Thursday, June 29, 2023

अहंकार का फल (कहानी)

अहंकार का फल
 एक पेड़ पर घोंसला बनाकर एक मैना रहता था और पेड़ के नीचे बिल में एक चूहा। दोनों पड़ोसियों में बातचीत भी होती थी और समय पढ़ने पर अक्सर दोनों एक- दूसरे की मदद भी करते ।एक दिन बड़ी जोरों की बरसात हुई। घोंसला समेत मैना के पंख भीग गए और वह भोजन लाने नहीं जा सका।तब चूहे ने खेतों से लाकर उसे दाना दिया।लेकिन उस दिन से चूहा को यह घमंड हो गया कि वह मैना से ज्यादा शक्तिशाली है। बातों-बातों में यह बात एक दिन उसने मैना से भी कह दी।मैना ने कहा - ऐसी कोई बात नहीं !थोड़ी देर हवा में पंख सुखाकर मैं भी दाना चुगने जा सकता था। परंतु, जब तुमने दाना दिया तो ठंडक से परेशान मैं आराम करता रहा।
 लेकिन चूहा यह मानने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था ।उसने कहा तुम अपने पंखों से सिर्फ आसमान में उड़ सकते हो। लेकिन मैं जहांँ चाहे जा सकता हूंँ। मैना ने कहा- पंखों से उड़कर ही सही मैं अपनी बुद्धि का प्रयोग कर हर जगह जा सकता हूंँ।हर कठिनाई को झेल सकता हूंँ।
इस बात पर दोनों में काफी बहस छिड़ गई ।अंत में दोनों ने यह निर्णय लिया कि दोनों दिन भर साथ-साथ चलेंगे।जो किसी जगह जाने में असमर्थ होगा वह कमजोर और जो सभी जगह जाएगा वह बलवान होगा।
 दूसरे दिन सुबह से दोनों ने चलना प्रारंभ किया।थोड़ी दूर चलने पर रास्ते में एक जगह ढेर सारा कीचड़ मिला।मैना उड़ कर सूखी जमीन पर जा बैठा। चूहा कीचड़ में फँस गया।निकलने की जितनी कोशिश करता, उतना ही फँसता जाता।यह देख मैंने कहा- चूहा भाई ! चूहा भाई ! मैं तो उड़ कर पहुंँच भी गया।पर तू तो कीचड़ में ही फँसा हुआ है ।
चूहा हार नहीं मानना चाहता था। उसने कहा -अरे मैना ! कीचड़ में तो फंँसेगा तू। मैं तो देख ,यहाँ हलवा बना रहा हूंँ।मैना चुप हो गया ।
किसी तरह चूहा कीचड़ से निकला और दोनों ने फिर चलना शुरू किया।आगे चलकर उन्हें बहुत सारे कांँटे मिले मैना उड़ कर कांँटों से परे बैठ गया और चूहा चलते-चलते काँटों में उलझ गया। मैना ने फिर उसे चिढ़ाते हुए कहा- चूहा भाई! चूहा भाई!मैं तो उड़ कर पहुंच भी गया और तू काँटों में उलझा हुआ है ।
चूहा बोला मैं कहांँ उलझ रहा कांँटों में ? काँटों में तो उलझेगा तू। मैं तो गोदना गोदवा रहा हूंँ।
    मैना मुस्कुराता हुआ उसे देखता रहा ।बड़ी मुश्किल से चूहा काँटों से निकला और मैना के साथ चलने लगा।
आगे खेत में उसे थोड़ा पानी मिला मैना उड़कर पानी के उस पार जा बैठा।लेकिन,चूहा पानी में घुसा और डूबने उतरने लगा।
मैना बोला -चूहा भाई!चूहा भाई!मैं तो पानी पार भी कर गया। लेकिन तू तो वहीं डूब रहे हो।
चूहा बोला -भला मैं कहाँ डूब रहा हूंँ ? मैं तो गंगा-स्नान कर रहा हूंँ।
 फिर वह पानी से निकलकर आगे बढ़ा।अब आगे उनको बिकराल अग्नि से भेंट हुई।मैना आकाश- मार्ग से उड़कर अग्नि से दूर जा बैठा। लेकिन चूहा अपनी बहादुरी दिखाने के लिए अग्नि में प्रवेश कर गया।उसका पूरा शरीर झुलसने लगा।मैना बोला - चूहा भाई! चूहा भाई!मैं तो पहुंँच भी गया। लेकिन तू तो आग में ही झुलस रहे हो।
परंतु वह हट्ठी और घमंडी चूहा हार कब मानने वाला था।
उसने जलते-जलते हुए भी कहा- मैं कहांँ जल रहा हूंँ ? जले मेरा दुश्मन । मैं तो अग्नि-परीक्षा दे रहा हूंँ।
 इस प्रकार अग्नि-परीक्षा की झूठी दलील देते-देते उस हठधर्मी और अभिमानी चूहे के प्राण पखेरू उड़ गए।

शिक्षा-कभी स्वयं को सबसे बड़ा या बलवान समझकर घमंड नहीं करना चाहिए।और ना ही स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के जोश में अपने होश होने चाहिए ।हर प्राणी में प्राकृतिक प्रदत्त अलग-अलग गुण होते हैं।ईर्ष्या और अहंकार के कारण प्राकृतिक गुणों से टक्कर लेने वालों का ऐसी ही दशा होती है ।इसलिए सदा ही विवेक से काम लेना चाहिए
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, June 23, 2023

कविता (कृपाण घनाक्षरी )



कविता (कृपाण घनाक्षरी)

उभरे भाव मन में,
पल-दो-पल क्षण में,
अक्षरों को मिला कर,
शब्द मनके बनाते।

शब्दों को ढाल कर,
कविता में डालकर,
उर के विचार कवि,
पंक्तियों में सजाते।

छंदों के प्रकार में,
बड़े -छोटे आकार में,
गीत का कवि रूप दे,
मन में गुनगुनाते।

रूप-रस औ रंग दे,
योग-संयोग संग दे,
तब छंद के रूप में,
कविता कवि बनाते।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, June 22, 2023

आशा (कृपाण घनाक्षरी)



         आशा ( कृपाण घनाक्षरी )

भूख लगी हो जोर से, मेवा-मिष्ठान भी खाइए,
रूखी सूखी भी खाइए,तो भूख मिट जाएगी।

प्यास लगी हो जोर से, शर्बत-छाछ पीजिए,
ठंडा पानी भी पीजिए,तो प्यास मिट जाएगी।

नींद आई हो जोर से,तोसक लगा सोइए,
या दरी बिछा सोइए,नींद पूरी हो जाएगी।

आस हो किसी बात की, प्यार या मुलाकात की,
जब तक पूरी न हो, आशा ही नहीं जाएगी।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, June 21, 2023

पवनपुत्र हनुमान ( दोहा छंद)

पवनपुत्र हनुमान 

हमारे घर पधारिए ,पवन पुत्र हनुमान।
माँ अंजनी के अच्छे,आप रहे संतान।।

जय देव बजरंगबली,जय जय जय हनुमान।
भक्तों के दुःख टालते,सबके कृपा निधान।।

सच्चे मन से लोग जो,करते कभी पुकार।
सदा निभाते साथ वे, करते हैं उपकार।।

सबके मन में हैं बसे,सबको है विश्वास।
पूरण करते कामना, पूरी करते आस।।

शरण हैं प्रभु आपके,कर रहे हैं प्रणाम।
गुण हैं गाते आपके,नित हैं जपते नाम।।

कृपा जरा हम पर करें,दीनों के तुम नाथ।
हम आपके चरणों में,नवा रहे निज माथ।।

हमको भी वर दीजिए,जो है मन में चाह।
पूर्ण कर मनोकामना, सदा दिखाएंँ राह।।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'🙏🙏

Monday, June 19, 2023

रुपया से बड़ा परिवार (हिंदी भाषा)

रुपया से बड़ा परिवार

सुनो भाई रे ! रुपया से बड़ा परिवार।
हाँ परिवार से बड़ा न रुपया
हजार।
सुनो भाई रे..........
जिसका घर-परिवार बड़ा है वही बड़ा धनवान।
जिसके परिवार में मिल्लत है वही बड़ा गुणवान।
सुनो भाई रे !परिवार को तू रखना सम्हाल।
सुनो भाई रे !......................
बड़े-बुढ़ो से परिवार शोभता सुन ले मेरे भैया।
जिसके घर दादा-दादी,चाचा-चाची
बापू-मैया।
सुनो भाई रे !जिसके घर हो आपस में प्यार।
सुनो भाई रे !...............
भाई-बहना मिलकर जहाँ खाये-खेले साथ।
घूमने-फिरने, पढ़ने-लिखने,जाय पकड़कर हाथ।
सुनो भाई हरे ! बाल-बच्चा करे गुलजार।
सुनो भाई रे !..............
आपस में सब सुख-बाँटे,बटाबे सबके हाथ।
दूध-मिठाई,चूड़ा-भुज्जा,खाये सब मिल साथ।
सुनो भाई रे ! रहे उनके घर में बहार।
सुनो भाई रे ! ...................
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           संस्कार न्यूज में प्रकाशित

यशोदा के लाल

यशोदा के लाल

एक बार यशोदा माता से,बोले कृष्ण कन्हाई।
मैं जाऊंँगा मथुरा -नगरी,सुन ले यशोदा माई।
बालेपन में तेरी गैया, थी कितनी मैंने चराई।
बहुत तुम्हारे मनुहार में, बंसी भी मैंने बजाई।

मुझको कभी भी तूने, माता दिया नहीं मलाई।
खूब खिलाई दाऊ को,मुझे अंगुली नहीं चटाई।
तेरे दो-रंगे व्यवहार का,मैं समझ गया चतुराई।
दाऊ तेरा अपना पूत है,पर मैं हूँ संतान पराई।

एक बार माखन की हांडी,जब थी मैंने चुराई।
कान खींच कर तूने मारा, कितनी नाच नचाई।
मेरी बंसी की प्रेम-धुन,मांँ कभी न तुझको भाई।
हुई बावरी यशोदा मैया, कान्हा को गले लगाई।

बोली मत जा तू वृंदावन,आ खा ले खूब मलाई।
बाबा नंदजी पिता हैं तेरे,बलवीर है अपना भाई।
तू मेरा ही अपना पुत्र है,और मैं ही हूंँ तेरी माई।
अपनी प्यारी ममता की, माता देने लगी दुहाई।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, June 18, 2023

शिव ( दोहे )

जय माँ शारदे

शिव ( दोहे )

शिव देवों के देव हैं, कर लो सभी प्रणाम।
हर-हर,शिव-शिव बोल तू,जपते जाओ नाम।।

सबका ये संकट हरे,सब के पालनहार।
जग वालों पर हैं सदा, करते वे उपकार।।

मस्तक पर है चंद्रमा,जटा गंग की धार।
बाघम्बर ओढ़े वदन,गले सर्प की हार।।

एक हाथ  त्रिशूल है, कमण्डल दूज हाथ।
नत्मस्तक होकर सदा, भक्त झुकाते माथ।।

मंदिरों में विराजते, माँ गौरी के संग।
सारा जग हैं घूमते,चढ़ बसहा के अंग।।

खाते हैं भांग -धतुरा, लगाते हैं विभूत।
कार्तिक और गणपतिजी, दोनों इनके पूत।।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, June 17, 2023

बात जो दिल को छू गयी

बात जो दिल को छू गई

बैठक में मुहल्ले से आने वाली माँ जी की सहेलियों की गोष्ठी लगी थी।माँ जी ने पुकारकर चाय-नाश्ता बनाने के लिए कहा।कितने लोग हैं यह अंदाजा लगाने हेतु दरबाजे पर गई तो गायत्री-चाची को पूछते सुना-"दशहरा में आई थी दुल्हिन तब से क्या यहीं है ?"
      "हाँ यहीं है।यही तो बेचारी पत्थर है।जो साथ में है। नहीं तो बेटियांँ तो पत्ते थी जो उड़ गईं।"
     माँ जी की बात मेरे दिल को छू गई।आँखों में आँसू  छलक आए। क्या मैं माँ जी को बोझ लगती हूँ जो उन्होंने मुझे पत्थर कहा ? स्वयं को सम्हालती हुई चाय-नाश्ते लेकर पहुँची। फिर वही बातें चल रही थी। प्रेमलता चाची बोल रही थी -पाल -पोषकर बेटियों को आदमी बड़ी करता है फिर दूसरे की अमानत समझ उसे दूसरे को सौंप देता।
मांँ जी ने फिर कहा -'मैंने कहा ना । कितना भी करो एक दिन बेटियांँ पत्ते की तरह उड़ जाती है ।"
"क्या करेंगी यही समाज की रीत है।आपके घर भी तो किसी की बेटी उड़ कर आयी है।" तुलसी चाची ने मेरी ओर दिखाते हुए कहा।
"हाँ -हांँ इसी लिए न कहा-कि यही बेटी अब मेरे साथ पत्थर की तरह स्थिर होकर रहेगी।"
अब माताजी की पत्थर और पत्ते वाली बात मेरी समझ में आई।मन   में प्यार का गंगा जल हिलोरें लेने लगा। सचमुच मांँ जी चार बेटियों की विदाई कर एक मुझ पराई को ही बेटी मान संतोष किया था।आज विदाई के समय माँ द्वारा दी गई सीख भी याद आ रही थी -"बेटी ! आज से तुम्हारी सासु मांँ ही तुम्हारी माँ हैं"
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, June 15, 2023

चलो फिर से बचपन जीते हैं

चलो फिर से बचपन जीते हैं

चलो फिर से बचपन जीते हैं।
रेत को घोलकर शर्बत पीते हैं।

गुड्डे-गुड़ियों का ब्याह रचाते हैं।
सखियों को समधन बनाते हैं।
कतरनें जोड़कर लहंगा सीते हैं।
चलो फिर से बचपन जीते हैं।

पत्तों की पूरियां,बना लें हम।
छिलके की बनाएं आलूदम।
याद कर लें जो दिन बीते हैं।
चलो फिर से बचपन जीते हैं।

पेड़े बना लें फिर से मिट्टी के।
और मुरब्बे बना लें गिट्टी के।
कलाकंद में  घीसे पपीते हैं।
चलो फिर से बचपन जीते हैं।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, June 10, 2023

नज़रों का धोखा (यह भी खूब रही)

नज़रों का धोखा

एक बार बचपन में हम मौसेरे भाई की शादी में गए।बस से उतरने के बाद मौसी के गाँव तक जाने के लिए टमटम से जाना था।हम सभी भाई -बहन उत्साहित थे । पहली बार टमटम की सवारी करनेवाले थे। पिताजी टमटम वाले से बात कर रहे थे कि एक सज्जन ने कहा इससे मैंने पहले बात कर ली है।आप दूसरा टमटम देख लें।उस व्यक्ति और मेरे पिताजी थोड़ी कहा-सुनी भी हो गई। फिर बात-बात में टमटम चालक ने कहा- दोनों को एक ही गाँव जाना है तो दोनों साथ चलिए। दोनों को बात जंच गई।टमटम की सीट दो भागों में विभक्त थी।आगे की तरफ वाली सीट पर हमारे माँ-पिताजी और हम भाई बहन सीट पर और माँ-पिताजी की गोद में बैठ गये।उसी प्रकार वे सज्जन भी पिछली सीट पर अपनी पत्नी और बच्चों के संग बैठ गये।
हमारी घोड़ा-गाड़ी टिक-टिक,घर्र -घर्र करती गाँव पहुंँच गयी।एक दो गलियों में मुड़ने के बाद माँ ने चालक को मौसी का घर दिखाते हुए वहाँ रुकने को कहा।हमने भी देखा कुछ लोगों के साथ मौसाजी बाहर की कुर्सी पर बैठे थे , वे उठकर जल्दी से अंदर चले गए।
तब-तक पीछे बैठे सज्जन ने कहा -हमें भी यहीं उतारना है।इसपर टमटम चालक ने कहा -ठीक है फिर हम टमटम को घुमाकर ही रोकते हैं।और उसने टमटम घुमा ली।अब हमारा मुख घर के पीछे की ओर था और हमारे सहयात्रियों का आगे।
घर के अंदर से मौसा के साथ मौसी हाथ में जल का लोटा, मिठाई और सिंदूर का डिबिया लेकर हमारी आगवानी के लिए निकली तो मौसा से बोली लीजिए अब आप अपनी बहन को भी नहीं पहचानते। आईं हैं आपकी बहन और मुझे कहा कि आपकी बहन आ गई।मौसा इस चमत्कार पर अचंभित थे। सचमुच नजरों ने इतना बड़ा धोखा कैसे खाया ? मैंने सचमुच इनकी बहन को देखा था टमटम में।     
    हम सभी को यह समझ में आ गया कि हमारे साथ आने वाले अजनबी मौसा के बहन-बहनोई और उनके बच्चे हैं।
गर्मी से हमारा यूं ही बुरा हाल था।उनलोग के बहस को सुन हम पीछे से झांँक कर देखने लगे तो मौसा जी ने कहा -देखिए तो आपकी बहन भी आई हैं कि नहीं। खैर हम टमटम से उतरकर घर आकर आराम से बैठे। अब शादी समारोह में आनेवाले हर व्यक्ति को यह दिलचस्प बातें बताई जा रही थी।और हम मजे लेकर सुनते रहे।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, June 6, 2023

संघर्ष करते जाएँगे (कविता)

संघर्ष करते जाएँगे

संघर्ष करना है धर्म हमारा, संघर्ष करते जाएँगे।
संघर्ष करना पड़े कभी तो,तनिक नहीं घबराएंँगे।
संघर्ष करना धर्म हमारा.........
संघर्ष करने वाले ही जन,पाते हैं मंज़िल भाई।
संघर्ष से ही हट जाती,जीवन की मुश्किल भाई।
मेहनत जितना करना हो,सहर्ष करते जाएँगे।
संघर्ष करना धर्म हमारा............
धैर्य भाव और हिम्मत से,अपना काम निकालेंगे।
मेहनत को मुकाम बनाकर, बिगड़ी बात संभालेंगे।
असफलता को धूल चटा,उत्कर्ष करते जाएँगे।
संघर्ष करना धर्म हमारा........
इमानदारी की राहों पर,हम अपना कदम बढ़ाएंँगे।
ठोकरों को ठेल कदम से,हम आगे बढ़ते जाएँगे।
प्रति दिन, प्रति माह,औ प्रति वर्ष करते जाएँगे।
संघर्ष करना धर्म हमारा..........
लेकर दृढ़ विश्वास हृदय में,अपनी राह बनाएँगे।
अपने सुंदर आचरण से, धरती पर स्वर्ग बसाएँगें।
सारे कर्म जनहित के,हम संदर्श करते जाएंँगे।
संघर्ष करना धर्म हमारा.............
 
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'