Wednesday, November 20, 2024

सिया-राम-लखन स्वागत दीपोत्सव (मतगयंद सवैया)

सिया-राम-लखन स्वागत दीपोत्सव (सवैया) 

नाम जपो रघुनाथ भजो सब,तीर चला दस मस्तक छेदे।
काल कराल घमंड मिटाकर,जीत गए लंका गढ़ भेदे।।
पुष्पक बैठ उड़े रघुनंदन,रावण राज विभीषण को दे।
चौदह साल बिताकर वापस,आज पधारे रहे मन मोदे।।

भारत में खुशियाँ भर आबत,आज सभी मिल धूम मचाओ।
देख पधार रहे रघुबर अब,वैर हिया अब तो विसराओ।। 
देख सभी दुख दूर हुआ जन,आज सभी मिल मंगल गाओ। 
जो जन रूठ गये उनको अब,प्यार दिखाकर अंग लगाओ।। 

राम-लखन घर आकर बैठत, गीत बधाब बजे शहनाई।
ढोल बजाय सखा सब नाचत,देबत ताल घनाघन भाई।।
जीव सभी निरभीक भये अब, जीवन आज लगे सुखदाई।
धीर पधार रहा उर में अति,पीर सभी अब भाग-पराई।।

भूल गए सब भोजन-जेबन, भूल गए गृह कारज सारी।
रंग -बिरंग बधाब बजाबत,आज खुशी जग में अति भारी।
फूल बिछाकर राह सजाकर,राह बुहार रहे नर-नारी।
थाल सजाकर हाथ लिए सब,आरती थाल घुमात उतारी।।

दीप जला घर आँगन में सब,आज सभी खुश हो कर भाई। 
राम-सिया घर आज पधारे,नाचत-गाबत देत बधाई।। 
आज यहाँ सबका मन हर्षित,आज अमावस रात मिताई। 
धूम मची चहुँ ओर तभी अब,खाबत हैं सब साथ मिठाई।।
          जय सियाराम 
🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित मौलिक

Friday, November 15, 2024

एकता में बल

एकता में बल

एक दिन एक शिकारी आया। 
जंगल में वह जाल  बिछाया। 
उसके ऊपर वह दाने  डाला। 
छिपकर बैठा  बन रखवाला। 
                   कबूतरों का झुण्ड तब आया। 
                  दाने देखकर  सब ललचाया।
                   कबूतरों का  राजा तब बोला। 
                   बेकार तुम सबका मन डोला। 
जंगल में अन्न कहाँ से आया। 
यहाँ किसी का छल है छाया। 
पर कबूतरों ने  बात न मानी। 
दाना खाये सब  कर नादानी। 
                  बिछे  जाल में  वे फँस चुके थे। 
                  अपराध -भाव से सिर झुके थे। 
                  कपोत राज ने फिर मुंँह खोला। 
                 बड़े प्यार से उन सबको बोला। 
एक साथ  मिल  उड़ चलें हम। 
जाल को लेकर भाग चलें हम। 
मानकर कबूतर राजा की बात। 
पहुंँच गये मुषक दादा के पास। 
                  कपोत  राज ने  कहा- मूषक से। 
                  छुड़ा दो सबको  जाल कुतर के। 
                  मुषक कुतर कर जाल को काटा। 
                  उड़ गए कबूतर कर टाटा-टाटा । 
                        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

रितिका छंद

हे पथिक चलते चलो तुम, जिंदगी के रास्ते।
मन कभी विचलित न करना, छोड़ने के वास्ते।

माना पथ मुश्किल बहुत है,पर इसे मत छोड़ना।
मुश्किलों के मुकाबले को,मुख कभी मत मोड़ना।

राह में कण्टक अगर है,रौंद कर बढ़ते चलो।
हौसला रखकर हृदय में, पहाड़ पर चढ़ते चलो।

आहत होकर ठोकरों से,हिम्मत कभी मत हारना।
हर हाल में बढ़ना तुम्हें है,मन में रख लो धारना।

मन के सारे हार होती, मन के हारे ही जीत है।
हिम्मत तुम्हारा संगी-साथी,हिम्मत ही तेरा मीत है।

तुम अगर बढ़ते चले तो,राह स्वयं मिल जाएगी।
हर मुसीबत हौसलों से, राह से टल जाएगी।

                              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, November 14, 2024

अधूरा ज्ञान

अधूरा ज्ञान 

कहा कबूतर,सुन भाई तीतर!
              पास मेरे तुम आओ ना।
कैसे घोंसला बनता है यह,
             मुझको जरा सीखाओ ना।
बोला तीतर सुनो कबूतर।
            तिनके चुन-चुनकर लाओ।
गोल-गोल सा उन्हें घुमाकर,
              एक -दूजे में अटकाओ।
थोड़ा समझकर,कहा कबूतर,
            हाँ-हाँ मैं सब समझ गया।
घोंसला पूरी कर लूंगा मैं,
              समझा आगे होगा क्या।
तिनके तीतर से ले कबूतर,
            लगा घोंसला स्वयं बनाने।
पर घोंसला बना न पाया,
          कहा तीतर को पुनः बताने।
कबूतर ने थोड़ा और बताया,
      कबूतर फिर बोला,समझ गया।
इसी तरह बार-बार पूछता,
          तुरंत कहता मैं समझ गया।
घोंसला बनाने के लिए तीतर ने,
         जब-जब उसको समझाया।
अधूरा ज्ञान पा हाँ कह देता,
         घोंसला कभी न सीख पाया।
कबूतर ही ऐसा पक्षी है जो,
           घोंसला नहीं बना पाता है।
अन्य प्राणियों के निवास में,
              वह जाकर रह जाता है।
जो जन ज्ञान अर्जित करने में,
               चित को नहीं लगाते हैं।
कभी-भी वे अपने जीवन में,
                सफल नहीं हो पाते हैं।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, November 13, 2024

काला-गोरा

काला-गोरा

एक बार कौआ राजा के,मन में विचार एक आया। 
अपने काले तन पर कौआ,मन-ही -मन झुंझलाया।

सोच-सोच कर हार गया ! पर,हल न कोई सुझा।
राजहंस के पास जा, वह नतमस्तक  हो पूछा।

क्या राज है इसका भैया! तुम गोरा मैं काला।
मुझ पर कोई नजर न डाले,तेरा जपता माला।

सुन , कौए की बात हंस,मंद - मंद  मुस्काया।
 मीठी बोली में बड़े प्यार से,उसको यूं समझाया।

कोई राज नहीं है इसका, मैं गोरा,  तू काला।
रंग के कारण नहीं किसी का,कोई जपता माला।

तन के रंग से कोई प्राणी,भला -  बुरा नहीं होता।
मन के रंग के कारण ही केवल,यश पाता और खोता।

ईश्वर की रचना  है केवल, हर रंगों का प्राणी।
रंगो का तुम भेद भूल कर,बोलो मीठी वाणी।

मीठी बोली से काली कोयल भी, सबको सदा सुहाती।
वाणी की सुंदरता से ही,जग में पहचान बनाती।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, November 11, 2024

बोलो न

ऊँ
           द्वन्द्व 
           में हो
        तुम शायद 
      अहंकार भरा 
     मन यह तुम्हारा 
   मुझे प्रगति -प्रयास 
    के पथ पर चलने 
       की आज्ञा ही
        नहीं दे रहा 
           भय है 
         तुम्हें शायद 
     मेरा साथ छूटने का
या तुम्हारा वर्चस्व टूटने का

    सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, November 10, 2024

मैं


               मैं 
              तुम्हें 
            कभी भी 
          बुलंदियों पर 
          चढ़ने से रोक
             तो नहीं 
               पाता 
                 हूंँ।
              किन्तु 
             मुझे सदा 
          यह भय लगा 
        रहता है कि कहीं 
        ऊँची उड़ान भरने 
         हेतु तुम्हारे पर न 
            निकल जाए 
               और तुम 
                  मुझे 
               छोड़कर 
           मुझसे दूर और 
      बहुत दूर न उड़ जाओ।

       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, October 27, 2024

उलटे -पलटे शब्द आधारित (दोहे)

उलटे पुलटे शब्द आधारित (दोहे)

*राम* नाम अनमोल है,जपो राम का नाम।
*मरा-मरा* भी बोलकर, डाकू पाया धाम।।

*राधा* रानी प्रेम से,जपती केशव नाम।
हृदय प्रेम *धारा* बहा,रटती प्रातः-शाम।।

काम करो ऐसा सुनो, दुनिया बोले *वाह*!
*हवा* ओर तेरी बहे, पूरी हो मन चाह।।

*दावा* मत कर नेह पर,रख मन में विश्वास।
*वादा* पूर्ण करो सभी,मत दो झूठी आस।।

*सदा* करे जो कर्म को,रख मन में विश्वास।
भला कर्म से भाग्य भी,हो जाता है *दास*।।

मीठी वाणी बोलकर,कर समाज पर *राज*।
*जरा* न तीखी बोलिए ,रूठे सकल समाज।।

अपने *दम* पर पाइए,जग भर में पहचान।
*मद* में चूर नहीं रहें, दूजे पर कर शान।।

*जग* झूठा है भाइयों,सुनो झुकाकर माथ।
*गज* भर भी धरती वहांँ,जाएगी ना साथ ।।

मदिरा पीने में कभी,दिखलाओ मत *शान*।
*नशा* नाश का मूल है,मत कर इसका पान।।

*मय* के प्याले में भरा, दुनिया का सब रोग।
*यम* रहता पीछे खड़ा, बात मानिए लोग।।

झूठ कभी *मत* बोलना,सच का देना साथ।
सच *तम* दूर करे सदा,मिले सफलता हाथ।।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, October 26, 2024

प्रथम पुज्य गणेश

प्रथम पूज्य गणेश (मिलो न तुम तो)

गणपति बप्पा दिखते भारी,मूषक है इनकी सवारी।
अजब हैरान हूँ मैं।
लम्बोदर पर सूढ़ है भारी,दूब है इनको प्यारी।
अजब हैरान हूँ मैं।
दिखते हैं भोले-भाले, मस्तक है इनका गजराज का।
कान हैं सूप जैसे,नाम है लम्बी महाराज का।
चार हाथ में रस्सी-फरसा,परसु और कुल्हाड़ी,
अजब हैरान हूँ मैं,
एक दिन देवों ने रखी प्रतियोगिता विचार के।
तीन लोक की परिक्रमा,पहले करेगा तीन बार जो ।
प्रथम पूज्य वह देवता होगा, बात बहुत है भारी,
अजब हैरान हूँ मैं।
सुनकर देव सभी सोच में पड़े गहरा मर्म था।
काम कठिन था पर,जोर लगाना अब धर्म था।
सब देवों ने दौड़ लगाई, चढ़कर अपनी सवारी।
अजब हैरान हूँ मैं।
मूषक चढ़ गणपति,रास्ता रोके गौरी-नाथ की।
बीच बैठाकर किये परिक्रमा तीन बार वे ।
अचरज से उन्हें देख रहा था, देवों का देवों का दल भारी,
अजब हैरान हूँ मैं।
देवों ने उनसे पूछा,यह कैसा खेले तुम खेल रे ।
तीन लोक घूमना था,यह तो नहीं कोई मेल रे।
करना था परिक्रमा तुझको,करने लगे नचारी,
अजब हैरान हूँ मैं।
देवों से बोले देवा,मैंने किया भला कर्म है। 
माता-पिता की सेवा,करना हमारा शुभ-धर्म है। 
माता- पिता ही तीन लोक है,सुन लो बात हमारी
अजब हैरान हूँ मैं।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 16, 2024

शरद-पूर्णिमा

शरद-पूर्णिमा 

शरद-पूर्णिमा का चाँद निकला,
    हैं  चमक  रहा देखो अम्बर।
        आज चाँदनी का रूप सुनहला,
            देखो  कितना  लगता सुंदर।

झीनी-झीनी कोमल किरणें,
    पुष्प-लताओं से झांँक रही।
        आज रात की दुधिया रंग को,
            अपलक है देखो ताक रही।

राधा के संग रास रचाते,
    मन मोहन कृष्ण मुरारी हैं।
        वंशी की धुन पर थिरक रहे ,
            आज विरज की नर-नारी हैं।

लक्ष्मी माता सुधा-कलश ले,
    अहा!आईं हम-सबके आँगन।
       मीठी खीर का भोग लगाओ,
           कर आरती-अर्चन मनभावन।

सब मिलकर जयकार करो,
   जगजननी  जय माता की।
        धन-संपत्ति जो सबको देती,
           सुख - समृद्धि की दाता की।

अहा सभी मिल नाचो-गाओ,
   झुम-झूम कर खुशी मनाओ।
        वैर - द्वेष मन से विसरा कर,
            सबको अपने गले लगाओ।
       
                  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 9, 2024

मन के रावण को फूको

मन के रावण को फूंको 

शहर के सबसे पुराने मैदान में,
   दस मीटर ऊँचा खड़ा दशानन।
      दस हजार जनों की भीड़ लगी है,
         रावण का पुतला आज होगा दहन।

राम वेश में ,खड़े मंत्री जी ने,
   बढ़ उसपर छोड़े अग्नि तीर।
      धूं - धूं - धुं कर जल उठा वह,
         खुश होकर उछली सारी भीड़।

साधु-संतों को खूब सताना,
   यज्ञ-विध्वंस कर शान दिखाना।
      मदिरा पीना, मांस को खाना,
         पर स्त्रियों को हरकर लाना।

उसकी  बुराइयाँ खाक हो जाए,
   हर साल पुतले हम जलाते हैं।
      पर इन सारी बुराइयों को हम,
         कभी मन से मार न पाते हैं।

कर सको तो,कर लो अपने,
   तुम मन के रावण का संहार।
      राम -सा पुरोषोत्तम बन जा,
         प्रफुल्लित होगा सारा संसार।

              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, October 2, 2024

प्रथम पुज्य गणेश

प्रथम पूज्य गणेश (मिलो न तुम तो)

गणपति बप्पा दिखते भारी,
करते मूषक सवारी।
अजब हैरान हूँ मैं।
लम्बोदर पर सूढ़ है भारी,दूब है इनको प्यारी।
अजब हैरान हूँ मैं।....
दिखते हैं भोले-भाले, मस्तक है इनका गजराज का ओ s s s s
कान हैं सूप जैसे,नाम है लम्बी महाराज का ओ s s s s
चार हाथ में रस्सी फरसा,परसु और कुल्हाड़ी,
अजब .....
एक दिन देवों ने रखी प्रतियोगिता विचार के ओ s s s s
तीन लोक की परिक्रमा पहले करेगा तीन बार जो ओ s s s s
प्रथम पूज्य वह देवता होकर
गा, बात बहुत है भारी 
अजब हैरान.........
सुनकर देव सभी सोच में पड़े गहरा मर्म था।ओ s s s s
काम कठिन था यह पर,जोर लगाना अब धर्म था ओ s s s s
सब देवों ने दौड़ लगाई, चढ़कर अपनी सवारी अजब हैरान......
दौड़कर गणपति रास्ता रोके गौरी-भोलेनाथ की ओ s s s s
अचरज से उन्हें देख रहा था, देवों का देवों का दल भारी अजब हैरान.........
देवों से बोले देवा,

माता पिता ही तीन लोक है,सुन लो बात हमारी
अजब हैरान हूँ मैं......

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, October 1, 2024

बापू के सपने

बापू के सपने 

बापू ने देखे थे सपने,भारत को आजाद कराने के।
एकता और भाईचारे का, एक सुंदर देश बसाने के।

शांत- समृद्ध भारत बनने के,सपने हम साकार करें।
कपट नहीं करुणा हो मन में, क्रोध त्याग कर प्यार करें।

जाति-धर्म का भेद मिटायें,गले लगायें हरिजन को।
छल-कपट को दूर भगाएं, स्वच्छ करें अपने मन को।

सुशिक्षित व सामर्थ्य रहेंगी ,यहाँ की सारी नारियांँ।
उनके हृदय में सदा ही फूटे,आत्मरक्षा की चिनगारियांँ।

यहाँ का हर मानव, अपने देश पे मिटने वाला हो।
यहाँ का बच्चा-बच्चा भारत माता का रखवाला हो।

हर बाधा को पार करें,लेकर हम हिम्मत से काम।
कठिन राह पर बढ़े चलें,जीत लें हम सारे संग्राम।

बढ़े चलें हम कठिन राह पर,मन में लेकर दृढ़ विश्वास।
स्वच्छता का अभियान चलाएं,पूरी हो बापू की आस।

मन से लालच दूर करें हम, करते जाएं दान सदा।
श्रेष्ठ जनों के हेतु हृदय में,रखें हम सम्मान सदा।

आओ प्रण लें बापू के हम,स्वप्न नहीं टूटने देंगे।
तीन रंग का झंडा वाला,ध्वज नहीं  झुकने देंगे।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, September 28, 2024

स्वाद का फेरा

स्वाद का फेरा 

भूल गए हम स्वाद पुराने।
    चटपटे ब्यंजन लगे सुहाने।
        दूध शर्बत व छाछ न पीते।
            कोल्डड्रिंक्स-पेप्सी पी जीते।

 अन्न-फल-मेवे नहीं सुहाते।
    चाट - गोलगप्पे मन से खाते।
        लिट्टी,पकौड़े,हलवा नहीं भाये‌।
            पिज्जा-बर्गर मस्ती-से खाएं।

भाते न खाजा-लड्डू,बर्फी-पेड़े।
    चॉकलेट-टॉफी में नहीं बखेड़े।
        मुढ़ी- चना मुंगफली न खाते।
            लेज कुरकुरे नूडल्स हैं भाते।

गुड़-राबा मधु-मिश्री न खाते।
    च्युंइगम-गुटखा हैं रोज चबाते।
        खीर मलाई पनीर नहीं मांगते।
           आइसक्रीम के पीछे हैं भागते।

पूआ-गुझिया-खजूर न अच्छा।
    ब्रेड-केक बिस्किट लगे सच्चा।
         चाउमीन ने ऐसा किया कमाल।
             भूले भुजिया-सब्जी रोटी- दाल।

पिट्ठे-पिठिया देख मुँह बनाते।
    मोमो - पेटीज,गटागट खाते।
        इनको खाकर खूब अकड़ते।
            चाहे इनसे  स्वास्थ्य बिगड़ते।

भूले अपने देशी-पोषक स्वाद।
    फास्ट फूड खा हो रहे बर्बाद।
        झटपट -चटपट के इन फेरे में।
            घिर रहे  बीमारियों के  घेरे में।

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, September 22, 2024

जंजीर तोड़ उड़ चला मैं पंछी

जंजीर तोड़ उड़ चला मैं पंछी

पिंजरे का दरवाजा खोल,
        जंजीर तोड़ उड़ जा रे पंछी।
स्वर्ण कटोरा का मीठा फल,
        नीर छोड़ उड़ चला मैं पंछी।
जाने कब से हम कैद पड़े थे,
      स्वर्ण-पिंजरे में एक राजा के।
रोज मिलता खाने को मेवा,
      और पीने को मीठा फल-रस।
मनपसंद निबौरियाँ न मिलती,
          न वह पीने को नीर-सरस।
वह स्वतंत्रता के गीत न गाते,
        वृक्ष की डालियों पर चहक।
यहाँ न निर्मल वायु मिलता, 
         नहीं रंगीन पुष्पों की महक।
कहांँ आजादी स्वर्ण-पिंजरे में,
     स्व- निर्मित तृण घोंसले जैसा।
पंख हमारे लहू-लुहान हो जाते,
        क्या बतलाऊँ वेदना अपना। 
मन अवसाद से भरा है रहता,
    तरु का झूला लगता सपने-सा।
दो वालिस्त की दुनिया हमारी,
        सुध न रहता अपने तन का।
तोड़ वहांँ का सुंदर पिंजरा हम,
   अब उड़ आए हम पंख पसार ।
उन्मुक्त गगन में उड़ते जाते,
       जाना हमको क्षितिज के पार।
स्वर्ण कटोरा का मीठा-फल 
     व नीर छोड़ उड़ चला मै पंछी।
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, September 18, 2024

१ दहेज

जय मांँ शारदे 🙏🙏 💐💐
जय श्री गणेश 🙏🙏💐💐

दहेज (१)

वहाँ से खिसक गये। लड़कियों को बुलाकर वे अपनी बस में चढ़ाने लगे।मयंक ने देखा तो पागलों की भांति एक बार फिर अपनी सारी शक्ति संचित कर स्वयं को मुक्त कर लिया और उनकी तरफ लपका। लेकिन फिर उसे लोगों ने जकड़ लिया।वह उनकी बाहों से छुटने का जी तोड़ प्रयास कर रहा था।
इसी उपक्रम में उसकी नजरें छत पर चली गई जहांँ मुंडेर से झांकता उसे निरमा का सिर दिखा। क्या निरमा छत पर अकेली है ? उसकी छठी इंद्री उसे कुछ संकेत दे रही थी।एक बार फिर वह जोर लगाकर छुट गया और दौड़ कर सीढियांँ चढ़ने लगा।जब वह छत पर पहुंचा तो देखा निरमा छत की मुंडेर के निकट खड़ी है।वह धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ने लगा।पर निरमा को उसके आगमन का एहसास तक नहीं हुआ था। उसने अपनी दोनों हथेलियांँ रेलिंग पर टिकाए और पैर उचकाकर रेलिंग पर चढ़ गई और फिर नीचे कूदने हेतु छलांग लगा दिए।
पर ,यह क्या ? वह कूद नहीं पाई सिर्फ लड़खड़ा कर रेलिंग पर ही अटक गई। रेलिंग की रगड़ से उसके वदन में कहीं-कहीं खरोंच भी लग गये।पर उसका उसे कोई परवाह नहीं।उसे लगा उसकी चुनरी किसी चीज में फँस गयी है। उसने हाथ बढ़ाकर उसे छुड़ाना चाहा पर उसका हाथ भी किसी ने थाम लिया।वह हड़बड़ा कर पीछे पलटी।देखा मयंक उसे हाथ पकड़कर खींच रहा था।
छोड़ दो मुझे मयंक उसने रोते हुए कहा।
मयंक बिना कुछ कहे उसे रेलिंग से नीचे उतार लिया था।
उसके चेहरे से कठोरता लुप्त हो गई और वहाँ बेचारगी का साम्राज्य स्थापित हो गया।
उसी समय बारात की बस और कारें स्टार्ट हुईं और सड़क पर चल दी। मयंक को ऐसा लगा वह गाड़ियांँ उसके सीने पर चल रही हैं।
छोड़ो मुझे मयंक !अब मैं जीकर क्या करूंगी ? निरमा बेचैनी भरे स्वर में बोल उठी।उसकी आँखों में आंँसुओं की मोटी परत थरथरा रही थी।सीसे -पारदर्शी उन आँसू- परत के पीछे निरमा की आँखों की सफेदी सुर्खी  में बदली नजर आ रही थी।
ठहरो निरमा!इन आँसुओं को गिराकर बर्बाद मत करना। मयंक तड़प कर बोल उठा।
अब किस दिन के लिए जमा करके रखने क हते हो आशु को ?
 मैं मयंक के लहू-लुहान दिल पर जोरदार गुस्सा पड़ा। निरमा की बोली से उसका समूचा वजूद थर्रा उठा। उसे याद आया शादी ठीक होने के बाद निरमा किसी बात पर रो पड़ी थी तो वह उसे चिढ़ाते हुए बोला था रो-रो कर आंसुओं को बर्बाद मत करो निरमा ? कहीं यह आसु बिल्कुल खत्म हो गया सो बिदाई के समय रोओगी भी नहीं ।
और निरमा भी अपने लजीले स्वभाव के विपरित बोल उठी थी- हंसने लगूंगी और क्या।
 मयंक पहले तो मुँह बनाया था फिर बोला यह भी ठीक ही रहेगा। अन्य लड़कियों से निराली रहेगी तुम्हारी विदाई ।
और निरमा खिलखिला कर हंस पड़ी थी ।
लेकिन मयंक की पैनी निगाहों ने उसकी आंखों की कोरों में छलकाए आंसुओं को भी देख लिया था ।लेकिन आज समय आने पर निरमा वह सुख के आंसू नहीं गिरा सकी। उसका दिल सिसक उठा । निरमा के ये आंसू कार की सीट पर गिरने चाहिए थे और गिर रहा है छत पर ।हिम्मत से काम लो निरमा! वह अपने आप इस प्रकार बुदबुदा उठा जैसे खुद को तसल्ली दे रहा हो।
 अब कहांँ से हिम्मत लाऊँ ? जबकि सारा हिम्मत जवाब दे गया निरमा सिसकती हुई बोली।अब तो मुझे मर जाने में ही भलाई है ।अच्छा हुआ जो चाचा नहीं रहे ।नहीं तो वह सहन नहीं कर पाते यह सब ।मुझे भी उन्हीं के पास जाना है। नहीं निरमा! तुम्हारे मर जाने से उन कुत्तों के सेहत में कोई गिरावट नहीं आने वाली ।तुम्हारे जैसे हजारों निरमा होने इस धरती पर अपने प्राण त्यागे हैं। पर इन दहेज लोभियों के जबड़े फैलते ही चले गए। उन निरमाओं की मृत्यु के साथ ही इन दानवों की काली करतूतें भी दफन होकर रह गई ।और तुम मर कर इनकी कृत्य को दफना दोगी। अब तुम एक नया अवतार लेकर इन असमाजिक तत्वों का नाश करोगी । इन्हें सबक सिखाओ कि इस दहेज- सागर में गोते लगाने का अंजाम कितना भयानक हो सकता है।इस दहेज- सागर में कितने बड़े-बड़े जीव अपना विशाल जबड़ा फैला कर घात लगाए हुए हैं। जो किसी भी क्षण अपने जबड़े मैं दबोचकर उसका नामोनिशान तक मिटा सकते हैं । निरमा पर उसकी बातों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उसकी मुठियां भींच गई थी और चेहरे पर ऐसी दृढता उत्पन्न हो गई थी जैसे वह दुनिया की किसी भी बड़ी से बड़ी शक्ति से टकराने का इरादा बना ली हो। उसने स्वीकारात्मक ढंग से धीरे से सिर हिलाया।ही मयंक उसका हाथ थाम कर सीढियों की तरफ बढ़ गया । अगले ही कुछ मिनटों में दोनों नीचे बारात लौटने से शोकाकुल लोगों को समझा कर ढांढस बंधा रहे थे।

Sunday, September 8, 2024

अन्याय

जमाने में आज देखो,हो रहा अन्याय है ।
जो पीड़ित हैं उन्हें, मिल न पाता न्याय है ।
जमाने में आज देखो........
बांध पट्टी आंखों पर न्याय की देवी खड़ी है।
तुलिका लिए हाथ में विवस मुद्रा में अड़ी है।
पलड़ा जिधर झुके,उनके ही हक में न्याय है ।
जमाने में आज देखो........
अन्यायी लोग सदा ही,न्याय की रट हैं लगाते।
अन्याय को न छोड़ते,अर्थ न्याय का समझ न पाते।
अन्याय करते जाते हैं कहते हैं यही तो न्याय है।
जमाने में आज देखो..........
न्याय क्या मिलेगा,बिगड़ी यहांँ की है प्रणाली। 
जनता को भटकाती है,न्याय यह वेदनावाली।
फाँसी पर लटकाना ही,नहीं यहांँ पर न्याय है।
जमाने में आज देखो............
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, September 5, 2024

वायु (कविता)

वायु 

न ही रूप है  न  रंग है।
   न आकार है  न अंग है ।
      पर हवा हमारे जीवन में-
       रहता सदा सदा ही संग है।

पांच महाभूतो में एक है।
   उपयोग इसके अनेक हैं।
      हर जगह काम आता है-
         कार्य  इसके अनेक हैं।

हवा  हमारा  जीवन है।
   इससे हमारा तन मन है 
       इसके बिन चूल्हे में भी-
          जल न  पाता इंधन है ।

आओ इसे बचाएं हम।
   धरा पर वृक्ष लगाए हम।
       सांस  संवारन वायु को -
          मिलके स्वच्छ बनाएँ हम।

इसके दम पर जीते हम।
   हर पल हैं वायु पीते हम।
      अगर हमें न मिलता वायु-
         रह जाते सदा ही रीते हम।

                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

शिक्षक (दोहे )

शिक्षक 

शिक्षक देते हैं सदा, विद्या- बुद्धि व ज्ञान।
शिक्षक से हम सीखते,साहित्य, औ-विज्ञान।।

लक्ष्य - प्राप्ति के लिए, बतलाते हैं राह।
जीवन में शिक्षक बिना,मिलता कभी न थाह।।

हम माटी की लोय हैं, शिक्षक हैं कुम्हार।
गढ़ते हमको चाक पर, देते  हैं आकार।।

शिक्षा की दें भावना,करते  हैं गुणवान।
गुरु के गुण अपनाइए,बनिए गुण की खान।।

ज्ञान की दीप को जला, देते गुरु सद्ज्ञान।
राह दिखाते ज्ञान की, शिक्षक की पहचान।।
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, September 3, 2024

गणेश (दोहे)

गणेश (दोहे)

सब देवों के देव हैं, पूजो प्रथम गणेश।
माता गौरी भगवती, पिता देवा महेश।।

हाथी जैसे कान हैं, लम्बोदर पर सूढ़।
कर इनकी आराधना,होते ज्ञानी मूढ़।।

सभी बुधवार को करें,इनकी पूजा आप।
गण गणपत्यै बोलकर, करिए मन से जाप।।

लड्डू-मोदक जानिए,इनका प्यारा भोग।
नित उठ भोग लगाइए,सुख से रहिए लोग।।

मूषका पर सबार हो,घुमते तीनों लोक।
भक्त जन पर दया करें, हरते सारे शोक।।

हाथ जोड़ जो मांगिए, देते देवाशीष।
पूर्ण कर मनोकामना,देते हैं आशीष।।

विघ्न हर्ता गणेशजी,हरते उर संताप।
हरते सबकी दीनता,हरते सबके पाप।।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, September 1, 2024

मैं प्यारी भाषा हिन्दी हूँ

मैं प्यारी भाषा हिन्दी हूँ (कविता)
(चोपाई छंद आधारित मुक्तक)

मैं प्यारी  भाषा  हिन्दी हूँ।
   भारत  माता  की  बिंदी  हूँ।
      विदेशी  भाषा  को  भगाने-
         मैं  आज  हिन्द में  जिंदी हूँ।

मुझसे  प्रेरित  भाषा  सारी।
   मैं  सभी भाषियों को प्यारी।
      छंदो- कविताओं में रचकर-
         हो  जाती  हूँ  मैं तो न्यारी।।

मेरे  शब्दों     में  आकर्षण।
   है अर्थ  भरा  मेरा  चितवन।
      सुंदर - प्यारे  मधु  भावों  से -
         है भरा हुआ मेरा कण-कण।

मैं  सब  लोगों को  भाती हूँ।
   मैं  शीघ्र  समझ में आती हूँ।
       जो मुझे  प्यार  से अपनाता-
         मैं  उसकी  ही  हो जाती  हूँ।

जो मुझको तुम अपनाओगे।
   सुख  बहुत सदा ही पाओगे।
      हिन्दी भाषा - भाषी बनकर-
         तुम  देशभक्त   कहलाओगे।

               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, August 31, 2024

जय-जय हिन्दी बोलिए

जय-जय हिन्दी बोलिए 

सबसे प्यारी हिन्दी भाषा, हिन्दी में सब बोलिए।
इसके संग किसी भाषा को,पलड़े में मत तोलिए।

सीखिए कोई भी भाषा, सीखना-सीखाना धर्म है,
सबके रंग में अपनी भाषा, हिन्दी के रंग घोलिए।

चुनना हो कोई भाषा तो, हिन्दी को अपनाइए,
इससे न अच्छी कोई भाषा,इधर-उधर मत डोलिए।

सभी भाषा से सरल है,इसे सीखना आसान है,
विशेषता है हिन्दी की,यह राज सारे खोलिए।

राष्ट्रीय भाषा भी बने यह,इसका मान बढ़ाइए,
बहुत विदेशी भाषाओं को,आज तक हम ढो लिए ।

हिन्दी दिवस मनाइए, हिन्दी के गुण गाइए,
देशवासी जाग जाएंँ, नींद गहरी सो   लिए।

संस्कृत की प्यारी बिटिया, बड़ा सलोना रूप है,
हिन्द के माथे की बिंदी,जय-जय हिंदी बोलिए 
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 29, 2024

हिन्दी वर्णमाला

                    हिन्दी वर्णमाला 

अल्फाबेट बहुत सीखे हम, सीखें हिंदी वर्ण।
हर वर्ण का मान बड़ा है ,जैसे लगता स्वर्ण।।

मानक वर्ण हिन्दी केभाई,होते हैं पूरे बावन।
कभी-कभी भी आते हैं, नहीं छोड़ते दामन।।

तेरह वर्ण पहले सीखो,जिसको कहते स्वर।
स्वर की मात्राएं सदा,लगती है व्यंजन पर।।

ग्यारह वर्ण स्वर के ऐसे,जिनका पूरा थाह।
इसके दो वर्णों को, कहते हैं आयोग वाह।।

व्यंजन वर्णों के भी हैं,बहुत ही बड़ा समुह।
स्वर से मिल पूरा होते,जब भी खोलो मुँह।।

पाँच वर्णों के होते हैं,यहाँ पर पूरे पाँच वर्ग।
प्रथम वर्ण के नाम पर,कहाते कवर्ग-चवर्ग।।

चार वर्ण कहलाते हैं, जान  लें अंतस्थ वर्ण।
चार वर्ण घर्षण पा, कहलाते हैं ऊष्म वर्ण।।

चार वर्ण कहलाते यहाँ, सुनिए संयुक्त व्यंजन।
दो वर्ण नीचे बिंदु पा,कहाते उत्क्षिप्त व्यंजन ।।

हिन्दी वर्णों के इस समुह,को कहते वर्णमाला।
आसानी से इसे सीखते, हैं बालक और बाला।।

             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

हिन्दी वर्णमाला

अल्फाबेट बहुत सीखें तुम,सीखो हिन्दी वर्ण।
हर वर्ण का महत्व बहुत है, जैसे धातु स्वर्ण।
ग्यारह वर्ण स्वर के ऐसे, होता महत्व अथाह।
इसके दो वर्णों को हम,कहते हैं आयोगवाह।

Wednesday, August 28, 2024

जन्माष्टमी (मन हरण घनाक्षरी)

जन्माष्टमी (मन हरण घनाक्षरी)

अंधेरी,आधी रात में,
    भादों के बरसात में,
       शुभ दिन जन्माष्टमी,
           नाच  रहे  जन   हैं।

आये कान्हा गोद में,
   झूमों मंगल - मोद में,
        वसुदेव-देवकी का,
              पुलकित  मन  है।

विष्णु के अवतार हैं,
    करते  बेड़ा  पार हैं,
       मथुरा निवासियों का,
              खुश   चितवन  है।

कान्हा सबको तारते,
     संताप  से   उबारते,
         दीन-हीन सेवकों को,
               देते  धन - जन  हैं।

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

हिन्दी भाषा जिन्दाबाद (गीत)

हिन्दी भाषा जिंदाबाद 

हिन्दी भाषा बोलो सब मिल,
सदा ही रखना इसे आवाद।
कहो हिन्द के हिन्दी-भाषी,
हिन्दी  भाषा  जिन्दाबाद।।
कहो हिन्द के.............

हिन्दी भाषा बड़ी मनोहर।
गर्व करो इसको अपनाकर।
हिन्दी ने परतंत्रता तोड़ी-
 हुआ हमारा देश आजाद।।
कहो हिन्द के.............

रच हिन्दी में छंद तुम प्यारे।
कथा-कहानी ग्रंथ तू न्यारे।
विदेशी भाषा को अपनाकर-
हिन्दी को मत कर बर्बाद।।
कहो हिन्द के............

कागद हिन्दी से सिंचित हो।
गीत-कविता से गुंजित हो।
क्षेत्रीय भाषाओं में भी तुम-
हिन्दी शब्दों को रखना याद।।
कहो हिन्द के...........

पढ़ो अगर तुम हिन्दी भाषा।
रखो मन में यह अभिलाषा।
हर भाषा के ग्रंथों का होवे-
हिन्दी भाषा में अनुवाद।।

कम न हो हिन्दी की महिमा।
सदा रहे बनी इसकी गरिमा।
हिन्दी से ही है हिन्द हमारा-
मिटाता जो मन के अवसाद।।
कहो हिन्द के..............
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, August 25, 2024

कृष्ण भजन


कृष्ण भजन 

सुन लो पुकार मेरी कृष्ण कन्हैया।
पकड़ पतवार, मझधार मेरी नैया।
सुन लो......
भटक रही आज मुझे राह नहीं सूझे।
करो न निराश मुझे आस नहीं दूजे।
दिखा दो तुम राह मुझे वंशी बजैया।
सुन लो .......
दिल की तड़प मेरी कोई न जाने।
समय पर अपने भी होते बेगाने।
मन के क्लेश मिटा रास रचैया।
सुन लो...........
एक विनती प्रभु सुन लो तू मेरी।
पूर्ण कर आज काज,लगाओ न देरी।
मेरी नौका के तुम ही हो खेवैया।
सुन लो......
हाथ जोड़ समृद्धि करती पुकार है।
दूर कर मन में जो आता दुर्विचार है।
हे कृष्ण द्रौपदी के लाज बचैया।
सुन लो......
                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, August 20, 2024

अनपढ़ बुढ़िया कहानी

अनपढ़ बुढ़िया (कहानी)

बार-बार मोबाइल में कॉल करती और रिंग होते ही काट देती।उसे हिम्मत नहीं हो रहा था कि अनुपमा मैम से बात करे। ऑनलाइन क्लास में उनकी खनकती आवाज से ही लगता है कि वह किसी खास व्यक्तित्व की मल्लिका हैं।इस कॉलोनी में रहने आई तो उसे इस बात की खुशी हुई की उसकी मैम भी इसी कॉलोनी में रहती हैं ।कॉलेज में एडमिशन होते ही लॉकडाउन लग गया और ऑनलाइन क्लासेस स्टार्ट हो गए।उससे बड़ा मुश्किल लगता ऑनलाइन क्लास में कुछ समझ में आएगा कि नहीं ?
लेकिन नहीं क्यों ? मैं इतनी संजीदगी से क्लास लेती हैं ।बहुत ही बारीकी से हर चैप्टर को पढाती हैं।
लेकिन कुछ कैप्टरों को वह फिर से मैम से पढ़ना चाहती है।इसलिए जब मॉर्निंग वॉक पर निकली तो वापसी में ख्याल आया मैं से कॉल कर पूछ लूं, किस रोड में रहती हैं ।
वाह!मैम ने जो रोड बताया वह तो उसी रोड में चल रही है। उसने हाउस-नंबर पूछा और चल पड़ी। यह क्या यह तो वह अपने ही किराए के मकान के निकट पहुंच गई।
 मैम हाउस का कोई नाम भी है ?
 हांँ है ना , "अनमोल विला" उसने पढ़कर देखा उसे अपने आप पर बड़ी जुंझलाहट महसूस हुई। इस घर में इतने महीने से रह रही है और उसका नाम तक नहीं पढ़ सकी। 
मैम से फोन पर बात करती-करती वह घर के अंदर घुसी मैम ने कहा मैं लेफ्ट साइड के बरामदे में पिंक साड़ी पहने बैठी हूंँ। वह आगे बढ़ी । मैम यहाँ रहती है, और मैंने उन्हें कभी देखा तक नहीं ? 
वह लपकती हुई मैम के सामने पहुंच गई।
अरे ! यहांँ तो उसकी मकान मालकिन बैठी मिली ।
मुझे अनुपम मैम से मिलना है ।
हांँ हांँ मैं ही हूंँ अनुपमा ।
उसके सिर पर घड़ों पानी पड़ गया ।
जिनकी वेश-भूषा देख वह उन्हें अनपढ़ बुढ़िया कहती थी, वह उसकी तेज दरार अनुपमा मैम हैं। उसे सारी बातें याद आने लगी जब वह अनुपमा मैम को कुछ पूछे जाने पर उनसे ऐठ कर उत्तर देती थी कि आपको समझ नहीं आएगा। पढ़ाई के बारे में पूछे जाने पर वह बोलती कि हमारा ऑनलाइन क्लास होता है आप क्या जानें यह सब ।वह तो भली महिला थीं जो 
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 8, 2024

देश हमारा (लघुकथा)

देश हमारा (लघुकथा)

अंतरराष्ट्रीय खेल क्रिकेट मैच का अंतिम दिन था। पिछले दिन की पारी में भारत की बढ़त से भारत के नगरों-शहरों के लोग ही नहीं बल्कि छोटे- छोटे कस्बों और गांँवों के लोग भी अत्यंत उत्साहित थे।जीत की आस  प्रत्येक क्रिकेट-प्रेमी के दिल में लगाये थे।जहाँ जाओ वहाँ क्रिकेट की ही चर्चा छिड़ी होती।सभी मना रहे थे कि अपना देश 'भारत' जीत जाए।
तभी कहीं से कुछ शोर सुनाई पड़ी।उस शोर को सुन भरत उधर देखने लगा....
"जीतेगा भई जीतेगा !
देश हमारा जीतेगा !
भारत प्यारा जीतेगा !
क्रिकेट खेल का-
विश्वगुरु भारत जीतेगा !"
तरुण वर्ग के बच्चों का समुह नारे लगाते हुए वहाँ से चले जा रहे थे ।
    उन बच्चों को उत्साह उमंग और आत्मविश्वास देख मुहल्ले वासियों हृदय प्रफुल्लित हो गया।
वहाँ बैठी तरुणा चाची ने मुँह बनाते हुए कहा-"क्रिकेट खेल का उद्गम स्थल इंग्लैंड है, फिर भारत क्रिकेट खेल का गुरु कैसे बन गया ?"
जनक दादा ने कहा -"निसंदेह क्रिकेट खेल इंग्लैंड में प्रारंभ हुआ। और,यह खेल इंग्लैंड और श्रीलंका का राष्ट्रीय खेल भी है।परन्तु भारतीय खिलाड़ी अधिक कुशलतापूर्वक इस खेल को खेलते हैं। इन्हें इस खेल में जितनी महारथ प्राप्त है उतना किसी देश के खिलाड़ियों को नहीं।"
वहीं बैठे सोहन चाचा ने कहा -"सच पूछिए तो इस खेल का उद्गम स्थल भी भारत है।"
"वह कैसे?"
"भारत के पौराणिक खेलों में अत्यंत  रोमांचकारी और प्रभावी खेल गिल्ली डंडा और पिट्टो इत्यादि रहे हैं।ये खेल भी लगभग क्रिकेट जैसा ही खेला जाता है। भारतीय खिलाड़ी इन खेलों के माध्यम से उच्च कोटि के गेंदबाज व बल्लेबाज हो जाते हैं ।इसलिए भारत निरंतर क्रिकेट मैच में न केवल जीत ही हासिल करते हैं,बल्कि क्रिकेट खेल में विश्व 'चैम्पियन' भी कहलाते हैं ।"
   "जीत गया जी जीत गया!
  विश्व गुरु भारत जीत गया S S S
सामने वाले घर में टेलीविजन पर मैच देख रहे क्रिकेट खेल के दीवाने जोर से ताली बजा कर चीख पड़े और पटाखे की आवाज से पूरा देश..
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, August 6, 2024

जटाधारी शिव (विजया घनाक्षरी)

जटाधारी शिव ( विजया घनाक्षरी )

सदाशिव विश्वेश्वर, 
   महाकाल महेश्वर, 
      पशुपति पंचवक्त्र,
         जटाधारी शिव शिव ।

नील लोहित शंकर,
   विश्वपाक्ष शुभंकर,
      शिवाप्रिय गंगाधर,
         त्रिपुरारी शिव शिव।

वीरभद्र वामदेव,
   शूलपाणि महादेव,
     ललाटाक्ष महाकाल, 
        दानी भारी शिव-शिव।

गिरिधन्वा,अनीश्वर,
    गिरिप्रिय गिरीश्वर,
      जगद्गुरु कृपानीधि,
         दुःख-हारी शिव शिव। 

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, August 1, 2024

श्रद्धा कर्म (कहानी)

श्रद्धा कर्म 

आज स्वर्गीय पूर्णिमा देवी जी का बारहमा है।सात गाँव की भोज व्यवस्था ।एक सौ आठ ब्रहामणों का वस्त्र -छंदा सहित भोज। स्वजन तथा दूर-दूर के नाते-रिश्तेदार न्योते पर पधारे हैं।अपना घर तो क्या पास-पड़ोस के घरों में मेहमानों को ठहराया गया है।सभी के रहने एवं खाने पीने की उत्तम व्यवस्था।भोज के सारे भोजन पूर्णिमा देवी के पसंद के बनाए जा रहे हैं।
सेज दान का कार्यक्रम चल रहा है। बड़ी बहू ने सुंदर सा दीवान पर मुलायम तोसक- तकिया,मसनद और सुंदर कीमती चादर लगवाते हुए कहा -मांँ जी को दीवान का बहुत शौक था इसलिए मैंने दीवान बनबाया। बड़े बेटे ने श्रद्धा पूर्वक सोने की अंगूठी चढ़ाते हुए कहा-माँ ने अपने सारे गहने बेचकर मुझे इंजीनियरिंग पढ़ाया इसलिए मैंने माँ के लिए यह अँगूठी खरीदी है।   
   मंझली बहू उसपर कीमती श्रृंगार-प्रशाधन रखते हुए कहा-माँ जी को सजने-संवरने का बहुत शौक था। इसीलिए मैंने श्रृंगार के सारे सामान दिए हैं।
पमंझला बेटा नोटों से भरा बटुआ रखते हुए कहा -माँ-ने घर-खर्चे में कटौती कर मुझे शिक्षा दिलवाई इसलिए एक महीना का पगार मैं माँ के नाम दान करता हूंँ।
    सभी के मुँह से वाह-वाही सुन बेटियांँ भी कहाँ चुकने वाली थीं। बड़ी बेटी  पायल और बिछिया तथा छोटी बेटी मंगलसूत्र और सिंदूर की डिबिया चढ़ाती हुईं बोली माँ ने हम दोनों की शादी में खेत,आधा घर और बगीचे बेचकर दोनों दामाद इंजिनियर लाया हमने भी माँ के लिए यह पसामान लाया है।
उनकी ननद, देवरानी,बहनें,भाभी व अन्य रिश्तेदारों के तरफ से भी कपड़े, श्रृंगार -प्रसाधन मिठाइयांँ,फल मेवे इत्यादि चढ़ाएं जा रहे थे।
उनके सबसे छोटे बेटे के पास जाकर चाचाजी ने सलाह देते हुए कहा -बेटा तुम भी अपनी कमाई का कुछ अंश माँ के नाम दान कर दो ,माँ को स्वर्ग में सुख मिलेगा। लेकिन वह अफसोस भरी नजरों से सारे सामानों को देखता रहा।
    क्यों तुम नहीं दोगे कुछ ?
 बड़े भाई ने प्रश्न किया तो पिताजी ने कहा नहीं!
क्यों नहीं ? दोनों बड़े भाइयों के मुँह से एक साथ निकाला।
क्योंकि यह श्राद्ध कर्म में नहीं श्रद्धा कर्म में विश्वास करता है।
     श्रद्धा कर्म ?
हाँ श्रद्धा-कर्म ।तुम्हारी माँ ने दुःख सहकर, जमीन-जायदाद,जेवर गहने बेचकर तुमलोग को पढ़ाया-लिखाया, अच्छे घर में ब्याह किया   इसलिए तुम सभी ने मरने के बाद दिखावा करने हेतु इतने सारे सामान दान किया। लेकिन जब इतने दिनों से माँ बीमार थी तो इलाज करवाने का भी समय और पैसे नहीं थे तुम लोगों के पास।माँ के अंतिम दर्शन करने हेतु भी नहीं आ सके। लेकिन मेरा यह बेटा सीमित कमाई में भी अपनी माँ का इलाज-पानी ,सेवा -सुश्रुषा बड़ी श्रद्धा और प्रेम से किया।    जिंदगी भर तुम्हारी माँ टूटी खाट पर सोती रही और उसपर से ही गिरने के कारण उसकी कमर की हड्डियां टूट गयीं तब कोई उसे एक खाट-चौकी तक नहीं दिया यही एक महीने का वेतन उस दिन दिया होता तो शायद उसका अच्छे-से इलाज हो गया होता।यही मेवे-फल उस दिए होते तो जीते जी उसकी आत्मा तृप्त होती।अब मरने के बाद इन सामानों को दान का ढकोसला और दिखाबा करने से क्या लाभ ? "यदि किसी को ज्यादा श्रद्धा और प्रेम दिखाना है तो उसके जीवन में करो , मरने के बाद  वह व्यक्ति स्वयं इस आकांक्षाओं से मुक्त हो जाता है।सारे दान-दक्षिणा, भोज-भात लोग समाज के दिखाबे के लिए करते हैं।" इसलिए -"मान करो दान नहीं।श्रद्धा में विश्वास करो श्राद्ध में नहीं।"
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, July 27, 2024

सुबह का भूला

सुबह का भूला 

रक्षाबंधन की थाली सजाती हुई सुमीता आज कुछ ज्यादा ही उत्साहित थी।आज उसकी थाली में दो राखियांँ थीं।एक अपने भाई के लिए जो आज सुबह ही आया था और एक सुधीर बाबू के लिए।
सुधीर बाबू द्वारा अपने लिए छोटी बहना का सम्बोधन और आँखों में स्नेह युक्त प्यार देख सुनीता आत्म-विभोर हो जाती। उनके चेहरे के भाव से मन पुलकित हो जाता। 
लेकिन उनका चेहरा जाना पहचाना -सा लगना उसे विचलित कर देता।आखिर कब कहांँ देखा है उन्हें? बातों-बातों में एक दिन वह उनसे भी पूछ लिया -"भैया !मुझे ऐसा लगता है आपको मैंने कहीं देखा है।" लेकिन उन्होंने साफ इंकार कर दिया कि वे कभी मिले थे।खैर जो भी हो एक बड़े  भाई का प्यार और आशीर्वाद पाकर ही वह धन्य थी। 
तभी उसके ममेरे भैया ने कॉल कर बताया की उसकी राखी उन्हें मिल गई है ।जब भी वहांँ आऊंँगा तो तुम्हारे लिए उपहार लेकर आऊंँगा।"
ऊंssहूंss! वह ठुनकती हुई बोली -"आप मुझे हमेशा यही दिलासा देते हैं। कभी आते तो नहीं !"
उन्होंने कहा -आऊंँगा ।हो सकता है जल्दी ही आऊंँ।अब तो मेरा एक दोस्त भी तुम्हारे शहर में रहता है । शायद उसके बेटे का विवाह होने वाला है दो महीने बाद।"
 "कौन दोस्त ?"
 " एक सुधीर नाम का दोस्त मेरी शादी में अपनी मांँ के साथ आया हुआ था।"
 नाम सुनते ही उसकी आंँखों के सामने सुधीर बाबू का चेहरा घूम गया। 
अच्छा!अब उसे समझ आया। सुधीर बाबू उसे देखे-देखे से क्यों लगाते हैं ।
वह अतीत के घेरे में पहुंँच गई ।आज से 25 साल पूर्व वह अपने ममेरे भाई की शादी में गई हुई थी ।भैया का एक दोस्त अपनी मांँ के साथ आया हुआ था भैया ने जब उसे उसका परिचय करवाया तो उसने भैया के दोस्त के रूप में उसे भी हाथ जोड़कर नमस्कार किया ।परंतु जब-तक वह उस शादी में रही सुधीर की निगाहों को सदा स्वयं को घूरती महसूस किया। वह अजीब प्यासी-प्यासी नजरों से उसे देखता रहता।उसकी नज़रों की भाषा वह खूब समझती थी । कभी-कभी उसे भैया कहकर पुकार दिया तो उसके चेहरे पर नागवारी के भाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता दिखा ।किसी तरह शादी खत्म होने पर अपने घर आने पर भी इन बातों की कड़वाहट से का मन बेचैन हो जाता ।फिर उसकी भी शादी हो गई ।समय के साथ वह उन कड़वाहटों को भूल गई ।
आज वही सुधीर उसे एक भाई का प्यार उड़ेल रहा है ।क्या वह उनके उन भावों को याद रखें या आज के। जिन भावों की आकांक्षा उसने 25 साल पहले सुधीर बाबू से की थी वह आज प्राप्त हो रहा है। लेकिन उनके व्यवहारों के लिए माफी देना क्या न्याय -संगत है ? दिल ने कहा -जाने दो कम-से-कम अब तो रिश्ते के भाव समझ आया। अंत में वह यह  निर्णय कर बैठी -अतीत के कड़वाहटों को भूल हमें वर्तमान की मृदुलता में जीना चाहिए।और वह थाली उठाकर उन्हें राखी बाँधने बढ़ गई।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, July 26, 2024

सफलता का मंत्र

सफलता का मंत्र 

निज प्रगति मेंआप ही,होते बाधक लोग।
आलस्य इसका कारण है,कहते हैं संयोग।।

असफल होकर कोसते, व्यर्थ भाग्य को आप।
काम सदा जो टालते,रखते उर संताप।।

कभी नहीं जो मानते, गुरुजनों की बात।
पछताते जीवन भर, कुढ़ते हैं दिन रात।।

शेखी जो बघारते, मात-पिता के संग।
काहिल रहते हैं सदा,सीख न पाते ढंग।।

सक्रियता से जीवन में, करते हैं जो काम।
कर्मठता से काम कर,पाते सभी मुकाम।।

कल पर काम न टालिए, तुरंत करें सब काम।
महामंत्र है जीव की, मिलता सुख आराम।।

प्रतिस्पर्धा सबसे करें, लेकर मन में होड़।
मिले सफलता आपको , जीवन हो बेजोड़।।

          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

मुहावरा आधारित (आस्तीन का साँप )


 
 विश्वासघात

सोच समझ कर करो मित्रता,
सोच समझ कर आस करो।
आस्तीन में साँप न पालो,
सोच समझ विश्वास करो।

सामने से भोले बनते जो,
पीठ-पीछे कुछ खेल रहे।
आगे में माया खूब दिखाते,
पीछे जाकर धकेल रहे ।

सांत्वना वे बहुत हैं देते,
चौड़ी करते वे छाती हैं।
रंग बदलते गिरगिट जैसे,
जब बारी कुछ आती है।
   
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, July 25, 2024

शिव शंकर ने डमरू बजाया (गीत)

शिव-शंकर ने डमरू बजाया

शिव शंकर ने डमरू बजाया,
डम-डम,डम-डम,डम-डम-डम।
डमरू के संग ताल मिलाकर,
नाचे कहकर बम - बम - बम।
शिव शंकर.....................
डमरू की आवाज सुनी तो,
पार्वती माँ दौड़ी आईं।
डमरू के संग ताल मिलाकर,
वो भी नाचीं छम - छम - छम।
शिव शंकर.......................
डमरू की आवाज सुने तो,
गणपति बप्पा दौड़े आये।
डमरू के संग ताल मिलाकर,
वे भी नाचे धम - धम - धम।
शिव शंकर.....................
डमरू की आवाज सुने तो,
कार्तिक प्यारे दौड़े आये।
डमरू के संग ताल मिलाकर,
वे भी नाचे ढम - ढम - ढम।
शिव शंकर...................
डमरू की आवाज सुने तो,
भक्त जन सब दौड़े आये।
डमरू के संग ताल मिलाकर,
वे भी नाचे झम - झम - झम।
शिव शंकर.......................
नाच देख शिव शंकर दानी,
प्रसन्न हो मन में मुस्काते,
भक्तों के सब संकट हर लिए,
हर लिए उनके सारे ग़म।
शिव शंकर.....................
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि' 


Monday, July 22, 2024

पहला सोमवार

पहला सोमवार 

शिव के मंदिर में भक्त हजार हैं,
पहला सोमवार है जी पहला सोमवार है।
सभी मिलकर करते जयकार हैं,
पहला सोमवार है जी पहला सोमवार है।
औढरदानी शिव हैं,सभी को वर देते हैं।
भक्तों के दुखड़े,सुन हर लेते हैं।
शिवजी को भक्तों से,सुनो बड़ा प्यार है।
पहला सोमवार है जी पहला सोमवार है।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, July 18, 2024

हिन्दी की आराधना।

               हिन्दी की आराधना 

हिन्द देश के वासी कर लो, हिन्दी की आराधना।
जब मुख खोलो हिन्दी बोलो, होगी सच्ची साधना।।

अपनी है यह प्यारी हिन्दी,इसे सभी सम्मान कर।
दुनिया में जाकर हिन्दी का,खुलकर तुम गुणगान कर।
सारी दुनिया में यह छाये,मन में रख लो कामना।।
जब मुख खोलो हिन्दी बोलो, होगी सच्ची साधना।।

हर भाषा को लिखना-पढना, माना अच्छी बात है।
हर भाषा का ज्ञान बढाना,जीवन की सौगात है।
हिन्दी भाषा सबसे अच्छी,रख लो मन में भावना।
जब मुख खोलो हिन्दी बोलो,होगी सच्ची साधना।

संस्कृत की बेटी है हिन्दी, सुंदरता की खान है।
हर अच्छी बोली-भाषा को,इसपर ही अभिमान है।
देश की क्षेत्रीय भाषा की,करती  है यह सामना।
जब मुख खोलो हिन्दी बोलो, होगी सच्ची साधना।

अपने प्यारे हिंद देश की, हिन्दी से पहचान है।
हिन्दी से ही प्यार हमें है, हिन्दी पर ही शान है।
इसे तज विदेशी भाषा में, स्वयं को तुम न बांधना।
जब मुख खोलो हिन्दी बोलो, होगी सच्ची साधना।
                         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

माँ जगजननी गीत

बोल -सौ साल पहले मुझे तुम से प्यार था 

माँ जगजननी को, भक्तों से प्यार था,
आज भी है और कल भी रहेगा।

जो मैया के निकट जाता,माँ उसकी झोली भरती हैं।
जो हैं दुःख-चिंता से व्याकुल,उनका संकट भर्ती हैं।
शेरोंवाली मैया को भक्त हजार था,
आज भी है और कल भी रहेगा।
माँ जगजननी को.........
माँ के अंखियों में देखो,छवि भक्तों की बसी प्यारी।
माँ का हर रूप न्यारा,इनकी ममता है न्यारी।
मैया जी को बेटों से सदा ही दुलार था ,
आज भी है और........
सुन विनती माँ अम्बे, हमें बल-बुद्धि दो इतनी।
हम सबके हैं साथी, सहायता माँगे जो जितनी।
युग-युग पहले माँ का सजा दरबार था,
आज भी है और.........
                             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, July 17, 2024

तुलसी पूजा गीत

तुलसी गीत 
बोल जगदम्बा से लाड़ो सुहाग मांगे )

मेरे आंगन में शोभे श्याम तुलसी।
श्याम तुलसी,हरे राम तुलसी।

सोने सुराही में गंगा-जल भरके,
नित उठ पटाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की डलिया में बेली चमेली,
तोड़ -तोड़ चढ़ाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की थाली में दाख-छुहारा,
नित भोग लगाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की दीया, रेशम की बाती,
घृत डाल जलाऊँ मैं श्याम तुलसी ।

सोने की थाली कपूर की बाती,
नित आरती उतारूँ मैं श्याम तुलसी।

मेरे आँगन में शोभे......
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, July 13, 2024

मेरा वृक्ष मेरा परिवार (दोहा)

मेरा वृक्ष,मेरा परिवार (दोहा )

मत काटो तुम वृक्ष को,यह मेरा परिवार।
इनका भी मेरी तरह, धरती पर अधिकार।।

इनके कारण जी रहे, धरती पर सब जीव।
फिर इसको जन काटते, बातें लगे अजीब।।

यह देता भोजन हमें, इंधन देता साथ।
सांस लेने शुद्ध हवा,इसे झुकाओ मार।।

छाया देता धूप में,तब दें शुद्ध समीर।
गर्मी से व्याकुल रहें,होता जीव अधीर।। 

वृक्ष हमारे मित्र हैं,ईश प्रदत्त उपहार।
काम आते हमें सदा , बनकर ये परिवार।।

         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

बच्चे (चौपाई )

बच्चे  (चौपाई )

बच्चे सबसे अच्छे होते।
भोले -भाले सच्चे होते।।

मन में कोई कपट न लाते।
मिलजुल रहना हमें सीखाते।।

सीखते हमसे हमें सिखाते 
जैसे ढालों वह ढल जाते।।

तुतली बोली इनकी भाती।
खूब लुभाती खूब हँसाती।।

सबको भाते नटखट बच्चे।
सबको लगते हैं ये अच्छे।।
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, July 11, 2024

केवट की विनती (मगही भाषा)

केवट की विनती (मगही भाषा)

पाँव न सटैहा,हो रघुरैया।
नारी न बन जाए कहीं मोर नैया।
पाँव न सटैहा......
तू जो पथलवा में पाँव सटैला।
पल भर में ओकरा तू नारी बनैला।
पैला जग में बडै़या हो रघुरैया।
पाँव न सटैहा .........
जब तोहें चढ़बा नैया में हमर।
चरण पखारे के दें दा तू अवसर।
नै लेबो हमें चरणा-धोलैया हो......
पाँव न सटैहा.......
पहले हम रामजी के पाँव पखारब।
और सीता मैया के चरण फखारव,
फखारब तब तोर लक्ष्मण भैया 
पाँव न सटैहा...............
हँस कर रामजी नाव में बैठला।
लखन जी राम के पीछे बैठला।
संगबा में बैठली सीता मैया।
पाँव न सटैहा........
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, July 10, 2024

लक्ष्य (मुक्तक)

लक्ष्य (मुक्तक )

लक्ष्य पाने के लिए तुम,सत्य पथ पर बढ़ चलो।
राह में पर्वत भी आये, हौसला ले चढ़ चलो।
दृढ़ हृदय ले बढ़ते जाओ,राह तुम भटको नहीं-
राह कोई न दिखे तो,नव रास्ते गढ़ते चलो।

चाह रखो तुम हृदय में,राह भी मिल जाएगी।
दृढ़ हो निश्चय तुम्हारा, चट्टान भी हिल जाएगी।
ठोक कदमों से उसे तुम, दूर कर दो राह से -
पाषाण की छाती को चिर, सुंदर कली खिल जाएगी।

हृदय में हिम्मत बढ़ा चल, तुम कभी मत हारना।
जीतकर ही आयेंगे हम,मन में रखो धारना।
रास्ते के ठोकरों को, ठेलकर बढ़ते चलो-
पग कभी उसपर पड़े तो, तुम भी ठोकर मारना।

अधिकार तेरा लक्ष्य पाना, लक्ष्य पाना धर्म है।
लक्ष्य हेतु संग्राम करना, भी हमारा कर्म है।
जीत कर संग्राम को तुम, लौट कर घर आओगे-
तब तुम्हें यह ज्ञात होगा, लक्ष्य ही तो मर्म है।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

देखने को बहार

देखने को बहार, देखने को बहार ।
कान्हा चले मधुबन में,देखने को बहार,
बसंत के बहार , कान्हा चले 
आगे आगे कान्हापीछे से गोपियांँ,
हाँ जी राधा चली उनके साथ।
देखने को बहार ।
कोकिल कूके,पपीहा गाबें,
हाँ जी मोर दिखाते नाच,बीच मधुबन में 
कान्हा चले मधुबन में........
कदम पर कन्हैया, मुरली बजाबे,
हाँ जी प्यार की छेड़े तान।बीच मधुबन में,
देखने को.....
पलास तरू पर दस-दह दहके,
हाँ जी लता में खिले कचनार।
कान्हा चले मधुबन में,देखने को बहार 
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि' 

Tuesday, July 9, 2024

चपला बोली (चौपाई छंद)

चपला बोली (चौपाई छंद )

नभ  में चपला चमक रही है।
कड़-कड़,कड़-कड़ कड़क रही है।।

बादल को ललकार रही है।
बारम्बार पुकार रही है।।

कहती बादल अब तुम बरसो।
नहीं करो तुम कल औ परसों।।

अब न करो तुम आना-कानी।
चला नहीं अपनी मनमानी।।

घनघोर घटा को  बरसाओ।
तपती वसुधा को हर्षाओ।।

आ तुझको मैं राह दिखा दूँ।
कहाँ बरसना यह समझा दूँ।।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, June 29, 2024

गणेश वंदना (हरि गीतिका छंद)

गणेश वंदना (हरि गीतिका छंद)

हे गजानन, चढ़ मूषक वाहन, गृह आप मेरे पधारिए।
प्रारंभ किया जो काज मैंने,आप उसको संवारिए आशीष देकर संवारिए।।
आये यदि कोई विघ्न तो,प्रभु आप उसको टालिए।
बिगड़े जब कोई बात तो,प्रभु आप उसको संभालिए।।

आपके चरणों में प्राणि,जब झुकाता माथ है।
आशीष हेतु आपका उठता सदा ही हाथ है।
आप ही शुभ काज करते,आप दीनानाथ हैं।
जिनका न कोई साथ देता,आप उनके साथ है।

आपके पग को पकड़ हम,विनती करते आज हैं।
मुख से जो हम बोलते हैं,यह हृदय की आवाज है।।
आपके ही हाथ में अब, भगवन् हमारी लाज है।
आपसे न है हमारा,छुपा हुआ कोई राज है।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, June 28, 2024

अनुराग (सवैया)

अनुराग (सवैया)

जो मन में अनुराग धरो तुम, 
                 चाहत जो तुमको वह पाओ।
जो मन चाह रहा उसको अब, 
                 पाकर संग खुशी अपनाओ।।
रे मन मौज करो न अभी तुम, 
                 जाकर आज यही समझाओ।
जाग अभी तुम ऐ मन मूरख,
                 सोबत हो अब नींद भगाओ।।

जीवन का सब आस यहाँ पर,
                   पूरण हो तुम जोर लगा लो।
काम करो अपने मन माफिक,
               लेकिन आज नहीं यह टालो।।
के विधि से यह काज बना नहिं,
              आज जिया तुम आन बसा लो।
जो बिगड़े अब काज यहाँ पर,
               धैर्य धरो उसको सुलझा लो।।

जो मन ने तुमको समझा यह, 
                     बात वही सच है यह जानो।
उद्यम जो करते जुगती कर,
                   सिद्ध करें सब कारज जानो।।
सोच मनोरथ पूर्ण करे वह, 
                       साधन तो उसने यह मानो।
ध्यान रहे जिसके मन में यह, 
                       ले अनुराग लगा यह मानो।।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, June 15, 2024

रहने दो न पापा ( लघुकथा)

रहने दो ना पापा (लघुकथा)

सुनिए जी मिनी की शादी मैंने उतरा दीदी के जेठ के बेटे से पक्की कर ली है । कामिनी ने उल्लसित स्वर में खुश होते हुए रघुवीर से कहा । उनलोग बहुत खुश हैं ।उन्होंने कहा है मुझे परिवार के रूप में आप सभी बहुत पसंद हैं । विषेश रूप से मिनी बिटिया.......
तुमने बगैर मुझसे पूछे यह रिश्ता क्यों तय कर लिया ? इतना आवश्यक तो नहीं था कि उस शराबी से मेरी बेटी का रिश्ता पक्का कर लिया। वह तो मेरी मासुम मिनी बिटिया से बिल्कुल अलग विचार का है ।क्या पता कैसा बुरा व्यवहार करेगा मेरी लाडली के साथ। रघुवीर ने सहमते हुए कहा।
कोई बात नहीं पापा! अपने कमरे से निकलते हुए मिनी ने कहा -शराबी है तो क्या हुआ मांँ की तरह मैं भी झेल लूंगी उसका गुस्सा-अत्याचार,अपमान-अवहेलना, दुत्कार-फटकार ।आपकी तरह नशे में द्यूत होकर गालियाँ देगा ,मारेगा, पिटेगा।पैसे-गहने छीन लेगा बस यही न।मेरा जीवन नर्क हो जाएगा तो तुम मुझे देखकर दुखी रहना।जैसे नाना -नानी माँ को देखकर.......
रघुवीर सकते की हालत में खड़ा रह गया। अपनी पत्नी की जगह बिटिया के दुखी जीवन की कल्पना मात्र से.......
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, June 5, 2024

धरती कहे पुकार



धरती कहे पुकार 

  देख लो तुम
यह रेगिस्तान में,
   भरा है रेत।

     बन रहे हैं
देखो ऐसे ही अब
    हमारे खेत।

    दूर-सुदूर
दिख रहा है यहाँ
  एक ही पेड़।

    तुम मानव ,
ने बर्वाद है किया
   है हमें छेड़।

    अगर तुम 
एक-एक पेड़ भी
   यहाँ लागते।

   बसुंधरा के
आंचल में कुछेक 
  पेड़ सजाते।

  स्वच्छ रहता
पर्यावरण यहाँ
  हम हँसते।

   सूखता नहीं 
नल कूप,न पानी
   को तरसते 

सुजाता प्रिय समृद्धि

Saturday, June 1, 2024

अखबार बोलता है (घनाक्षरी)

अखबार बोलता है 

अखबार बोलता  है।
सभी राज खोलता है।
आदत बना के नित,
अखबार पढ़िए।

नौकरी, सेवा,व्यापार।
खेल-कूद, समाचार।
इसे पढ़ आप आगे,
ज्ञान तरु चढ़िए।

जानकारियां लाता है।
दिमाग को बढ़ाता है।
स्मरण को बढ़ाइए,
आप आगे बढ़िए। 

वर्तमान, अतीत को। 
आधार,हार-जीत को।
पढ़,नाप-जोख कर,
नव-पथ गढ़िए।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, May 16, 2024

प्यारी सीता माता

प्यारी सीता माता 

जनक सुता प्यारी,सिया थी दुलारी।
जनम ली धरा से,थी जग उजियारी।।
सुना है कि थी वह, सुंदरता की मूरत।
बड़ी मनमोहिनी,थी उनकी सूरत।।
श्रीराम से उनका , था ब्याह रचाया।
राजा दशरथ की,कुलबधू था बनाया।
नियति ने राम को,ऐसा खेल खेलाया।
था चौदह बरस का, वनवास दिलाया।
गये सीता,लक्ष्मण दोनों ही संग में।
वहाँ कंद-मूल खा रहते आनंद में।
वहांँ मारीच स्वर्ण-मृग बन घूम रहा था।
राम को आकर्षित उसने किया था।।
गये मारने उसको धनुष बाण लेकर।
मारीच ने अपनी आवाज बदलकर।
पुकारा लक्ष्मण-लक्ष्मण कहकर।।
लक्ष्मण ने कुटी में थी,खींच दी रेखा।
कहे भाभी! तुम नहीं लांघना रेखा।।
आ गया रावण संन्यासी बनकर।
मांगने भिक्षा बड़ा दीन बनकर।।
देने के लिए भिक्षा ,लांघी रेखा सीता।
हर लिया रावण,बड़ी रोयी पुनीता।।
जटायु ने राम को,यह बात बताई।
गीरा उनके गहने, उन्हें थी दिखाई।।
हरा उनको रावण,पर छू न सका था।
उसे भस्म होने का डर भी लगा था।।
उसे यह पता था कि सती यह नारी।
बड़े कुल की थी वह, पतिव्रता भारी।।
बिना स्वीकृति के जो,सीता को छूता।
तो गिरता मही पर, होकर भभूता।।
वानर सेना संग राम ने कर दी चढ़ाई।
सोने की लंका को, पूरी थी ढाई।।
इस विधी सीता को वापस ले आये।
अयोध्या की रानी थे उनको बनाये।।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, May 14, 2024

दोहे

उलटे पुलटे शब्द आधारित दौहे

*राम* नाम अनमोल है,जपो राम का नाम।
*मरा-मरा* भी बोलकर, डाकू पाया धाम।।

*राधा* रानी प्रेम से,जपती केशव नाम।
प्रेम *धारा* हृदय बहा,रटती प्रातः-शाम।।

काम करो ऐसा सुनो, दुनिया बोले *वाह*!
*हवा* तेरी ओर बहे, पूरी हो मन चाह।।

*दावा* मत कर नेह पर,रख मन में विश्वास।
*वादा* पूरा कर सभी,मत दो झूठी आस।।

*सदा* करें जो कर्म को,रख मन में विश्वास।
भला कर्म से भाग्य भी,हो जाता है *दास*।।

मीठी वाणी बोलकर,कर समाज पर *राज*।
*जरा* न तीखी बोलिए ,रूठे सकल समाज।।

अपने *दम* पर पाइए,जग भर में पहचान।
*मद* में चूर न रहें, दूजे पर कर शान।।

*जग* झूठा है भाईयों,सुनो झुकाकर माथ।
*गज* भर भी धरती वहांँ,जाएगी ना साथ ।।

मदिरा पीने में कभी,दिखलाओ मत *शान*।
*नशा* नाश का मूल है,मत कर इसका पान।।

*मय* के प्याले में भरा, दुनिया का सब रोग।
*यम* रहता पीछे खड़ा, बात मानिए लोग।।

झूठ कभी *मत* बोलना,सच का देना साथ।
सच सदा *तम* दूर करे, मिले सफलता हाथ।।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Monday, May 13, 2024

जगदम्बे मैया का गीत (मगही भाषा)

जगदम्बे माता गीत (मगही भाषा)

सब सखियन मिली गेलियै बजरिया,
वहैं लैलियै शेरों वाली के चुनरिया 
वहैं से लैलियै.........

चम-चम गोटबा से सजल चुनरिया ,
रेशमी धगबा के लटकै फुदनियां
बहुत शोभे शेरों वाली के चुनरिया 

माँग सिंदूर शोभे,माथे टिकुलिया,
कनमा में झुम्मक,नाक नथुनियां
बहुत शोभे माँ के हाथ में मुनरिया।


गले में हरबा औ हाथ कंगनमा,
पउवां में आलता और शोभे बिछुआ,
बहुत शोभे मैहर वाली वाली के पैजनिया।

चुनरी ओढ़ मैया बैठली मड़फिया,
सब भक्तजन मिली करथी भजनिया,
बहुत दिहली माता रानी बरदनियां।
बहुत शोभे शेरों..........
 
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, May 9, 2024

तुलसी पूजा गीत

तुलसी गीत 
बोल जगदम्बा से लाड़ो सुहाग मांगे )

मेरे आंगन में शोभे श्याम तुलसी।
श्याम तुलसी,हरे राम तुलसी।

सोने सुराही में गंगा-जल भरके,
नित उठ पटाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की डलिया में बेली चमेली,
तोड़ -तोड़ चढ़ाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की थाली में दाख-छुहारा,
नित भोग लगाऊँ मैं श्याम तुलसी।

सोने की दीया, रेशम की बाती,
घृत डाल जलाऊँ मैं श्याम तुलसी ।

सोने की थाली कपूर की बाती,
नित आरती उतारूँ मैं श्याम तुलसी।

मेरे आँगन में शोभे......
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, May 7, 2024

हिंदी भाषा (दोहे)

हिंदी (दोहे)

हिन्दी भाषा है सरल ,सदा करें सम्मान।
हिंदी में सब बोलिए, रखिए इसका मान।।

हिंदी है यह देश की, अद्भुत है श्रृंगार।
इस भाषा के प्यार को, जान रहा संसार।।

हिन्दी से ही जन यहांँ,पाते हैं पहचान।
इस भाषा को बोलिए, मन में रखकर शान।।

इस भाषा-सी जगत में,मिले न भाषा एक।
चाहे इसको परख लो,जग में नजरें फेंक।।

जो जन बोले प्रेम से,इस भाषा में बोल।
बोली सुन मधुरिम लगे,जैसे मीठा घोल।।

हिन्दी में जो बाँचते,गीता-वेद-पुराण।
उसके सम संसार में, मिले न जीव महान।।

हिन्दी को बस जानिए, ईश्वर का उपहार।
इस भाषा को हर घड़ी, मिलता जाता प्यार।।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

पावन कर्म (कविता)

पावन कर्म
माता-पिता और गुरुजनों की,
                सेवा करना पावन कर्म।
श्रेष्ठ जनों का कहना मानो,
              यह भी होता पावन कर्म।

जिनको पथ का ज्ञान नहीं है,
            उनको पथ पर लाओ तुम।
भटके जन को राह दिखाना,
                भी होता है पावन कर्म।

जिसके सिर पर छत न छप्पर, 
                उसे छाया में ले आओ।
निराश्रितों को आश्रय देना 
                भी होता है पावन कर्म।

काँपते जन को कमली दो,
               और नंगे जन को धोती।
निर्वस्त्रों को वस्त्र पहनाना 
                भी होता है पावन कर्म।

चींटी को कुछ आटा दे दो,
                और चिड़िया को दाना,
भूखे जीवों को भोजन देना,
                भी होता है पावन कर्म।

जो दुःख पा अधीर हुए हों,
             उनको थोड़ा धीरज दे दो,
दुखियारों पर दया दिखाना 
                भी होता है पावन कर्म।

मक्कारी से दूर रहो तुम, 
             झूठ कभी मत अपनाओ,
सदा सत्य का साथ निभाना 
                भी होता है पावन कर्म।

हिल मिल खाओ,और खेलों, 
              भाई और संगी-साथी से।
मेल-मिलाप बढ़ाकर रखना 
                भी होता है पावन कर्म।

        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, May 1, 2024

दोहे (शब्द आधारित) गर्मी, धूप,लू, पसीना, पानी , घड़ा, पंखा)

दोहे (शब्द आधारित)
गर्मी,धूप,लू, पसीना, पानी, घड़ा पंखा

गर्मी -
भीषण गर्मी पड़ रही, व्याकुल हैं सब जीव।
गर्मी से राहत मिले, ढूंढ रहे तरकीब।।

धूप-
हवा चलती गरम बड़ी,धूप उगलती आग।
अति तपन से भूल गयी, कोकिल अपना राग।।

लू-
लू चलती है सन-सनन,जला रही है अंग।
ग्रीष्म ऋतु ने अपना, खूब दिखाया रंग।।

पसीना-
पसीना है टपक रहा, पोंछ रहे हैं लोग।
गर्मी से है बढ़ रहे,कई तरह के रोग।।

पानी-
पानी लगता आज है, सबको सुधा- समान।
पानी जीव के तन में,फूंक रहा है जान।

घड़ा-
घर-घर देखो शोभता, घड़ा-सुराही लाल।
सब जन ठंडा कर रहे, इसमें पानी डाल।। 

पंखा-
कमरे में कूलर चले, फिर भी पंखा हाथ।
गर्मी लगती तेज है,चकराता है माथ।।


सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, April 7, 2024

चैत्र नववर्ष (गीत )

चैत्र नववर्ष ( गीत)

नाचो-गाओ,खुशी मनाओ,नव वर्ष हमारा आया।
भारत के जन-जन में देखो,हर्ष नया है छाया।

चैत मास का प्रतिपदा को हमारा प्रारंभ होता वर्ष।
हिंदी वर्ष का प्रथम तिथि यह स्वीकार हमें सहर्ष।
हम हिंदू हैं,हिंदुस्तान पर सदा ही हमको माया।
भारत के जन-जन में देखो हर्ष नया है छाया।

देव महेश ब्रह्मा विष्णु देवी गौरी  शारदा सीता।
पूज्य ग्रंथ है महाभारत,रामायण और गीता।
हर वासी के हाथों में भगवा झंडा लहराया।
भारत के जन-जन में देखो हर्ष नया है छाया।

नित उठ हम सूर्य नमन कर प्रारंभ करते कार्य।
रात्रि में विश्राम से पहले चंद्र नमन अनिवार्य।
आसमान में सदा ही रहता हिंदी बादल छाया।
भारत के जन-जन में देखो हर्ष नया है छाया।

संकल्प हमारा हम करेंगे भारत का उत्थान।
सब मिलकर जय हो भारत का, गाएंँगे जयगान ।
सदा प्रफुल्लित हो देश हमारा कंचन-सी हो काया।
भारत के जन-जन में देखो हर्ष नया है छाया‌।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, March 21, 2024

सखी आओ खेलें होली

सखी आओ खेलें होली

सखी आओ खेलें हम होली,
आ कर लें खूब ठिठोली।
भरे खुशियों से हम झोली,
आ कर लें.........
भूल शिकबे-गिले,आ गले मिले,
हम बोलें प्यार की बोली,
आ कर लें खूब ठिठोली।
सखी......
तुझे रंग लगाएँ, गुलाल लगाएँ ,
बना मुखड़े पर तेरे रंगोली।
आ कर..
रंग प्यार के लगाएँ, रंग प्रीत लगाएँ।
अब रूठो नहीं हमजोली!
आ कर लें...............
तेरा लहंगा भिगाऊँ,तेरी चुनरी भिंगाऊँ,
भिंगाऊँ मैं तेरी चोली।
आ कर लें.......
संग-संग हम नाचें,संग-संग हम गाएँ,
बनाकर सखियों की टोली,
आ कर लें
सखी.........

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

कवि और कविता

कवि और कविता (मनहरण घनाक्षरी)

कविता लिखते कवि,
दिखती है प्यारी छवि,
चमकता जैसे रवि,
सुर-लय-छंद में।

पिरोते भावों के मोती,
दिखा साहित्य की ज्योति,
साहित्य के बीज बोती,
मुक्त स्वर- छंद में।

बनाते माला शब्दों के, 
लेखन प्यारे पदों के,
प्यारे औ न्यारे पद्यों के,
कुछ है स्वछंद में।

सजाते कागज की क्यारी,
लिखते कविता प्यारी,
सभी लेखों से न्यारी 
सरल वे बंध में 
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, March 16, 2024

बादल का इंसाफ

बादल का इंसाफ 

सूरज और पवन में भारी छिड़ी बहस एक बार।
दोनों स्वयं को ताकतवर कहते माने न कोई हार।
तब आसमान में बादल आया करने बीच-बचाव।
निज ताकत को सिद्ध कर लो बेकार दिखा न ताव।
सामने की पहाड़ी पर देखो बैठे हैं तपस्वी एक।
ठंडक से बचने की खातिर रखी है कंबल लपेट।
जो अपनी ताकत से उनका कंबल उतरवा देगा।
उसके सिर पर ताकतवर का मुकुट आज सजेगा।
पहले पवन ने अपनी ताकत की जोर लगायी।
साधु की कंबल उड़ाने के लिए अपनी गति बढ़ाई ।
पवन की गति बढ़ते ही तपस्वी ने हाथ बढ़ाया।
अपने तन पर कंबल को कसकर यूं लिपटाया। 
अब बारी सूरज की आई उसने अपनी ताप बढ़ाई
तपस्वी ने गर्मी से अकुल हो कंबल थोड़ी सरकाई।
फिर सूरज ने तीव्र गति से बढ़ा दी अपनी ताप।
तपस्वी को कंबल की गर्मी से हुआ अति संताप।
व्याकुल होकर झट उन्होंने अपना हाथ बढ़ाया।
अपने तन का कंबल को उन्होंने अलग हटाया।
अब तेज हवा के झोंके भी लग रही थी उनको प्यारी।
मोटा कंबल गर्मी के कारण लग रहा था भारी।
समझ न पाया पवन सूरज की यह योजना प्यारी।
सूरज अपनी जीत पर मंद-मंद मुस्काया। 
वह बादल के इंसाफ पर अपना शीश झुकाया।
पवन को अपनी ताकत का झूठा अहम समझ में आया।
अपने झूठे अहंकार पर वह मन-ही-मन पछताया।

सुजाता प्रिय समृद्धि

Friday, March 15, 2024

गणपति वंदन (चौपाई छंद)

गणपति वंदन (चौपाई छंद)

जय देवों के देव गणेशा।
पूजे ब्रह्मा-विष्णु-महेशा।।
पार्वती के दुलारे नंदन।
हाथ जोड़ करती हूँ वंदन।।

माथ सिंदूर मुकुट विराजे।
पीत वसन अंगों में साजे।।
मेरे गृह में आप विराजे।
मन मंदिर घंटा घन बाजे।।

लाल कमल का पुष्प चढ़ाऊँ।
लड्डू -मोदक भोग लगाऊँ।।
एकदंत गजवदन विनायक।
दरस आपका है सुखदायक।।

भक्त आपसे है वर पाता।
बालक जन के विद्या दाता।।

करते आप  मूषक सवारी।
हाथी सूंड वदन है भारी।।
प्रथम देव घट-घट के वासी।
भक्त जनों के हरें उदासी।।

जय जय जय हे गणपति देवा।
करुँ आपकी बहु विधि सेवा।।
चरण आपके शीश नवाऊँ।
सौभाग्य का आशीष पाऊँ।।

Saturday, February 10, 2024

प्रथम देव का पूजन कर लो

प्रथम देव का पूजन कर लो

मन-मंदिर में स्थापित करो,
  उनको प्रथम देव के रूप में।
        सारी सृष्टि से भी बढ़कर,
          है स्नेह जिनके स्वरूप में।

नमन करो माता-पिता को,
   जिनके चरणों में चारों धाम।
       जुगल कर-कमलों को जोड़,
          प्रेम -भाव से कर लो प्रणाम।

चरण-रज का तिलक लगा लो,
    सादर- सप्रेम झुका लो शीश।
       अभिनंदन कर स्नेह आदर से,
         आ पा लो प्यार भरा आशीष।

माता-पिता से ही हैं हम पाये,
   सम्पूर्ण जगत में देख पहचान।
       माता पिता के कारण ही तो,
          मिलता सभी जगह सम्मान।

पाल-पोष कर माता पिता ने,
    हमको बनाया है तेजस्वान ।
       पढ़ा-लिखा कर आज हमको,
         बनाया है जगती में गुणवान।

वात्सल्य का अमृत पान करा,
    तन- मन हमारा तृप्त किया।
      सेवा,त्याग औ समर्पण कर,
        जीवन यह है  झंकृत किया।

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, January 23, 2024

राम जन्म

जनम लिए रघुराई,अवध में बजती  बधाई।
शुभ-दिन,शुभ-घड़ी आयी,अवध में.......
राम जी जनमें,लखनजी जनमे
भरत-शत्रुघ्न भाई।
अवध में...........
पिता दशरथ का मन है हर्षित,
पुलकित है तीनों माई।
अवध में बजती......
धन्य धन्य भाग्य है राजा दशरथ के।
जीवन है सुखदायी।
अवध में बजती..........
भारतवर्ष की पुण्यभूमि यह,
चहुँ दिशी खुशियाँ है छाई,
अवध में बजती.............
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, January 19, 2024

राम नाम भजन

राम नाम भजन

नाम जपो श्री राम का।
अयोध्या पावन धाम का।
दो आखर का मनका है यह,
बना प्रभु के नाम का।
नाम जपो श्रीराम का.........
पुण्य भूमि यह भारत की है,राम यहांँ अवतार लिये।
हर जीव का पालक बनकर,हर जीव से प्यार किये।
राम नाम न जपे अगर तो२,जीवन यह किस काम का।
नाम जपो श्रीराम का .........
नर रूप को धारण करके,भक्तों का उद्धार किये।
धनुष बाण चलाकर प्रभुजी,दुष्टों का संहार किये।
राम नाम का मनका गुथकर२,नाम जपो श्रीराम का।
नाम जपो श्रीराम का............
अपने दिनचर्या में भाई,राम नाम का पाठ करो।
रात शयन करने से पहले,राम नाम को याद करो।
राम नाम प्रभाती बन्धु२,राम भजन है शाम का।
नाम जपो श्रीराम का..........
राम को ही आदर्श बनाकर,जीवन का सब काज करो।
राम के जैसे पुरुषोत्तम बन, असहायों का कष्ट हरो।
राम बिना यह व्यर्थ तनु है२,बस अस्थि और चाम का।
नाम जपो श्रीराम का............
     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, January 11, 2024

निर्मल मन (दोहा )

दोहा 

ईर्ष्या-द्वेष-क्रोध का,करते जाओ त्याग।
असंतोष व लालच का,सदा कर परित्याग।।

दुख का कारण यह सभी,मन से इसको छोड़।
अगर सामने यह दिखे,इससे मुखड़ा मोड़।।

निरोग काया हो जहाँ,सुंदर शील- स्वभाव।
सभी प्राणियों के लिए,मन में हो समभाव।।

बस वाणी की मधुरता,मन को लेती जीत।
मन को दे यह सुख सदा,आपस में हो प्रीत।

मानव मानवता सदा, करना अंगीकार।
माया कभी न त्यागना, रखना उच्च विचार।।

सबका करते जो भला,पाते सुख की छाँव।
बुराई करने जो कभी, कहीं न पाते ठांव।

तन को निरोग चाहते,मन को रखिए स्वस्थ।
तन तो होता है सदा, निर्मल मन से स्वस्थ।।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, January 10, 2024

नववर्ष (सवैया)



नववर्ष (सवैया छंद)

आगत का सब स्वागत ले कर,
         आज सभी खुश होकर भाई।
मान अभी अपने मन में सब,
           बीत गया अब ले अंगड़ाई।
वर्ष नवीन अभी फिर सुंदर,
           वर्ष यही अब हो सुखदायी।
ईश मना सब शीश झुकाकर,
           मांँग सभी मन से वर भाई।

मास बिता कर जो तुम बारह,
             आगत वर्ष रखें पग प्यारे।
कर्म करो सब नेक तभी यह,
               वर्ष हमार रहे सब न्यारे।
नेक करो जब काम सभी तब,
              साथ रहे सुर पांव पसारे।
कर्म सभी चित में रखते तब,
           ही खुश हैं भगवान हमारे।।
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Sunday, January 7, 2024

स्वीकार (लघुकथा)

स्वीकार (लघुकथा)

आने वाले शाम को सलाम..
जाने वाले शाम को सलाम..
    के धुन पर परिवार के सभी लोग झूम रहे थे।तभी बहू ने पेट पकड़ते हुए अपने कमरे की ओर कदम बढ़ाया।सभी के पांव थम गये।
बहू के चेहरे पर पीड़ा के भाव देख लक्ष्मी देवी को समझते देर नहीं लगी कि नववर्ष में परिवार के नये सदस्य का शुभागमन होने वाला है।समय पूर्ण हो चुका है। खुशी के मारे उसके कमरे की ओर चल पड़ी।हाल जान तुरंत एंबुलेंस बुलाने का आदेश दिया और नर्सिंग होम जाने की तैयारी करने लगी।
अस्पताल में बहू को जैसे ही प्रसुति-कक्ष में ले जाया गया, उन्होंने अपने हाथ जोड़त कर ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा -"अबकी बहू के गोद में बेटा दे दो,तो बड़ी कृपा होगी।
बहुत आस लगाए बैठी हूँ।पोती के साथ खेलने वाला एक भाई आ जाए यही कामना है।"
केशव जी ने आगे बढ़कर कहा-"पहले तुम बहू को सम्हालो राघव की माँ ! भगवान का भेजा हुआ जो आ रहा है उसे हृदय से स्वागत और स्वीकार करो।पोता-पोती सब बराबर है।हमारी पोती को भाई हो या बहन, उसके साथ खेलने वाला तो होगा ही।"
   उसी समय नवजात शिशु के रोने की आवाज सुनाई दी।नर्स ने आते हुए कहा -"आज एक जनवरी को एक बजकर एक मिनट में मुन्नी की बहन नन्हीं आई है।"
मुन्नी तो कुछ समझ नहीं पायी। परिवार के सभी लोग फिर से एक बार खुशी से झूम उठे।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, January 4, 2024

तमाचा (लघुकथा)

तमाचा (लघुकथा)

कार्यालय जाने के लिए जैसे ही रणधीर ने मेन रोड में अपनी बाइक घुमाई सामने से आती महिला ने पूछा-"यहाँ पर रंगोली होटल किधर है ?"
"यहाँ से थोड़ा आगे है।"कहते हुए वह बढ़ गया ।
लेकिन आगे बढ़ते ही वह रुक गया। पीछे मुड़कर देखा। महिला पैदल ही बढ़ी आ रही थी।निकट आते ही उसने महिला से कहा -चलिए मैडम! मैं आपको छोड़ दूंँगा,उधर ही जा रहा हूंँ।" 
 महिला खुश होती हुई बाइक की पिछली सीट पर बैठ गयी।
उस सुंदर महिला को अपने साथ बैठा देख रणधीर के मन का शैतान जाग उठा।वह बार-बार बाइक को झटके दे रहा था जिसके कारण महिला के अंग उसकी पीठ से स्पर्श करता और उसे क्षणिक सुख की अनुभूति होती।
कुछ ही मिनटों में तेज झटके के साथ बाइक रोकते हुए कहा -"लिजिए मैडम आप पहुंच गई रंगोली होटल।" लेकिन इस बार के झटके में उसे वह स्पर्श -सुख की प्राप्ति नहीं हुई क्योंकि महिला ने अपना पर्स उसके और अपने मध्य कर लिया था। महिला हौले-से बाइक से उतर गयी।उसने एक बार सुंदरी के मनोभावों को पढ़ने हेतु उसके सुंदर मुखड़े पर नजरें टिका दी। महिला चेहरे पर कृतज्ञता के भाव लिए भोलेपन से बोली-"बहुत-बहुत धन्यवाद भैया ! आपने मुझे पहुंचा दिया।आज आटो-स्ट्राइक होने से मुझे पैदल ही आना पड़ता,और मेरी ऑफिस की जरूरी मीटिंग में मैं लेट हो जाती।"
उसके चेहरे के निर्मल भाव एवं अपने लिए '
भाई' का संबोधन सुन वह अपनी कुत्सित मानसिकता और क्षुद्र व्यवहार पर पाश्चाताप से गड़ा जा रहा था। उससे नजरें चुराता हुआ बाइक आगे बढ़ा दी ।
        सुजाता प्रिय 'समृद्धि'