बीच मधुबन में 
कान्हा चले मधुबन में........
कदम पर कन्हैया, मुरली बजाबे,
हाँ जी प्यार की छेड़े तान।बीच मधुबन में,
देखने को.....
पलास तरू पर दस-दह दहके,
हाँ जी लता में खिले कचनार।
कान्हा चले मधुबन में,देखने को बहार 
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि' 

Tuesday, July 9, 2024

चपला बोली (चौपाई छंद)

चपला बोली (चौपाई छंद )

नभ  में चपला चमक रही है।
कड़-कड़,कड़-कड़ कड़क रही है।।

बादल को ललकार रही है।
बारम्बार पुकार रही है।।

कहती बादल अब तुम बरसो।
नहीं करो तुम कल औ परसों।।

अब न करो तुम आना-कानी।
चला नहीं अपनी मनमानी।।

घनघोर घटा को  बरसाओ।
तपती वसुधा को हर्षाओ।।

आ तुझको मैं राह दिखा दूँ।
कहाँ बरसना यह समझा दूँ।।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'