Tuesday, February 28, 2023

दिन बीता जाए

बिन बीता जाए रे 

देखो दिन बीता जाए रे,
                         दिन बीता जाए।
देखो तम घिरता जाए रे,
                        तम घिरता जाए।

दिनभर चलकर सूरज लौटा,
                      फैल रहा है अंधेरा।
खग कलरव कर उड़ते जाते,
                      खोज रहे हैं बसेरा।
तुम भी अपने घर वापस आ,
                     मधु रजनी का बेरा।
मन का दीप जलाओ,
                    सुख से रैन बिताओ।
जीवन को रंगीन बनाओ,
                           जो मन भाए रे, 
                          दिन बीता जाए।

बस्ती बस्ती घूम घूम कर,
                    देख ले दुनिया सारी।
दुनिया की है चाल निराली,
                 कुछ तीखी कुछ प्यारी।
दोनों को जब ग्रहण करो तो,
                         हो जाएगी न्यारी।
दिल में सफाई लाओ,
                 जीवन में सच्चाई लाओ,
मन में अच्छाई लाओ,
                 इससे जग जीता जाए रे,
                         जगजीत आ जाए।

                         सुजाता प्रिय समृद्धि

Monday, February 27, 2023

बिहार के कवि



         बिहार के कवि 

जहाँ न पहुँचे रवि,वहाँ पहुँचते कवि।
उनसे भी आगे पहुँचते बिहार के कवि।

सूची बड़ी विस्तृत है,सारी दुनिया चकित है।
कवियों की श्रृंखला देख,सभी अचंभित हैं।
बिहार के हर नगर-गाँवों में कवियों की छवि।

जिस तरह प्रभावित होती यहाँ गंगा की धारा।
उस तरह ही बहती है कवियों की काव्य-धारा।
ईश्वर प्रदत्त वरदान है यह नहीं कोई पदवी है।

हर विधा की कविता रचते यहाँ के कलमकार।
हर भाषा में कविताएँ हैं,रचते सभी रचनाकार।
बिहार को बेहतर बनाने में लगे हैं सभी कवि ।
                            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, February 22, 2023

फागुन

धरती सज -धज कर तैयार, देखो फागुन आया है।
लगती कितना यह गुलज़ार, देखो फागुन आया है।

चहुंओर हरियाली छाई है,दिखे बस्ती रंग।
हवा चले कुछ ठंडी -ठंडी,सिहर उठा है अंग।
कभी सर-सर चले बयार,देखो फागुन आया है।

पीली-नीली ओढ़ चुनरिया,हंँस रही धरती रानी।
सारी दुनिया से लगे निराली,जैसे कोई महारानी।
पहनी फूलों का प्यारा हार,देखो फागुन आया है।

बेली-चमेली रात की रानी, खिल-खिल कर मुस्काए।
तरुओं पर पलास दहक कर,दिल में आग लगाए ।
डाल पर हंसता है कचनार,देखो फागुन आया है।

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, February 18, 2023

शिव (दोहे)

जय माँ शारदे

शिव ( दोहा )

शिव देवों के देव हैं, चरणों में प्रणाम।
हर-हर,शिव-शिव बोल तू,जपते जाओ नाम।।

सबका ये संकट हरे,सब के पालनहार।
जग वालों पर हैं सदा, करते वे उपकार।।

मस्तक पर चंद्रमा,जटा गंग की धार।
बाघम्बर ओढ़े,वदन,गले सर्प की हार।।

एक हाथ में त्रिशूल है, कमण्डल दूजे हाथ।
नत्मस्तक होकर सदा, भक्त झुकाते माथ।।

मंदिरों में विराजते, पार्वती के संग।
सारा जग हैं घूमते,चढ़ बसहा के अंग।।

खाते हैं भांग -धतुरा, लगाते हैं विभूत।
कार्तिक औ गणपतिजी, दोनों इनके पूत।।

Tuesday, February 7, 2023

जीवन एक यात्रा है

जीवन एक यात्रा है

यह जीवन एक यात्रा है,
               इसको सफल बनाना है।
इसके रास्ते के पत्थर को,
                    हमको दूर हटाना है।
माना जीवन की राह कठिन,
           पर इस पर चलते जाना है।
हम चले जो दुर्गम राहों पर,
           तो इसको शुगम बनाना है।
ध्येय कर्म करना हमको,
                इसको सदा निभाना है।
हमें अडिग हो इस पथ पर, 
               दृढ़ता से बढ़ते जाना है।
गर ठोकर खा हम गिरे कभी,
         फिर भी उठकर बढ़ जाना है।
बुराइयों को अनदेखी कर,
           अच्छाइयों को अपनाना है।
दुःखी न हों इस जीवन से,
                  कभी नहीं घबराना है।
जीवन में सदा सुखी रहें,
               हमें हर पल मुस्काना है।
जीवन की यात्रा सुखी बने,
           विश्वास से कदम बढ़ाना है।
हृदय में संयम धारण कर,
                पग-पग बढ़ते जाना है।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, February 6, 2023

कवि और कविता



कवि और कविता (मनहरण घनाक्षरी)
१)
कविता लिखते कवि,
दिखती है प्यारी छवि,
चमकता जैसे रवि,
सुर-लय-छंद में।

पिरोते भावों के मोती,
दिखा साहित्य की ज्योति,
कविता के बीज बोती,
है स्वरों के छंद में।

बनाते माला शब्दों के, 
लेखन प्यारे पदों के,
प्यारे औ न्यारे पद्यों के,
कुछ है स्वछंद में।

सजाते कागज की क्यारी,
लिखते कविता प्यारी,
सभी लेखों से ये न्यारी 
सरल औ बंध में 

२)
सरल रूप में बात,
निज मन के जज्बात,
विचारों के झंझावात,
कविता में लिखते।

देते सुंदर आकार,
हरते मन विकार,
कर सपने साकार,
मन को हैं जीतते।

कविता में कह वाणी,
कुछ लिखते कहानी,
कवियों-सा नहीं दानी,
सभी जन रीझते।

करते नहीं विवाद,
हर मन अवसाद,
अंतर्मन के हैं नाद,
कविता में दिखते।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, February 2, 2023

नज़र और नजरिया



नज़र और नजरिया

नज़र भी धोखा खाती है,
नज़र की बात ना मानो।
नज़र जो तुझको आती है,
सही है बात ना जानो।
नज़र भी धोखा............
जो हम सब देखते हैं,
नजरिया है हमारी।
जो दिखता है नजर को,
वहीं होता न सारी।
जैसे रूप में दिखता,
वहीं हालात ना मानो
नज़र धोखा भी..............
कभी हम झूठ को भी,
सच्च हैं मान जाते।
कभी सच्चाई को भी,
झूठी जान जाते।
नज़रिया साफ रखें हम
चाहे बात ना मानो।
नज़र भी धोखा ..........
नज़र में हैं जो साधु,
अंदर से चोर होते।
कपट जिनके न दिल में
बड़े मुंँह जोर होते।
किसी की झूठी बोली को
दिल ए जज़्बात ना समझो।
नज़र भी धोखा...........

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'