चोट (लघुकथा)
पत्नी की तीखी बोली से संजीव का मन बड़ा आहत था। इतनी बेरूखी से सबके सामने डांँटेगी । यह तो कभी उसने सोचा..........
क्या हो गया उसे ?
इतना भी नहीं सोंचा ऐसे अपमान भरे लहजे से मेरे दिल पर.......
यदि मैं सबके सामने उसे ऐसे ही...............?
करते तो हो........ हमेशा... .....
हर जगह.........हर समय
बडो़ं के सामने......
छोटों के............सहेलियों .......
पडोसियों........परिवारों ......
सहकर्मियों ..........नौकरों.....
उसने एक बार..........
अपमान से दिल लहू-लुहान........
लेकिन वह हमेशा अपमान का घूट पीती है ।तो........... ?
तेरे जैसा उसका दिल..........? नहीं- नहीं! मुझे भी........। उसके सम्मान का...............।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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