Sunday, May 30, 2021

हाइकु लेखन



दृश्य सुहावन

फूलों की क्यारी
सुंदर-सुंदर
लगती है प्यारी।

कलियां मुस्काई
रंग बिरंगी है
मन को भाई।

तितलियां आई
फूल-फूल पर 
है मड़राई।

भौंरे हैं गाते,
सुंदर तान वह
 हमें सुनाते।

कोयलिया कूके
बुझते मन में,
जीवन फूंके।

चिड़िया चहकी
दाना चुगने को
आई बहकी।

आम पेड़ पर
तोता -मैना
रहे चहक कर।

पपीहा कूंजे
कबूतर-तीतर की
बोली गूंजे।

मोर झूम कर
नाच दिखाता
पर फैला कर।

दृश्य सुहावन
क्या बगिया की
है मनभावन।

सुजाता प्रिय समृद्धि
  स्वरचित, मौलिक

Friday, May 28, 2021

गरमागरम चाय

जय मां शारदे 🙏🙏

भाषा- मगही (हास्य रस)
 
एक बार जीजाजी भाई के संग अइलथिन बीतते रात।
कहलथिन गरमा-गरम चाय पिलाबा मानके हम्मर बात।

दूसर दिन परीक्षा हलै कर रहलिऐ हल तैयारी।
सेहे से उनका चाय पिलाना लग रहलै हल लाचारी।

लेकिन आगंतुक के चाय ना पिलइयै एहो बात है भारी।
अइते के साथ चाय मांग हथिन मेहमान बिहारी।

जाके देखलिऐ चुल्हा पर पैहले से चाय चढ़ल हलै।
शायद मैया के कनमा में दामाद के बात पड़ल हलै।

नथुनमा हम्मर फुल रहलै हल हलिऐ गुस्सा से घायल।
काम आसान देख के हो गेलिऐ खुशी से पागल।

सोचलिऐ आज जीजाजी के चट्टक चाय पिलइऐ।
लौंग-इलाइची, अदरक देके ओकर स्वाद बढ़इऐ।

परीक्षा के चिंता से लेकिन हलिऐ बड़ी परेशान।
पता नै चललै चाय में हम कि-कि देलिऐ सामान।

चीनी के बदले निमक देलिऐ चायपत्ती के बदले हल्दी।
लौंग-इलाइची के बदले लहसुन-मिरची दे चाय बनैलिऐ जल्दी।

छान पियलबा में गरमागरम झट उनकर आगे रखलिऐ।
पीहो जीजाजी दुनु भाई,खुश होके कहलिऐ।

मन मारके दुनु भाई, मारे लगला मिल चुस्की।
छोटका भाई जीजा के देख मारे मन -मन मुस्की।

हंसके पुधलिऐ हे जीजाजी कैसन बनलै चाय।
जीजाजी हम्मर मुंह ताक के रहलथिन हल मुस्काय।

कहलथिन बड़ी अच्छा लगलै शाली के मजाक।
मुहमां में सिसकारी आबे,लहर रहलै है नाक।

ऐसन चाय पी खुश हो जैइतै हम्मर साढ़ू भाय।
भोरे-सांझे जरूर पिलैहो,बनाके ऐसन चाय।

           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, May 26, 2021

कर्म



कर्म किए जा,कर्म किए जा,
मन को कर निष्पाप रे।
फल की चिंता कभी न करना,
मिलता अपने आप रे।

कर्म का तुझको दूत बनाकर,
भेजा है मालिक जंग में।
कर्म पथ पर बढ़ते जाओ,
अवरोध नहीं लाना पड़ में।
कर्म को अपने बुरा न करना,
सबसे बड़ा यह पाप रे।
फल की चिंता.................

कर्म ही पूजा,कर्म है अर्चन,
जप-तप तीर्थ है सारा।
कर्म के जैसा त्याग नहीं है,
कर्म ही है सबसे प्यारा।
कर्म से बढ़कर धर्म नहीं है,
सदा रहे यह साथ ले।
फल की चिंता....................

हर करनी का लेखा-जोखा,
स्वयं विधाता लेते हैं।
जैसा जिसका कर्म देखते,
वैसा ही फल देते हैं।
कर्म फल के रूप में मिलता,
सबको सुख-संताप रे।
फल की चिंता................
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित, मौलिक

Tuesday, May 25, 2021

जय मातु भवानी



कर रहे हैं भक्त पुकार,
सुन ले हे मातु भवानी।
रक्षा के लिए गुहार,
सुन ले हे मातु भवानी।

आकर जग की विपदा हर ले।
हम सबका तू संकट हर ले।
सारी दुनिया पड़ी बीमार,
सुन ले हे मातु भवानी।

तेरा ही अब इस है मैया।
हमारी नैया की तू खेबैया।
पकड़ ले आकर तू पतवार,
सुन ले हे मातु भवानी।

शरण तुम्हारे दास खड़े हैं।
उबारेगी ले आस खड़े हैं।
कर निज भक्तों से तू प्यार,
सुन ले से मातु भवानी।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
            स्वरचित मौलिक

Friday, May 21, 2021

ग़ज़ल (तूम्हीं से प्यार है )



तुम न मानो पर तुम्हीं से प्यार है।
तुम पे ही जीवन मेरा न्योछार है।

तुम हमारे दिल में बसते हो सदा,
तेरे दिल में ही मेरा घर-बार है।

जब भी तुम संग में मेरे रहते सनम।
मुझको तो यह रंगीं लगे संसार है।

तुम हो जब नजरें उठाकर देखते,
लगता जहां का मिल गया प्यार है।

तुम रहो तो बात सब प्यारा लगे,
तुम से ही है शोभिता श्रृंगार है।

हम जहां में साथ ही जीते रहें,
साथ ही मरना हमें स्वीकार है।
        सुजाता प्रिय'समृद्धि'

Monday, May 17, 2021

सुरक्षा सप्ताह के नजारे



गलियां सुनसान हैं,सड़कें वीरान हैं।
हर जगह दिखते पुलिस के जवान हैं।

हाट-बाजार में सन्नाटा है दिखता।
सख्ती के आगे है कोई न टिकता।
पुलिस की कार्रवाई से लोग परेशान हैं।
हर जगह दिखते पुलिस के जवान हैं।

जरूरी काम से घर से हैं निकलते।
छुपते-छुपाते और बचते- संभलते।
हर पल लगता है कि खतरे में जान है।
हर जगह दिखते पुलिस के जवान हैं।

चौक-चौराहों पर वाहन को रोककर।
ई-पास मांगते चालक को टोककर।
ई-पास के सिस्टम से लोग हैरान हैं।
हर जगह दिखते पुलिस के जवान हैं।

गाईड-लाईन उलंघन का लेते जुर्माना।
कोई-न-कोई हैं वे करके बहाना।
कहते कि चल रहा चेकिंग अभियान है।
हर जगह दिखते पुलिस के जवान हैं।

सबके पास क्या एंड्रॉयड फोन है?
ऐसे सवालों पर प्रशासन मौन है।
ई-पास का सिस्टम न इतना आसान है।
हर जगह दिखते पुलिस के जवान हैं।
           सुजाता प्रिय'समृद्धि'
             स्वरचित, मौलिक

Sunday, May 16, 2021

गर्मी आई



गर्मी आई, बड़ी सताई ‌।
लू की लपटें संग में लाई।
सूरज तपता आसमान।
धरती जलती तबा समान।

है बैसाख का गरम महीना।
तन से बहता खूब पसीना।
पंखा -कूलर मन को भाते‌‌।
सुबह-शाम सब खूब नहाते‌

फ्रीज का मत पानी पीओ।
घड़े का ठंडा पानी पीओ।
सत्तु और अमझोरा पीओ।
बेल पुदीने का शर्बत पीओ।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
        स्वरचित, मौलिक

Saturday, May 15, 2021

वक्त (ग़ज़ल )



वक़्त मुश्किल है लेकिन गुजर जाएगा।
आज बिगड़ा है कल यह सुधर जाएगा।

वक्त की मार हम पर पड़ी है बड़ी,
खत्म जल्दी हो इसका असर जाएगा।

वक्त मरहम है बड़े-से-बड़े रोगों का,
वक्त से जख्म गहरा ये भर जाएगा।

वक़्त के हाथों की हम हैं कठपुतलियां,
वक्त की डोर में खेल ये मुखर जाएगा।

वक्त के संग कदम हम मिलाकर चलें,
रंग जीवन का सारा निखर जाएगा।

वक्त माना कि पल में बदल जाता है,
वक्त आने दो जीवन संवर जाएगा।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
          स्वरचित, मौलिक

Thursday, May 13, 2021

हरी मिर्ची



भाती है हरी मिर्ची,सुहाती है हरी मिर्ची।
तीखी है भोजन का स्वाद,बढ़ाती है हरी मिर्ची।
सेहत का खजाना है,पोषक तत्वों से भरपूर,
नियंत्रित कर रोगों को,भगाती है हरी मिर्ची।

पड़ी सब्जी-मंडी में, लुभाती है हरी मिर्ची।
गोल बीजों से भरी, इतराती है हरी मिर्ची।
दिखने में भले छोटी,बड़े यह काम है करती-
कैंसर के खतरे को, घटाती है हरी मिर्ची।

मन मेरा सरस करने,आती है हरी मिर्ची।
आंखों में आसूं दे, मुस्काती है हरी मिर्ची।
अलग सब्जियों से दूर, पोषकता से भरपूर-
ज़ायका रायते-चटनी की,बढ़ाती है हरी मिर्ची।

त्वचा निरोग करती है, प्रोटीन लाती है हरी मिर्ची।
रोग-प्रतिरोधक क्षमता को,बढ़ाती है हरी मिर्ची।
विटामिन ए ,बी 6सी, कार्बोहाइड्रेट और कापर-
एंटी आक्सीडेंट पोटैशियम,दिलाती है हरी मिर्ची।

          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
            स्वरचित, मौलिक

Wednesday, May 12, 2021

कौए की विनती



कौआ बैठा तरु के नीचे,
         चिंतित होकर देख रहा है।
ठूंठ पर अपने घोंसले पर,
        पल-पल नजरें फेंक रहा है।

मानव कितने निठुर हुए ये,
           सारे तरुवर हैं काट रहे हैं।
सुख पाने धरती माता को,
               मरुभूमि में पाट रहे हैं।

फल-फूल तो स्वप्न सरीखे,
            है पेड़ों की छाया भी दूर।
कटी डालियों के बीच नीड़,
              बनाते पक्षी हो मजबूर।

ठूंठ बेचारा मन मसोस कर,
         कल्पनाओं के हाथ बढ़ाता।
दोनों कर-कमलों के बीच,
         थाम घोंसले को है बचाता।

अंक में भर घोंसला मेरा,
      अण्डे सेने का फर्ज निभाता।
पशु-पक्षियों की अंतर-पीड़ा,
      मनुज यहां है समझ न पाता।

ऐ मानव अब दया करो तुम,
              मत करो इनका संहार।
दिया है तेरे सुख की खातिर,
     प्रकृति ने यह अनुपम उपहार।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
            स्वरचित, मौलिक

Tuesday, May 11, 2021

मानव कोकिल संवाद



कोकिल तू मेरे बाग़ में आती हो क्यों नहीं?
पंचम सुरों की राग सुनाती हो क्यों नहीं ?
आया और चला जा रहा है अब वसंत-
वसंत का आनंद ले जाती हो क्यों नहीं ?

कोकिल ने कहा-अब हमें मिलता नहीं है बाग।
जिसके तरु की डाल पर हम बैठ छेड़े राग‌।
मानव तू बोलो बाग लगाते हो क्यों नहीं ?
पर्यावरण को स्वच्छ बनाते हो क्यों नहीं ?

कोकिल तू मेरे बाग़ में नित आया करो।
सुरीली तान भरी मीठे गीत गाया करो।
बिन बाग वाले को तू लुभाती हो क्यों नहीं ?
तुम उन रूठी हो ये बात बताती हो क्यों नहीं ?

कोकिल ने कहा-जहां से सारे पेड़ कट रहे।
जग से जंगल के नामों-निशान हट रहे।
मानव तू बोलो पेड़ लगाते हो क्यों नहीं ?
पशु-पक्षियों का घर बसाते हो क्यों नहीं ?

मानव ने कहा-मानव को नहीं हैं पेड़ों से प्यार।
समझ न पाते पेड़ों से ही रहेगा सुखी संसार।
जाने प्रकृति से संतुलन बनाते हैं क्यों नहीं ?
धरती पर हरियाली फेलाते हैं क्यों नहीं ?

कोकिल ने कहा-क्यों न समझते पेड़ों की महत।
पेड़ों के बिना ना रहेगा यह जीव-जगत।
जग वालों को यह बात बताते हो क्यों नहीं?
जीवन का यह राज समझाते हो क्यों नहीं ?

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'       स्वरचित , सर्वाधिकार सुरक्षित

चिकित्सक/कोरोना योद्धा



कोरोना-योद्धा बन चिकित्सक,
           कर रहें कोरोना का नाश।
इष्टदेव से भी ज्यादा है,
       हम सब को उन पर विश्वास।

देखो प्लास्टिक की वर्दी से,
          ढके हुए हैं आपादमस्तक।
जहां कहीं यह हमला करता,
            जिस घर में देता दस्तक।
चिकित्सा का हथियार उठाकर,
             पहुंच रहे हैं उनके पास।
इष्टदेव से भी ज्यादा है, 
        हम सबको उन पर विश्वास।

सभी जनों की जान बचाते,
               जान हथेली पर लेकर।
इस बीमारी को दूर भगाते,
                 मात उसको वे देकर।
अंतिम सांस तक उपचार करते,
           रखकर मन में वे हैं आस।
इष्टदेव से भी ज्यादा है, 
        हम सबको उन पर विश्वास।

चिकित्सा ही उनकी पूजा,
             महामंत्र, जप-तप सारा।
हमको यह जंग जीतना है,
             लगाते हैं पल-पल नारा।
जयनाद के लिए रोगियों से, 
          हंस-हंस करते हैं परिहास।
इष्टदेव से भी ज्यादा है,
        हम सबको उन पर विश्वास।

             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
               स्वरचित, मौलिक 

Tuesday, May 4, 2021

अखबार में नाम (हास्य व्यंग )



हां हमारे देश में प्रतिभावानों की कमी नहीं।
प्रतिभा की प्रगतिशीलता  कभी थमी नहीं।

सभी जानते किसने कितना रिकार्ड बनाया।
कितने सारे लोगों ने  हैं भारत- रत्न पाया।

लेकिन , कुछ लोगों की प्रतिभा छुट जाती है।
कोई जान नहीं पाते मन-ही-मन घुट जाती है।

हमारे गांव  की एक छोटी - सी टोली में।
एक प्रतिभावान रहते हैं फूस की खोली में।

भूलन सिंह भटकन नाम के बड़े जाबांज।
उनकी सुकृतियां भी सुन  लिजिए आज।

गिनकर आठ-दस मक्खियां रोज मारते हैं ‌
मच्छर मार नहीं पाते तो नानी को पुकारते हैं।

एक बार पुदीने की डाली पर झूला लागाए। ‌
संग बैठा संगी साथियों को भी खूब झुलाए।

पुदीने की डाली मजबूत थी रस्सी कमजोर।
गिर पड़े‌ जमीन पर सभी, तो मंच गई शोर।

बांस की सीढ़ियां लगा चढ़े बैंगन के पेड़ पर।
तितलियों से भयभीत हो गिरे रूई की ढेर पर।

चटख गई पसलियां,मुचक गए उनके कंधे।
चिल्लाए कोई तो उठाओ हो गए सब अंधे ?

कोई आकर दो-चार तस्वीरें तो मेरी खिंचवाओ।
पहलवानी के लिए अखबारों में नाम निकलवाओ।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
          स्वरचित, मौलिक

Monday, May 3, 2021

प्यारे गुलमोहर



वसंत के मौसम में मुस्काते हैं फूल सभी,
तुम  ग्रीष्म में खिलखिला कर हंसते  हो।

जब बंद हो जाता है फूलों का खिलना,
तो तुम फिजा में बहार बन चमकते हो।

मुरझाते फूलों हंसने के लिए प्रेरित कर,
तुम चुल्हे की आग की तरह सुलगते हो।

क्या लू के थपेड़े से आक्रोशित होकर,
लोहार की भट्ठी की तरह धधकते हो।

विषमताओं से लड़ना कोई तुमसे सीखे,
कड़कती धूप में किस कदर दमकते हो।

सूरज से प्रतिशोध के लिए  कृत-संकल्प,
चटख लाल रंग लेकर सदा ही दहकते हो।

चुनर का सुंदर-सुर्ख चटकीला रंग लेकर,
नवोड़े के अल्हड़ पल्लू बन  बहकते हो।

रमनियों के पांव में आलता लगाने के लिए,
तुम झड़-झड़कर तमाम राहों में बरसते हो।

गुलाब की भीनी पंखुड़ियों के मुरझाने पर,
अपनी लाल पंखुड़ियों को यहां परसते हो।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
               स्वरचित, मौलिक

Sunday, May 2, 2021

मजदूर आखिर क्यों मजबूर



वसन बिना होकर फटेहाल।
भूख के मारे हो सब बेहाल।
पापी पेट का  उठा सवाल।
हो मजबूर पकड़ा कुदाल।

चाहिए रोटी-कपड़ा-मकान।
भूखी न मरे अब मेरी संतान।
मांग ना हाथ फैलाकर दान।
मेहनत की रोटी पर है शान।

क्या कहूं कितना हो मजबूर।
चल पड़े कमाने घर से दूर।
लगे कमाने बनकर मजदूर।
बनी जीवन की यह दस्तूर।
 
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
         स्वरचित, मौलिक

Saturday, May 1, 2021

हास्य-व्यंग्य बिहारी बोली (मगही में )


           
काम वाली बाई के नखरे

घरबा साफ-सुथर रखिहा,
          तब हमें झाड़ू मारबो जी।
बरतनमा मैंज करके रखिहा,
              तब हमें खंखारबो जी।

कपड़बा धोइहा वाशिंग-मिशिन में,
         हमें ओकरा पसारबो जी।
अंगना धोबे ले वाइपर लैइहा,
      तब हम पानी निथारबो जी।

पोंछा लगी पोछनी लैइहा,
        तब हमें घरबा पोछबो जी।
चुल्हा-चकला साफ रखिहा,
              तब ओकरा धोबो जी।

अइते के साथ चाय पिलैइहा,
             लौंग-इलाइची डाल के।
साथे में बिस्कुट-निमकी,
       पलेटबा में दिहा निकाल के।

तरकारी-परौठा नाश्ता दिहा,
             खाना में दाल-भात जी।
भुजिया-पापड़,चोखा-चटनी,
                 तो छोटा है बात जी।

सांझ बेला के नो गो रोटी,
          टिफिनियां में दिहा भर के।
हाथ में चिकन चुरमुर दिहा,
                     ले जाबे ले घर के।

सप्ताह में तीन दिन नौनभेज लेबो,
               बड़का कटोरा भर के।
चार कांटा कड़हिया में छोड़िहा,
              रस से लबालब भर के।

सनिचर-एतबार के छुट्टी रहतो,
              अपने करिहा काम जी।
पांच दिन के थकान मेटैबै,
           दू दिन करके आराम जी।

परब-त्योहार में सिलिक साड़ी,
                  दिहा पहले कीन के।
बाल-बुतरुअन के कपड़ा दिहा,
                 एकक गो के गीन के।

होली-दशहरा में परबी लेबो,
                दिवाली में वोनस जी।
नागा के पैसा एको ने काटिहा,
               लिखके देहों बौंंड जी।

          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
            स्वरचित, मौलिक

पत्र

रांची
                          २८/०४/२१
परम पुज्या जगत माता
         एवं
परम पिता परमेश्वर 
       
         के पावन चरणों में दैनिक प्रणाम

यहां का मैं क्या  हाल-समाचार बताऊं। सभी जगह आपलोग व्याप्त हैं। सभी हाल आपको दृष्टिगोचर है।यह भी नहीं कह सकती हूं कि आप लोग प्रसन्न होंगे। अपनी संतानों का कष्ट देख कोई भी माता पिता सुखी नहीं होता। इसलिए आपके चरणों में नतमस्तक हो विनम्र भाव से प्रार्थना करती हूं कि प्रकृति से खिलवाड़ करने के हमारे घोर अपराध को क्षमा कर दुनिया में आई यह विपदा का निराकरण कर सृष्टि रुपी गोद में बैठे अपने सभी संतानों की रक्षा करें।
        पुरी दुनिया के लोग त्राहिमाम कर रहे हैं हैं। इसलिए इस विपदा की घड़ी में आकर समस्त आधि-व्याधि रोग-शोक का नाश कर इससे हमें उवारें और हम सभी को शाश्वत जीवन प्रदान करने की कृपा करें। हे जगत माता एवं जगत पिता
अपने पुत्र-पुत्रियों के के विनय को अवश्य सुनें और हमारे सहायक बनें।
          आपकी पुत्री
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'