Tuesday, April 23, 2019

बचपन के दिन (भाग २)

हाथ बड़े
जब मैं रोती थी बचपन में,माँ कहती थी चंदा दूँगी।
नयन  नक्श से सुंदर मुखड़ेवाली, मंजू  सुनंदा दूंगी।

जब मैं रूठा  करती थी,तो कहती थी माँ तारे दूंगी।
आसमान में जगमग-जगमग करते सुभग सितारे दूंगी।

जल्दी से मैं चुप हो जाती,समझ न पाती माँ की भाषा।
रूठे मन को तुरत मनाकर चांद-तारे की करती आशा।

आश औ विश्वास लिए यह नादाँ बचपन मेरा खोया।
झूठ- मूठ की भूलभुलैया में मन मेरा चुपके सोया।

चपल-किशोर हृदय ने समझा माँ की आशा दूँ मैं छोड़।
वयः प्राप्त कर हाथ बढ़ाकर छत पर से खुद लूंगी तोड़।

होती गई बड़ी लेकिन ज्यूं- ज्यूं मन ये होता गया निराश।
हाथ  न नभ को छू पाते थे अंतर  होता गया  हताश  ।

सुन माँ ने मुझको समझाया,भोली बेटी समझ जरा री।
इन हाथों से नहीं कभी तुम,छू सकती हो  चंदा- तारे।

जिग्यासा ले माँ से पूछी, हाथ बनाऊँ लम्ब बाँस का।
लम्बे-लम्बे ताड़-खजूर का,या ऊँचे शीशम-पलाश का।

माँ बोली कि नहीं री भोली ग्यान का हाथ बनाना होगा।
चाँद-सितारे  को चाहे तो  अच्छाई  अपनाना  होगा।

हाथ बड़े होेते हैं केवल, पढे-लिखे गुणवान जनो के।
हाथ बड़े कब होेते बोलो ,हृष्ट-पुष्ट बलवान जनो के।
                                               सुजाता प्रिय

Monday, April 22, 2019

बचपन के दिन.. भाग १

हमजोली..

एक बार छुटपन में मेरे,
हुई बगल में शादी।
माँ- पिताजी के साथ वहाँ
गई मैं और दादी।

जगह- जगह पर बनी हुई थी,
मेहमानों की टोली।
आपस में सब बोल रहे थे,
तरह- तरह- की बोली।

दादी की टोली में,
बैठी- बैठी- मैं उकताई।
उनकी चिरपुरातन बातें,
समझ न मुझको आईं।

झट- जा बैठी-मैं,
पिताजी के साथ नर्मी से।
राजनीति की बहस छीड़ी थी,
वहाँ बड़ी सरगर्मी से।

सोची माँ की टोली में,
शायद मन लग जाए।
पर गहने- कपड़ों की,
तारीफें मुझे न भाईं।

रंग- बिरंगी तीतली जैसी,
दिखी हमजोलियों की टोली।
तोतली- मीठी बातों में ,
हो रही थी खूब ठिठोली।

उनके पास बैठ घुलमिल,
मन- ही- मन से बोली।
सबको भाता है रे मन,
हमउम्र- हमजोली।
       सुजाता प्रिय

Tuesday, April 16, 2019

अनुज प्रेरणा


जल्दी- जल्दी चल मेरे भैया,
मैं भी हूँ तेरे  पीछे।
आगे- आगे बढ़ मेरे भैया,
मैं भी हूँ तेरे पीछे।

कदम बढ़ाकर अब जल्दी - जल्दी
मंजिल अपनी दूर बहुत।
रामपुर है दूर बहुत तो,
लखनपुर भी दूर बहुत।
तेज चाल से चल मेरे भैया,
मैं भी हूँ तेरे पीछे।

राह पकड़ तू चुनकर भैया,
मंजिल तक जो पहुचाए।
तेरे ही पदचिह्नो पर चल,
मंजिल मेरी मिल जाए।
धीमी चाल मत चल मेरे भैया,
मैं भी हूँ तेरे पीछे।

रुक ना जाना बीच डगर पर,
कर ना कभी न मनमानी।
बढ़ते जाओ, बढ़ते जाओ,
मत कर तू आना- कानी।
अगर- मगर मत कर मेरे भैया,
मैं भी हूँ तेरे पीछे।

ऊपर चोटी पर चढ़ने को,
एक बना अच्छी सीढ़ी।
अच्छाई पर चलना सीखे,
मानव की अगली पीढ़ी।
बुरी राह से टल मेरे भैया,
मैं भी हूँ तेरे पीछे।
         सुजाता प्रिय

Saturday, April 13, 2019

जागरण


जागने का वक्त आया,
ऐ मनुज तू जाग जा।
ऊषा सनहरी चेतना की,
ऐ मनुज तू जाग जा।

अधर्म की गहरी नींद में,
निर्लिप्त हो सोये बहुत।
दुराचरण के रंग- बिरंगे,
स्वप्न में खोये बहुत।
सदाचरण की किरण फूटी,
ऐ मनुज तू जाग जा।

छोड़कर भटकना कुपथ पर,
सुपथ पर बढ़ते चलो।
सत्कर्म की नई दिशा को,
प्यार से मढ़ते चलो।
दूःकर्म का तू खोल चोला,
ऐ मनुज तू जाग जा।

इंसानियत है धर्म तेरा,
प्यार कर इंसान से
इंसानियत की राह में,
होगा मिलन भगवान से।
हैवानियत को दूर कर दे,
ऐ मनुज तू जाग जा।
     सुजाता प्रिय

Tuesday, April 9, 2019

झूला एक लगा दो माँ


झूला एक लगा दो माँ.........

आम पेड़ की डाली पर,
झूला एक लगा दो माँ।
पेंग बढ़ाकर नभ को छू लूँ,
मुझको जरा झूला दो माँ।

सिंदूरी लालिमा देखो,
आसमान में बिखरा है।
सूरज का मुखडा़ जैसे
नवदुुल्हन - सा बिखरा है।
मैं भी जग रोशन कर डालूं,
ऐसी लगन लगा दो माँ।

देखो कलियाँ क्यारी-क्यारी,
खिल- खिलकर मुसकाती हैं।
पुलकित हो हँस डाली-डाली,
हँसना हमें सीखाती हैं।
मैं भी फूलों-सी खिलकर जाऊँ
मुझको जरा हँसा दो माँ।

काली कोयल पंचम सुर में,
मीठा गाना गाती है।
भौरों की गुनगुनाहट ,
उसमें ताल मुसकाती है।
मैं भी कुछ तो मीठा गाऊँ,
ऐसी गीत सीखा दो माँ।

देखो बागो में पेड़ों की,
हरी- भरी सब डाली  है।
फूल-पेड़,वन- उपवन से,
धरती पर हरियाली है।
हरी- रहे धरती यह मेरी,
कुछ तो पेड़ लगा दो माँ।

Monday, April 8, 2019

मेरी बूढ़ी नानी जी

कहती खूब कहानी जी-----

मेरी बूढ़ी नानीजी।
कहती खूब कहानी जी।


कभी सुनहरी परियों वाली,
चुनरी ओढ़े परियों वाली,
पेड़ों पर की चिड़ियों वाली,
जिसकी मीठा वाणी जी।


कोई भूत- पिशाचों वाली,
जादू- खेल तमाशों वाली,
जमींदार और दासों वाली,
बातें सभी पुरानी जी।


कुछ में भालू - बंदर होेते,
सिंह पिंजरे के अंतर होेते,
कुछ में अंतर -मंतर होेते,
 कुछ में राजा- कहानी जी।


फूलों और गुलदस्ते  वाली,
हल्वे - पूरी नस्ते वाली ,
छोटी- मोटी सस्ते वाली,
करते आना- कहानी जी।

           सुजाता प्रिय