भूत बंगले के भूत (लघुकथा)
विद्यालय से वापस आ सागर ने जैसे ही दरवाजे पर कदम रखा धूएंँ की गंध से घबराकर जल्दी से अंदर आया।आंँगन में उसके पिताजी तेजी से सिर धुन रहे थे।नन्दकिशोर काका बड़े-से चिमटे को जमीन पर पटकते हुए कड़कती आवाज में पूछ रहे थे -बोल ! बोल तूने इसे कहाँ और क्यों पकड़ा।
पिताजी दांँत पीसते हुए बोल रहे थे-भूत बंगला से । इसने मुझसे पांँच हजार रुपए कर्ज लिए थे, उसे वसूलने के लिए।
तो तू इसे कैसे छोड़ेगा ?
छोड़ दूंँगा पहले बीस मुर्गे की बलि और पांँच हजार रूपए का चढ़ावा चढ़ा।
अम्मा ने आगे बढ़कर सिर पटकते हुए कहा -दे दूँगी इनकी जान बख्श दीजिए। रुपए और मुर्गे से बढ़कर तो नहीं है जान।
ओझा बने नंदकिशोर काका पाँच हजार रुपए, बीस मुर्गा,सीधा-सेर का चावल, सिंदूर धूप-धूअन अगरबत्तियांँ आदि सुबह-सवेरे उनके घर पहुंँचाने का आदेश देकर चिमटे पटकते हुए अपनी झोली उठाकर चले गए। उसके पिताजी कटे वृक्ष की भाँति आँंगन में पड़े थे।
दूसरे दिन विद्यालय से लौटते समय दोस्तों ने सागर से पूछा-यार तेरी अम्मा ने चढ़ावे का पैसा और मुर्गे भिजवाया ?
सौरभ ने कहा -हाँ मेरी दादी के पास ही तो अपने कंगन गिरबीं रखकर पैसे उधार लिए हैं।गौरव बोला -ये भूत बंगला के भूत भी न बहुत परेशान करते हैं लोगों को।आये दिन किसी-न-किसी को पकड़ते हैं।
मुझे तो पता चला है कि पिंकू के पिताजी उनपर सवार थे।उन दोनों में गाढ़ी मित्रता थी। हो सकता है वे उनसे कर्ज लिए होंगे। सूरज ने कहा।
रोशन ने कहा -लेकिन मुझे यह समझ नहीं आता कि जब सभी लोग जानते हैं कि उधर से जाने वाले को वहांँ के भूत पकड़ लेते हैं, तो लोग उधर से जाते क्यों हैं।हम बच्चों को तो उधर से जाना सख्त मना किया जाता है फिर........
पिंकू ने कहा -यार मुझे तो दाल में कुछ काला लगता है।भूत पैसे ,बकरे,मुर्गे और अनाज लेकर करते क्या हैं। अगर वे कर्ज वसूल सकते हैं तो क्यों नहीं अपने बच्चों का भरन-पोषण करते ।अगर सागर के पिताजी को पकड़ने वाले भूत मेरे पिताजी हैं तो वे मेरी तीन महीने की बकाया फीस उन वसूले हुये चढ़ाबे के पैसे से दे देते।और फिर इतने सारे लोग मिलकर भूत-बंगले में चढ़ाबा चढ़ाने क्यों जाते हैं।दोपहर से शाम तक वहाँ पूजा हवन होते रहते हैं।वहाँ से आने के बाद लोग बेहोशी की हालत में रात भर पड़े रहते हैं। मैं तो सोचता हूंँ कभी इनके द्वारा किए गए पूजन को देखूंँ।पर घर से आने तो मिलता नहीं।
मैं तो कहता हूँ अभी चल। रोशन ने दृढ़ता से कहा।अभी पूजन हो रही है।
जिज्ञासा वश सभी बच्चे डरते-सहमते तैयार हो गये।सभी भूत बंगले तक चलकर किसी तरह अंदर प्रविष्ट होनेे की कोशिश करने लगे और छिपते-छिपाते।अंदर का नजारा देखने लगे। सहसा राहुल ने कहा -यार तुम अपनी अम्मा को यहाँ बुला ला।
सौरभ ने कहा -अपनी अम्मा को ही क्यों?हम सबकी अम्मा को यहाँ बु़ला ला।
आवश्यक समझते हुए दो लड़के दौड़ पड़े गांँव की ओर। जल्द ही गाँव की सारी महिलाओं को लेकर वे वहांँ वापस पहुंँच गये।अब वे सभी चुपके से अंदर हो रही पूजन को फटी-फटी आँखों से देख रहीं थीं।बंगले के आँगन में दो-तीन लकड़ी के चुल्हे जल रहे थे ।मुर्गे पुलाव बन रहे थे।पत्तल पर भुनें हुए मुर्गे रखे थे जिसे सभी लोग मजे ले-लेकर खा रहे थे।सभी के हाथ में शराब की बोतलें और गिलास थीं,जिसे आपस में टकराकर सभी हंँस-हँस कर पीते जाते और हंँसी-मजाक करते जाते।
सागर के पिताजी की तो सभी लोग सराहना कर रहे थे-भूत-भरी का नाटक तो तूने बहुत अच्छा किया रे नागेश !इसी तरह हमेशा करियो।
नागेश जी गर्व से सीना अकड़ाते हुए बोले-और आप भी तो बहुत ही अच्छे ओझा बनते हैं नंदा भैया!आपकी बातों से डरकर हमारी घरवाली तुरंत ही पैसे, मुर्गे ,बकरे दे देती हैं तभी तो हम शराब और शबाब का जश्न दो-तीन दिनों में ही कर पाते हैं। नहीं तो दस रुपए खैनी-बीड़ी के लिए भी मांँगो तो पचास तरह का भाषण देती है -खैनी मत खाओ, बीड़ी मत पीओ।यह जानलेवा है।गाँव के बीस-पचीस लोग नशे के कारण मारे क्या गये,हम सभी को संन्यासी जीवन जीना पड़ा।यह हमारा अच्छा तरीका है उनसे पैसे ऐंठने का। थोड़ी-सी बात क्या मान ली। महारानी एलिज़ाबेथ बनकर हम पर शासन करने लगी। शराब की नशे से लरजती आवाज में बोले तो सभी ने मिलकर एक साथ ठहाके लगाया।अभी ठहाके की गूंँज पूरी तरह समाप्त भी नहीं हुई थी कि हाथों में छड़ियांँ, कलछुल, बेलन, छोलनी इत्यादि रसोईघर में प्रयुक्त होने वाले हथियार लिए महिलाएँ अंदर प्रविष्ट हुईं और पुरुषों पर प्रहार करने लगीं। साथ ही बोल रहीं थीं आज तुम लोगों पर आने वाले भूत को उतार कर रहेंगी हम। तुमलोग को नशा करने पर हम पाबंदी क्या लगाईं तुम लोगों ने नया रास्ता अपना लिया।शर्म नहीं आती ।आप सबके घरों की हालत फटेहाल है। बच्चे के दूध में कटौती करनी पड़ती है। स्कूल में फीस जमा नहीं हो पाता। इलाज के पैसे नहीं, और आप लोग शराब- कबाब उड़ाते हैं।वह भी कर्ज-सूद करने के बाद।इस प्रकार आप लोग अपने ही घर को लूट रहे हैं। धिक्कार है ऐसी नशा की आदत पर।न अपनी जान की चिंता है,न बच्चों के जीवन का परवाह।सभी नशेबाज अपनी औरतों को रणचंडी के रूप में देख घबराकर भागने लगे। सागर की अम्मा ने बच्चों से कहा -देख लिया तुमने इस भूत बंगले के भूत को।इस बंगले के मालिक और उनके बेटों की जान भी नशे के कारण ही गया था।उनकी एक बहू जान दे दी दूसरी मायके चली गई। फिर इन्होंने इस बंगले को भूत बंगला का नाम देकर सभी डराना शुरू किया और इसे नशे का अड्डा बना लिया।अब यहाँ उन्हें हम नहीं आने देंगे।और यहाँ हमलोग नशा-मुक्ति केंद्र खोलेंगे और यहांँ से नशा मुक्ति पर अभियान चलायेगें।
सभी स्त्रियों और बच्चों के होंठों पर विजयी मुस्कान थी।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'