बादल का इंसाफ
सूरज और पवन में भारी छिड़ी बहस एक बार।
दोनों स्वयं को ताकतवर कहते माने न कोई हार।
तब आसमान में बादल आया करने बीच-बचाव।
निज ताकत को सिद्ध कर लो बेकार दिखा न ताव।
सामने की पहाड़ी पर देखो बैठे हैं तपस्वी एक।
ठंडक से बचने की खातिर रखी है कंबल लपेट।
जो अपनी ताकत से उनका कंबल उतरवा देगा।
उसके सिर पर ताकतवर का मुकुट आज सजेगा।
पहले पवन ने अपनी ताकत की जोर लगायी।
साधु की कंबल उड़ाने के लिए अपनी गति बढ़ाई ।
पवन की गति बढ़ते ही तपस्वी ने हाथ बढ़ाया।
अपने तन पर कंबल को कसकर यूं लिपटाया।
अब बारी सूरज की आई उसने अपनी ताप बढ़ाई
तपस्वी ने गर्मी से अकुल हो कंबल थोड़ी सरकाई।
फिर सूरज ने तीव्र गति से बढ़ा दी अपनी ताप।
तपस्वी को कंबल की गर्मी से हुआ अति संताप।
व्याकुल होकर झट उन्होंने अपना हाथ बढ़ाया।
अपने तन का कंबल को उन्होंने अलग हटाया।
अब तेज हवा के झोंके भी लग रही थी उनको प्यारी।
मोटा कंबल गर्मी के कारण लग रहा था भारी।
समझ न पाया पवन सूरज की यह योजना प्यारी।
सूरज अपनी जीत पर मंद-मंद मुस्काया।
वह बादल के इंसाफ पर अपना शीश झुकाया।
पवन को अपनी ताकत का झूठा अहम समझ में आया।
अपने झूठे अहंकार पर वह मन-ही-मन पछताया।
सुजाता प्रिय समृद्धि