Thursday, June 30, 2022

दृश्य सुहावन

दृश्य सुहावन

फूलों की क्यारी
हैं सुंदर-सुंदर
लगती प्यारी।

रगं-बिरंगी
हैं कलियांँ मुस्काई
मन को भाई।

तितली आई
औ फूल-फूल पर 
हैं मड़राई।

भौंरे हैं गाते,
सुंदर तान वह
 हमें सुनाते।

कोयल कूके
बुझ रहे मन में,
जीवन फूंके।

दाना चुगने
चिड़िया है चहकी
आई बहकी।

तोता औ मैना 
आम पेड़ पर है 
चहक कर।

पपीहा कूंजे
तीतर बटेर की
बोली गूंजे।

मोर झूमते
पर को फैला कर
नाच दिखाते।

है सुहावन
ये दृश्य बगिया की
मनभावन।

सुजाता प्रिय समृद्धि
  स्वरचित, मौलिक

Wednesday, June 29, 2022

वर्षा में भीगलै चुनरिया



वर्षा में भींगलै चुनरिया (मगही भाषा)

अब झमर-झमर बरसे बदरिया।
हमर बरसा में भींगलै चुनरिया।

टप-टप,टप-टप बरसे रे पानी।
हर-हर हर-हर,हरसै रे पानी 
हम घूमे ले अइलियै बजरिया।
बरसा में..................
झम-झम,झम-झम पनिया बरसे।
गड़-गड़,गड़-गड़ बदरिया गरजे।
हमरा सूझे ना तनी  डगरिया।
बरसा में.................
सज-धज के हमें घूमे ले अइलियै।
थैला और बटुआ में हथबा लैलियै।
लेकिन लेबे ले भुलैलियै छतरिया।
बरसा में..................
चुनरी भी भींगलै,चोली भी भींगलै।
केश के लट संग चोटी भी भींगलै।
और संग में भींगलै अचरिया।
बरखा में.................
मुहमां के किरिम-पौडर धोबैलै।
ठोरबा के भी लिपिस्टिक धोबैलै।
हमर अखिया के धोबैलै कजरिया।
बरसा में.................
    सुजाता प्रिय समृद्धि

मायका का प्यार

मायका का प्यार 

बचपन की जुड़ी हैं यादें,
बचपन का जुड़ा है प्यार।
भूले नहीं भूलता है मन,
मायका का प्यारा संसार।

अम्मा के आँचल की छैयां,
बाबा की बाहों का झूला।
खुली हवा में बचपन जागा,
वातावरण था खुला -खुला।
कैसा आनंद से भरा था,
वहांँ का अपना घर-द्वार।
भूले नहीं भूलता है मन,
मायका का प्यारा संसार।

दादी के कहानी-किस्से,
दादा का सीख-सीखावन।
चाचा का लाया खिलौना,
चाची के गीत लुभावन।
बुआ का छुप-छुपकर देना,
वह प्यार भरा उपहार।
भूले नहीं भूलता है मन,
मायका का प्यारा संसार।

रंग-बिरंगे फूलों की क्यारी,
वह अमियां की छाया।
सखियों संग घूमना-फिरना,
खेल -खिलौनों की माया।
झगड़ों के संग याद आता है,
भैया -दीदी का दुलार।
भूले नहीं भूलता है मन,
मायका का प्यारा संसार।

होली-दिवाली, बड़ी निराली,
वह प्यार भरा दशहरा।
मकरसंक्रांति, रक्षा बंधन,
लगता था बड़ा सुनहरा।
याद सदा सताता मुझको,
सदा ही सारा त्योहार।
भूले नहीं भूलता है मन,
मायका का प्यारा संसार।
        सुजाता प्रिय समृद्धि

Tuesday, June 28, 2022

गोरी का शृंगार

गोरी का शृंगार

होठों पर लाली, कानों में बाली।
पहनकर चली गोरिया मतवाली।।

कानों में झुमका,लगाकर ठुमका।
सनम जाना है आज मुझे दुमका।।

अंखियों में कजरा,जूड़े में गजरा।
खूब समझती तेरी बातों का माजरा।।

पांवों का पायल, किया मन घायल।
रुनझुन संगीत का हुआ मन कायल।।

हाथ कंगन बाला,गले में माला।
बिंदिया सजाकर चली वृजवाला।।
       सुजाता प्रिय समृद्धि

Monday, June 27, 2022

दादी नानी की कहानियांँ



दादी नानी की कहानियांँ

अच्छी-अच्छी बात बताती,
दादी -नानी की कहानियाँ।
कभी हंँसाती कभी रुलाती,
दादी- नानी की कहानियांँ।

खूब हँसा मनोरंजन करती।
हमारे मन का संशय हरती।
घुलमिल रहना हमें सिखाती,
दादी -नानी की कहानियांँ।

भले- बुरे का है ज्ञान कराती।
झूठ-सच का परिणाम बताती।
बुरी राह से हमेशा हमें बचाती,
दादी - नानी की कहानियांँ।

पुरातन युग की बात बताती।
युग-युग का इतिहास सुनाती।
सुखी साम्राज्य का भान करती,
दादी -नानी की कहानियांँ।

भलाई करने को प्रेरित करती।
हम सभी को सम्मिलित करती।
संग रहना खेलना हमें सिखाती,
दादी -नानी की कहानियांँ।
    सुजाता प्रिय समृद्धि

मंजिल



मंजिल

जो करते हैं मेहनत-हिम्मत उन्हें ही मंजिल मिलती है।
उनके जीवन-बगिया में सफलता की कलियां खिलती है।

मंजिल की चाहत है मन में,सत्पथ पर चलते जाओ।
विघ्नों और बाधाओं से, तनिक नहीं तुम घबराओ।
विघ्नों से लड़नेवालों के संग सदा सफलता चलती है।
जो करते हैं मेहनत..........

जो मन को दृढ़ बनाकर,पग-पग आगे बढ़ते हैं।
हिम्मत कर अपने कदमों से, सीढ़ी -सीढ़ी चढ़ते हैं।
मंजिल का मार्ग प्रशस्त हो जाता,सच्ची राह निकलती है।
जो करते हैं मेहनत...........

जो मन में निश्चय कर बैठे, मंजिल मुझको पाना है।
चाहे पथ जितना दुर्गम हो, आगे कदम बढ़ाना है।
अड़चन की चट्टान भी पथ में, दृढ़ ऊष्मा से पिघलती है।
जो करते हैं मेहनत..........
                  सुजाता प्रिय समृद्धि

Sunday, June 26, 2022

विजया घनाक्षरी

विजया घनाक्षरी

गणपति को नमन, कार्तिक जी को नमन,
माँ पार्वती को नमन,गौरीपति को नमन,

हरि विष्णु को नमन,माता लक्ष्मी को नमन,
सरस्वती को नमन, चक्र-ब्रह्म को नमन।

रामचंद्र को नमन,सीता माता को नमन,
लखनजी को नमन,हनुमान को नमन।

बालकृष्ण को नमन,राधा प्यारी को नमन,
गोप-गोपी को नमन, भक्त जन को नमन।

    सुजाता प्रिय समृद्धि

अधजल गगरी छलकत जाय



अधजली गगरी छलकत जाय

अधजल गगरी छल-छल छलके।
इधर-उधर वह खूब मचलके।

गगरी का वह आधा पानी।
उमड़ता है जैसे गंगा-रानी।

मन-ही-मन में यह इतराता।
छलक-छलक नाच दिखाता।

कुआँ इसको लगे भिखारी।
ताल-तलैया नदियाँ सारी।

नहीं जिसे होती समझदारी।
लगती अपनी सूरत प्यारी।

बोले सबसे सदा बड़बोली।
सारी दुनियांँ इससे भोली।

अवगुण अपना न पहचाने।
बढ़-चढ़कर लघुगुण बखाने।

     सुजाता प्रिय समृद्धि

Saturday, June 25, 2022

देव घनाक्षरी

देव घनाक्षरी

पहन चुनरी चोली, राधा सखियों से बोली।
मत कर आज ठिठोली,खटक खटक खटके।

मधुवन में मुरारी, बजाते बाँसुरी प्यारी,
मेरी पायलिया भारी, झनक,झनक,झटके।

कर अम्मा से बहाना,माखन मिश्री ले जाना,
कान्हा को मुझे खिलाना,पकड़ पकड़ मटके।

चल तू मेरे संग में, आज मेरे उमंग में,
रंग मेरे ही रंग में,पहर पहर सटके।
        सुजाता प्रिय समृद्धि

Thursday, June 23, 2022

कृपाण घनाक्षरी छंद

कृपाण घनाक्षरी

दया कर तारो-तारो, ईश्वर हमें उबारो,
जीवन आज सँवारो, विकल है अन्तर्मन।

मैं तो हूँ तेरी ही दासी,तेरे दर्शन की प्यासी,
बैठी हूँ आज उदासी,तड़पता मेरा मन।

मन के क्लेश मिटा दो,संकट से हमें बचा दो,
बेड़ा पार लगा दो, बिखर ना जाए धन।

सुनो अब अंतर्यामी, तुम्हारी मैं अनुगामी,
तुम हो सबके स्वामी, बचाओ अब जीवन।
          सुजाता प्रिय समृद्धि

घनाक्षरी

डमरू घनाक्षरी

खटपट मत कर, नटखट मत बन,
झटपट झटपट,चल अब पथ पर।

घट रख सर पर,डगर पकड़ कर,
पनघट पर चल,झट-झट जल भर।

लख यह पग-पग, पथ यह जगमग,
डगमग-डगमग,रह-रह मत कर।

बम-बम हर-हर,यह कह जल भर,
वदन रगड़ कर,मत कर थरथर।
             सुजाता प्रिय समृद्धि

Wednesday, June 22, 2022

अग्निवीरों कुछ तो बोलो



अग्निवीरों कुछ तो बोलो

मन भ्रमित क्यों हुआ तुम्हारा?
           अग्निवीरों कुछ तो बोलो!
शांतिपूर्ण वातावरण में अब,
          कभी नहीं तुम विष घोलो।
उत्पात मचाने दौड़ रहे हो,
        बोलो क्या है यह बात सही।
शांतिपूर्वक विचार करो तुम
    हुड़दंगों से सुरक्षित होंगी मही।
अपने ही कर से तुमने है,
      विनाश किया सम्पत्तियों को।
स्वयं सभी भाई-भाई मिल 
  कर रहे आमंत्रित विपत्तियों को।
तुम्हें अग्निपथ स्वीकार नहीं,
         पर क्रोध में अग्नि बरसाये।
रणक्षेत्र बना देश को तुम,
    आग- लगावन ही तो कहलाये।
शांतिपूर्ण प्रदर्शन यदि करते,
    बुद्धिजीवी सपूत तुम कहलाते।
देश का मस्तक ऊंचा करते,
     निज भाल उठाकर दिखलाते।
स्वयं देश द्रोही बन बैठे तो,
      बता देश को कौन सम्हालेगा।
सच लगता बाहर वाला आकर,
          तेरे घर से तुम्हें निकालेगा।
शांतिपूर्ण और सौहार्द से अगर,
          तुम बात अपनी रख पाते।
अपनी मन की बातों को तुम,
          रख प्रेम -भाव से मनबाते।
राष्ट्र-हित के हेतु जिन्होंने,
       किया अपने प्राण न्यौछावर।
तड़प रही होगी आत्मा उनकी,
            तेरे कर्मों से उकता कर।

   सुजाता प्रिय समृद्धि

Tuesday, June 21, 2022

योग (हाइकु)

करते जाओ
योग तुम भाई जी
रोग भगाओ।

सुखी रहो तू
सभी जनों के भी तू
दुःख मिटाओ।

योग से होता
यह काया कंचन
दुःख ना आये।

जो करते हैं
उठ योग हमेशा
वो सुख पाये।

जीवन का है
अभिन्न अंग यह
अपनाते जा।

सहजता से
निरोग वदन को
तू बनाते जा।

योग के इस
प्यारे अनुभव को
बाँट सभी को।

जो दुःख देता
रोग-कष्ट-बीमारी
काट सभी को।

योग है देता
नियंत्रण-ताकत
इच्छाओं पर।

दिनचर्या में
शामिल कर इसे 
अपना कर।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, June 19, 2022

पिता (हाइकु)

पिता

पिता हमारे
जनक हैं हमको
उनसे प्यार।

परिश्रम से
वे हमें पालते हैं
देते दुलार।

पिता से होता
सुखी हमारा यह
है परिवार।

पिताजी होते
हम बच्चों के सदा
ही हैं आधार।

हर संकट
मेरे दूर भगाते
हैं ललकार।

बरगद की
घनी छांव बनते
हाथ पसार।

अबोध बच्चे
को ठोक-पीटकर
देते आकार।

सुख देने को
हरदम रहते
हैं वे तैयार।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, June 18, 2022

पिताजी



                 पिताजी

बरगद की घनी छांव से होते हैं पिताजी।
होते हैं पिताजी। सम्मान सदा उनका करो।
हर भार अपने कांधे पे ढोते हैं पिताजी।
ढोते हैं पिताजी। सम्मान सदा उनका करो।

मां अगर है जननी, पिता भी जनक हैं।
जीवन के प्रसून में पिताजी से महक है।
खुशियों को हर क्यारी में बोते हैं पिताजी। 
बोते हैं पिताजी। सम्मान सभी उनका करो।

मां अगर है धरती, पिता आसमान हैं।
मां अगर है आंगन पिता आलिशान हैं।
हृदय के गंगा जल से इसे धोते हैं पिताजी।
भिगोते हैं पिताजी। सम्मान सभी उनका करो।

दिन-रात कड़ी मेहनत से पैसे हैं कमाते।
पाई-पाई जोड़ हमारी जरूरत हैं पुराते।
मन मार अपनी शौक को खोते हैं पिताजी। 
खोते हैं पिताजी।सम्मान सदा उनका करो।

जीवन भर पिता हैं ,अपना फर्ज  निभाते।
हमें पढ़ाने खातिर हैं, कितने कर्ज चुकाते।
चिंता में रात-रात,ना सोते हैं पिताजी।
ना सोते हैं पिताजी। सम्मान सदा उनका करो।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, June 16, 2022

आम (दोहा )

आम फलों का राजा है,जानते हैं सब लोग।
पूजा में सब देवों को,लगता है इसका भोग।।

कच्चा में हम खाते हैं,इसकी चटनी पीस।
पकने पर हम चूसते,थोड़ा पत्थर पर घीस।।

लू लगे तो आम पका, रगड़ नहाते यार।
अमझोरे पीकर अपना,करते हैं उपचार।।

कहते हैं सब वैद्य-ऋषि,आम गुणों की खान।
जो इसका सेवन करे,वह बड़ी बुद्धिमान।।

बीजू मालदा दसहरी,अनेकों इसके नाम।
सभी अनोखे स्वाद में,अलग-अलग हैं दाम।।

Tuesday, June 14, 2022

रक्तदान महादान

रक्तदान महादान
आज विश्व रक्तदाता दिवस के पुण्य-अवसर पर जगह-जगह पर रक्तदाता शिविरों का आयोजन किया जा रहा है।रक्तवीरों के होंठों पर विजयी मुस्कान इस प्रकार नृत्य कर रही हैं जैसे वे कोई बहुत बड़ी जीत हासिल करने जा रहे हैं। अथवा जीवन के कोई सर्वोत्तम कार्य करने जा रहे हैं।हाँ उनकी यह मुस्कान भी सही है।यह उनकी जीत ही तो है।मानव का मानवता के ऊपर।यह जीवन का एक सर्वोत्तम कार्य ही तो है। अपना रक्त देकर किसी दूसरे प्राणि का जीवन बचाना। भले ही रक्तदाता को यह  ज्ञात नहीं होता कि उसके द्वारा प्रदान किया गया खून किस जाति एवं धर्म के व्यक्ति के धमनियों में प्रवाहित हो रहा।किस मतावलम्बियों की जान बचा रहा है।इन सभी जाल -जंजालों से उन्हें क्या मतलब ? उन्हें तो बस रक्तदान का पुण्य कार्य करना है। बहुत ही अच्छी सोच और बहुत ही अच्छे विचार।
लेकिन काश उनका यानी हम सभी मानवों का मानवता के ऊपर ऐसे ही उच्च विचार और व्यवहार होते  ?हम सभी जातिगत एवं धार्मिक झगड़ों के समय भी ऐसे ही उदारवादी और सहिष्णु होते।एक मानव की सुरक्षा मानव की तरह करते और सिर्फ शांति पूर्ण और सहयोगी भावना का विकास अपने मन में करते ।तो हमारे मानव समुदाय में प्रेम, सहिष्णुता और एकजुटता होती।

Monday, June 13, 2022

हम कहाँ जा रहे हैं ?



हम कहाँ जा रहे हैं

कोई तो बता , हम कहांँ जा रहे हैं ?
कहाँ जा रहे , हम कहाँ जा रहे हैं ?

सदाचार को हम  नहीं अपनाते।
दूराचार को अपने गले से लगाते।
भाईचारे को हम न अपना रहे हैं।
कहाँ जा रहे , हम कहाँ जा रहे हैं ?

राम-रहीम पर करते हम झगड़ा।
मंदिर औ मस्जिद के नाम रगड़ा।
जाति-मजहब में फंसे जा रहे हैं।
कहाँ जा रहे , हम कहाँ जा रहे हैं?

हमें लक्ष्य अपना दिखाई न देता।
विजय के लिए हम बने हैं प्रणेता।
स्वयं राष्ट्र विध्वंस किए जा रहे हैं।
कहाँ जा रहे , हम कहाँ जा रहे हैं ?

त्याग रहे अपनी सभ्यता-संस्कृति।
बोली-व्यवहार में कर रहे विकृति।
परिजनों पर अपने कहर ढा रहे हैं।
कहाँ जा रहे ,  हम कहाँ जा रहे हैं ?

भाई-भाई आपस में लड़ते रहेगें।
तो हरदम मुसीबत में पड़ते रहेगें।
दूजे को घर लूटने को बुला रहे हैं।
कहाँ जा रहे , हम कहाँ जा रहे हैं ?

हम स्वयं जागें , सभी को जगाएँ।
अपनों को अपने , गले से लगाएँ।
क्यों अच्छाइयों से हम घबरा रहे हैं ?
कहाँ जा रहे ,  हम कहाँ जा रहे हैं ?

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, June 12, 2022

बाल श्रमिक (सायली छंद )



                 अभी
                तो तुम
            छोटे बच्चे हो
              काम नहीं
                करना।

                  बड़े
              होकर तुम
           अपने जीवन के
               अंधेरे को
                 हरना।

                 पढ़ने
              लिखने की
            है उम्र तुम्हारी
               तुम बहुत
                 पढ़ना।

                 शिक्षा 
              पाकर तुम
            भी अच्छी राहें 
               जीवन की
                  गढ़ना।

                  मासूम
                बचपन की
               जिद के आगे
                मजदूरी मत
                 अपनाओ।

                    बेवस
                 मजबूर और
              असहाय नहीं तुम
                   खुद को
                     पाओ।

                      अभी 
                   सशक्त और
                 परिपक्व बहुत है
                   आगे तुमको
                       होना।

                        प्यारे
                   लेकिन आज
                  तुम्हारे हाथों में
                  चाहिए पुस्तक,
                      खिलौना।

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, June 7, 2022

पंगत व्यवस्था या वफे सिस्टम


 
पंगत व्यवस्था या वफे सिस्टम

आधुनिकता की होड़ ने हमारी पौराणिक परम्पराओं को ध्वस्त कर दिया है।हम सभी अपनी प्राचीन रीति रिवाजों को त्यागकर पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति को अपनाते जा रहें हैं और उसी दुष्परंपराओं को अपनाने में गर्व महसूस करते हैं।
  हमारी प्राचीन सभ्यता सदा वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित था जो सदैव लाभकारी व्यवस्था था।पंगत में भोजन करने की व्यवस्था सर्वप्रथम आपसी भाईचारे एवं सहयोग को बढ़ावा देता था।घर में या भोज-स्थल में धरती पर ही सुंदर और साफ सुथरे आसन पर हमें आदर पूर्वक आगवानी कर बैठाया जाता था और पवित्र धातुओं के वर्तनों में प्रेम और श्रद्धा के साथ पूछ-पूछकर खिलाया जाता था। पवित्रता के ख्याल से ही फिर पत्रपात्र यानी पत्तल व्यवस्था था। भोजन परिवेशन से पूर्व जल दिया जाता था । जिससे लोग अपने हाथों को पवित्र करने के साथ-साथ वर्तनों को भी पवित्र  कर लें।
भोजन के प्रकारों को भी पहले बताकर और पूछ-पूछकर परोसा जाता था। भोजन के मध्य में भी पूछा जाता था और अंत में दही-मिष्ठान देकर भोजन समापन किया जाता था।भोजन के उपरांत भी लोग पंक्ति में बैठे लोगों के खाने का इंतजार करते थे और सभी के खाने के पश्चात एक साथ उठते थे।इस प्रकार सभी जनों में आपसी प्रेम-संभाव बना रहता था। पंगत व्यवस्था में भोजन करने से पाचन क्रिया सरल होती थी।
     लेकिन आजकल का फैशनेबल लंबे सिस्टम नें उन सभी मर्यादाओं को रौंदकर रख दिया है। भोजन के समय कोई किसी की परवाह नहीं करते।ना ही कोई किसी को भोजन ग्रहण करने का आग्रह करते हैं ना ही कोई किसी को बोलता पूछता है।सभी लोग खाने-पीने का सामान देख स्वयं ही भोजन करने टूट पड़ते हैं। ना ही बोलने की आवश्यकता ना ही पवित्रता का ध्यान किसी को रहता है। कितने लोग तो जूठे हाथों से ही भोजन सामग्री उठा लेते हैं। इस तरह से बहुत से कारणों से लंबे सिस्टम में  भोजन कराया जाना सही नहीं है।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, June 6, 2022

सूर्य (हाइकु )



सूर्य निकला 
प्रकाशित हो गया
जगत सारा।

देख दिशाएं
धरती अम्बर का
है उजियारा।

प्रेम करता
यह जग वालों से
साथ निभाता।

भेद ना करे
किसी भी प्राणियों से
प्रेम सिखाता।

किरणें फैली
चहुं दिशा में देखो
तम है हारा।

आसमान का
रंग निखरा देखो
सूर्य लाली से।

सूर्य-किरण
छनकर है आता
वृक्ष डाली से।

अग्नि के जैसा
सूरज है तपता
लू उगलता।

जल की बुंदे
सबके वदन से
यूं निकलता।

 सुजाता प्रिय समृद्धि

Sunday, June 5, 2022

आधुनिकता की होड़ में पर्यावरण की सुरक्षा कैसे करें

आधुनिकता की होड़ में पर्यावरण की सुरक्षा कैसे करें


यह सच है कि आज हमारा समाज आधुनिकता के दौर से गुजर रहा है।हम गाँव की अपेक्षा शहरों मे रहना अधिक पसंंद करते हैं।छोटे घरों की अपेक्षा आलिशानों में रहने में गर्व महसूस करते हैं।निकट स्थानों में भी वाहनों द्वारा ही जाना चाहते हैं।सच पूछें तोआधुनिकता के इस होड़ में हम प्रकृति का दोहन करने लगते हैं जिससे हमारा पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।
अब हमें सचेत होना होगा।पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए।हम आधुनिक बनकर भी पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं।
हमारी पहली कोशिश होनी चाहिए की भवन-निर्माण के समय अकारण पेड़ -पौधे को नष्ट न करें।अपने घरो में पेड़-पौधों के लिए भी थोड़ा स्थान रखें।गमलों में भी छोटे-छोटे पेड़-पौधे एवं फूल लगाकर हरियाली बढ़ायें।
  नदी तालाबों ,जलाशयों जंगल मैदानों का अतिक्रमण कर गृह निर्माण न करें।वल्कि उनकी साफ-सफाई तथा रख-रखाव की जिम्मेदारी व्यक्तिगत या सामुहिक रूप से लें।
निकट के हाट- बाजार,मंदिर,विद्यालय आदि स्थानों पर वाहन से न जाकर पैदल जाने की आदत डालें ।इस प्रकार हम स्वस्थ्य भी रहेंगे औरवाहनों से निकलने वाले धूएँ से हमारा वायु भी प्रदूषित होने से बचेगा।
हम अपने घरों को तो साफ-सुथरा   रख लेते हैं लेकिन घर के कूड़े-कचरे सड़कों तथा नदी-तालाबों में फैला देते हैं।इन आदतों में सुधार लाना होगा।
यूं कहें जल,जंगल और जमीन की सुरक्षा कर ही हम पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं।सच्चे अर्थों में पर्यावरण की सुरक्षा और संतुलन ही हमारी सच्ची आधुनिकता होगी।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, June 4, 2022

गज़ल


मुश्किल हुआ अब तो दिल का लगाना।
उनको न आता क्योंकि प्यार निभाना।

जब दिल में आता यादों का मौसम,
दिल की तड़प बन जाता है बहाना।

शुरू में  मैं उनकी दीवानी नहीं थी,
मगर वे थे मेरे दिलोजां से दिवाना।

अब तो तड़प कर जीना हुआ मुश्किल,
न चाहूँ अब दिल का यह हाल बताना।

करूँ क्या शिकायत जमाने से जाकर,
नहीं चाहती हूँ मैं जिसको बताना।

हमारी ये मुहब्बत नुमाइश नहीं है,
नहीं है जरुरी किसी को दिखाना।

लगता है के हमारी मुहब्बत यही है,
यही है हमारी मुहब्बत का ठिकाना।

             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, June 3, 2022

नशा करना अभी छोड़ो (मुक्तक )



नशे की लत नहीं अच्छी नशा करना अभी छोड़ो।
दिख जाए जो मयखाना,तो मुख उससे सभी मोड़ो।
कभी भूले से रुख अपना,नहीं करना उधर कोई-
अगर खाए थे भूले से तो तुम अपनी कसम तोड़ो।

मय के प्याले से अपना घट जीवन का ना फोड़ों।
नशे में चूर होकर तुम नहीं जीवन का संग छोड़ो।
नशे में मत मिटाओ तुम कभी अनमोल जीवन को-
नशे को छोड़ जीवन से नाता तुम अभी जोड़ों।
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, June 1, 2022

न नशा करो ,ना करने दो



न नशा करो,ना करने दो।
न बेमौत मरो,ना मरने दो।

नशा है ,नाश का घर,
रुलाती है जीवन भर।
सभी को कंगाल कर,
लेती धन-प्राण को हर।
धन-प्राण ना अब हरने दो।
न बेमौत मरो, ना मरने दो।

सदा यह रोग लाती,
दुःख देकर सताती।
जलाकर देह छाती,
जीवन भर है रुलाती।
अब जुल्म इसे ,ना करने दो।
न बेमौत मरो ,ना मरने दो।

मय से तू दूर रहकर,
थोड़ा मजबूर रहकर।
दिल की बेचैनी सहकर,
अलविदा इसकोक कहकर।
मन को आह,थोड़ी भरने दो।
न नशा करो ,ना करने दो।
            सुजाता प्रिय :समृद्धि'