Saturday, January 29, 2022

देश एक परिवार (लघुकथा )



देश एक परिवार ( लघुकथा )

गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर झंडा फहराये जाने के पश्चात सभी ने साथ-मिलकर राष्ट्र गान गाये। तदोपरांत मुख्य अतिथि एवं प्रधानाचार्य महोदय के औपचारिक भाषण के बाद विद्यार्थियों द्वारा रंग मंचीय कार्यक्रमों द्वारा देशभक्ति गीतों पर अद्भुत नृत्यों की प्रस्तुति ने दर्शकों के मन मोह लिये।अगला कार्यक्रम लघु नाटिका के मंचन हेतु नन्हें विद्यार्थियों के छोटे-से दल ने मंच पर पधार कर दर्शकों का अभिवादन किया। सभी के परिधान अलग-अलग थे। उनके परिधान भारत के विभिन्न प्रांतों की वेश-भूषा को प्रदर्शित कर रही थी। बंगाली पंजाबी, काश्मीरी, राजस्थानी......... ।उन नन्हें कलाकारों ने अपने विशाल देश भारत के नक्शे का रूप लेकर खड़े हो गए। उनमें से मद्रासी परिधान पहने बालक ने अपनी तुतली बोली में बोलना प्रारंभ किया। भालत हमाला देछ है।हम यहां लहते हैं।इछलिए यह हमाला घल है। जिछ पलकाल हमाले घल में ढेल छाले कमले होते हैं,उछी पलकाल हमारे देछ में ढेल छाले लाज्य है।जिछ तलह हम अपने घलों के कमले के नाम बैठक, रछोई, छयनकछ,अछनान- घर इत्यादि लखते हैं, उछी पलकाल हमाले पलांतों के भी नाम-बिहाल,बंदाल,धालखंद,लाजअछथान,केलल इत्यादि लखे गये हैं।हम छब अलग-अलग कमलों यानि पलांतों में लहने वाले एक ही  देछ के वाछी यानि एक ही परिवार के लोग हैं। हमाला अलग-अलग पलिधान हमाली पहचान है।हम अलग छलील एक जान हैं। भालत हम छब का देछ है यानि हम छभी भालत के बाछी, एक पलिवाल हैं।हम छभी भालत माता की छंतान हैं। हम छभी भाई-भाई हैं। इछलिए छब मिलकर बोलिए-भालत माता की दय।दय हिंद,दय भालत।
मंचासीन पदाधिकारियों सहित सभी उपस्थित सदस्यों के मुंह से निकला -जय हिन्द,जय भारत। सम्पूर्ण वातावरण तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि' 
            स्वरचित, मौलिक

Friday, January 28, 2022

जीना इसी का नाम है



जीना इसी का नाम है

जीओ और जीने दो,
सबको खाने-पीने दो,
मिलना ही तो काम है।
जीना इसी का नाम है।

किसी को न सताओ,
सबका साथ निभाओ,
सबका सुबह-शाम है।
जीना इसी का नाम है।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, January 27, 2022

भारत की वीरांगनाएं (कहानी )





इतिहास की कक्षा प्रारंभ होने वाली है। छात्र-छात्राओं में नव-उमंग की लहरें हिलोरें ले रही है।आज शिक्षिका पूर्णिमा वर्मा कल का बचा हुआ अध्याय पूर्ण करने वाली हैं।भारत के वीर सपूतों की जीवनियां और उनके विषय में कुछ विशेष जानकारियां उन्होंने इतने रोचक तरीके से समझाया कि इतिहास विषय को बेकार और फालतू समझने वाले भी सुन- समझकर आत्मसात कर रहे थे। आज शेष अध्याय को सुनने की ललक सबके हृदय में थी।कक्षा में शिक्षिका के आगमन पर सभी विद्यार्थी शांत-चित से बैठ गये।शिक्षिका ने भी बड़े उत्साह से भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के वीरों के बलिदानों और क्रांतिकारियों के कारनामों की समस्त घटनाओं को बारी-बारी से बताना प्रारंभ किया।सभी विद्यार्थी मजे लेकर सुन रहे थे और विभूति के मन में एक अजीब सी उथल-पुथल चल रही थी। उसके मन के ये भाव शिक्षिका महोदया से छिपी नहीं रह सकी। उन्होंने उसे टोकते हुए कहा क्या बात है विभूति तुम्हें इन वीरों के बारे में पढ़कर अच्छा नहीं लग रहा ? तुम खोई-खोई सी क्यों हो ?
उसने कहा-बहुत अच्छा लग रहा महोदया ! किन्तु मेरे मन में कुछ अलग प्रश्न उठ रहे।
हां हां बताओ! कौन से प्रश्न उठ रहे कुछ बोलोगी तभी उसकी उत्तर पाओगी।
मैं सोच रही हूं अंग्रेजी शासन के विरुद्ध लड़ाई में इतने वीर और क्रांतिकारी पुरुषों ने अपने योगदान दिये,तो भारतीय महिलाओं की कोई भूमिका नहीं रही।
उसके इस अप्रत्याशित प्रश्न पर उसके सहपाठियों समेत स्वयं शिक्षिका भी स्तब्ध रह गईं।
फिर उन्होंने संयत स्वर में कहा-बहुत ही सुंदर और सार्थक प्रश्न उठे हैं तुम्हारे मन में विभूति! महिलाओं का योगदान हर क्षेत्र में रहा है और रहेगा।जितने भी वीरों ने अपनी जान गंवाई, उनमें सभी स्त्रियों का तो योगदान था ।यदि वे अपने ललनाओं को अपने जिगर के टुकड़ों को स्वतन्त्रता की उस आंधी में नहीं झोंकती, उन्हें लड़ने के लिए प्रेरित नहीं करतीं तो वे कभी अंग्रेजो की बर्बरता के आगे टिक नहीं पाते। बहनें अपने भाइयों के कलाइयों पर राखी बांधकर और नवविवाहिताएं पति के मस्तक पर विजय तिलक लगाकर युद्ध-भूमि भेज रही थीं। यह महिलाओं की भूमिका नहीं थी।कई जगह महिलाओं ने स्वयं भी अंग्रेजों से डटकर टक्कर लिया। 
महारानी लक्ष्मीबाई को तो सभी जानते हैं कि उन्होंने किस वीरता के साथ अंग्रेजों से टक्कर लेकर उन्हें धूल चटा दिया और बहादुरी से लड़ती हुई वीरगति को प्राप्त हुईं।
क्या एकमात्र वीरांगना लक्ष्मीबाई ही थी?
नहीं-नहीं अनगिनत थीं।
तो उनके बारे में हमें क्यों पढ़ने को नहीं मिलता ? उनकी वीरता के बारे में कोई अध्याय क्यों नहीं बना। क्यों उनके लिए इतिहास में पन्ने नहीं दिखते ? क्यों उनकी वीरता के बारे में हमें कुछ नहीं पढ़ातीं ? उसके इन प्रश्नों को सुन शिक्षिका हतप्रभ रह गयीं।और बहुत ही संयत और विनम्रता पूर्वक बोली -तुम्हारा यह प्रश्न जायज है विभूति ! मैं एक अलग और विशेष अध्याय तुम्हें अपनी तरफ से लिखकर पढ़ाऊंगी। जिसमें सिर्फ़ और सिर्फ़ भारत की वीरांगनाओं के बारे में लिखा रहेगा कि किस प्रकार उन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगाकर ना केवल देश को स्वतंत्र ही कराया। बल्कि देश को एक सुदृढ़ और सुसंस्कृत भी बनाया। तुम्हारी तरह मेरे मन में भी यह जिज्ञासा उठी थी और मैंने भारत की स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगनाओं की वीरता और बलिदान की गाथाओं को इतिहास के मुख्य अध्यायों से ढूंढ कर एकत्र करती गयी।अब मैं तुम्हें उनकी कुर्बानियों को बारी-बारी से तुम्हें बताती हूं -

अवंतिका वाई लोधी १८५७ की क्रांति की प्रथम शहीद वीरांगना थी। अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते २० मार्च १८५८ को वीरगति को प्राप्त हुईं।
दूसरी वीरांगना मराठा शासित झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई के बारे में हम सभी जानते हैं।मात्र तेईस वर्ष की उम्र में अंग्रेजों से जम कर टक्कर ली और अंग्रेजी सरकार को रौंदते-कुचलते हुए १८ जून १८५८ को वीरगति को प्राप्त हुईं।
झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना दुर्गा दल की सेनापति थी। वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल होने के कारण शत्रुदल को गुमराह कर उसे करारा हार दिलाने में इन्होंने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंतिम समय में भी लक्ष्मीबाई के वेश में अंग्रेजी सेना से लड़ती रही और लक्ष्मी बाई को किले से भाग निकलने का अवसर प्रदान किया। लक्ष्मी बाई के एक विश्वासघाती सैनिक के कारण वीरगति पाईं।
लक्ष्मी बाई की भतीजी और बेलूर की जमींदार नारायण राव की बेटी अस्त्र शस्त्र संचालन और घुड़सवारी में काफी दक्ष थीं। इन्होंने भी अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए।
बेगम हजरत महल असीम शौर्य एवं साहस के साथ अंग्रेजों से युद्ध की।
उदा देवी एक उच्च कोटि की निशानेबाज थी। उन्होंने पेड़ पर चढ़ कर अंग्रेजी सेना पर धड़ाधड़ गोलियां दाग दी। अंग्रेजो नें पेड़ को काट डाला तब उन्हें पता चला कि उन पर हमला करने वाला कोई पुरुष नहीं बल्कि नारी है।वह पासी समुदाय से थीं उनकी मूर्ति आज भी लखनऊ के सिकंदर बाग में स्थित है।
रानी गाइडिन्ल्यु ने नागालैंड में अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में नेतृत्व किया।
इसके अतिरिक्त रानी तपस्विनी चौहान रानी ,नाना साहेब पेशवा की पुत्री मैना,मु्न्दरा ,काना, रानी हिण्डोरिया, रानी तेजवाई , रानी चेनम्मा, नर्तकी अज़ीज़ वेगम,कस्तूरबा गांधी,विजय लक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, सरोजिनी नायडू, सिस्टर निवेदिता, मीरा बेन, कमला नेहरू,मैडम भीखाजी कामा, सुचेता कृपलानी आदि बहुत सारी वीरांगनाओं की भी भारत को स्वतंत्र कराने में महत्वपूर्ण भूमिका रही। जिनके बारे मैं अगली कक्षाओं में विस्तार से बताऊंगी।अभी कक्षा का समय समाप्त हो गया है। जय हिन्द,जय भारत।
जय भारत की वीरांगनाएं।
विभूति ने खुशी से जयघोष किया तो छात्राओं सहित सभी छात्रों ने भी आवाज बुलंद किया।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, January 19, 2022

ना समझो हमें लाचारी भाई (चौपाई छंद )



ना समझो हमें लाचारी भाई।

नारी है नहीं बेचारी भाई। 
समझो ना हमें लाचारी ‌भाई।।
सुख की हैं अधिकारी भाई।
ना समझो हमें लाचारी भाई।।
जन्म लेते ही मत फेंको हमको।
जीने का भी हक दो हमको।।
हमको भी तुम दूध पिलाओ।
जहर  नहीं तुम हमें खिलाओ।।
समानता की हम हैं अधिकारी।
ना समझो तुम हमें लाचारी।।
नारी ने नर को जनम दिया है।
पाल-पोस कर बड़ा किया है।।
नारी का सम्मान न करते।
ना ही तुम रखवाला बनते।।
क्यों हम लगतीं तुझको भारी।
ना समझो तुम हमें लाचारी।।
नारी है ममता की मूरत। 
ममतामई है इसकी सूरत।।
नारी देकर अपनी माया।
निर्माण किया  पुरुषों की काया।।
नारी ही है माता प्यारी।
ना समझो तुम हमें लाचारी।।
नारी घरनी और नारी भरनी।
नारी ही है दुःख की हरनी।।
नारी वरनी और मनहरनी।
नारी ही है सुख की करनी।।
तुम पर हैं बलिहारी नारी। 
ना समझो तुम हमें लाचारी।
नारी की महिमा बड़ी निराली।
मन की वेदना हरने वाली।।
बिन नारी घर भूत का डेरा।
दुख-दारिद्र का वहाँँ बसेरा।।
ईश्वर की है यह रचना प्यारी।
ना समझो तुम हमें लाचारी।।
हर जगह नारी पांव बढ़ा कर।
चलती पुरुषों से कदम मिलाकर।।
दुख-परेशानी-को पीछे ठेलती।
 बाधाओं को छोड़ निकलती।
ना हारी थी,ना है हारी नारी।
ना समझो तुम हमें लाचारी।।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
              स्वरचित, मौलिक

Tuesday, January 18, 2022

निगोड़ी पूस के बरसात (मगही भाषा)



निगोड़ी पुस के बरसात

सावन में बरसे जब बदरिया
             सब जन के मन भाबे।
हा़य निगोड़ी पूस महिना में,
              बरस के बड़ी सताबे।

धुइयां ऐसन उड़े कुहासा,
              आसमान में लहराबे।
हड्डिया में समा के हमनी के
              इ तो औकात बताबे।

भींग गेलै जराबन के लकड़ी,
                कैसे जोड़िए चुल्हा।
हाथ- गोड़ सब कंपकंपा रहलै,
               दुखा रहलै ह कुल्हा।

बोरसी भींगलै,भुस्सा भिंगलै,
            भिंगलै गोइठा अमारी।
भींग गेलै कम्बल रजैया,
      बरसलै पनिया बड़ी भारी।

कैसे के अलाव जरैइयै,
           थर-थर कांपे वदनमा।
धूप के दर्शन तनी न होबै
            भींगल हकै अंगनमां।

सरर-सरर सीतलहरी चलै,
           कांटे नै कटै है रतिया।
ठंढ़बा से मनमा घबरैलै,
         एको न भाब है बतिया।

दिन में टप-टप पानी बरसलै,
            रात में बरसलै ओस।
हे भगवान काहे सतैला,
            कि है हमनी के दोष।

       सुजाता प्रिय समृद्धि
         स्वरचित, मौलिक

Sunday, January 16, 2022

शब्द सीढ़ी

शब्द सीढ़ी 
-पतंग , तिल, खिचड़ी, गुड़,ऊष्मा।

आसमान में उड़ रही,सर-सर करती पतंग।
हरी-लाल ,नीली-पीली, इसके अनोखे रंग।

तिल का लड्डू खाइए,सुबह में कर स्नान।
तिलकुट चूरा का करें, मंदिर जाकर दान।

खिचड़ी बनाकर खाइए, मिलाकर चावल-दाल।
घी और जीरे से छौंक कर, मटर- टमाटर डाल।

गुणकारी गुड़ खाइए, मन में रख विश्वास।
 राम बाण यह औषधि,कफ का करता नाश।

मकर संक्रांति में होता ,ऊष्मा का संचार।
शरद ऋतु को दूर कर, उल्लसित है संसार।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित, मौलिक

Thursday, January 13, 2022

मैं पतंग हूं


भैया मुझे नहीं पहचानते। क्यों पहचानोगे ? मैं अब बहुत कम नजर आती हूं।कम उड़ती हूं।ना मैं तितली हूं ,ना  मैं पंछी हूं। ना विमान हूं ,ना तुफान हूं। लेकिन आसमान में उड़ती हूं।ना मेरे पंख है ,ना पांव है ना हड्डी है ना पसली है।ना ही मेरे मांस-खून है ना चमड़ी है।ना ही मैं कुछ खाती हूं ना पीती हूं।ना सांस लेतीे ना सोती-जागती। फिर भी मैं नटखट दौड़ती फिरती हूं झटपट। मेरी भी कुछ पहचान है। देश-विदेश के लोग मुझे जानते हैं।कि मैं कौन हूं। इसलिए तो मैं मौन हूं। मुझे पहचानो भैया ! मुझे याद करो भैया। मुझे याद करो। मैं आज भी तुम्हारे हौसलों से उड़ान भरने को तैयार हूं। तुम्हारी मजबूत इरादों के साथ दूर क्षितिज में विचरण कर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे नाम एवं पहचान को समेटना चाहती। तुम्हारी आकांक्षाओं में सफलताओं के रंग भरने।
                 सुजाता प्रिय समृद्धि

Friday, January 7, 2022

मुश्किल में ना घबराओ

भगवान तुम्हारे नयनों से आंसुओं को पोंछ दें।
विषमता पर जाएगी,मन में ऐसी सोच दे।
मुश्किल में ना घबराओ,सब काम सफल हो जाएगा।
कठिनाइयां आकर कदमों,देख तुरंत झूट जाएगा।

पुरानी यादें

पुरानी यादें (मगही भाषा )

एक बार बचपन में, हमें घूमे ले गेलियै गांव।
चाची-चाचा पेड़ तले,जोड़ले हलथी अलांव।

सोचलियै तनी बैठ के, हमहुं हथबा सेकियै।
अलाव में कैसन गर्मी है,इहो थोड़ा देखियै।

हमरा देखके चाचा-चाची केलथिन बड़ी प्यार।
मथबा पर हाथ धर के प्यार से बड़ी पुचकार।

कहलथि चाची जो मुन्नी लकड़िया लादे बीन के।
जै गो लकड़िया लैंभी,लेमनचुसबा देबौ गीन के।

दौड़ के लकड़िया लैलियै,पसीना बड़ी छुटलै।
थक गेलियै दौड़ते,लेमनचुसबा के मोह छूटलै।

भाग गेलियै मैया के पास,चाची पुकारते रह गेलथिन।
अलवा के अगिया बुतैलै, फिर  सभे कपकपैलथिन।
          सुजाता प्रिय समृद्धि
            स्वरचित मौलिक

Tuesday, January 4, 2022

हम साथ-साथ हैं (मुक्तक)

हम साथ-साथ हैं (मुक्तक )

भगवन् तुम्हारे चरणों में झुका हमारा हाथ है।
हमारे सिर पर वर हेतु उठा तुम्हारा हाथ है।
हे भगवान है तुझको हमारा प्रणाम बारम्बार-
तेरे ही वरदान से आज हम साथ साथ हैं।

हम साथ साथ हैं,हम साथ-साथ ही रहें।
नदियों की उमड़ती जलधारा-सी साथ ही बहें।
हम साथ साथ खाएं-पीएं और जीयें-
और साथ-साथ मिल सब सुख-दुख को सहें।

एकता का संदेश लेकर साथ आगे बढ़े।
जीवन के सुगम राहों को हम मिलकर गढ़े।
ज़मीं पर सफलता की बनाकर सीढ़ियां-
आसमां पर हम साथ मिलकर ही चढ़ें।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'