Tuesday, May 14, 2024

दोहे

उलटे पुलटे शब्द आधारित दौहे

*राम* नाम अनमोल है,जपो राम का नाम।
*मरा-मरा* भी बोलकर, डाकू पाया धाम।।

*राधा* रानी प्रेम से,जपती केशव नाम।
प्रेम *धारा* हृदय बहा,रटती प्रातः-शाम।।

काम करो ऐसा सुनो, दुनिया बोले *वाह*!
*हवा* तेरी ओर बहे, पूरी हो मन चाह।।

*दावा* मत कर नेह पर,रख मन में विश्वास।
*वादा* पूरा कर सभी,मत दो झूठी आस।।

*सदा* करें जो कर्म को,रख मन में विश्वास।
भला कर्म से भाग्य भी,हो जाता है *दास*।।

मीठी वाणी बोलकर,कर समाज पर *राज*।
*जरा* न तीखी बोलिए ,रूठे सकल समाज।।

अपने *दम* पर पाइए,जग भर में पहचान।
*मद* में चूर न रहें, दूजे पर कर शान।।

*जग* झूठा है भाईयों,सुनो झुकाकर माथ।
*गज* भर भी धरती वहांँ,जाएगी ना साथ ।।

मदिरा पीने में कभी,दिखलाओ मत *शान*।
*नशा* नाश का मूल है,मत कर इसका पान।।

*मय* के प्याले में भरा, दुनिया का सब रोग।
*यम* रहता पीछे खड़ा, बात मानिए लोग।।

झूठ कभी *मत* बोलना,सच का देना साथ।
सच सदा *तम* दूर करे, मिले सफलता हाथ।।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, May 13, 2024

जगदम्बे मैया का गीत (मगही भाषा)

जगदम्बे माता गीत (मगही भाषा)

सब सखियन मिली गेलियै बजरिया,
वहैं लैलियै शेरों वाली के चुनरिया 
वहैं से लैलियै.........

चम-चम गोटबा से सजल चुनरिया ,
रेशमी धगबा के लटकै फुदनियां
बहुत शोभे शेरों वाली के चुनरिया 

माँग सिंदूर शोभे,माथे टिकुलिया,
कनमा में झुम्मक,नाक नथुनियां
बहुत शोभे माँ के हाथ में मुनरिया।


गले में हरबा औ हाथ कंगनमा,
पउवां में आलता और शोभे बिछुआ,
बहुत शोभे मैहर वाली वाली के पैजनिया।

चुनरी ओढ़ मैया बैठली मड़फिया,
सब भक्तजन मिली करथी भजनिया,
बहुत दिहली माता रानी बरदनियां।
बहुत शोभे शेरों..........
 
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, May 9, 2024

तुलसी पूजा गीत

तुलसी गीत 
बोल जगदम्बा से लाड़ो सुहाग मांगे )

मेरे आंगन में शोभे श्याम तुलसी।
श्याम तुलसी,हरे राम तुलसी।

सोने सुराही में गंगा-जल भरके,
नित उठ पटाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की डलिया में बेली चमेली,
तोड़ -तोड़ चढ़ाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की थाली में दाख-छुहारा,
नित भोग लगाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की दीया, रेशम की बाती,
घृत डाल जलाऊँ मैं श्याम तुलसी ।

सोने की थाली कपूर की बाती,
नित आरती उतारूँ मैं श्याम तुलसी।

मेरे आँगन में शोभे......
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, May 7, 2024

हिंदी भाषा (दोहे)

हिंदी (दोहे)

हिन्दी भाषा है सरल ,सदा करें सम्मान।
हिंदी में सब बोलिए, रखिए इसका मान।।

हिंदी है यह देश की, अद्भुत है श्रृंगार।
इस भाषा के प्यार को, जान रहा संसार।।

हिन्दी से ही जन यहांँ,पाते हैं पहचान।
इस भाषा को बोलिए, मन में रखकर शान।।

इस भाषा-सी जगत में,मिले न भाषा एक।
चाहे इसको परख लो,जग में नजरें फेंक।।

जो जन बोले प्रेम से,इस भाषा में बोल।
बोली सुन मधुरिम लगे,जैसे मीठा घोल।।

हिन्दी में जो बाँचते,गीता-वेद-पुराण।
उसके सम संसार में, मिले न जीव महान।।

हिन्दी को बस जानिए, ईश्वर का उपहार।
इस भाषा को हर घड़ी, मिलता जाता प्यार।।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

पावन कर्म (कविता)

पावन कर्म
माता-पिता और गुरुजनों की,
                सेवा करना पावन कर्म।
श्रेष्ठ जनों का कहना मानो,
              यह भी होता पावन कर्म।

जिनको पथ का ज्ञान नहीं है,
            उनको पथ पर लाओ तुम।
भटके जन को राह दिखाना,
                भी होता है पावन कर्म।

जिसके सिर पर छत न छप्पर, 
                उसे छाया में ले आओ।
निराश्रितों को आश्रय देना 
                भी होता है पावन कर्म।

काँपते जन को कमली दो,
               और नंगे जन को धोती।
निर्वस्त्रों को वस्त्र पहनाना 
                भी होता है पावन कर्म।

चींटी को कुछ आटा दे दो,
                और चिड़िया को दाना,
भूखे जीवों को भोजन देना,
                भी होता है पावन कर्म।

जो दुःख पा अधीर हुए हों,
             उनको थोड़ा धीरज दे दो,
दुखियारों पर दया दिखाना 
                भी होता है पावन कर्म।

मक्कारी से दूर रहो तुम, 
             झूठ कभी मत अपनाओ,
सदा सत्य का साथ निभाना 
                भी होता है पावन कर्म।

हिल मिल खाओ,और खेलों, 
              भाई और संगी-साथी से।
मेल-मिलाप बढ़ाकर रखना 
                भी होता है पावन कर्म।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, May 1, 2024

दोहे (शब्द आधारित) गर्मी, धूप,लू, पसीना, पानी , घड़ा, पंखा)

दोहे (शब्द आधारित)
गर्मी,धूप,लू, पसीना, पानी, घड़ा पंखा

गर्मी -
भीषण गर्मी पड़ रही, व्याकुल हैं सब जीव।
गर्मी से राहत मिले, ढूंढ रहे तरकीब।।

धूप-
हवा चलती गरम बड़ी,धूप उगलती आग।
अति तपन से भूल गयी, कोकिल अपना राग।।

लू-
लू चलती है सन-सनन,जला रही है अंग।
ग्रीष्म ऋतु ने अपना, खूब दिखाया रंग।।

पसीना-
पसीना है टपक रहा, पोंछ रहे हैं लोग।
गर्मी से है बढ़ रहे,कई तरह के रोग।।

पानी-
पानी लगता आज है, सबको सुधा- समान।
पानी जीव के तन में,फूंक रहा है जान।

घड़ा-
घर-घर देखो शोभता, घड़ा-सुराही लाल।
सब जन ठंडा कर रहे, इसमें पानी डाल।। 

पंखा-
कमरे में कूलर चले, फिर भी पंखा हाथ।
गर्मी लगती तेज है,चकराता है माथ।।


सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, April 7, 2024

चैत्र नववर्ष (गीत )

चैत्र नववर्ष ( गीत)

नाचो-गाओ,खुशी मनाओ,नव वर्ष हमारा आया।
भारत के जन-जन में देखो,हर्ष नया है छाया।

चैत मास का प्रतिपदा को हमारा प्रारंभ होता वर्ष।
हिंदी वर्ष का प्रथम तिथि यह स्वीकार हमें सहर्ष।
हम हिंदू हैं,हिंदुस्तान पर सदा ही हमको माया।
भारत के जन-जन में देखो हर्ष नया है छाया।

देव महेश ब्रह्मा विष्णु देवी गौरी  शारदा सीता।
पूज्य ग्रंथ है महाभारत,रामायण और गीता।
हर वासी के हाथों में भगवा झंडा लहराया।
भारत के जन-जन में देखो हर्ष नया है छाया।

नित उठ हम सूर्य नमन कर प्रारंभ करते कार्य।
रात्रि में विश्राम से पहले चंद्र नमन अनिवार्य।
आसमान में सदा ही रहता हिंदी बादल छाया।
भारत के जन-जन में देखो हर्ष नया है छाया।

संकल्प हमारा हम करेंगे भारत का उत्थान।
सब मिलकर जय हो भारत का, गाएंँगे जयगान ।
सदा प्रफुल्लित हो देश हमारा कंचन-सी हो काया।
भारत के जन-जन में देखो हर्ष नया है छाया‌।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, March 21, 2024

सखी आओ खेलें होली

सखी आओ खेलें होली

सखी आओ खेलें हम होली,
आ कर लें खूब ठिठोली।
भरे खुशियों से हम झोली,
आ कर लें.........
भूल शिकबे-गिले,आ गले मिले,
हम बोलें प्यार की बोली,
आ कर लें खूब ठिठोली।
सखी......
तुझे रंग लगाएँ, गुलाल लगाएँ ,
बना मुखड़े पर तेरे रंगोली।
आ कर..
रंग प्यार के लगाएँ, रंग प्रीत लगाएँ।
अब रूठो नहीं हमजोली!
आ कर लें...............
तेरा लहंगा भिगाऊँ,तेरी चुनरी भिंगाऊँ,
भिंगाऊँ मैं तेरी चोली।
आ कर लें.......
संग-संग हम नाचें,संग-संग हम गाएँ,
बनाकर सखियों की टोली,
आ कर लें
सखी.........

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

कवि और कविता

कवि और कविता (मनहरण घनाक्षरी)

कविता लिखते कवि,
दिखती है प्यारी छवि,
चमकता जैसे रवि,
सुर-लय-छंद में।

पिरोते भावों के मोती,
दिखा साहित्य की ज्योति,
साहित्य के बीज बोती,
मुक्त स्वर- छंद में।

बनाते माला शब्दों के, 
लेखन प्यारे पदों के,
प्यारे औ न्यारे पद्यों के,
कुछ है स्वछंद में।

सजाते कागज की क्यारी,
लिखते कविता प्यारी,
सभी लेखों से न्यारी 
सरल वे बंध में 
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, March 16, 2024

बादल का इंसाफ

बादल का इंसाफ 

सूरज और पवन में भारी छिड़ी बहस एक बार।
दोनों स्वयं को ताकतवर कहते माने न कोई हार।
तब आसमान में बादल आया करने बीच-बचाव।
निज ताकत को सिद्ध कर लो बेकार दिखा न ताव।
सामने की पहाड़ी पर देखो बैठे हैं तपस्वी एक।
ठंडक से बचने की खातिर रखी है कंबल लपेट।
जो अपनी ताकत से उनका कंबल उतरवा देगा।
उसके सिर पर ताकतवर का मुकुट आज सजेगा।
पहले पवन ने अपनी ताकत की जोर लगायी।
साधु की कंबल उड़ाने के लिए अपनी गति बढ़ाई ।
पवन की गति बढ़ते ही तपस्वी ने हाथ बढ़ाया।
अपने तन पर कंबल को कसकर यूं लिपटाया। 
अब बारी सूरज की आई उसने अपनी ताप बढ़ाई
तपस्वी ने गर्मी से अकुल हो कंबल थोड़ी सरकाई।
फिर सूरज ने तीव्र गति से बढ़ा दी अपनी ताप।
तपस्वी को कंबल की गर्मी से हुआ अति संताप।
व्याकुल होकर झट उन्होंने अपना हाथ बढ़ाया।
अपने तन का कंबल को उन्होंने अलग हटाया।
अब तेज हवा के झोंके भी लग रही थी उनको प्यारी।
मोटा कंबल गर्मी के कारण लग रहा था भारी।
समझ न पाया पवन सूरज की यह योजना प्यारी।
सूरज अपनी जीत पर मंद-मंद मुस्काया। 
वह बादल के इंसाफ पर अपना शीश झुकाया।
पवन को अपनी ताकत का झूठा अहम समझ में आया।
अपने झूठे अहंकार पर वह मन-ही-मन पछताया।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Friday, March 15, 2024

गणपति वंदन (चौपाई छंद)

गणपति वंदन (चौपाई छंद)

जय देवों के देव गणेशा।
पूजे ब्रह्मा-विष्णु-महेशा।।
पार्वती के दुलारे नंदन।
हाथ जोड़ करती हूँ वंदन।।

माथ सिंदूर मुकुट विराजे।
पीत वसन अंगों में साजे।।
मेरे गृह में आप विराजे।
मन मंदिर घंटा घन बाजे।।

लाल कमल का पुष्प चढ़ाऊँ।
लड्डू -मोदक भोग लगाऊँ।।
एकदंत गजवदन विनायक।
दरस आपका है सुखदायक।।

भक्त आपसे है वर पाता।
बालक जन के विद्या दाता।।

करते आप  मूषक सवारी।
हाथी सूंड वदन है भारी।।
प्रथम देव घट-घट के वासी।
भक्त जनों के हरें उदासी।।

जय जय जय हे गणपति देवा।
करुँ आपकी बहु विधि सेवा।।
चरण आपके शीश नवाऊँ।
सौभाग्य का आशीष पाऊँ।।

Saturday, February 10, 2024

प्रथम देव का पूजन कर लो

प्रथम देव का पूजन कर लो

मन-मंदिर में स्थापित करो,
  उनको प्रथम देव के रूप में।
        सारी सृष्टि से भी बढ़कर,
          है स्नेह जिनके स्वरूप में।

नमन करो माता-पिता को,
   जिनके चरणों में चारों धाम।
       जुगल कर-कमलों को जोड़,
          प्रेम -भाव से कर लो प्रणाम।

चरण-रज का तिलक लगा लो,
    सादर- सप्रेम झुका लो शीश।
       अभिनंदन कर स्नेह आदर से,
         आ पा लो प्यार भरा आशीष।

माता-पिता से ही हैं हम पाये,
   सम्पूर्ण जगत में देख पहचान।
       माता पिता के कारण ही तो,
          मिलता सभी जगह सम्मान।

पाल-पोष कर माता पिता ने,
    हमको बनाया है तेजस्वान ।
       पढ़ा-लिखा कर आज हमको,
         बनाया है जगती में गुणवान।

वात्सल्य का अमृत पान करा,
    तन- मन हमारा तृप्त किया।
      सेवा,त्याग औ समर्पण कर,
        जीवन यह है  झंकृत किया।

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, January 23, 2024

राम जन्म

जनम लिए रघुराई,अवध में बजती  बधाई।
शुभ-दिन,शुभ-घड़ी आयी,अवध में.......
राम जी जनमें,लखनजी जनमे
भरत-शत्रुघ्न भाई।
अवध में...........
पिता दशरथ का मन है हर्षित,
पुलकित है तीनों माई।
अवध में बजती......
धन्य धन्य भाग्य है राजा दशरथ के।
जीवन है सुखदायी।
अवध में बजती..........
भारतवर्ष की पुण्यभूमि यह,
चहुँ दिशी खुशियाँ है छाई,
अवध में बजती.............
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, January 19, 2024

राम नाम भजन

राम नाम भजन

नाम जपो श्री राम का।
अयोध्या पावन धाम का।
दो आखर का मनका है यह,
बना प्रभु के नाम का।
नाम जपो श्रीराम का.........
पुण्य भूमि यह भारत की है,राम यहांँ अवतार लिये।
हर जीव का पालक बनकर,हर जीव से प्यार किये।
राम नाम न जपे अगर तो२,जीवन यह किस काम का।
नाम जपो श्रीराम का .........
नर रूप को धारण करके,भक्तों का उद्धार किये।
धनुष बाण चलाकर प्रभुजी,दुष्टों का संहार किये।
राम नाम का मनका गुथकर२,नाम जपो श्रीराम का।
नाम जपो श्रीराम का............
अपने दिनचर्या में भाई,राम नाम का पाठ करो।
रात शयन करने से पहले,राम नाम को याद करो।
राम नाम प्रभाती बन्धु२,राम भजन है शाम का।
नाम जपो श्रीराम का..........
राम को ही आदर्श बनाकर,जीवन का सब काज करो।
राम के जैसे पुरुषोत्तम बन, असहायों का कष्ट हरो।
राम बिना यह व्यर्थ तनु है२,बस अस्थि और चाम का।
नाम जपो श्रीराम का............
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, January 11, 2024

निर्मल मन (दोहा )

दोहा 

ईर्ष्या-द्वेष-क्रोध का,करते जाओ त्याग।
असंतोष व लालच का,सदा कर परित्याग।।

दुख का कारण यह सभी,मन से इसको छोड़।
अगर सामने यह दिखे,इससे मुखड़ा मोड़।।

निरोग काया हो जहाँ,सुंदर शील- स्वभाव।
सभी प्राणियों के लिए,मन में हो समभाव।।

बस वाणी की मधुरता,मन को लेती जीत।
मन को दे यह सुख सदा,आपस में हो प्रीत।

मानव मानवता सदा, करना अंगीकार।
माया कभी न त्यागना, रखना उच्च विचार।।

सबका करते जो भला,पाते सुख की छाँव।
बुराई करने जो कभी, कहीं न पाते ठांव।

तन को निरोग चाहते,मन को रखिए स्वस्थ।
तन तो होता है सदा, निर्मल मन से स्वस्थ।।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, January 10, 2024

नववर्ष (सवैया)



नववर्ष (सवैया छंद)

आगत का सब स्वागत ले कर,
         आज सभी खुश होकर भाई।
मान अभी अपने मन में सब,
           बीत गया अब ले अंगड़ाई।
वर्ष नवीन अभी फिर सुंदर,
           वर्ष यही अब हो सुखदायी।
ईश मना सब शीश झुकाकर,
           मांँग सभी मन से वर भाई।

मास बिता कर जो तुम बारह,
             आगत वर्ष रखें पग प्यारे।
कर्म करो सब नेक तभी यह,
               वर्ष हमार रहे सब न्यारे।
नेक करो जब काम सभी तब,
              साथ रहे सुर पांव पसारे।
कर्म सभी चित में रखते तब,
           ही खुश हैं भगवान हमारे।।
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, January 7, 2024

स्वीकार (लघुकथा)

स्वीकार (लघुकथा)

आने वाले शाम को सलाम..
जाने वाले शाम को सलाम..
    के धुन पर परिवार के सभी लोग झूम रहे थे।तभी बहू ने पेट पकड़ते हुए अपने कमरे की ओर कदम बढ़ाया।सभी के पांव थम गये।
बहू के चेहरे पर पीड़ा के भाव देख लक्ष्मी देवी को समझते देर नहीं लगी कि नववर्ष में परिवार के नये सदस्य का शुभागमन होने वाला है।समय पूर्ण हो चुका है। खुशी के मारे उसके कमरे की ओर चल पड़ी।हाल जान तुरंत एंबुलेंस बुलाने का आदेश दिया और नर्सिंग होम जाने की तैयारी करने लगी।
अस्पताल में बहू को जैसे ही प्रसुति-कक्ष में ले जाया गया, उन्होंने अपने हाथ जोड़त कर ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा -"अबकी बहू के गोद में बेटा दे दो,तो बड़ी कृपा होगी।
बहुत आस लगाए बैठी हूँ।पोती के साथ खेलने वाला एक भाई आ जाए यही कामना है।"
केशव जी ने आगे बढ़कर कहा-"पहले तुम बहू को सम्हालो राघव की माँ ! भगवान का भेजा हुआ जो आ रहा है उसे हृदय से स्वागत और स्वीकार करो।पोता-पोती सब बराबर है।हमारी पोती को भाई हो या बहन, उसके साथ खेलने वाला तो होगा ही।"
   उसी समय नवजात शिशु के रोने की आवाज सुनाई दी।नर्स ने आते हुए कहा -"आज एक जनवरी को एक बजकर एक मिनट में मुन्नी की बहन नन्हीं आई है।"
मुन्नी तो कुछ समझ नहीं पायी। परिवार के सभी लोग फिर से एक बार खुशी से झूम उठे।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, January 4, 2024

तमाचा (लघुकथा)

तमाचा (लघुकथा)

कार्यालय जाने के लिए जैसे ही रणधीर ने मेन रोड में अपनी बाइक घुमाई सामने से आती महिला ने पूछा-"यहाँ पर रंगोली होटल किधर है ?"
"यहाँ से थोड़ा आगे है।"कहते हुए वह बढ़ गया ।
लेकिन आगे बढ़ते ही वह रुक गया। पीछे मुड़कर देखा। महिला पैदल ही बढ़ी आ रही थी।निकट आते ही उसने महिला से कहा -चलिए मैडम! मैं आपको छोड़ दूंँगा,उधर ही जा रहा हूंँ।" 
 महिला खुश होती हुई बाइक की पिछली सीट पर बैठ गयी।
उस सुंदर महिला को अपने साथ बैठा देख रणधीर के मन का शैतान जाग उठा।वह बार-बार बाइक को झटके दे रहा था जिसके कारण महिला के अंग उसकी पीठ से स्पर्श करता और उसे क्षणिक सुख की अनुभूति होती।
कुछ ही मिनटों में तेज झटके के साथ बाइक रोकते हुए कहा -"लिजिए मैडम आप पहुंच गई रंगोली होटल।" लेकिन इस बार के झटके में उसे वह स्पर्श -सुख की प्राप्ति नहीं हुई क्योंकि महिला ने अपना पर्स उसके और अपने मध्य कर लिया था। महिला हौले-से बाइक से उतर गयी।उसने एक बार सुंदरी के मनोभावों को पढ़ने हेतु उसके सुंदर मुखड़े पर नजरें टिका दी। महिला चेहरे पर कृतज्ञता के भाव लिए भोलेपन से बोली-"बहुत-बहुत धन्यवाद भैया ! आपने मुझे पहुंचा दिया।आज आटो-स्ट्राइक होने से मुझे पैदल ही आना पड़ता,और मेरी ऑफिस की जरूरी मीटिंग में मैं लेट हो जाती।"
उसके चेहरे के निर्मल भाव एवं अपने लिए '
भाई' का संबोधन सुन वह अपनी कुत्सित मानसिकता और क्षुद्र व्यवहार पर पाश्चाताप से गड़ा जा रहा था। उससे नजरें चुराता हुआ बाइक आगे बढ़ा दी ।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'