एक बड़ा वजनी पत्थर,
रखा है सीने के ऊपर।
पूछो न मुझसे ऐ दोस्तों
कसकें दबीं हैं कितनी इसके तले।
सुजाता प्रिय
Friday, August 30, 2019
कसकें
Wednesday, August 28, 2019
हमारा जीवन
जन्म-मरण के ,
कालचक्र में,
फँसा हमारा जीवन है।
काम-क्रोध की ,
पहन चोलना,
लोभ-मोह का बंधन है।
अहंकार वश ,
रोग ग्रस्त है,
आधि-व्याधि दुःख दंशन है
शान-घमंड में ,
बीता जीवन,
छल-कपट का अंतिम इंधन है।
ईर्ष्या-द्वेष की,
चिता जली है,
झुलस रहा अब तन-मन है।
सुजाता प्रिय
Saturday, August 24, 2019
एक इंसान बना।
न हिन्दु बना ,न मुसलमान बना।
न इसाई बना , न पठान बना।
बनाना ही है तुझे तो हे ईश्वर।
हर मानव को एक नेक इंसान बना।
सुजाता प्रिय
शिला तेरा रूप अनूप
ऐ शिला तेरा है तन कठोर।
और है तेरा जीवन कठोर।
तू शांत-चित सदा ही निश्चल।
अकुलाती ना होती विकल।
जाने किस काल से हो पड़ी।
आँधी तुफान में सदा अड़ी
जल धरा में है अडिग गड़ी।
सर्दी-गर्मी-वर्षा सहकर खडी।
तूने पाया है साहस अनेक।
तू मौन खड़ी सब रही देख।
उत्थान-पतन औ लय-विलय।
वह रौद्र रूप में होता प्रलय।
तू देवी - देवता यक्ष बनी।
तू साक्षी सदा प्रत्यक्ष बनी।
तू ही खड्ग,हथियार बनी।
तू गुफा-खोह,घर-बार बनी।
तू ऊँचे पर्वत- पठार बनी।
तूला पर तू ही भार बनी।
तू सिलपट लोढ़ा चक्की है।
तू घोटन,बेलन ,चौकी है।
तू गिट्टी बालू ,कंकड़ बनी।
तू वेशकीमती पत्थर बनी।
शिला तेरा है अनेक रूप।
हर रूप तुम्हारा है अनूप।
सुजाता प्रिय
Friday, August 23, 2019
शुभ जन्माष्टमी
माखनचोर
माखन चोर भया नंदलाला।
यशोमती तेरा लाल गोपाला।।
बाल- सखा की पीठ चढ़कर,
छीके में से मटकी निकाला।
यशोमती तेरा लाल गोपाला।।
मटकी फोड़ा ,माखन खाया।
संग मिल दाऊ और ग्वाला।
यशोमती तेरा लाल गोपाला।।
सुभद्रा खाई, राधा भी खाई,
खाई संग में सब वृजवाला।
यशोमती तेरा लाल गोपाला।।
यशोमती से कहती ग्वालन।
क़्यों इस चोर को तूने पाला।
यशोमती तेरा लाल गोपाला।।
सुजाता प्रिय
Friday, August 16, 2019
तस्वीर जोड़ देंगे हम
माँ तेरी तस्वीर जोड़ देंगे हम,
बलिदान के सूतों से।
जिसे काटकर अलग ले गए,
तेरे सिर-फिरे कपूतों ने
माँ सिमटे-केश तेरे,
एक दिन लहराएँगे।
तेरे हाथ का तिरंगा,।
सुदूर देश तक फहराएँगे।
उन्नत होंगे कंधे तेरे ,
जो आज हैं सिकुड़े हुए।
जुटेगी तस्वीर तेरी,
जिसके आज हैं टुकड़े हुए।
तेरी तस्वीर की अखण्डता के लिए,
हाँ माँ सच कहा ,अखण्डता के लिए,
हम बारम्बार जनम लेंगे।
तेरे सारे टुकड़े को हम,
जोड़कर ही दम लेंगे।
दुनियाँ के कैनवास पर,
सुविजय के कूचे से।
देशभक्ति का रंग घोल,
तस्वीर तेरी उकेरेंगे।
तेरे अंग- अंग में हम,
उमंग नव बिखेरेंगे।
विस्तृत होगा तेरा अंचल,
तू हाथ-पैर फैलाएगी।
देख पूरी तस्वीर अपनी,
माँ तू मुस्कुराएगी।
जय- हिन्द ,जय भारत,
दुनियाँ गुनगुनाएगी।
विशाल देश की रानी,
माँ फिर तू कहाएगी।
सुजाता प्रिय
Wednesday, August 14, 2019
स्वतंत्रता दिवस के पूर्व संध्या पर (झंडा गीत)
भारत का झण्डा प्यारा
दुनियाँ में सबसे प्यारा।
भारत का झण्डा प्यारा।।2।।
भारत के झण्डे में,
केसरिया रंग भाबे।
देश पर बलिदान होना,
हम सबको सिखलाबे।। दुनियाँ में।।
भारत के झण्डे में,
सफेद रंग भाबे।
सच्चाई पर चलना,
हम सबको सिखलाबे।।दुनियाँ में।।
भारत के झण्डे में,
हरा रंग भाबे।
धरती पर हरियाली,
फैलाना सिखलाबे।।दुनियाँ में।।
भारत के झण्डे में,
चक्र बहुत भाबे।
जीवन में क्रियाशीलता,
हम सबको सिखलाबे।।दुनियाँ।।
सुजाता प्रिय
Saturday, August 10, 2019
रक्षा की शर्त
लो आया राखी का त्योहार।
लेकर भाई -बहन का प्यार।
बाँध कलाई राखी के धागे।
रख आरती की थाली आगे ।
भैया तुझसे प्यार मैं माँगू।
छोटा- सा उपहार मैं माँगू।
मेरे लिए कुछ शर्त थी तेरी।
माना थी रक्षाअस्मत कीमेरी।
कभी अकेली कहीं न जाऊँ।
पढ़- लिखकर सीधे घर आऊँ।
तन को वसन से पूरा ढककर।
चलूँ राह में नजर झुकाकर।
लो ,मैंने रख ली लाज तुम्हारी।
आई न इज्जत पर आँच तुम्हारी।
इसके बदले एक शर्त है मेरी।
राखी पर यह एक अर्ज है मेरी।
जैसे करते थे तुम मेरी रक्षा।
सब नारियों को देना सुरक्षा।
दुःशासन तुम कभी न बनना।
लाज किसी की कभी न हरना।
सदा सभी को केशव बनकर।
रक्षा करना तुम चीर बढ़ाकर।
नारियों का सम्मान तू करना।
विनती करती है तुझसे बहना।
सुजाता प्रिय
Wednesday, August 7, 2019
सुषमा दी को श्रद्धांजलि
भारत माँ की राजदुलारी।
हो गई ईश्वर को प्यारी।
राजनीति की महाग्यानी।
सुषमा दीदी राजभवानी।
बुद्धी-गुण से ओत-प्रोत।
नारियों की प्रेरणा-स्रोत।
कह गई हमकोअलविदा।
देश पर हो गई वह फिदा।
सबका मन है व्यथित।
दिल होता जा रहा द्रवित।
विनती सुन ले हे परमात्मा।
शांति से रहे उनकी आत्मा।
श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं हम।
उनको शीश नवाते हैं हम।
सुजाता प्रिय
Friday, August 2, 2019
मेंहदी का रंग
इच्छा की मेंहदी में,
प्यार का रंग मिला,
मन के सिलबट्टे पर,
अभिलाषा के लोढ़े से,
महीन कर मैने पीसा।
दिल के कूप में भर,
अंगुलियों से दबाकर,
दोनों हथेलियों के,
बूटे के बीच में,
नाम उनका लिखा।
थोड़ी देर उसे सुखाकर,
पपड़ियों को छुड़ाकर,
देखा जब मैं हथेली ।
शंका भरी नजरों से,
भरी आँख कजरों से,
मैने पपड़ियों को देखा।
मुँह खोल मैने पूछा,
हे मेंहदी!
रंग तेरा था पूरा हरा,
फिर यह लालिमा तुझमें,
बोलो कहाँ से है आई।
क्या तूने सुबह के सूरज से,
यह रंग है चुराई ?
सुखी मेंहदी की पपड़ियाँ,
मुझे देख कर मुस्कुराई।
बोली-तूने मुझे घीस- पीसकर,
मेरी लहू है बहाया।
या फिर तेरे साजन के प्यार ने,
यह रंग है मिलाया।
सुजाता प्रिय