Thursday, May 16, 2024

प्यारी सीता माता

प्यारी सीता माता 

जनक सुता प्यारी,सिया थी दुलारी।
जनम ली धरा से,थी जग उजियारी।।
सुना है कि थी वह, सुंदरता की मूरत।
बड़ी मनमोहिनी,थी उनकी सूरत।।
श्रीराम से उनका , था ब्याह रचाया।
राजा दशरथ की,कुलबधू था बनाया।
नियति ने राम को,ऐसा खेल खेलाया।
था चौदह बरस का, वनवास दिलाया।
गये सीता,लक्ष्मण दोनों ही संग में।
वहाँ कंद-मूल खा रहते आनंद में।
वहांँ मारीच स्वर्ण-मृग बन घूम रहा था।
राम को आकर्षित उसने किया था।।
गये मारने उसको धनुष बाण लेकर।
मारीच ने अपनी आवाज बदलकर।
पुकारा लक्ष्मण-लक्ष्मण कहकर।।
लक्ष्मण ने कुटी में थी,खींच दी रेखा।
कहे भाभी! तुम नहीं लांघना रेखा।।
आ गया रावण संन्यासी बनकर।
मांगने भिक्षा बड़ा दीन बनकर।।
देने के लिए भिक्षा ,लांघी रेखा सीता।
हर लिया रावण,बड़ी रोयी पुनीता।।
जटायु ने राम को,यह बात बताई।
गीरा उनके गहने, उन्हें थी दिखाई।।
हरा उनको रावण,पर छू न सका था।
उसे भस्म होने का डर भी लगा था।।
उसे यह पता था कि सती यह नारी।
बड़े कुल की थी वह, पतिव्रता भारी।।
बिना स्वीकृति के जो,सीता को छूता।
तो गिरता मही पर, होकर भभूता।।
वानर सेना संग राम ने कर दी चढ़ाई।
सोने की लंका को, पूरी थी ढाई।।
इस विधी सीता को वापस ले आये।
अयोध्या की रानी थे उनको बनाये।।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, May 14, 2024

दोहे

उलटे पुलटे शब्द आधारित दौहे

*राम* नाम अनमोल है,जपो राम का नाम।
*मरा-मरा* भी बोलकर, डाकू पाया धाम।।

*राधा* रानी प्रेम से,जपती केशव नाम।
प्रेम *धारा* हृदय बहा,रटती प्रातः-शाम।।

काम करो ऐसा सुनो, दुनिया बोले *वाह*!
*हवा* तेरी ओर बहे, पूरी हो मन चाह।।

*दावा* मत कर नेह पर,रख मन में विश्वास।
*वादा* पूरा कर सभी,मत दो झूठी आस।।

*सदा* करें जो कर्म को,रख मन में विश्वास।
भला कर्म से भाग्य भी,हो जाता है *दास*।।

मीठी वाणी बोलकर,कर समाज पर *राज*।
*जरा* न तीखी बोलिए ,रूठे सकल समाज।।

अपने *दम* पर पाइए,जग भर में पहचान।
*मद* में चूर न रहें, दूजे पर कर शान।।

*जग* झूठा है भाईयों,सुनो झुकाकर माथ।
*गज* भर भी धरती वहांँ,जाएगी ना साथ ।।

मदिरा पीने में कभी,दिखलाओ मत *शान*।
*नशा* नाश का मूल है,मत कर इसका पान।।

*मय* के प्याले में भरा, दुनिया का सब रोग।
*यम* रहता पीछे खड़ा, बात मानिए लोग।।

झूठ कभी *मत* बोलना,सच का देना साथ।
सच सदा *तम* दूर करे, मिले सफलता हाथ।।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, May 13, 2024

जगदम्बे मैया का गीत (मगही भाषा)

जगदम्बे माता गीत (मगही भाषा)

सब सखियन मिली गेलियै बजरिया,
वहैं लैलियै शेरों वाली के चुनरिया 
वहैं से लैलियै.........

चम-चम गोटबा से सजल चुनरिया ,
रेशमी धगबा के लटकै फुदनियां
बहुत शोभे शेरों वाली के चुनरिया 

माँग सिंदूर शोभे,माथे टिकुलिया,
कनमा में झुम्मक,नाक नथुनियां
बहुत शोभे माँ के हाथ में मुनरिया।


गले में हरबा औ हाथ कंगनमा,
पउवां में आलता और शोभे बिछुआ,
बहुत शोभे मैहर वाली वाली के पैजनिया।

चुनरी ओढ़ मैया बैठली मड़फिया,
सब भक्तजन मिली करथी भजनिया,
बहुत दिहली माता रानी बरदनियां।
बहुत शोभे शेरों..........
 
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, May 9, 2024

तुलसी पूजा गीत

तुलसी गीत 
बोल जगदम्बा से लाड़ो सुहाग मांगे )

मेरे आंगन में शोभे श्याम तुलसी।
श्याम तुलसी,हरे राम तुलसी।

सोने सुराही में गंगा-जल भरके,
नित उठ पटाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की डलिया में बेली चमेली,
तोड़ -तोड़ चढ़ाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की थाली में दाख-छुहारा,
नित भोग लगाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की दीया, रेशम की बाती,
घृत डाल जलाऊँ मैं श्याम तुलसी ।

सोने की थाली कपूर की बाती,
नित आरती उतारूँ मैं श्याम तुलसी।

मेरे आँगन में शोभे......
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, May 7, 2024

हिंदी भाषा (दोहे)

हिंदी (दोहे)

हिन्दी भाषा है सरल ,सदा करें सम्मान।
हिंदी में सब बोलिए, रखिए इसका मान।।

हिंदी है यह देश की, अद्भुत है श्रृंगार।
इस भाषा के प्यार को, जान रहा संसार।।

हिन्दी से ही जन यहांँ,पाते हैं पहचान।
इस भाषा को बोलिए, मन में रखकर शान।।

इस भाषा-सी जगत में,मिले न भाषा एक।
चाहे इसको परख लो,जग में नजरें फेंक।।

जो जन बोले प्रेम से,इस भाषा में बोल।
बोली सुन मधुरिम लगे,जैसे मीठा घोल।।

हिन्दी में जो बाँचते,गीता-वेद-पुराण।
उसके सम संसार में, मिले न जीव महान।।

हिन्दी को बस जानिए, ईश्वर का उपहार।
इस भाषा को हर घड़ी, मिलता जाता प्यार।।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

पावन कर्म (कविता)

पावन कर्म
माता-पिता और गुरुजनों की,
                सेवा करना पावन कर्म।
श्रेष्ठ जनों का कहना मानो,
              यह भी होता पावन कर्म।

जिनको पथ का ज्ञान नहीं है,
            उनको पथ पर लाओ तुम।
भटके जन को राह दिखाना,
                भी होता है पावन कर्म।

जिसके सिर पर छत न छप्पर, 
                उसे छाया में ले आओ।
निराश्रितों को आश्रय देना 
                भी होता है पावन कर्म।

काँपते जन को कमली दो,
               और नंगे जन को धोती।
निर्वस्त्रों को वस्त्र पहनाना 
                भी होता है पावन कर्म।

चींटी को कुछ आटा दे दो,
                और चिड़िया को दाना,
भूखे जीवों को भोजन देना,
                भी होता है पावन कर्म।

जो दुःख पा अधीर हुए हों,
             उनको थोड़ा धीरज दे दो,
दुखियारों पर दया दिखाना 
                भी होता है पावन कर्म।

मक्कारी से दूर रहो तुम, 
             झूठ कभी मत अपनाओ,
सदा सत्य का साथ निभाना 
                भी होता है पावन कर्म।

हिल मिल खाओ,और खेलों, 
              भाई और संगी-साथी से।
मेल-मिलाप बढ़ाकर रखना 
                भी होता है पावन कर्म।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, May 1, 2024

दोहे (शब्द आधारित) गर्मी, धूप,लू, पसीना, पानी , घड़ा, पंखा)

दोहे (शब्द आधारित)
गर्मी,धूप,लू, पसीना, पानी, घड़ा पंखा

गर्मी -
भीषण गर्मी पड़ रही, व्याकुल हैं सब जीव।
गर्मी से राहत मिले, ढूंढ रहे तरकीब।।

धूप-
हवा चलती गरम बड़ी,धूप उगलती आग।
अति तपन से भूल गयी, कोकिल अपना राग।।

लू-
लू चलती है सन-सनन,जला रही है अंग।
ग्रीष्म ऋतु ने अपना, खूब दिखाया रंग।।

पसीना-
पसीना है टपक रहा, पोंछ रहे हैं लोग।
गर्मी से है बढ़ रहे,कई तरह के रोग।।

पानी-
पानी लगता आज है, सबको सुधा- समान।
पानी जीव के तन में,फूंक रहा है जान।

घड़ा-
घर-घर देखो शोभता, घड़ा-सुराही लाल।
सब जन ठंडा कर रहे, इसमें पानी डाल।। 

पंखा-
कमरे में कूलर चले, फिर भी पंखा हाथ।
गर्मी लगती तेज है,चकराता है माथ।।


सुजाता प्रिय 'समृद्धि'