Sunday, August 21, 2022

तोहरा बारम्बार प्रणाम जी (मगही भाषा)



तोहरा बारम्बार प्रणाम जी
        (मगही भाषा)

भारत के स्वतंत्रता सेनानी तोहरा बारम्बार प्रणाम जी।
तोहरे चलते आज भारत के आजाद देश के नाम जी।

जान हथेली पर ले के दुश्मन से तू लड़ गेला।
बांध माथा पर कफन आंदोलन में पड़ गेला।
नै बुझला तू दिन-रात,ना बुझला तू शाम जी
तोहरे चलते आज भारत के आजाद देश के नाम जी।

देशबा लगी जान गवैला,तोहनी बड़ा महान।
तोहर लोहा मानs हकै समूचे हिंदूस्थान ।
तू भारत के हनुमान हा, औ तू ही हा राम जी।
तोहरे चलते आज भारत के आजाद देश के नाम जी।

हे भारत के वीर सुपुत्तर,तोहरा पूजूं देव समान।
भारत के सब जन के मन तोहरा लागी है सम्मान।
तू ही देश लगी कैला, पहलवानी के काम जी।
तोहरे चलते आज भारत के, आजाद देश के नाम जी।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, August 20, 2022

नशा शराब में होती तो

नशा शराब में होती तो

नशा शराब में होती तो नाचती बोतल ।
ठुमकती शराबियों संग झूमती बोतल।

शराब से भरी रहने पर उसकी हिफाजत है।
खत्म होते ही फेंकी जाती यही हिदायत है।
शराब खत्म होने पर भी घर में होती बोतल।

हो सके तो नशा का भूत मन से निकालो।
होश ना गंवाओ,अपने मन को संभालो।
शराब से भरकर कभी होश न खोती बोतल।

जब बोतल मदिरा से लबालब भरी होती ।
जागती खाली में और खाली में सदा सोती।
भरी में जागती और खाली में सोती बोतल।

फिर,शराबी क्यों झूमते हैं शराब को पीकर।
तड़प -तड़प कर और घुट-घुट जीकर।
खुश हो खिलखिलाती, तड़प कर रोती बोतल।

जिन्हें न फिक्र जीवन की नशा गले लगाते हैं।
नशा कर बीवी बच्चों पर सितम कितना ढाते हैं।
हैवानियत शराब में होती तो इमान खोती बोतल।

नशा मनोरोग है भाई!नशा कर पागल ना बनो।
नशा कर कभी भी निज तन- मन घायल ना करो।
शराब से भरी रहने पर तो घायल होती बोतल।

नशा कर तू कभी अपनी होश ना गवाओ जी।
कभी हाथ ना लगाओगे यह कसम खाओ जी।
बेहोशी शराब में होती तो बेहोश होती बोतल।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, August 19, 2022

जन्माष्टमी (हाइकु)

जन्माष्टमी (हाइकु)

   मंगल गाओ 
आज है शुभ दिन 
  शुक्ल अष्टमी 

  खुशी मनाओ 
कृष्ण जनम लिए 
   है जन्माष्टमी ।

     बाल रुप में 
हरि विष्णु जी लिए 
      हैं अवतार ।

    कर कमलों 
को जोड़कर मेरा 
   है नमस्कार।

    भक्त वत्सल 
हैं यशोदा के लाल 
     कृपा करते।

   भक्त जनों के 
संकट हारी स्वामी 
     दुःख हरते।

 जो चरणों में 
नमन है करता 
 सच्चे मन से।

 उनकी बाधा
हर लेते केशव
 हैं जीवन से।

  जब आतीं है 
बाधाएँं भक्तों पर 
  दौड़े हैं आते।

  पल भर में 
बाधाएंँ हैं हरते
 मन मुस्काते।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 18, 2022

यशोदा के लाल



यशोदा के लाल (मनहरण घनाक्षरी)

मोर मुकुट है माथ,सोने का कंगन हाथ,
तन पीताम्बर गाथ,गले बैजन्ती माल।

गोपियों को है बुलात,बांँसुरी रोज बजाता,
मीठी धुन है सुनाता,बैठ कदम डाल।

गैया को है चराता,और माखन चुराता,
खाता और खिलाता,करता है बबाल।

करता है खटपट, लड़ता है झटपट,
बड़ा ही है नटखट,यशोदा तेरा लाल।
         सुजाता प्रिय समृद्धि

बाल श्रीकृष्ण के अलौकिक कार्य

जय माँ शारदे
बाल श्रीकृष्ण के अलौकिक कार्य

 नटखट श्रीकृष्ण बाल रुप से ही लीला रुपी बाल  सुलभ कर्म दिखाने लगे थे।एक बार माता यशोदा ने मिट्टी खाते हुए उन्हें टोका-फिर मिट्टी खायी तूने ?उन्होंने ना में सिर हिलाया। माता ने परीक्षण हेतु कहा -मुँह खोलो। जब श्री कृष्ण ने अपना मुंँह खोला तो उनके मुँह में संपूर्ण ब्रहमांड देखकर माता यशोदा से चकित रह गई ।
जब श्री कृष्ण घुटने और पंजे के बल चलने लगे तो माता यशोदा इस डर से कि वह बाहर ना चला जाए उन्हें डोरी के सहारे ओखली में बाँंध दिया। लेकिन श्री कृष्ण ओखली के साथ खिसकते हुए जंगल जा पहुंचे जहांँ नारद द्वारा शापित दो ऋषि वृक्ष रूप में पास-पास खड़े थे। कृष्ण उन वृक्षों के बीच से घुसकर चले गए तो ओखली दोनों वृक्ष के तने में अटक गई। बालक श्रीकृष्ण ने ओखली इतनी जोर से खींची की दोनों वृक्ष ही उखाड़ गए और दोनों ऋषि शाप मुक्त हो मानव रूप को प्राप्त किए।
एक बार बालक श्रीकृष्ण माता यशोदा से हट कर बैठे -मांँ ! मुझे चंदा दे दो मैं उससे गेंद खेलूंगा। उनके हठ से परेशान यसोदा माँ ने उन्हें बहलाने हेतु थाली में पानी रख उसमें चंद्रमा की परछाई दिखाई और कहा ले चंदा।श्री कृष्ण ने परछाई रूपी चंद्रमा को उठाकर अपने सिर पर धारण कर लिया ।जिसे देख माता यशोदा घबरा गई। 
बालक श्रीकृष्ण पालने में सो रहे थे।तभी कंस द्वारा भेजी गई उसकी मुंँह-बोली बहन पूतना राक्षसी ने उन्हें मारने हेतु यशोदा मां का रूप धारण कर उन्हें उठाकर अपना विश लगा दूध पिलाना शुरू किया । भगवान कृष्ण ने उसके दूध के साथ उसके शरीर के रक्त भी चुस-चुसकर पी गये। इस प्रकार पूतना राक्षसी को अपने प्राण गवांने पड़े।
 श्री कृष्ण बाल-सखा के साथ खेल रहे थे तभी उनका गेंद यमुना नदी में गिर गया।सभी बालक डर गए कि यमुना नदी में कालिया नामक नाग रहता है जिससे आज तक कोई नहीं बच सका।कृष्ण ने अपना गेंद लेने हेतु यमुना नदी में कूद पड़े।नागराज कालिया से भयंकर युद्ध हुआ। उन्होंने उसे नथ कर उसके फण पर बड़ा मनमोहक नृत्य किया।अंत में नागराज ने उनसे शमा याचना की और उनका गेंद वापस किया। सभी बच्चे उनके इस दुस्साहस से खुश हो गए।इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने बाल्य काल से ही अच्छे और अनोखे कार्य किया।सभी मिल बोलिए-बालक श्री कृष्ण की जय।🙏🙏

Wednesday, August 17, 2022

भारत के गाँव



भारत के गाँंव 

जहांँ है होता भाईचारा,ऐसा सुंदर गांँव हमारा।
जहांँ गरीब-बेसहारों को सब मिल देते हैं सहारा।
ऐसा सुंदर गाँंव हमारा.......
साथ साथ निवास सभी के हिल-मिल रहते सब प्राणी।
यहांँ सभी मिल एक कूप से मिलकर भरते हैं पानी। 
सब मिल खाते,सब मिल पीते, ऐसा है गाँंव न्यारा।
ऐसा सुंदर गाँव हमारा.......
सबका होता ताल-तलैया सबका असर और पोखर।
नदियों में सब साथ नहाते बच्चे- बूढ़े खुश होकर।दोभे में होता सबका पानी सबका है इक धारा।
ऐसा सुंदर गाँव हमारा.........
हर घर में गौशाले होते,सबको मिलता है दूध दही।
गोबर से लिपते गलियांँ आँगन, पावन हो जाती है मही।
‌हर गांँव वृंदावन जैसा लगता है सदा उजियारा।
ऐसा सुंदर गाँव हमारा............
खेतों में हरियाली होती,फसलें लहलहाती है। 
वर्षा ऋतु में खेत हमारी दुल्हन सी सज जाती है।
मानव को अन्न धन मिलता,पशुओं को मिलता चारा।
ऐसा सुंदर गाँव हमारा........
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, August 15, 2022

आसमां पर शान से लहराए तिरंगा (गज़ल)



                गजल

आसमां पर शान से फिर आज लहराए तिरंगा।
इस जहां में मान गौरव आज ले आए तिरंगा। 

मेरा यह प्यारा तिरंगा सारे जग की शान है,
देश का सम्मान बनकर है सदा छाये तिरंगा।

तीन रंगो से है बना यह देश की पहचान है,
तीनों रंग का मान क्या है आज बतलाए तिरंगा।

संकल्प है किसी हाल में इसे न झुकने देंगे हम,
खड़ा हमेशा शान से यह जैसे  मुस्काए तिरंगा।

जब किसी जांबाज का जी,जां की खातिर डोलता,
लहर लहर लहरा कर उसमें है उमंग लाए तिरंगा।

हर शहर हर गाँव में,हर गली हर घर में देखो,
देश का हर जन अभिमान से फहराये तिरंगा।

जहाँ भी जाती नजर हमारी,यह वहांँ तक दिख रहा,
हर नज़र को आज दिखता और है भाये तिरंगा।
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

            सुजाता प्रिय समृद्धि

Saturday, August 13, 2022

शिव पार्वती वार्तालाप (दोहा )

शिव पार्वती वार्तालाप (दोहा )

सुनिए भोला आज मैं,पीसूंगी ना भांग।
रोज आपके भक्त जन,लाते इसको टांग।।

सुन लो प्यारी पार्वती,भांग पीस दो आज।
तुम ही तो हो जानती,भांग पीने की राज।।

भांग पीस-पीस कर हैं,थक गये मेरे हाथ।
इसे न छोड़ेंगे अगर, मैं न रहूंगी साथ।।

सुन लो पार्वती जरा,मान हमारी बात।
इस भांग को खाकर मैं, रहता हूंँ दिन-रात।।

आज भोलाजी खाइए,फल मेवा मिष्ठान।
आपको भी भाएगा, मुझे भी होगा त्राण।।

गौरा बता जरा मुझे, क्या करती तुम काज।
सदा बच्चों के संग में,घुमती सखी समाज।।

आप तो शम्भु भांग पी,रहते हैं मदहोश ।
सारा काम मैं करती,फिर भी मेरा दोष ।।

         सुजाता प्रिय समृद्धि

Thursday, August 11, 2022

कच्चे धागे

कच्चे धागे  (हाइकु)

   राखी का यह 
त्यौहार  है  बहन 
  भाई का प्यार।

   दोनों के बीच 
है नेह का प्यार है
    ये उपहार।

    दूर देश से 
बहनें  आकर  है 
  राखी बांधती।

 भाई के लिए 
ईश्वर  से  बहुत 
 सुख मांगती।

   जीयो ऐ भाई 
लाख   बरस  तुम 
   दुख ना मिले।

   सदा तुम्हारे 
जीवन में हे भाई 
  सुख ही मिले।

    रोली का यह 
लम्बा टीका तुमको 
    दीर्घायु करे।

  अक्षत का है 
कण-कण तुममें 
   अभय भरे।

     राखी का यह 
कच्चा सूता है पक्का 
    रिस्ता जोड़ता।

    बहन ना ही 
भूलती है ना भाई 
   मुख मोड़ता।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Wednesday, August 10, 2022

अर्द्ध नारीश्वर

अर्धनारीश्वर (सायली छंद)

अजब 
रूप है 
तुम्हारा हे भोले 
शिव-शंकर
त्रिपुरारी।

आधा 
नर हो 
और आधा है 
दिखते तुम 
नारी।

आधे 
अंग में 
तुम तो अपना 
रूप है 
साजे।

आधे 
अंग में 
लगती हैं तेरे 
पार्वती मांँ 
विराजे।

बता 
कि कैसे 
तूने यह सुंदर 
रुप है 
बनाया।

नर 
औ नारी 
के वदन को 
एक शरीर 
समाया।

एक 
हाथ में 
रुद्राक्ष माला और 
त्रिशूल है 
शोभित।

एक 
हाथ में 
चूड़ियांँ और कंगन 
सुंदर फूल 
मोहित।

ऐसा 
अद्भुत यह 
रूप तुम्हारा सबके 
मन को 
भाये।

कैसे 
यह रूप 
धारण करते हो
समझ नहीं 
पाये।

नागेश्वर 
इसीलिए तुम 
हो सम्पूर्ण जगत 
के कहलाते 
अंतर्यामी।

महेश्वर 
तेरा है 
यह रूप निराला 
हे अर्धनारीश्वर 
स्वामी।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

आया राखी का त्योहार

लो आया राखी का त्योहार।
  लेकर भाई -बहन का प्यार।
    बाँध कलाई राखी के धागे।
      रख आरती की थाली आगे ।

भैया तुझसे  प्यार मैं माँगू।
    छोटा- सा उपहार मैं माँगू।
      मेरे लिए कुछ शर्त थी तेरी।
        माना थी रक्षाअस्मत कीमेरी।

कभी अकेली कहीं न जाऊँ।
  पढ़- लिखकर सीधे घर आऊँ।
    तन को वसन से पूरा ढककर।
        चलूँ  राह में नजर झुकाकर।

लो ,मैंने रख ली लाज तुम्हारी।
आई न इज्जत पर आँच तुम्हारी।
      इसके बदले  एक शर्त है मेरी।
          राखी पर यह एक अर्ज है मेरी।

जैसे करते थे तुम मेरी रक्षा।
  सब नारियों को देना सुरक्षा।
    दुःशासन तुम कभी न बनना।
      लाज किसी की कभी न हरना।

सदा सभी को केशव बनकर।
  रक्षा करना तुम चीर बढ़ाकर।
    नारियों का सम्मान तू करना।
      विनती करती है तुझसे बहना।
                    सुजाता प्रिय समृद्धि 

Tuesday, August 9, 2022

अँग्रेजों भारत छोड़ो तुम

अँग्रेजों भारत छोड़ो तुम

 बहुत लुटे सोने की चिड़िया को,
अंग्रेजों अब तो भारत छोड़ो तुम। 
बहुत चले अधर्म के पथ पर,
अब अपने पग को मोड़ो तुम ।

फूट डालकर हम भाई-भाई में,
बहुत किया तूने शासन।
मोह तज अब भाग चलो तुम, 
डोल रहा तेरा आसन।
समझ गए हम चाल तुम्हारी,
अब हमको मत फोड़ो तुम। 

आए थे व्यापारी बनकर,
करने लगे तुम हम पर राज।
हमारे सभी अधिकार छीन कर,
पहन लिए हुकूमत का ताज।
यहांँ की गद्दी से उतरो अब,
व्रिटेन से नाता जोड़ो तुम।

भारत हमारी मातृभूमि है,
इस पर अधिकार हमारा है। 
स्वतंत्रता है अधिकार हमारा,
हमने यहाँ तन-मन वारा है । 
हम सख्ती से तुम्हें हैं कहते, 
इस तख्ती से नाता तोड़ो तुम।

            सुजाता प्रिय समृद्धि

Monday, August 8, 2022

भूतबंगले के भूत

भूत बंगले के भूत (लघुकथा)

विद्यालय से वापस आ सागर ने जैसे ही दरवाजे पर कदम रखा धूएंँ की गंध से घबराकर जल्दी से अंदर आया।आंँगन में उसके पिताजी तेजी से सिर धुन रहे थे।नन्दकिशोर काका बड़े-से चिमटे को जमीन पर पटकते हुए कड़कती आवाज में पूछ रहे थे -बोल ! बोल तूने इसे कहाँ और क्यों पकड़ा।
 पिताजी दांँत पीसते हुए बोल रहे थे-भूत बंगला से । इसने मुझसे पांँच हजार रुपए कर्ज लिए थे, उसे वसूलने के लिए।
तो तू इसे कैसे छोड़ेगा ?
 छोड़ दूंँगा पहले बीस मुर्गे की बलि और पांँच हजार रूपए का चढ़ावा चढ़ा।
 अम्मा ने आगे बढ़कर सिर पटकते हुए कहा -दे दूँगी इनकी जान बख्श दीजिए। रुपए और मुर्गे से बढ़कर तो नहीं है जान।
ओझा बने नंदकिशोर काका पाँच हजार रुपए, बीस मुर्गा,सीधा-सेर का चावल, सिंदूर धूप-धूअन अगरबत्तियांँ आदि सुबह-सवेरे उनके घर पहुंँचाने का आदेश देकर चिमटे पटकते हुए अपनी झोली उठाकर चले गए। उसके पिताजी कटे वृक्ष की भाँति आँंगन में पड़े थे।
दूसरे दिन विद्यालय से लौटते समय दोस्तों ने सागर से पूछा-यार तेरी अम्मा ने चढ़ावे का पैसा और मुर्गे भिजवाया ?
 सौरभ ने कहा -हाँ मेरी दादी के पास ही तो अपने कंगन गिरबीं रखकर पैसे उधार लिए हैं।गौरव बोला -ये भूत बंगला के भूत भी न बहुत परेशान करते हैं लोगों को।आये दिन किसी-न-किसी को पकड़ते हैं।
 मुझे तो पता चला है कि पिंकू के पिताजी उनपर सवार थे।उन दोनों में गाढ़ी मित्रता थी। हो सकता है वे उनसे कर्ज लिए होंगे। सूरज ने कहा।
 रोशन ने कहा -लेकिन मुझे यह समझ नहीं आता कि जब सभी लोग जानते हैं कि उधर से जाने वाले को वहांँ के भूत पकड़ लेते हैं, तो लोग उधर से जाते क्यों हैं।हम बच्चों को तो उधर से जाना सख्त मना किया जाता है फिर........ 
पिंकू ने कहा -यार मुझे तो दाल में कुछ काला लगता है।भूत पैसे ,बकरे,मुर्गे और अनाज लेकर करते क्या हैं। अगर वे कर्ज वसूल सकते हैं तो क्यों नहीं अपने बच्चों का भरन-पोषण करते ।अगर सागर के पिताजी को पकड़ने वाले भूत मेरे पिताजी हैं तो वे मेरी तीन महीने की बकाया फीस उन वसूले हुये चढ़ाबे के पैसे से दे देते।और फिर इतने सारे लोग मिलकर भूत-बंगले में चढ़ाबा चढ़ाने क्यों जाते हैं।दोपहर से शाम तक वहाँ पूजा हवन होते रहते हैं।वहाँ से आने के बाद लोग बेहोशी की हालत में रात भर पड़े रहते हैं। मैं तो सोचता हूंँ कभी इनके द्वारा किए गए पूजन को देखूंँ।पर घर से आने तो मिलता नहीं।
 मैं तो कहता हूँ अभी चल। रोशन ने दृढ़ता से कहा।अभी पूजन हो रही है।
 जिज्ञासा वश सभी बच्चे डरते-सहमते तैयार हो गये।सभी भूत बंगले तक चलकर किसी तरह अंदर प्रविष्ट होनेे की कोशिश करने लगे और  छिपते-छिपाते।अंदर का नजारा देखने लगे। सहसा राहुल ने कहा -यार तुम अपनी अम्मा को यहाँ बुला ला।
सौरभ ने कहा -अपनी अम्मा को ही क्यों?हम सबकी अम्मा को यहाँ बु़ला ला। 
आवश्यक समझते हुए दो लड़के दौड़ पड़े गांँव की ओर। जल्द ही गाँव की सारी महिलाओं को लेकर वे वहांँ वापस पहुंँच गये।अब वे सभी चुपके से अंदर हो रही पूजन को फटी-फटी आँखों से देख रहीं थीं।बंगले के आँगन में दो-तीन लकड़ी के चुल्हे जल रहे थे ।मुर्गे पुलाव  बन रहे थे।पत्तल पर भुनें हुए मुर्गे रखे थे जिसे सभी लोग मजे ले-लेकर खा रहे थे।सभी के हाथ में शराब की बोतलें और गिलास थीं,जिसे आपस में टकराकर सभी हंँस-हँस कर पीते जाते और हंँसी-मजाक करते जाते। 
सागर के पिताजी की तो सभी लोग सराहना कर रहे थे-भूत-भरी का नाटक तो तूने बहुत अच्छा किया रे नागेश !इसी तरह हमेशा करियो। 
नागेश जी गर्व से सीना अकड़ाते हुए बोले-और आप भी तो बहुत ही अच्छे ओझा बनते हैं नंदा भैया!आपकी बातों से डरकर हमारी घरवाली तुरंत ही पैसे, मुर्गे ,बकरे दे देती हैं तभी तो हम शराब और शबाब का जश्न दो-तीन दिनों में ही कर पाते हैं। नहीं तो दस रुपए खैनी-बीड़ी के लिए भी मांँगो तो पचास तरह का भाषण देती है -खैनी मत खाओ, बीड़ी मत पीओ।यह जानलेवा है।गाँव के बीस-पचीस लोग नशे के कारण मारे क्या गये,हम सभी को संन्यासी जीवन जीना पड़ा।यह हमारा अच्छा तरीका है उनसे पैसे ऐंठने का। थोड़ी-सी बात क्या मान ली। महारानी एलिज़ाबेथ बनकर हम पर शासन करने लगी। शराब की नशे से लरजती आवाज में बोले तो सभी ने मिलकर एक साथ ठहाके लगाया।अभी ठहाके की गूंँज पूरी तरह समाप्त भी नहीं हुई थी कि हाथों में छड़ियांँ, कलछुल, बेलन, छोलनी इत्यादि रसोईघर में प्रयुक्त होने वाले हथियार लिए महिलाएँ अंदर प्रविष्ट हुईं और पुरुषों पर प्रहार करने लगीं। साथ ही बोल रहीं थीं आज तुम लोगों पर आने वाले भूत को उतार कर रहेंगी हम। तुमलोग को नशा करने पर हम पाबंदी क्या लगाईं तुम लोगों ने नया रास्ता अपना लिया।शर्म नहीं आती ।आप सबके घरों की हालत फटेहाल है। बच्चे के दूध में कटौती करनी पड़ती है। स्कूल में फीस जमा नहीं हो पाता। इलाज के पैसे नहीं, और आप लोग शराब- कबाब उड़ाते हैं।वह भी कर्ज-सूद करने के बाद।इस प्रकार आप लोग अपने ही घर को लूट रहे हैं। धिक्कार है ऐसी नशा की आदत पर।न अपनी जान की चिंता है,न बच्चों के जीवन का परवाह।सभी नशेबाज अपनी औरतों को रणचंडी के रूप में देख घबराकर भागने लगे। सागर की अम्मा ने बच्चों से कहा -देख लिया तुमने इस भूत बंगले के भूत को।इस बंगले के मालिक और उनके बेटों की जान भी नशे के कारण ही गया था।उनकी एक बहू जान दे दी दूसरी मायके चली गई। फिर इन्होंने इस बंगले को भूत बंगला का नाम देकर सभी डराना शुरू किया और इसे नशे का अड्डा बना लिया।अब यहाँ उन्हें हम नहीं आने देंगे।और यहाँ हमलोग नशा-मुक्ति केंद्र खोलेंगे और यहांँ से नशा मुक्ति पर अभियान चलायेगें।
सभी स्त्रियों और बच्चों के होंठों पर विजयी मुस्कान थी।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

अंतिम संदेश ( लघुकथा)

अंतिम संदेश
बच्चन मोची अपनी लुगाई कजरी के साथ बस्ती के घर-घर घूम रहा था ।लोग उन्हें देखकर कह रहे थे जो बच्चनमा कभी किसी के आगे हाथ नहीं पसारा,आज बेचारे को घर-घर जाकर मांगना पड़ रहा है ।किसी ने भुनभुनाते हुए कहा -जब सारी कमाई खत्म हो गयी।तब माँगने चला।यही बात पहले मानता तो कुछ हाथ में होता। जब डॉक्टर ने कैंसर का संदेह कह बड़े अस्पताल में जांँच कराने कहा था, तभी टोले के लोगों ने चंदा उगाही कर पैसे इकट्ठे करने को कहा- तो नहीं माना। कहा-ढोल- नगाड़े और जूते की दुकान बेच दूंगा लेकिन माँगूंगा नहीं ।अरे कर्जा-उधारी और सूद पर कुछ दिन के लिए पैसे लेना कोई गुनाह थोड़े ही होता है ।अब सब धन स्वाहा हो गया तब मांगने आया है। चलो कुछ तो इकट्ठा कर हम लोग दिलबा दें उसकी इलाज खातिर।  लेकिन जब वे वहाँ पहुंचे तो देखा वहाँं का नजारा ही कुछ और है। कजरी बच्चन के मुँह के घाव सभी को दिखाकर सभी से गिड़गिड़ाते हुए विनती कर रही है - हे बाबू-भैया !आप लोग को मैं हाथ जोड़ती हूँ,पाँव पड़ती हूंँ। आप लोग खैनी,गुटका,तिरंगा आदि खाना छोड़ दें ।आप अपने बच्चन -भाई का हाल तो देख ही रहे हैं इनके मसूड़े में कितना बड़ा घाव हो गया है।डॉक्टर ने कहा है- यह खैनी- गुटका खाने के कारण हुआ है ।खैनी में मिले चूने मसूड़े और गालों की चमड़ी को गलाकर उसमें सड़न पैदा करते हैं ।फिर धीरे-धीरे इतना विकराल और विभत्स रूप ले लेता है।इस विकराल घाव को ही "कैंसर"के नाम से जाना जाता है।यह घाव घातक ही नहीं, जानलेवा है। इसके होने पर शायद ही कोई बच पाता है। इसकी इलाज में सारा धन-दौलत खत्म हो गया।इनकी तो जान जाएगी ही, बच्चों का जीना भी भारी हो जाएगा।अब ये 'कुछ दिनों के मेहमान है' इतना कह वह सुबक-सुबक कर रोने लगी। सभी लोग उसकी मदद के लिए रुपए-अनाज इत्यादि देने आते,तो बच्चन हाथ जोड़कर विनती भरे लहजे में सबसे कहता हमें कोई मदद नहीं चाहिए। मैं आप सभी की सलामती के लिए दुआ करता हूंँ बस इतनी दया हमपर करिये कि अब आपलोग  पान-बीड़ी, खैनी -गुटका ना खाइए । किसी प्रकार नशा ना करिए। क्योंकि 'नशा नाश का घर है।'इससे जान-माल सब नष्ट हो जाता है।इस तरह वे रोज  गाँव के नुक्कड़ पर तथा अन्य गांँव जाकर लोगों को जागरूक करने हेतु अपने ज़ख्म दिखाता और अपना यह अंतिम संदेश दुहराता।फिर एक दिन अपनी पत्नी और चार बच्चों को अनाथ छोड़.......................
         सुजाता प्रिय समृद्धि

Saturday, August 6, 2022

पार्वती का श्रृंगार

पार्वती ने किया सिंगार, भोला मुग्ध हुए।

मांग में भरकर भखरा सिंदूर,
बिंदिया चमकदार भोला मुग्ध हुए।
पार्वती ने किया शृंगार ........
कान में पहनी मोती का झुमका,
गले नौलक्खा हार ,भोला मुग्ध हुए।
पार्वती ने किया शृंगार..........
हाथ में पहनी जड़ाऊ कंगन,
शंखा -पोला डाल भोला मुग्ध हुए।
पार्वती ने किया शृंगार.......... 
पांव में पहनी पांजेब-बिछिया,
 जिसकी मधुर झंकार भोला मुग्ध हुए
पार्वती ने किया शृंगार.......
अंग में पहनी लाली चुनरिया,
चोली चमकदार भोला मुग्ध हुए।
पार्वती ने किया शृंगार.......
बाल में से शोभे बेली- चमेली,
 अद्भुत गजरे-हार भोला मुग्ध हुए।
पार्वती ने किया शृंगार...........

 सुजाता प्रिय समृद्धि

Friday, August 5, 2022

जीवन के रंग अनोखे

जीवन के रंग अनोखे

         जीवन के रंग अनोखे,
        कुछ हल्के,कुछ चोखे।

कभी उजाला धूम मचाए,
         कभी अंधियारा है छाये।
कभी विभिन्न रंगों में रंग कर,
               जीवन रंगीन बनाये।
 रंगीनियों के मोहजाल में,
          फँस खाये सौ-सौ धोखे।

         जीवन के रंग अनोखे 

कभी पहेली बन उलझाता,
      कभी सीधी-सी राह दिखाता।
कभी टूटते अंतर्मन में ,
          आस की बूंदें है टपकाता। 
कभी विचलित होते मन में,
             लाता उल्लास के झोंकें।

      जीवन के रंग अनोखे।

उम्मीदों के महल बना कर, 
          उसमें रहना हमें सिखाता।
विश्वास के दरवाजे पर,
            हौसले से मिलन कराता।
रंग बिरंगी कोठरियों के,
                    खोल यहांँ झरोखे।

       जीवन के रंग अनोखे।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Thursday, August 4, 2022

बाबा बम भोले

देवों के देव महान, बाबा बम भोले।
करते हैं कल्याण, बाबा बम भोले।

मस्तक चंदन-भस्म लगाए,
खाते भंग को छान,बाबा बम भोले।

जटा में गंगा,बाल पर चंदा,
रखते विराजमान,बाबा बम भोले।

नाग की माला,बाघ की छाला,
पहनकर करते शान, बाबा बम भोले।

हाथ में त्रिशूल,डमरू शोभे,
कमण्डल में है धान,बाबा बम भोले।

सदा ही करते बैल सवारी,
इनकी है पहचान,बाबा बम भोले।

कैलाश गिरी पर रहने वाले,
फिरते सदा मशान,बाबा बम भोले।

बाबा हैं भोले भंडारी,
कर ले इनका ध्यान, बाबा बम भोले।

ब्रह्मा-विष्णु, कार्तिक-गणपति,
सब करते सम्मान, बाबा बम भोले।

शिवशंकर हैं औघड़ दानी,
देते हैं वरदान, बाबा बम भोले।
         
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, August 3, 2022

काश! मैंने कह दिया होता



काश मैंने कह दिया होता

सामने कुर्सी पर दो महिलाएंँ साथ-साथ बैठी थीं। रमेश बाबू दोनों को बारी-बारी से देख रहे थे। दोनों में कितना अंतर है । एक सुंदर, शांत, समझदार, सहनशील,शालीन, मृदुभाषी ।ना कोई नाज नखरे ना कोई शान- घमंड ।दूसरी दिखने में साधारण अशांत,उदंड,बाचाल,नासमझ, नखरेबाज और घमंडी। पहली महिला उसके दोस्त की पत्नी और दूसरी उनकी स्वयं की पत्नी। वे यादों के भंँवर में गोते लगाने लगे। जब उनकी नौकरी लगी थी, पहली महिला के परिजन उनके घर उनसे विवाह का प्रस्ताव लेकर आए थे। उनके घर वालों को लड़की तो भाई लेकिन दान-दहेज ? ना -ना -ना !हम कोई फ़क़ीर घर में बेटे की शादी नहीं करेंगे ।इतने कम में हम क्यों बेटे का विवाह करें ?कोई मेरा बेटा भागा तो नहीं जा रहा ।साइत अच्छा कहें या किस्मत खराब। अगले महीने ही दूसरा परिवार आया और मुँह- मांगी दहेज देने को तैयार हो गया। अब ढेर किस बात की ? सभी ने तुरंत हामी भर् दी।खुशखबरी रमेश बाबू के कानों तक भी पहुंची। संयोग से वे दोनों लड़कियों को जानते थे ।दोनों उनके ही कॉलेज में पढ़ती थी दोनों ही अपने-अपने गुण-दोषों के कारण चर्चित थीं। वे दोनों की तुलना करने लगे ।जमीन- आसमान का अंतर । पहली दुःख-पीड़ा में भी मुस्कुराने वाली। दूसरी घमंड से बरसने-गरजने वाली ।जी में आया -अपने परिवार को कह दें कम दहेज भी लाती है तो पहली लड़की से ही हमारा विवाह करें ।लेकिन कहे तो कैसे ? कहीं इसका कुछ दूसरा अर्थ ना निकल जाए कि साथ में पढ़ती थी .................... फिर  पैसे कम देंगे तो शादी का सारा खर्च कैसे चलेगा ? लोग सरस्वती और शक्ति से ज्यादा महत्व तो लक्ष्मी को ही देते हैं । सो रमेश बाबू के साथ भी ऐसा ही हुआ। आखिर वे उन धनाढ्य की बेटी के साथ बंध गए ।कुछ ही दिनों में पता चला पहली लड़की की शादी उसके बचपन के मित्र लखन से हुई ।दहेज कम देने के कारण प्राइवेट में काम करने वाला लड़का अजीत से उसकी शादी हो गई।
आज उनकी शादी के 25वीं वर्षगांठ है ।मोहल्ले में रहने के कारण अजीत और उसकी पत्नी  भावना भी आमंत्रण पर पधारे। उनकी पत्नी रजनी भावन को जानती थी । इसलिए दोनों साथ -साथ बैठकर बातें करने लगीं। रमेश जी भावना को देख सोच रहे थे । काश मैंने कह दिया होता ,उस दिन अपने परिवार से कि मुझे भावना ही पसंद है ।लोग बातें बनाते, पैसे कम मिलते,लेकिन जीवन तो सुखमय होता। भावना मुहल्ले की सबसे अच्छी और समझदार बहू कहलाती है।और रजनी उफ़ sssss मेरे साथ -साथ मेरे घर वालों और बच्चों के नाक में भी.......................
              सुजाता प्रिय समृद्धि

Tuesday, August 2, 2022

नागपंचमी (हाइकु)



 नागपंचमी (हाइकु)

    नागपंचमी
है आज चलें हम
   पूजा करने।

    नागदेवता
विराजमान देखो
    दुःख हरने

   मंदिर में जा
नागदेवता को हैं
   शीश नवाएँ

    नागदेवता
से हम सब मिल
  आशीष पाएँ

  नागदेवता
हम मानव पर
  देते हैं प्यार

    सुखी रखते
अपने आशीष से
   सारा संसार 

  हम आपको
बारंबार प्रणाम 
   कर रहे हैं

   आप हमारे
जगत के दुखड़े
    हर रहे हैं 
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

नागपंचमी (सायली छंद )

आज 
नागपंचमी है 
चलें हम सब
 नागदेव के 
पास।

नाग 
देवता हैं 
सबके दुख हरते
रखो यह 
विश्वास।

देखो 
नागदेव के 
मंदिर  में  है 
भीड़ लगी 
खूब।

पूजन 
करने आए 
हैं सब लोग 
है मची 
धूम।

दूध 
और लावे 
का सब लोग 
लगा रहे 
भोग।

भजन 
और आरती 
गा रहे मिलकर 
देखो सब 
लोग।

सभी
जन है
शीष झूका कर
आशीष हैं
लेते।

नागदेव
प्रसन्न होकर
यहाँ सबको आज 
वरदान हैं
देते।

सुखी
रहे परिवार
गाँव-गिरांव के
अब सारे
लोग।

हे
नाग देव
आप हर लिजिए
सबके सारे
रोग।
 सुजाता प्रिय समृद्धि