Tuesday, April 5, 2022

सरहुल के गीत



सरहुल के गीत गाबा

आबा सभे भाई आबा,सरहुल के गीत गाबा।
आबा सभे बहिन आबा,सरहुल के..........।

प्रकृति के परब आहे रे सरहुल।
वृक्ष के पूजल जाबे रे सरहुल।
सभे मिली नाचा-गबा,सरहुल के गीत गाबा
आंबा सभे बहिन आबा, सरहुल............।

चैत तृतिया दिन आहे रे पावन।
शाल-पलास लागे देखें में निमन।
कर जोर जोहार करें आबा,सरहुल के गीत गाबा।
आबा सभे भाई आबा,सरहुल के .......।
इने जंगल-झार के देखा शोभा।
नदी-तलाब अउर पानी के डोभा।
सबमें उमंग लाबा, सरहुल के गीत गाबा।
आंबा हमें बहिन आबा,सरहुल .......
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
        स्वरचित

मेरी कलम

मेरी कलम

कलम मेरी,मेरा हथियार।
मेरे हाथ का तेज तलवार।

विफल न जाती इसकी वार।
बहुत तेज है इसकी धार।

बंदूक धारी भी जाता हार।
दूर देश भेजती है समाचार।

सुलझाती है हर कारोबार।
हर पल है इसका तलबगार।

शब्दों से यह भरकर भंडार।
रच कहानी-कविता मजेदार।

मुझको है इस अस्त्र से प्यार।
इसे जानता है पूरा संसार।

सबका इसपर है अधिकार।
जीवन का अनमोल उपहार।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, April 4, 2022

जय मैया चंद्रघंटा

जय मैया चंद्रघंटा

भैया चंद्रघंटा का रूप,तेरी महिमा अगम अनूप।
चाहे रंक धनी या भूप,सबको भाए तेरा रूप।
मैया चंद्रघंटा..........
पक्षिप्रवर गरूड़ पर आरूढ़ जग में विचरण करती।
उग्र कोप और रौद्र रूप में सबका चिंतन करती।
अपने भक्तों के अनुरूप,सबको भाये तेरा रूप।
मैया चंद्रघंटा.............
त्रिशूल गदा तुम हाथ में लेकर सबकी रक्षा करती।
जल में ठंडक,आग में गर्मी,तुम ही माता भरती।
विभिन्न रुप में शक्तिरूप,सबको भाये तेरा रूप।
मैया चंद्रघंटा..........
मुझ पर भी तुम दया करो मां,मैं भी तेरी बिटिया।
कभी तो मेरी सुध- बुध लेने, आओ मेरी कुटिया। 
तुम हो ममता का स्वरुप,सबको भाये तेरा रूप।
मैया चंद्रघंटा .................
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                    स्वरचित

Friday, April 1, 2022

दर्दनाक अप्रैल फूल

दर्दनाक अप्रैल -फूल

शादी के बाद बाद हम सभी ससुराल में खुशहाल जीवन बिता रहे थे।सासु मांँ  और ससुर जी मेरा सदा ख्याल रखते।हम दोनों की सारी खुशियों में वे सम्मिलित होते।घर का बातावरण बहुत खुशनुमा था। जब मुझे इन्हें चिढ़ाना होता मैं बोल देती पापाजी आपको बुला रहे हैं।ये जाकर पापा से पूछते तो वे कहते नहीं ! मैंने तो नहीं बुलाया?जब इन्हें चाय पीने या कुछ खाने का मन करता कह देते पापा चाय बनाने अथवा कुछ नाश्ता बनाने बोल रहे हैं।जब मैं चाय अथवा नाश्ता बनाकर ले जाती तो वे कहते मुझे खाने का मन नहीं।तो मैं बोलती कि इन्होंने कहा कि आपने चाय बनाने के लिए कहा।तो वे हमारी सरारतों पर मजे लेकर हँंसते । हमारे हंँसते-खेलते घर-परिवार को जाने किसकी नज़र लग गयी। पापाजी के सीने में दर्द उठा और वे अस्पताल में भर्ती हो गए। चिकित्सक ने हृदयाघात कह इलाज शुरू किया।चार दिन बाद वे थोड़े ठीक हुए । चिकित्सकों ने दो- तीन दिनों बाद उन्हें छोड़ने की बात भी की थी। सब कुछ ठीक था इसलिए पापाजी ने ही इन्हें कहा -घर में दुल्हिन अकेली है चले जाओ।सुबह(पहली अप्रैल की सुबह) अस्पताल से चाचा ससुर जी का फोन आया, पड़ोसी के साथ जल्दी आ जाओ। जरूरी दवा लाने जाना होगा। अस्पताल पहुँचकर इन्होंने फोन किया। हमलोग पापा को लेकर आ रहे हैं। मुझे लगा हमेशा की तरह ये मजाक कर रहे हैं।अभी तो दवा लाने जाना था, तुरंत पापाजी घर कैसे आएंगे भला।
लेकिन थोड़ी देर बाद ही माताजी का हृदय बिदारक रूदन सुन समझ में आ गया कि नियति ने हमारे साथ कितना बड़ा अप्रैल-फूल मनाया।यह बुरी खबर फोन पर परिवार के लोगों को जिसने भी बताया,सभी ने यही कहा अप्रैल -फूल का मजाक ऐसा भी किया जाता है कहीं? लेकिन सभी को बाद में पता चला कि सचमुच भगवान ने हमें कैसा मुर्ख बनाया।इतने वर्षों बाद भी पास-पड़ोस के सभी लोग एक-दूसरे को मुर्ख बना रहे होते हैं,और हम सभी मुर्ख जैसे पापाजी की तस्वीर को प्रणाम कर रहे होते हैं।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'