Thursday, December 31, 2020
नये साल का नया संकल्प (लघुकथा)
Wednesday, December 30, 2020
आशीष २०२० का
जैसी बहे बयार ( लघुकथा )
Friday, December 25, 2020
हे सुख करनी मां तुलसी
Wednesday, December 23, 2020
हे किसान
Monday, December 21, 2020
मानवाधिकार का अर्थ
Sunday, December 20, 2020
गज़ल
Tuesday, December 15, 2020
सीता-हरण की पटकथा (रौद्र रस)
Sunday, December 13, 2020
गज़ल (देखकर मुस्कुराते गये)
Wednesday, December 9, 2020
कलवरी(भारतीय नौसेना दिवस पर विशेष)
Tuesday, December 8, 2020
तुझपर है विश्वास हमें
Sunday, December 6, 2020
संयुक्त परिवार
Friday, December 4, 2020
लोकगीत (मगही भाषा में)
Friday, November 27, 2020
गज़ल
Monday, November 23, 2020
भजन
Thursday, November 19, 2020
छठ गीत
Tuesday, November 10, 2020
दिवाली
Tuesday, November 3, 2020
तेरी चुनरी मां
Monday, October 26, 2020
नव इतिहास रचाएँगे
नव
भारत के
नव वृंद हम,
नई उमंग लाएँगे ।
नव
प्रभात की
नई किरण बन,
नव विश्वास जगाएँगे।
नव
युग में
नव जागृति की,
नई चेतना लाएँगे।
नव
वसंत में
नयी सभ्यता की,
नव कलियाँ बन मुस्काएँगे।
नव
जीवन की
नव प्रसून हम,
नयी रीति से खिलाएँगे।
नये -नये
अभियान
चलाकर हम
नयी स्वतंत्रता लाएँगे।
मानवता
की नई क्रांति कर,
नव इतिहास रचाएँगें।
नव
भारत के
नए गीत हम,
झूम-झूमकर गाएँगे।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित
Saturday, October 24, 2020
तेरा द्वार भवानी
छोटा सजा है तेरा द्वार भवानी।
भक्तों की नहीं है कतार भवानी।
ना ही बड़ा पंडाल सजा है।
ना ही बाजे - ढोल बजा है।
ना मेला है,ना बाजार भवानी।
भक्तों की नहीं कतार भवानी।
छोटा सजा है.......
कोरोना का डर सब में समाया।
जन- जन का है मन घबराया।
इससे तू सबको उबार भवानी।
भक्तों की नहीं है कतार भवानी।
छोटा सजा है..........
दूर-दूर सब लोग खड़े हैं।
अपने-अपने घर में पड़े हैं।
फीका हो गया त्योहार भवानी।
भक्तों की नहीं है कतार भवानी
छोटा सजा है...........
करते हम घर में आराधन।
तेरी पूजा का यही है साधन।
घर में ही करें जयकार भवानी
भक्तों की नहीं है कतार भवानी।
छोटा सजा है............
हे कष्ट हरणी कष्ट मिटा दो।
दुनिया से यह संताप हटा दो।
सुन ले तू मेरी पुकार भवानी।
भक्तों की नहीं है कतार भवानी।
छोटा सजा है............
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
Thursday, October 22, 2020
बिगड़ी मेरी बना दे(माँ अम्बे गीत)
बिगड़ी मेरी बना दे। ओssss
माँ बिगड़ी मेरी बना दे।
जय माँ अम्बे, जय जगदम्बे,
जय जगजननी मैया।
तू ही मुझको पार उतारो,
भँवर बीच में नैया।
माँ अब तो पार लगा दे। ओssss
माँ बिगड़ी मेरी बना दे।
हे दुःख हरणी, संकट हरणी,
हे सुख करनी माता।
हे वरदायिनी,कष्टनिवारिणि,
बल-बुद्धि के दाता।
मन के संताप मिटा दे। ओssss
माँ बिगड़ी मेरी बना दे।
अष्टभुजा माँ, नव दुर्गा माँ,
हे काली, महाकाली।
जीवन के अँधकार मिटा दे।
हे माँ ज्योता वाली।
मैया तू राह दिखा दे। ओssss
माँ बिगड़ी मेरी बना दे।
मै तेरी दासी, दर्शन प्यासी,
सुख-अभिलाषी माता।
मुझको अपना दर्शन दे दो,
सुखकरनी, सुखदाता।
माँ मुझको दरश दिखा दे।ओsss
माँ बिगड़ी मेरी बना दिया
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
Monday, October 19, 2020
कोरोना काल का दर्द
हाल बड़ा बेहाल है।
हम गरीब फटेहाल हैं।
विपद पड़ी बड़ी भारी।
फैली है यह महामारी।
घर में रहना लाचारी है।
छा गई बेरोजगारी है।
अपने छोटे-से गाँव में।
बरगद पेड़ की छाँव में।
खेल रहे लूडो-ताश है।
मन हमारा उदास है।
बड़ी मुसीबत झेल रहे।
मन बहलाने खेल रहे।
कब कोरोना जाएगा।
तब-तक हमें सताएगा।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित ,मौलिक
Saturday, October 17, 2020
भाई रे सोंच - समझ कर चल
भाई रे! सोंच -समझ कर चल।
थोड़ा सम्हल-सम्हल कर चल।
यह मत सोंचो आकाश चढ़ूँ।
यह मत सोंचो पाताल गिरूँ।
अपनी धरती पर ही तू चल।भाई..
यह मत सोंचो चलूँ नहीं।
यह मत सोंचो रुकूँ कहीं।
जिस पथ पर कभी निकल।भाई..
अच्छी चाह को छोड़ो मत।
मुँह सत्पथ से मोड़ो मत।
अच्छे कर्म करो हर पल।भाई.....
लक्ष्य पंथ पर बढ़े चलो।
पर्वत पर भी चढ़े चलो।
अपने पथ पर रहो अटल।भाई....
वैसी आग न सेंको तुम।
वैसी धूप न देखो तुम।
जिसमें तन-मन जाए जल।भाई...
वस्तु पराई न छुओ तुम।
दुर्लभ बीज न बोओ तुम।
चाहे दिल जाए मचल।भाई......
जब मुख को खोलो तुम।
मीठी बोली बोलो तुम।
देखो पत्थर भी जाए पिघल।भाई.
कभी न आँखें करना नम।
काम सभी तू करना संवयं।
जीवन होगा शुद्ध-सरल।भाई.....
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित (मौलिक)
Thursday, October 15, 2020
हाथों की सफाई ( लघु कथा )
विक्रम भोजन करने जा रहा था।
माँ ने पूछा- विक्की! तूने हाथ धोया ?
हाँ माँ! विक्रम ने अपने दोनों हाथ माँ को दिखाते हुए कहा।
माँ ने उसके हाथों का निरीक्षण किया और उसके साफ-सुथरे हाथों को देख चकित होती हुई बोली- वाह विक्की ! तुम्हारे हाथ तो बिलकुल साफ है।तुमने कब से अपने हाथों की सफाई करना शुरु किया।तुम तो हाथ धोने से कतराते थे।
विक्रम ने कहा- जब से कोरोना का प्रकोप छाया।अब तो हाथों की साफ और शुद्ध रखने के महत्व को सारी दुनिया समझ रही है और इसे अपनी दिनचर्या में शामिल कर रही है ।नहीँ तो वे हाथ धुलाई से अच्छा चम्मच से खाना ज्यादा पसंद करते थे।
इसके पहले हमारे संस्कार-शिक्षा के आचार्य जी ने कक्षा में शरीर के अंगों की सफाई के महत्व को समझाते हुए बताया था कि शरीर के सभी अंगों की सफाई यथोचित करना चाहिए।लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान हाथों की सफाई पर देना चाहिए। खाना खाने से पहले और खाना खाने के बाद हाथों की सफाई अवश्य करनी चाहिए।
जब मैंने पूछा- कि भोजन के पश्चात तो हमें इसलिए हाथ धोने चाहिए कि भोजन के अवशेष हमारे हाथों में लगे होते हैं ।किंतु भोजन के पूर्व हाथ धोने का क्या मतलब।उस समय तो हमारे हाथ साफ ही होते हैं।
तो आचार्य जी ने समझाते हुए कहा-हमें हाथ को देखकर ऐसा लगता है कि यह बिलकुल साफ है।किन्तु वह पूरी तरह से गंदा होता है।जाने कब-कब हम हाथों से क्या छूते हैं , हमें भी याद नहीं होता।हाथों से हम शरीर के सारे अंगों को छूते ,सहलाते, खुजलाते एवं धोते हैं।उस समय सारी गंदगी एवं कीटाणु हमारे हाथों में आ जाते हैं।अगर हम बिना हाथ धोए खाएँगे तो हाथों की सारी गंदगी एवं कीटाणु मुँह के द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश कर हमें अस्वस्थ्य बना देगा।
माँ ने खुश होते हुए कहा-बहुत ही अनुकरणीय शिक्षा दी तुम्हारे आचार्य जी ने।आज देखो न कोरोना से बचाव के लिए भी हाथ धोना आवश्यक है।
जब मेरे विक्की बेटा हाथ धोने के महत्व को समझ गया तो सारी दुनिया तो अवश्य इसके महत्व को समझेगी और अपनाएगी ही।
विक्की भोजन समाप्त कर पुनः हाथों की सफाई में लग गया।
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित ( मौलिक)
Tuesday, October 6, 2020
माँ कुछ तो बोलो
उठो माँ उठो! कुछ तो बोलो।
क्यों चुप्पी साध पड़ी हो।
मुँह तो खोलो।
मैं जाता था सीमा- सुरक्षा के लिए,
तुम विजय तिलक लगाती थी।
जंग जीतकर आऊँ मैं,
ईश्वर से सदा मनाती थी।
माँ भारती की रक्षा करना,
मुझको सदा समझाती थी।
होठों पर मुस्कान ला,
आँसुओं को छिपाती थी।
आज रो रहा लाल तेरा माँ,
तुम भी थोड़ा रो लो।
क्यों चुप्पी साध पड़ी हो,
कुछ तो बोलो।
क्यों शांत पड़ी धरती पर ,
आँखें दोनो मींचे।
तुम्हें दिया मैं ऊँचा आसन,
क्यों सोई हो नीचे।
क्यों बेजान पडी हो आज,
मुट्ठियाँ दोनों भींचे ।
ना ही जागती ममता तेरी,
प्यार न तुझको खींचे।
क्यों नहीं देखती एक नजर,
एक बार आँखें खोलो।
क्यों चुप्पी साध पड़ी हो,
मुँह तो खोलो।
देखो माँ तुझसे मिलने को,
कितने लोग हैं आए।
बेटी-दामाद, नाती- पोते,
बहु-बेटे सब आए।
मायके से तेरे भाई-भतीजे,
सब मिलने आए।
लोग- परिवार,रिस्तेदार,
पास-पडो़स सब आए।
सभी रो रहे तुझे देखकर,
तुम भी नयन भिंगो लो ।
क्यों चुप्पी साध पड़ी हो,
मुँह तो खोलो।
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित ( मौलिक )
Thursday, October 1, 2020
गाँधी के सपनों का भारत
मानवता की नई किरण बन घर-घर अलख जगाएँगे।
गाँधी के सपनों का भारत,मिलकर हम बसाएँगे।
नहीं कहेंगे भारत को इंडिया,
नहीं कहेंगे हिन्दुस्तान।
भरत नाम से भारत कहलाया,
ऱखेंगे हम इसका मान।
गाँधी के सपनों की खातिर,
यह अभियान चलाएँगे।
गाँधी के सपनों का..............
विदेशी कपड़े ना पहनेंगे,
गाँधी ने कहा था पहनों खादी।
आपस में मिल्लत-प्रेम बढ़ाओ,
जीवन रखो सीधी-सादी।
सत्य अहिंसा को अपनाकर,
जीवन सुखी बनाएँगेंं।
गाँधी के सपनों का............
देशी सामानों को अपनाएँ,
जला विदेशी माल की होली।
विदेशी भाषा को त्यागें हम,
बोलेंं सरल हिन्दी बोली।
विदेशी उत्पाद का बहिष्कार कर
देशी को अपनाएँगे।
गाँधी के सपनों का............
दीन-अनाथों की सेवा कर,
सत-पथ पर चलते जाएँ।
जात-पात का भरम मिटाकर,
हरिजनों को भी अपनाएँ
ऊँचे नीच और भेद-भाव को,
कभी न मन में लाएँगे।
गाँधी के सपनों का.........
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Wednesday, September 30, 2020
साझा चुल्हा
आओ चुल्हा साझा कर लें।
अपना-अपना भुंजा भुंज लें।
नौ अछिया यह चुल्हा हमारा।
नौ पतिला को चढ़ा करारा।
लकड़ी-गोइठा सब लेकर आए।
टोकरी भर भरकर अनाज लाए।
भूनने बैठी दीदी, बुआ -चाची।
दादी गीत गा कहानियाँ बाची।
चना,जौ और वह अरहर भूनी।
गेहूँ, मकई मूँग और मटर भूनी।
कूट - पीसकर हम सत्तु बनाएँ।
मकई चने की सोंधी रोटी खाएँ।
सोंधी- दाल बनाएँ अरहर की।
दलिया मकई औ मूँग-मटर की।
हिल-मिल भूने,मिलजुल खाएँ।
एकता का हम संदेश सुनाएँ।
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित ( मौलिक)
Wednesday, September 23, 2020
राष्ट्र कवि दिनकर
राष्ट्र कवि दिनकर के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।
विश्व कवि दिनकर के,
जयंती पर आज वंदन मेरा।
बिहार के पूत, भारत के सपूत।
काव्य की विद्या जिनमें अकूत।
कविवर वीर रस के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।
राष्ट्र कवि दिनकर के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।
मनरूप माता,रवि सिंह पिता।
सिमरिया गाँव के कृषक बेटा।
नाम किए जग भर में,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।
राष्ट्र कवि दिनकर के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।
राष्ट्रीय भाषा हिन्दी के नभ पर।
उदयमान हुए बनकर दिनकर।
ओजपूर्ण हुंकार भर के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।
राष्ट्र कवि दिनकर के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।
रश्मिरथी,कुरुक्षेत्र,उर्वशी लिखे।
संस्कृति के चार अध्याय लिखे।
धरोहर भारत के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।
राष्ट्र कवि दिनकर के,
चरणों में शत-शत नमन मेरा।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित (मौलिक)
Tuesday, September 22, 2020
साक्षर जमाई
साक्षरता का अभियान चला,
तो लगे सभी जन पढ़ने।
सीख-सीखकर अक्षर-अक्षर,
जोड़-जोड़ शब्द गढ़ने।
एक नेता जी ने भी अपने,
बेटे को खूब पढ़ाया।
क्या जाने उनके सुपुत्र ने,
उनको मुर्ख बनाया।
रोज खा-पीकर विद्यालय को,
निकलता बस्ते लेकर।
दिनभर मित्रों के घर जाकर,
खेलता जूआ जमकर।
सातवीं की वार्षिक परीक्षा में,
लाया नम्बर जीरो।
घुड़की दे पास कराये नेता जी,
बन गया बेटा हीरो।
फिर निरक्षर गाँव में उन्होंने,
बेटे की ब्याह रचाई।
सास- ससूर फूले न समाए,
पाकर साक्षर जमाई।
एक बार जमाई राजा जी,
पहुँचे जब ससुराल।
सासु-माँ चिट्ठी पढ़ने बोली,
हुआ हाल, बेहाल।
आधे घंटे टकटकी लगाकर,
पढ़ते रहे खोए-खोए।
सासु-माँ को देख बेचारे,
दहाड़ मारकर रोए।
जमाई को रोता देख बेचारी,
सास बड़ी घबराई।
चिट्ठी में कैसी बुरी खबर है,
बताएँ मुझे जमाई।
रोते-रोते बड़ी देर में,
जमाई राजा ने मुँह खोला।
'क' दुबला हो गया सासु-माँ,
बिलख-बिलख वह बोला।
जब मैं लिखता था पट्टी पर,
'क' दिखता था मोटा।
आज देखिए इस चिट्ठी में,
'क' है दुबला-छोटा।
सास-ससूर ने सिर पीटा,
पाकर जमाई साक्षर।
ऐसी साक्षरता से भला है,
रहना हमें निरक्षर।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित (मौलिक)
Saturday, September 19, 2020
अकेले खड़े हो ( गज़ल )
अकेले खड़े हो मुझे तुम बुला लो।
मायुस क्यों हो ,जरा मुस्कुरा लो।
रात है काली औरअँधेरा घना है,
तम दूर होगा तू दीपक जला लो।
भरोसा न तोड़ो, मंजिल मिलेगी,
जो मन में बुने हो सपने सजा लो।
देखो तो कितनी है रंगीन दुनियाँ,
इन रंगों को अा मन में बसा लो।
रूठा न करना कभी भी किसी से,
रूठे हुए को जरा तुम मना लो।
पराये को अपना बनाना कला है,
अपनों को अपने दिल में बसालो।
बुराई किसी की तू, मन में लाओ,
अच्छाईयों कोभी अपना बना लो।
प्यार सिखाता जो,वह गीत गाओ,
झंकार करता , गजल गुनगुनाओ।
सुजाता प्रिय
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
Friday, September 18, 2020
दर्द देकर हँसाया गया ( गज़ल )
हर जगह मुझको ही आजमाया गया।
दर्द दे - देकर है सदा ही हँसाया गया।
सोंचती रही कि है ईश्वर की यही मर्जी,
जितना सहती गई उतना सताया गया।
वश तो गैरों पर कभी भी चलता है नहीं,
सदा अपनों के द्वारा मुझे रुलाया गया।
दिखाऊँ किसे दिल पर पड़े फफोलों को,
धीमी आँच पर जिसको है जलाया गया।
अश्क आँखों से छलक जाए ना कहीं,
मीठे शब्दों से दिल को बहलाया गया।
उफ न कह दे होंठ कहीं गैरों के निकट,
मरहम मधुर वाणियों का लगाया गया।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
मौलिक ( स्वरचित )
Thursday, September 17, 2020
आखों देखी
आदिशिल्पी भगवान विश्वकर्मा का पूजन का मुहूर्त आज प्रातः१०:१९ बजे से था।पूर्व की तरह हर स्थान पर पूजन पूरे हर्ष के साथ मनाया गया लेकिन उल्लास का सर्वत्र आभाव दिखाई दिया।अधिकांश जगहों पर बड़ी-बड़ी प्रतिमा के स्थान पर छोटी मूर्ति अथवा चित्र स्थापित कर पूरी सादगी से पूजा किया गया। एहतियात के तौर पर कम भीड़ एवं आपसी दूरी बनी रही। महाभोग वितरण नहीं होने की सूचना के साथ थोड़े- से मुंगफली इलाइची दाने के प्रसाद बाँटे गए। मेले के तौर पर कहीं-कहीं गुब्बारे खिलौने बाले सड़कों पर घूमते नजर आये।अधिकांश घरों में बच्चे सज- सँवरकर पूजा में जाने की जिद्द करते और अभिभावक अपने बच्चों को जाने से रोकते हुए पाये गए।
कोरोना के कारण पूजा का स्वरूप पूरा बदला-बदला नजर आया।कल खारखानों में भी पूजा की मात्र रस्म अदायगी की गई।वाहनों के परिचालन बंद रहनें से वाहनों की भीड़ सड़क पर ना होकर मैदानों एवं घरों के आगे ज्यादा दिखी।फल वाले ठेले पर फलों को सजाकर मक्खियाँ मारते नजर आए।मिठाइयों की दुकानों पर पसरे सन्नाटें को मक्खियों ने अपनी भिनभिनाहट से तोड़ा।बची-खुची खबरें अगले समाचार में।
'अभी तक 'राँची से
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Tuesday, September 15, 2020
आजा मेरे बालमा
जीया बेकरार है,छाई बहार है,
आजा मेरे बालमा,तेरा ईतजार है।
आज है पहली तारिख बालम,
जल्दी से घर आ जाओ।
महीने भर का पगार अपनी,
हाथ मेरे तुम थमाओ ।
आज मंगलवार है,जाना बाजार है,
आजा मेरे बालमा,तेरा इंतजार है।
चल कर मेरा झुमका ले दो,
अँगूठी पायल भी ले दो।
जरी-बुटिक की सारी ले दो,
मखमल की चोली ले दो।
तुझको मुझसे प्यार है।
तो लेना मेरा हार है।
आजा मेरे बालमा..........
नमक नहीं है, तेल नहीं है,
और न आटे - दाल है।
सब्जियों की टोकरी खाली,
मसाले का भी यही हाल है।
हम पर सारा भार है,खाने वाले चार हैं।
आजा मेरे बालमा ,तेरा इंतजार है।
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
Saturday, September 12, 2020
अकेले आना अकेले जाना
यह दुनिया है एक विशाल भँवर।
जी रहे हैं हमसब उसमें फँसकर।
लाख भरें हैं हमसब में सद्गुण।
हर कला में चाहे हम हैं निपुण।
कर दिखाते हैं बड़े-बड़े करतब।
देखते हमें अचंभित होकर सब।
खुद को दुनिया में सावित करते।
अपनी विशिष्ठता का दम भरते।
यह भूल है हमारे अन्तर्मन की।
संकुचित भावना है जीवन की।
अकेले आना और अकेले जाना।
पाई भर न साथ में है ले जाना।
मिला है जीवन हमें अनमोल।
बनाकर रखें सबसे मेल-जोल।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
Thursday, September 10, 2020
एकरूपता और अखण्डता का रूप हिन्दी
देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी भाषा की जननी संस्कृत भाषा है।या यूँ कहें हिन्दी संस्कृत भाषा का ही सरल रूप है।यह एक वैज्ञानिक भाषा है।इस भाषा में कोई उच्चारण दोष नहीं है।इस भाषा को लिखने में स्वरों के मेल के लिए अक्षर नहीं अपितु मात्राओं को उपयोग में लाया जाता है।संस्कृत हर भाषा की जननी है तो हिन्दी सभी भाषाओं का प्रतिनिधित्व करती है।यह सहजता से समझी और सीखी जाने वाली सरल भाषा है।इसके हर अक्षर और अक्षरों के योग से निर्मित शब्दों में जो माधुर्य है वह किसी अन्य भाषा में नहीं। सच माने तो हिन्दी हमें एकाग्रता के साथ-साथ एकरूपता अखण्डता का भी पाठ पढ़ाती है। हिन्दी भारत की हर क्षेत्रिय भाषी लोगों को सहजता से समझ आती है।
यही कारण है कि हिन्दी भाषा को हमारे देश की राष्ट्रीय भाषा का गौरव प्राप्त है।
भारत के हिन्दी साहित्यकारगण हिन्दी भाषा को लोकप्रिय बनाते हुए 'समृद्धि' की ओर ले जाने का अथक प्रयास कर रहे हैं। इस भाषा में साहित्यारों 'द्वारा लिखे गए लेख, निबंध, नाटक, कहानी, कविता, उपन्यास इत्यादि काफी सुंदर, सार्थक और आकर्षक होते हैं।
इस भाषा को विस्तार देने एवं समृद्ध बनाने में हमारे देश के फिल्म- जगत का योगदान भी सराहनीय है ।जो बड़े-बड़े फिल्म -उद्योग चलाकर देश-विदेश में हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार करने का प्रयास कर रहे हैं ।विदेशों में लोग भी बड़ी तन्मयता से हिन्दी फिल्म देखते और पसंंद करते हैं।एक दिन ऐसा भी आएगा जब देश-विदेश में बोली जाने वाली हमारी हिन्दी।इस प्रकार हिन्दी भाषा जल्द ही अखण्ड भारत का निर्माण कर सम्पूर्ण जगत में अपना अलग पहचान बनाकर रहेगी।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
मौलिक रचना