ओ माँझी
ओ मांझी ! ओ मांझी!
आजा मेरे प्यारे देश में।
बार-बार मैं तुझे बुलाऊँ,
विनती के संदेश में।
ओ मांझी! ओ मांझी!
इस देश की है नाव पुरानी।
पुरवाई बहती बड़ी तुफानी।
क्या बैठा रहेगा तू जग में?
बस पत्थर के वेश में।
ओ मांझी! ओ मांझी!
तुझ बिन नाव डगमग डोले।
तुम न आते,न कुछ ही बोले।
पतवार तेरे हाथ में है तो,
बैठा क्यों परदेश में?
ओ मांझी! ओ मांझी !
भाई-बंधु आपस में झगड़े।
कोई दुर्बल है,तो कोई तगड़े।
क्या बोलोगे नहीं कभी तुम,
जन-मन के इस क्लेश में।
ओ मांझी! ओ मांझी!
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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