Thursday, December 31, 2020

नये साल का नया संकल्प (लघुकथा)



आज साल का पहला दिन है। समृद्धि ने नींद से जागते हुए कहा-नया साल सबको मुबारक हो।नये साल में कुछ नया करने का संकल्प लेना चाहिए। इससे जीवन में नयापन आता है और हम दृढ़ता से कुछ करने की ओर अग्रसर होते हैं।
      मां की आवाज सुन शुभ बिस्तर पर उठकर बैठता हुआ बोला-आज से मैं जल्दी उठकर अपना गृहकार्य कर लूंगा।
 खुशी दौड़ती हुई आई और बोली-वह तो ठीक है पर उससे पहले भगवान को और सभी बड़ों को प्रणाम करना है।खुशी के साथ  शुभ और उसकी दीदी प्रिया ने सभी को चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लिये।
मां को रसोई में जाते देख प्रिया ने कहा-आज से हमें मां को काम करने में हाथ भी बंटाना है और दादा-दादी की देखभाल भी करना है।
पिताजी दरवाजे पर खड़े होकर मुस्कुरा रहे थे। सभी बच्चे उनके बताए रास्ते पर अग्रसर थे।नये साल के लिए उन्होंने भी यह संकल्प लिया था कि अपने बच्चों को सुसंस्कारित बनाएंगे। नहीं तो वह इन छोटी छोटी बातों के लिए पत्नी को ही दौड़ाते रहते थे। विचारी काम कर करके थक जाती है और अक्सर बीमार हो जाती है। बच्चों और उनके सहयोग से उसका कुछ काम हल्का हो जाएगा।
तभी दादी मां कुछ पुराने कपड़े और बचे हुए खाने लेकर बाहर निकलीं।
सभी लोग आश्चर्य से उन्हें देख रहे थे कि दादाजी बोले- मैंने ही कहा है उन्हें कि बेकार पड़े कपड़े और बचे हुए भोजन को जरूरतमंदों को बांट दिया करो। सभी लोग खुश हो गये।नये साल में परिवार के सभी लोग कुछ -न-कुछ नया संकल्प लिए।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                 स्वरचित, मौलिक

Wednesday, December 30, 2020

आशीष २०२० का

🙌🙌आशीष २०२० का🙌🙌

विगत बरस बन मैं जा रहा हूं,
        तुम्हें मुबारक नया बरस हो।
मेरे अनुज संग सुखी रहो सब,
    आगामी जीवन सदा सरस हो।

तुम्हें शिकायत अगर है मुझसे,
      कि मैंने सबको बहुत सताया।
तूने कहा- मैं हूं बीस विषैला,
        पूरी दुनिया में विष फैलाया।
अगर तू मुझसे दुःखी हुए तो,
 कभी-भी दुःख का नहीं दरस हो।
मेरे अनुज संग सुखी रहो तुम,
    आगामी जीवन सदा सरस हो।

मगर ये सोंचो, जरा तू मन में,
   अगर तू खोये तो बहुत ही पाये।
चुनौतियों से लड़े तुम डटकर,
      जिम्मेदारियों को गले लगाये।
आत्मनिर्भर,श्रमजीवी बने तुम,
     जिससे मन में तुम्हें  हरस हो।
मेरे अनुज संंग सुखी रहो तुम,
    आगामी जीवन सदा सरस हो।

उलझनों को सुलझाना सीखा,
         जीवन सुगम-सरल बनाये।
मितव्यई ,स्वयंसेवी बनकर,
       विषम घड़ी में भी मुस्कुराए। 
साकारात्मकता मन में आया,
        निर्माण करने की ललक हो।
मेरे अनुज संग सुखी रहो सब,
    आगामी जीवन सदा सरस हो।

परदेश से तुम स्वदेश लौटे,
       परिजनों संग समय बिताये।
नई उम्मीदों के संग जीये,
      उत्थान करने का मन बनाये।
मैं जा रहा हूं आशीष देकर,
  आगामी स्वर्णिम सभी बरस हो।
मेरे अनुज संग सुखी रहो सब
    आगामी जीवन सदा सरस हो।
🙌🙌🙌🙌🙌🙌🙌🙌
 
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
         स्वरचित , मौलिक

जैसी बहे बयार ( लघुकथा )



कार्तिक महीने में स्नान -दान ,वर्त त्योहार करने वाली झुमनी दादी कार्तिक पूर्णमासी के बाद से एकदम अलग तरीके से काम काज करने लगी। सूर्य उगने से पहले नहाने वाली दादी के नहाने खाने का समय ही बदल गया।एक टब में पानी भर कर रख देती जिससे दादी-दादा दोनों का स्नान हो जाता। पड़ोस के बच्चे किलोल करते हुए पूछते क्या दादी ! हर महीने आपलोग के नहाने का अंदाज बदल जाता है। कार्तिक में सूर्योदय पूर्व नदी -स्नान और अगहन में धूप में गर्म किये हुए जल- स्नान और पूस में एक, दो दिन बाद-स्नान।यह कौन-सा फार्मूला है स्नान करने का? जरा हमें भी बताइए।
        झुमनी दादी ने कहा-जैसी बहे बयार , पीठ तब तैसी कीजे।
कार्तिक में सुबह स्नान का महात्म्य सूर्य उपासना के कारण भी है और पर्व-त्योहार में शरीर की पवित्रता के कारण भी है। क्योंकि इस महीने पर्व-त्योहार भी ज्यादा होता है और उन दिनों ठंड भी कम रहती है। इसलिए सूर्योदय पूर्व स्नान कर लेती हूं।
 अगहन में ठंड बढ़ने के कारण गर्म जल से स्नान लाभकारी है। खासकर धूप में तप्त जल शरीर को निरोग रखता है।
 पूस में ठंड चरम सीमा पर होती है ।इसलिए शरीर को स्वस्थ रखने के लिए नित्य स्नान से परहेज़ भी आवश्यक है। स्नान का महत्व शरीर को स्वच्छ रखना तो है ही स्वस्थ रहना भी है।इतनी ठंड में हम नित्य स्नान करेंगे तो बीमार भी पड़ सकते हैं। इस लिए इस महीने में गर्म पानी में कपड़ा भिगो कर शरीर को पोछ लेती हूं। फिर धीरे-धीरे ठंड घटने पर नहाने की प्रक्रिया में अपने आप परिवर्तन आ जाता है।
       बच्चे दादी के शिक्षा प्रद बातों से प्रभावित हो सोंचने लगे। सचमुच हमें स्वच्छता के साथ-साथ स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना  चाहिए।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
     स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित

Friday, December 25, 2020

हे सुख करनी मां तुलसी



सदा विराजो आंगन मेंरे,
हे दुःख हरणी मां तुलसी।
मेरे घर का कष्ट हरो तुम,
कष्ट निवारिणी मां तुलसी।

रोज सवेरे जल अर्पित कर,
सांझ को दीपक दिखलाऊं।
रोज भजन और करुं आरती,
तेरी महिमा मैं गाऊं।
सुख-सौभाग्य अटल तुम रखना,
हे वरदायिनी मां तुलसी।
सदा विराजो................

जिस घर तेरा वास रहे मां,
उस घर से दुःख दूर रहे।
जिस घर में तेरी सेवा होता,
धन -दौलत भरपूर रहे।
कुल का गौरव सदा बढ़ाना,
हे सुख करनी मां तुलसी।
सदा विराजो..................

तेरे पत्ते के सेवन से मां,
बढ़ती है सबकी स्मृति।
तेरे मंजर को खाने से,
बांझन पाती संतति।
सर्वांग तुम्हारा महाऔषधि,
रोग विनासिनी मां तुलसी।
सदा विराजो................

तुमसे मेरा एक विनय है,
जग के सब संताप हरो।
रोगी के सब रोग हरो मां,
पापी के सब पाप हरो।
शीश झुका कर करूं मैं विनती,
हे प्रभु-प्यारी मां तुलसी।
सदा विराजो.................
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
            स्वरचित , मौलिक

Wednesday, December 23, 2020

हे किसान



धरा से प्यार है तुझको।
            बड़ी आलार है तुझको।
तू इसका पूत है प्यारा,
              बड़ी दुलार है तुझको।

खिलाते हो धरा को तुम।
           पिलाते हो धरा को तुम।
खिलाकर अन्न,पिला पानी,
          जिलाते हो धरा को तुम।

तेरे खाए हुए अन्न को,
         धरा इक दिन उगलती है।
वह तेरा सेर खाती है,
        तो कितने मन उगलती है।

तेरे लहू सम पसीने की,
             तुम्हें वह मोल देती है।
तेरे मेहनत और सेवा की,
         सिला दिल खोल देती है।

तुमपर शान है मुझको ,
       बड़ा अभिमान है मुझको।
तेरे श्रम पर हैं नतमस्तक,
         तुम पर आन है मुझको।

कृषि से प्यार है तुझको,
       मिला रोजगार है तुझको।
सुनो तुम मेरे अन्नदाता,
        नमन सौ बार है तुझको।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
       स्वरचित, मौलिक

Monday, December 21, 2020

मानवाधिकार का अर्थ



नित्य की भांति आज भी अनुपमा विद्यालय जाने के लिए पव्लिक बस में बैठी थी।आज विद्यालय में मानवाधिकार के अर्थ पर परिचर्चा थी। वह सोंच रही थी क्या बोलूंगी? तभी एक महिला अपने तीन बच्चों को साथ लिए बस में सवार हुई।कण्डकटर ने एक सीट पर उसे यह कहकर बैठने के लिए कहा कि कुछ ही देर में साथ वाली सीट खाली हो जाएगी फिर वहां बच्चों को बैठा लेना। वह एक बच्चे को गोद में लेकर और दो बच्चों को अपने आगे खड़ा कर बैठ गई। उसके साथ वाली सीट पर बैठे व्यक्ति को शायद बच्चे को खड़ा देख कर दया आ गई। उसने दोनों में से छोटे बच्चे को उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया।तभी वह व्यक्ति जो पहले महिला वाली सीट पर बैठा था आया और महिला से कहा- यह सीट छोड़ कर उठ जाओ यह मेरी सीट है।
महिला ने कहा -यह आपकी सीट कैसे हुई मैंने इस सीट का किराया दिया है और मुझे कण्डक्टर ने यहां बैठाया है।
तभी कण्डक्टर ने आकर कहा- हां यह सीट इन्हीं की है। ये पहले से यहां बैठे हुए थे।
लेकिन आपने तो कहा कि यह सीट खाली । महिला ने गुस्से से कहा।
हां कहा था पर जब ये उतरे तो इनका विचार हुआ कि ये अगले शहर तक जाएं। इसीलिए चले आए।पहले से बैठे थे तो सीट इन्हीं का न है।
महिला ने खीजते हुए उठकर कहा -ठीक है मेरे पैसे वापस करिए। मैं दूसरी बस से चली जाउंगी।
पैसे क्यो वापस करुं ? आप एक ओर खड़ी रहिए जब सीट खाली होगी बैठ जाइएगा। आपने बस का किराया दिया है तो बस में सफर करना आपका मानवाधिकार है। ये सीट पर पहले से बैठे थे तो वहां बैठना उनका मानवाधिकार है।कण्डकर ने उसे रोकते हुए कहा।
अचानक उस महिला के बगल वाली सीट पर बैठा पुरुष उठ खड़ा हुआ और बिफरते हुए कहा- क्या मानवाधिकार की बात करते हो। मानवाधिकार का अर्थ समझ में आता है तुम्हें?एक तो तुमने एक सीट खाली देकर दो सीटों के किराए ले लिए। दूसरे उतरे हुए यात्री को फिर से बैठाने के लिए इस महिला को उठा रहे हो।क्या यही मानवाधिकार है। ये भाई साहब जहां तक का किराया दिए थे बस वहीं तक बैठना उनका अधिकार था।
और मैं अपनी सीट को छोड़ रहा हूं क्योंकि तुमने इनसे इस सीट का किराया ले लिया है।अब इस सीट पर भी इन्हीं का अधिकार है।
आप क्यों परेशान हो रहे भैया!कण्डक्टर ने मनुहार करते हुए कहा।
उस व्यक्ति ने उसे सचेत करते हुए कहा- मानवाधिकार का अर्थ किसी मानव को छलना,ठगना और वेवकूफ बनाना और सिर्फ अपना अधिकार लेना ही नहीं होता।
'मानवाधिकार का अर्थ एक मानव द्वारा दूसरे मानव को उसके अधिकारों की जानकारी देना, उसके अधिकार की सुरक्षा देना, और उसके अधिकारों को सुनिश्चित कर उसके अधिकारों को उपलब्ध कराना भी है ।'
कण्डक्टर ग्लानि से सिर नीचे कर लिया ।
अौर अनुपमा को परिचर्चा के लिए मानवाधिकार का अर्थ समझ में आ गया।
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                  स्वरचित , मौलिक

Sunday, December 20, 2020

गज़ल



अपने मन में प्यार पालकर देखो।
एक नजर मुझपर डालकर दैखो।

माना, मैं कोई  हूर की परी ना हूँ,
अपने रूप को खंगालकर देखो।

बहकावे  में कतराओ ना  मुझसे,
दिल में मुझको संभालकर देखो।

मैं बुरी लगती हूँ महफिल में  तुझे,
दिल में मेरा अक्श डालकर देखो।

क्यूँ  इतराते हो खुद पर मीत मेरे,
मन में जरा यह सवाल कर देखो।

तुझसे मेरी बस यही गुजारिश है,
मेरे साथ खुद को ढाल कर देखो।

नजरिया बदल ले जरा नजरों की ,
'प्रिय' तुम  यह  कमाल कर देखो।

      सुजाता प्रिय'समृद्धि'
         स्वरचित मौलिक

Tuesday, December 15, 2020

सीता-हरण की पटकथा (रौद्र रस)



एक लड़की कागज कलम ले,
                  रास्ते में जा रही थी।
लिखने कागज पर कलम से,
                भूमिका बना रही थी।
लिखने मिला था वर्ग में, 
           सीता-हरण की पटकथा।
सोंच रही थी कैसे लिखुंगी,
                 नारी की अन्तर्व्यथा‌।
अनायास उसको एक लड़का,
                बाजुओं में भर लिया।
बंदूक दिखाकर उसको बोला,
             हमने तुझको हर लिया।
बोला- कि तुम न चीखना,
            चुप मेरे संग चलती रहो।
मार दूंगा जान से ,
              इंकार में कुछ ना कहो।
सिर झुका कर चल पड़ी वह                                     
             उसकी बताई राह पर। 
छोकरा तब मुस्कुराया,
            उसकी झुकी निगाह पर।
कुछ दूर जा वह मुक लड़की,
                   घूम कर पीछे मुड़ी।
नागिन सी फुफकार कर,
          उसपर अचानक टुट पड़ी।
प्रहार वह करने लगी,
                पकड़ मुट्ठी में कलम।
चेहरे को उसके गोदने,
                  लगी वह हो बेरहम।
पलट हमले से पराजित,
           लड़के ने खोया होश तब।
गिरा धरा पर बंदूक तो,
         ठंडा  पड़ा कुछ जोश अब।
खोल सैण्डल सिर पर उसके,
                  चोट वह करने लगी।
अपने हरने वाले का अब,
                  प्राण वह हरने लगी।
नाखुनों  से नोच डाले,
                      मनचले के चेहरे।
पीटने का प्रमाण देकर,
                   मुंह में लगाईं मुहरें।
कागज पर उसके लहु के,
                छींटें भी कुछ थे पड़े।
नारी के अपमान के,
         स्वाभिमान बनकर थे खड़े।
इस तरह उसने लिखे,
            सीता-हरण की पटकथा।
मन में कुछ संतोष पाया,
             मिट गयी मन की व्यथा।

               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                   स्वरचित, मौलिक

Sunday, December 13, 2020

गज़ल (देखकर मुस्कुराते गये)



        

देखकर  मुस्कुराते  गये।
मुझको दिल में बसाते गये।

तिरछी नजरों से देखकर,
मुझको थोड़ा लुभाते गये।

मुझको पाने की ले आरजू ,
दिल अपना लुटाते गये।

दिल की दीवानगी में मुझे,
अब तक भरमाते गये।

सुलगा प्यार की आग में,
तीर हमपर  चलाते गये।

चोट दिल पर पहले दिया,
फिर मरहम लगाते गये।

जख्म गहरा दिया है मुझे,
दे दवा फिर सुखाते गये।

संग-संग जीने की 'प्रिय',
कसमें भी हैं खाते गये।
       
 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
   स्वरचित, मौलिक

Wednesday, December 9, 2020

कलवरी(भारतीय नौसेना दिवस पर विशेष)


 
लंदन देखी, पेरिस देखी,और देखी जापान।
अमेरिका देखी, रसिया देखी,देखी पाकिस्तान।
घूम-घूम कर देखी हूं भाई,मैं सारा जहान।
सारे जग में कहीं न दिखती, कलवरी जैसी शान।

इसके जैसा कहीं न दिखती नौसेना में पनडुब्बी।
छुपकर तन्मयता से,हमले करना है इसकी खूबी।
भारत ने निर्माण किया खुद, इसका है अभिमान।
सारे जग में कहीं न .................

टाइगर शार्क सी शक्ति शाली, डीजल से चलनेवाली।
मझगांव में निर्मित, इलेक्ट्रिक अटैक करनेवाली।
भारत की रक्षा करने वाली,देश की है यह जान।
सारे जग में कहीं न..............

भारत मां की रक्षा करते हैं , इसमें बैठ सिपाही।
योगी बनकर साधना करते, दृढ़- संकल्प ये राही।
आठ दिसंबर ,नौसेना दिवस पर, रखें इसका मान।
सारे जग में कहीं न...............
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                स्वरचित, मौलिक

Tuesday, December 8, 2020

तुझपर है विश्वास हमें



आई है विपदा घोर,
       विवश यहां सब लोग खड़े।
दिशा-दिशा चहुं ओर,
          सब हैं अपने घर में पड़े।
बड़ा भयंकर रोग,
            छाया है दुनियां भर में।
यह कैसा संयोग,
            युक्ति नहीं कोई नर में।
सबके जीवन में आज,
            फैला है अंधकार घना।
बंद पड़े सब काज,
         आना-जाना सब है मना।
कटता नहीं है दिन,
          मास दस अब बीत गए।
पल-पल,छन-छन गिन,
    सब जन अब भयभीत भए।
होगी अपनी जीत,
            आज हैं हम हारे-हारे।
घर में रहें सब मीत,
         विमुख होंगे संकट सारे।
उबारो हमको आज,
      भगवन तुझपर आस हमें।
कहां छुपे महाराज,
          तुझपर है विश्वास हमें।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                स्वरचित, मौलिक

Sunday, December 6, 2020

संयुक्त परिवार



दादाजी खटिया बुन रहे हैं , नीम पेड़ के नीचे।
दादी माँ सहयोग में,रस्सियों को पकड़कर खींचे।

मंझली बूआ बैठ चरखे से , सूत कात रही है।
पाँव पर रख  फूफाजी की चिट्ठी बाँच रही है।

बड़ी दीदी कुएँ से खींचकर,पानी भरती जाती।
छोटी दीदी घड़े उठाकर,आँगन में है पहुँचाती।

सँबरी गैया आकर घड़े से, पी रही है पानी।
पिताजी जा रहे हैं देने , बैलों को गुड़धानी।

कुत्ते को देखो भूख लगी है,झाँक रहा है खपड़ी।
बछड़ा लिए आस खड़ा है,मिलेगी रोटी की पपड़ी।

अम्मा ने आकर खबर सुनाई,भोजन है तैयार।
चलें साथ बैठकर खालें, हिल-मिल पूरा परिवार।

गाँव में यह परिवार हमारा, सदा रहते खुशहाल।
सब मिल सब काम करते किसी को नहीं मलाल।

                सुजाता प्रिय,राँची
                  स्वरचित,मौलिक

Friday, December 4, 2020

लोकगीत (मगही भाषा में)



अगहन महीनमा में,अइलै सजनमा,
गवनमा लेके ना।घबराए मोर मनमा,
गवनमा लेके ना।................

छुटतै दलनमा औ छुटतै अंगनमा,
और छुटी जइतै ना, मोरा बाबा के भवनमा।
छुटी जैतै ना मोर....................

छुट जैतै गलियां,छुटतै फूल डलिया।
छुटी जैतै ना,बचपन के सहेलिया।
छुटी जैतै ना।....................

आरे-बारे कही के करैला जेवनमा,
देखाइ के चंदा ना, बहलाबे हला मनमा।
देखाइ के चंदा ना।..................

बेटिया जन्म बाबा बड़ी दुख भारी,
पराया धन ना,माने सारा भुवनमा।
पराया धन ना।..................

काहे लागी बेटिया के माने परायी,
बदल देहो ना,येहो जग के चलनमा।
बदल देहो ना।......................

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
            स्वरचित, मौलिक
              

Friday, November 27, 2020

गज़ल


अपने साथी का मुझको पता मिल गया।
ऐसा लगता है सारा जहां मिल गया।

हम बिछड़े थे एक - दूसरे से कभी,
आज इत्तफाक से वह यहां मिल गया।

जब हमसे हुआ वह यहां रुबरू,
लगा ऐसा कि हमसे सदा मिल गया।

मेरे दिल में दीया जल रहा प्यार का,
रोशनी के लिए इक मकां मिल गया।

वह रूठे न मुझसे, कभी उम्र - भर,
मनाने का  नया रास्ता मिल गया।

जुदा न रह पाएंगे हम उससे कभी, 
संग रहने का नया रास्ता मिल गया।

मैं मिली तो वह सोंचा कि धरती मिली,
'प्रिय' मुझको मिला आसमां मिल  गया।
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                    स्वरचित, मौलिक

Monday, November 23, 2020

भजन

मगही भाषा में लक्ष्मी माता के (भजन)

लक्ष्मी माय के आज मंदिलिया,
बड़ी लगै गुलजार हे।
सोना के मंदिलिया माय के,
रूपा के दुआर है।
लक्ष्मी माय के आज...........

मैया के अंग में लाल चुनरिया,
चोली चमकदार हे।
माथे माय के मुकुट विराजे,
कमलगट्टा के हार हे।
लक्ष्मी माय के आज..........

मैया बैठली सिंघासन चढ़ के,
करके सोलहो सिंगार हे।
भक्तन गाबे गीत-भजनियाँ,
करके जय - जयकार हे।
लक्ष्मी माय के आज...............

जे मैया के ध्यान लगाबे,
पाबे धन अपार हे।
जे मैया के शरण में आबे,
पाबे बड़ी दुलार हे।
लक्ष्मी माय के आज...............

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
       स्वरचित  ( मौलिक )

Thursday, November 19, 2020

छठ गीत



सूप लिए वर्ती , जल में खड़ी है।
छठ-पूजन की,शुभ-शुभ घड़ी है।

जोड़ा नारियल औ पान-सुपारी।
किशमिश- छुहारा और गड़ी है।

पुआ-पकवान,चावल की लड्डू,
संतरा- सेव से डलिया भरी है।

उगते सूर्य को सब- जन पूजे,
डूबते-सूरज की महिमा बड़ी है।

आओ सब मिल अर्ध्य चढ़ाओ,
सविता से वर,लेने की घड़ी है।

           सुजाता प्रिय समृद्धि
                स्वरचित मौलिक

Tuesday, November 10, 2020

दिवाली

शब्द सीढ़ी


स्वच्छता
          पर्व
             माटी
                कुम्हार
                       दीप

स्वच्छता का अभियान चलाएं,
          साफ करें हम घर आंगन।
साफ करें हम प्यारी धरती,
             साफ करें हम अंतर्मन।

आया पावन पर्व दीवाली,
          खुशियां लेकर जीवन में।
दिल में प्यार के फुटे पटाखे,
         उमंग भरा है तन-मन में ।

मिल्लत की माटी को गुंथकर,
            बना  खिलौने प्रीत के।
भेद-भाव को बिसरा कर हम,
             जश्न मनाएं  जीत के।

व्यवहार-कुशल कुम्हार बने हम,
           कर्म पथ पर बढ़ते जाएं।
निर्मल मन की चाक घुमाकर,
             प्रेम- पात्र गढ़ते जाएं।

समता का हम दीप बनाकर,
            रोशनी घर-घर फैलाएं।
माया के तेल,ममता की बाती से,
          जग प्रकाशित कर जाएं।

          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
             स्वरचित, मौलिक

Tuesday, November 3, 2020

तेरी चुनरी मां

तेरी चुनरी मां !
कि आय हाय, 
तेरी चुनरी मां!

तेरी चुनरी लाल मैया,
तेरे अंग में शोभे।
तेरी चोली हरी मैया,
उसके संग में शोभे।
चमक उसमें शोभे रे,
शोभे रे,शोभे।
लगा गोटा,
कि आय हाय
लगा गोटा मां!

तेरे मांग में सिंदूर 
और टीका शोभे।
तेरे माथे में मैया,
तेरी बिंदिया शोभे।
नासिका में शोभे रे,
शोभे रे,शोभे
तेरी नथिया, 
कि आय हाय 
तेरी नथिया मां।

तेरे दोनों कानों में,
तेरा झुमका शोभे।
तेरे दोनों हाथों में,
तेरा कंगना शोभे।
तेरे गले शोभे रे,
शोभे रे,शोभे
तेरी माला, 
कि आय हाय,
तेरी माला मां।


तेरे दोनों पांवों में,
तेरा पायल शोभे।
तेरे पायल की घुंघरू,
छमक छम-छम बोले।
संग उसके बोले रे,
बोले रे, बोले।
तेरी बिछिया,
कि आय हाय, 
तेरी बिछिया मां।
       सुजाता प्रिय'समृद्धि'
          स्वरचित, मौलिक मां !
कि आय हाय, 
तेरी चुनरी मां!

तेरी चुनरी लाल मैया,
तेरे अंग में शोभे।
तेरी चोली हरी मैया,
उसके संग में शोभे।
चमक उसमें शोभे रे,
शोभे रे,शोभे।
लगा गोटा,
कि आय हाय
लगा गोटा मां!

तेरे मांग में सिंदूर 
और टीका शोभे।
तेरे माथे में मैया,
तेरी बिंदिया शोभे।
नासिका में शोभे रे,
शोभे रे,शोभे
तेरी नथिया, 
कि आय हाय 
तेरी नथिया मां।

तेरे दोनों कानों में,
तेरा झुमका शोभे।
तेरे दोनों हाथों में,
तेरा कंगना शोभे।
तेरे गले शोभे रे,
शोभे रे,शोभे
तेरी माला, 
कि आय हाय,
तेरी माला मां।


तेरे दोनों पांवों में,
तेरा पायल शोभे।
तेरे पायल की घुंघरू,
छमक छम-छम बोले।
संग उसके बोले रे,
बोले रे, बोले।
तेरी बिछिया,
कि आय हाय, 
तेरी बिछिया मां।
       सुजाता प्रिय'समृद्धि'
          स्वरचित, मौलिक

Monday, October 26, 2020

नव इतिहास रचाएँगे

नव
भारत के
नव वृंद हम,
नई उमंग लाएँगे ।
नव
प्रभात की
नई किरण बन,
नव विश्वास जगाएँगे।
नव
युग में
नव जागृति की,
नई चेतना लाएँगे।
नव
वसंत में
नयी सभ्यता की,
नव कलियाँ बन मुस्काएँगे।
नव
जीवन की
नव प्रसून हम,
नयी रीति से खिलाएँगे।
नये -नये
अभियान
चलाकर हम
नयी स्वतंत्रता लाएँगे।
मानवता
की नई क्रांति कर,
नव इतिहास रचाएँगें।
नव
भारत के
नए गीत हम,
झूम-झूमकर गाएँगे।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित

Saturday, October 24, 2020

तेरा द्वार भवानी

छोटा सजा है तेरा द्वार भवानी।
भक्तों की नहीं है कतार भवानी।

ना ही बड़ा पंडाल सजा है।
ना ही बाजे - ढोल बजा है।
ना मेला है,ना बाजार भवानी।
भक्तों की नहीं कतार भवानी।
छोटा सजा है.......

कोरोना का डर सब में समाया।
जन- जन का है मन घबराया।
इससे तू सबको उबार भवानी।
भक्तों की नहीं है कतार भवानी।
छोटा सजा है..........

दूर-दूर सब लोग खड़े हैं।
अपने-अपने घर में पड़े हैं।
फीका हो गया त्योहार भवानी।
भक्तों की नहीं है कतार भवानी
छोटा सजा है...........

करते हम घर में आराधन।
तेरी पूजा का यही है साधन।
घर में ही करें जयकार भवानी
भक्तों की नहीं है कतार भवानी।
छोटा सजा है............

हे कष्ट हरणी  कष्ट मिटा दो।
दुनिया से यह संताप हटा दो।
सुन ले तू मेरी पुकार भवानी।
भक्तों की नहीं है कतार भवानी।
छोटा सजा है............
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
         स्वरचित, मौलिक

Thursday, October 22, 2020

बिगड़ी मेरी बना दे(माँ अम्बे गीत)

बिगड़ी मेरी बना दे। ओssss
माँ बिगड़ी मेरी बना दे।

जय माँ अम्बे, जय जगदम्बे,
जय जगजननी मैया।
तू ही मुझको पार उतारो,
भँवर बीच में नैया।
माँ अब तो पार लगा दे। ओssss
माँ बिगड़ी मेरी बना दे।

हे दुःख हरणी, संकट हरणी,
हे सुख करनी माता।
हे वरदायिनी,कष्टनिवारिणि,
बल-बुद्धि के दाता।
मन के संताप मिटा दे। ओssss
माँ बिगड़ी मेरी बना दे।

अष्टभुजा माँ, नव दुर्गा माँ,
हे काली, महाकाली।
जीवन के अँधकार मिटा दे।
हे माँ ज्योता वाली।
मैया तू राह दिखा दे। ओssss
माँ बिगड़ी मेरी बना दे।

मै तेरी दासी, दर्शन प्यासी,
सुख-अभिलाषी माता।
मुझको अपना दर्शन दे दो,
सुखकरनी, सुखदाता।
माँ मुझको दरश दिखा दे।ओsss
माँ बिगड़ी मेरी बना दिया
     
          सुजाता प्रिय'समृद्धि'
     स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

Monday, October 19, 2020

कोरोना काल का दर्द

हाल बड़ा बेहाल है।
हम गरीब फटेहाल हैं।

विपद पड़ी बड़ी भारी।
फैली है यह महामारी।

घर में रहना लाचारी है।
छा गई बेरोजगारी है।

अपने छोटे-से गाँव में।
बरगद पेड़ की छाँव में।

खेल रहे लूडो-ताश है।
मन हमारा उदास है।

बड़ी मुसीबत झेल रहे।
मन बहलाने  खेल रहे।

कब कोरोना जाएगा।
तब-तक हमें सताएगा।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
  स्वरचित ,मौलिक

Saturday, October 17, 2020

भाई रे सोंच - समझ कर चल

भाई रे! सोंच -समझ कर चल।
थोड़ा सम्हल-सम्हल कर चल।

यह मत सोंचो आकाश चढ़ूँ।
यह मत सोंचो पाताल गिरूँ।
अपनी धरती पर ही तू चल।भाई..

यह मत सोंचो चलूँ नहीं।
यह मत सोंचो रुकूँ कहीं।
जिस पथ पर कभी निकल।भाई..

अच्छी चाह को छोड़ो मत।
मुँह सत्पथ से मोड़ो मत।
अच्छे कर्म करो हर पल।भाई.....

लक्ष्य पंथ पर बढ़े चलो।
पर्वत पर भी चढ़े चलो।
अपने पथ पर रहो अटल।भाई....

वैसी आग न सेंको तुम।
वैसी धूप न देखो तुम।
जिसमें तन-मन जाए जल।भाई...

वस्तु पराई न छुओ तुम।
दुर्लभ बीज न बोओ तुम।
चाहे दिल जाए मचल।भाई......

जब मुख को खोलो तुम।
मीठी बोली बोलो तुम।
देखो पत्थर भी जाए पिघल।भाई.

कभी न आँखें करना नम।
काम सभी तू करना संवयं।
जीवन होगा शुद्ध-सरल।भाई.....

सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित (मौलिक)

Thursday, October 15, 2020

हाथों की सफाई ( लघु कथा )

विक्रम भोजन करने जा रहा था।
माँ ने पूछा- विक्की! तूने हाथ धोया ?
हाँ माँ! विक्रम ने अपने दोनों हाथ माँ को दिखाते हुए कहा।
माँ ने उसके हाथों का निरीक्षण किया और उसके साफ-सुथरे हाथों को देख चकित होती हुई बोली- वाह विक्की ! तुम्हारे हाथ तो बिलकुल साफ है।तुमने कब से अपने हाथों की सफाई करना शुरु किया।तुम तो हाथ धोने से कतराते थे।
विक्रम ने कहा- जब से कोरोना का प्रकोप छाया।अब तो हाथों की साफ और शुद्ध रखने के महत्व को सारी दुनिया समझ रही है और इसे अपनी दिनचर्या में शामिल कर रही है ।नहीँ तो वे हाथ धुलाई से अच्छा चम्मच से खाना ज्यादा पसंद करते थे।
इसके पहले हमारे संस्कार-शिक्षा के आचार्य जी ने कक्षा में शरीर के अंगों की सफाई के महत्व को समझाते हुए बताया था कि शरीर के सभी अंगों की सफाई यथोचित करना चाहिए।लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान हाथों की सफाई पर देना चाहिए। खाना खाने से पहले और खाना खाने के बाद हाथों की सफाई अवश्य करनी चाहिए।
जब मैंने पूछा- कि भोजन के पश्चात तो हमें इसलिए हाथ धोने चाहिए कि भोजन के अवशेष हमारे हाथों में लगे होते हैं ।किंतु भोजन के पूर्व हाथ धोने का क्या मतलब।उस समय तो हमारे हाथ साफ ही होते हैं।
तो आचार्य जी ने समझाते हुए कहा-हमें हाथ को देखकर ऐसा लगता है कि यह बिलकुल साफ है।किन्तु वह पूरी तरह से गंदा होता है।जाने कब-कब हम हाथों से क्या छूते हैं , हमें भी याद नहीं होता।हाथों से हम शरीर के सारे अंगों को छूते ,सहलाते, खुजलाते एवं धोते हैं।उस समय सारी गंदगी एवं कीटाणु हमारे हाथों में आ जाते हैं।अगर हम बिना हाथ धोए खाएँगे तो हाथों की सारी गंदगी एवं कीटाणु मुँह के द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश कर हमें अस्वस्थ्य बना देगा।
माँ ने खुश होते हुए कहा-बहुत ही अनुकरणीय शिक्षा दी तुम्हारे आचार्य जी ने।आज देखो न कोरोना से बचाव के लिए भी हाथ धोना आवश्यक है।
जब मेरे विक्की बेटा हाथ धोने के महत्व को समझ गया तो सारी दुनिया तो अवश्य इसके महत्व को समझेगी  और अपनाएगी  ही।
विक्की भोजन समाप्त कर पुनः हाथों की सफाई में लग गया।
     सुजाता प्रिय'समृद्धि'
     स्वरचित ( मौलिक)

Tuesday, October 6, 2020

माँ कुछ तो बोलो

उठो माँ उठो! कुछ तो बोलो।
क्यों चुप्पी साध पड़ी हो।
मुँह तो खोलो।

मैं जाता था सीमा- सुरक्षा के लिए,
तुम विजय तिलक लगाती थी।
जंग जीतकर आऊँ मैं,
ईश्वर से सदा मनाती थी।
माँ भारती की रक्षा करना,
मुझको सदा समझाती थी।
होठों पर मुस्कान ला,
आँसुओं को छिपाती थी।
आज रो रहा लाल तेरा माँ,
तुम भी थोड़ा रो लो।
क्यों चुप्पी साध पड़ी हो,
कुछ तो बोलो।

क्यों शांत पड़ी धरती पर ,
आँखें दोनो मींचे।
तुम्हें दिया मैं ऊँचा आसन,
क्यों सोई हो नीचे।
क्यों बेजान पडी हो आज,
मुट्ठियाँ दोनों भींचे ।
ना ही जागती ममता तेरी,
प्यार न तुझको खींचे।
क्यों नहीं देखती एक नजर,
एक बार आँखें खोलो।
क्यों चुप्पी साध पड़ी हो,
मुँह तो खोलो।

देखो माँ तुझसे मिलने को,
कितने लोग हैं आए।
बेटी-दामाद, नाती- पोते,
बहु-बेटे सब आए।
मायके से तेरे भाई-भतीजे,
सब मिलने आए।
लोग- परिवार,रिस्तेदार,
पास-पडो़स सब आए।
सभी रो रहे तुझे देखकर,
तुम भी नयन भिंगो लो ।
क्यों चुप्पी साध पड़ी हो,
मुँह तो खोलो।
       सुजाता प्रिय'समृद्धि'
       स्वरचित ( मौलिक )

Thursday, October 1, 2020

गाँधी के सपनों का भारत

मानवता की नई किरण बन घर-घर अलख जगाएँगे।
गाँधी के सपनों का भारत,मिलकर हम बसाएँगे।

नहीं कहेंगे भारत को इंडिया,
नहीं कहेंगे हिन्दुस्तान।
भरत नाम से भारत कहलाया,
ऱखेंगे हम इसका मान।
गाँधी के सपनों की खातिर,
यह अभियान चलाएँगे।
गाँधी के सपनों का..............

विदेशी कपड़े ना पहनेंगे,
गाँधी ने कहा था पहनों खादी।
आपस में मिल्लत-प्रेम बढ़ाओ,
जीवन रखो सीधी-सादी।
सत्य अहिंसा को अपनाकर,
जीवन सुखी बनाएँगेंं।
गाँधी के सपनों का............

देशी सामानों को अपनाएँ,
जला विदेशी माल की होली।
विदेशी भाषा को त्यागें हम,
बोलेंं सरल हिन्दी बोली।
विदेशी उत्पाद का बहिष्कार कर
देशी को अपनाएँगे।
गाँधी के सपनों का............

दीन-अनाथों की सेवा कर,
सत-पथ पर चलते जाएँ।
जात-पात का भरम मिटाकर,
हरिजनों को भी अपनाएँ
ऊँचे नीच और भेद-भाव को,
कभी न मन में लाएँगे।
गाँधी के सपनों का.........
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, September 30, 2020

साझा चुल्हा

आओ चुल्हा  साझा कर लें।
अपना-अपना भुंजा भुंज लें।

नौ अछिया यह चुल्हा हमारा।
नौ पतिला को  चढ़ा  करारा।

लकड़ी-गोइठा सब लेकर आए।
टोकरी भर भरकर अनाज लाए।

भूनने बैठी दीदी, बुआ -चाची।
दादी गीत गा कहानियाँ बाची।

चना,जौ और वह अरहर भूनी।
गेहूँ, मकई मूँग और मटर भूनी।

कूट - पीसकर हम सत्तु बनाएँ।
मकई चने की सोंधी रोटी खाएँ।

सोंधी- दाल बनाएँ अरहर की।
दलिया मकई औ मूँग-मटर की।

हिल-मिल भूने,मिलजुल खाएँ।
एकता का  हम संदेश सुनाएँ।

     सुजाता प्रिय'समृद्धि'
      स्वरचित ( मौलिक)

Wednesday, September 23, 2020

राष्ट्र कवि दिनकर

राष्ट्र कवि दिनकर के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।
विश्व कवि दिनकर के,
जयंती पर आज वंदन मेरा।

बिहार के पूत, भारत के सपूत।
काव्य की विद्या जिनमें अकूत।
कविवर वीर रस के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।
राष्ट्र कवि दिनकर के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।

मनरूप माता,रवि सिंह पिता।
सिमरिया गाँव के कृषक बेटा।
नाम किए जग भर में,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।
राष्ट्र कवि दिनकर के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।

राष्ट्रीय भाषा हिन्दी के नभ पर।
उदयमान हुए बनकर दिनकर।
ओजपूर्ण हुंकार भर के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।
राष्ट्र कवि दिनकर के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।

रश्मिरथी,कुरुक्षेत्र,उर्वशी लिखे।
संस्कृति के चार अध्याय लिखे।
धरोहर भारत के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।
राष्ट्र कवि दिनकर के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
        स्वरचित (मौलिक)

Tuesday, September 22, 2020

साक्षर जमाई

साक्षरता का अभियान चला,
           तो लगे सभी जन पढ़ने।
सीख-सीखकर अक्षर-अक्षर,
            जोड़-जोड़ शब्द गढ़ने।

एक नेता जी ने भी अपने,
              बेटे को खूब पढ़ाया।
क्या जाने उनके सुपुत्र ने,
               उनको मुर्ख बनाया।

रोज खा-पीकर विद्यालय को,
              निकलता बस्ते लेकर।
दिनभर मित्रों के घर जाकर,
             खेलता जूआ जमकर।

सातवीं की वार्षिक परीक्षा में,
                  लाया नम्बर जीरो।
घुड़की दे पास कराये नेता जी,
                 बन गया बेटा हीरो।

फिर निरक्षर गाँव में उन्होंने,
               बेटे की ब्याह रचाई।
सास- ससूर फूले न समाए,
              पाकर साक्षर जमाई।

एक बार जमाई राजा जी,
               पहुँचे जब ससुराल।
सासु-माँ चिट्ठी पढ़ने बोली,
                हुआ हाल, बेहाल।

आधे घंटे टकटकी लगाकर,
            पढ़ते रहे खोए-खोए।
सासु-माँ को देख बेचारे,
              दहाड़ मारकर रोए।

जमाई को रोता देख बेचारी,
              सास बड़ी घबराई।
चिट्ठी में कैसी बुरी खबर है,
              बताएँ मुझे जमाई।

रोते-रोते बड़ी देर में,
      जमाई राजा ने मुँह खोला।
'क' दुबला हो गया सासु-माँ,
      बिलख-बिलख वह बोला।

जब मैं लिखता था पट्टी पर,
            'क' दिखता था मोटा।
आज देखिए इस चिट्ठी में,
              'क' है दुबला-छोटा।

सास-ससूर ने सिर पीटा,
            पाकर जमाई साक्षर।
ऐसी साक्षरता से भला है,
                रहना हमें निरक्षर।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
         स्वरचित (मौलिक)

Saturday, September 19, 2020

अकेले खड़े हो ( गज़ल )

अकेले खड़े हो मुझे तुम बुला लो।
मायुस क्यों हो ,जरा मुस्कुरा लो।

रात है काली औरअँधेरा घना है,
तम दूर होगा तू दीपक जला लो।

भरोसा न तोड़ो, मंजिल  मिलेगी,
जो मन में बुने हो सपने सजा लो।

देखो तो कितनी है रंगीन दुनियाँ,
इन रंगों को अा मन में बसा लो।

रूठा न करना कभी भी किसी से,
रूठे हुए को जरा तुम मना लो।

पराये को अपना बनाना  कला है,
अपनों को अपने दिल में बसालो।

बुराई किसी की तू, मन में लाओ,
अच्छाईयों कोभी अपना बना लो।

प्यार सिखाता जो,वह गीत गाओ,
झंकार करता ,  गजल गुनगुनाओ।
           सुजाता प्रिय
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

Friday, September 18, 2020

दर्द देकर हँसाया गया ( गज़ल )

हर जगह मुझको ही आजमाया गया।
दर्द दे - देकर है सदा ही हँसाया गया।

सोंचती रही कि है ईश्वर की यही मर्जी,
जितना सहती गई उतना सताया गया।

वश तो गैरों पर कभी भी चलता है नहीं,
सदा अपनों के द्वारा मुझे रुलाया गया।

दिखाऊँ किसे दिल पर पड़े फफोलों को,
धीमी आँच पर जिसको है जलाया गया।

अश्क आँखों से छलक जाए ना कहीं,
मीठे शब्दों से दिल को बहलाया गया।

उफ न कह दे होंठ कहीं गैरों के निकट,
मरहम मधुर वाणियों का लगाया गया।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
        मौलिक ( स्वरचित )

Thursday, September 17, 2020

आखों देखी

आदिशिल्पी भगवान विश्वकर्मा का पूजन का मुहूर्त आज प्रातः१०:१९ बजे से था।पूर्व की तरह हर स्थान पर  पूजन पूरे हर्ष के साथ मनाया गया लेकिन उल्लास का सर्वत्र आभाव दिखाई दिया।अधिकांश जगहों पर बड़ी-बड़ी प्रतिमा के स्थान पर छोटी मूर्ति अथवा चित्र स्थापित कर पूरी सादगी से पूजा किया गया। एहतियात के तौर पर कम भीड़ एवं आपसी दूरी बनी रही। महाभोग वितरण नहीं होने की सूचना के साथ थोड़े- से मुंगफली इलाइची दाने के प्रसाद बाँटे गए। मेले के तौर पर कहीं-कहीं गुब्बारे खिलौने बाले सड़कों पर घूमते नजर आये।अधिकांश घरों में बच्चे सज- सँवरकर पूजा में जाने की जिद्द करते और अभिभावक अपने बच्चों को जाने से रोकते हुए पाये गए।
कोरोना के कारण पूजा का स्वरूप पूरा बदला-बदला नजर आया।कल खारखानों में भी पूजा की मात्र रस्म अदायगी की गई।वाहनों के परिचालन बंद रहनें से वाहनों की भीड़ सड़क पर ना होकर मैदानों एवं घरों के आगे ज्यादा दिखी।फल वाले  ठेले पर फलों को सजाकर मक्खियाँ मारते नजर आए।मिठाइयों की दुकानों पर पसरे सन्नाटें को मक्खियों ने अपनी भिनभिनाहट से तोड़ा।बची-खुची खबरें अगले समाचार में।
                'अभी तक 'राँची से
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, September 15, 2020

आजा मेरे बालमा

जीया बेकरार है,छाई बहार है,
आजा मेरे बालमा,तेरा ईतजार है।

आज है पहली तारिख बालम,
जल्दी से घर आ जाओ।
महीने भर का पगार अपनी,
हाथ मेरे तुम थमाओ ।
आज मंगलवार है,जाना बाजार है,
आजा मेरे बालमा,तेरा इंतजार है।

चल कर मेरा झुमका ले दो,
अँगूठी पायल भी ले दो।
जरी-बुटिक की सारी ले दो,
मखमल की चोली ले दो।
तुझको मुझसे प्यार है।
तो लेना मेरा हार है।
आजा मेरे बालमा..........

नमक नहीं है, तेल नहीं है,
और न आटे -  दाल है।
सब्जियों की टोकरी खाली,
मसाले का भी यही हाल है।
हम पर सारा भार है,खाने वाले चार हैं।
आजा मेरे बालमा ,तेरा इंतजार है।
       सुजाता प्रिय'समृद्धि'
   स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

Saturday, September 12, 2020

अकेले आना अकेले जाना

यह दुनिया है एक विशाल भँवर।
जी रहे हैं हमसब उसमें फँसकर।

लाख भरें हैं  हमसब  में सद्गुण।
हर कला में चाहे हम  हैं निपुण।

कर दिखाते हैं बड़े-बड़े करतब।
देखते हमें अचंभित होकर सब।

खुद को दुनिया में सावित करते।
अपनी विशिष्ठता का  दम भरते।

यह भूल है हमारे अन्तर्मन  की।
संकुचित भावना है जीवन  की।

अकेले आना और अकेले जाना।
पाई भर  न साथ में है ले जाना।

मिला है  जीवन हमें अनमोल।
बनाकर रखें सबसे मेल-जोल।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
     स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday, September 10, 2020

एकरूपता और अखण्डता का रूप हिन्दी

देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी भाषा की जननी संस्कृत भाषा है।या यूँ कहें हिन्दी  संस्कृत भाषा का ही सरल रूप है।यह एक वैज्ञानिक भाषा है।इस भाषा में कोई उच्चारण दोष नहीं है।इस भाषा को लिखने में स्वरों के मेल के लिए अक्षर नहीं अपितु मात्राओं को उपयोग में लाया जाता है।संस्कृत हर भाषा की जननी है तो हिन्दी सभी भाषाओं का प्रतिनिधित्व करती है।यह सहजता से समझी और सीखी जाने वाली सरल भाषा है।इसके हर अक्षर और अक्षरों के योग से निर्मित शब्दों में जो माधुर्य है वह किसी अन्य भाषा में नहीं। सच माने तो हिन्दी हमें एकाग्रता के साथ-साथ एकरूपता अखण्डता  का भी पाठ पढ़ाती है। हिन्दी भारत की हर क्षेत्रिय भाषी लोगों को सहजता से समझ आती है।
यही कारण है कि हिन्दी भाषा को हमारे देश की राष्ट्रीय भाषा का गौरव प्राप्त है।
भारत के हिन्दी साहित्यकारगण हिन्दी भाषा को लोकप्रिय बनाते हुए 'समृद्धि' की ओर ले जाने का अथक प्रयास कर रहे हैं। इस भाषा में साहित्यारों 'द्वारा लिखे गए  लेख, निबंध, नाटक, कहानी, कविता, उपन्यास इत्यादि काफी सुंदर, सार्थक और आकर्षक होते हैं।
इस भाषा को विस्तार देने एवं समृद्ध बनाने में हमारे देश के फिल्म- जगत का योगदान भी सराहनीय है ।जो बड़े-बड़े फिल्म -उद्योग चलाकर देश-विदेश में हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार करने का प्रयास कर रहे हैं ।विदेशों में लोग भी बड़ी तन्मयता से  हिन्दी फिल्म देखते और पसंंद करते हैं।एक दिन ऐसा भी आएगा जब देश-विदेश में बोली जाने वाली हमारी हिन्दी।इस प्रकार हिन्दी भाषा जल्द ही अखण्ड भारत का निर्माण कर  सम्पूर्ण जगत में अपना अलग पहचान बनाकर रहेगी।
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
         मौलिक रचना