साक्षरता का अभियान चला,
तो लगे सभी जन पढ़ने।
सीख-सीखकर अक्षर-अक्षर,
जोड़-जोड़ शब्द गढ़ने।
एक नेता जी ने भी अपने,
बेटे को खूब पढ़ाया।
क्या जाने उनके सुपुत्र ने,
उनको मुर्ख बनाया।
रोज खा-पीकर विद्यालय को,
निकलता बस्ते लेकर।
दिनभर मित्रों के घर जाकर,
खेलता जूआ जमकर।
सातवीं की वार्षिक परीक्षा में,
लाया नम्बर जीरो।
घुड़की दे पास कराये नेता जी,
बन गया बेटा हीरो।
फिर निरक्षर गाँव में उन्होंने,
बेटे की ब्याह रचाई।
सास- ससूर फूले न समाए,
पाकर साक्षर जमाई।
एक बार जमाई राजा जी,
पहुँचे जब ससुराल।
सासु-माँ चिट्ठी पढ़ने बोली,
हुआ हाल, बेहाल।
आधे घंटे टकटकी लगाकर,
पढ़ते रहे खोए-खोए।
सासु-माँ को देख बेचारे,
दहाड़ मारकर रोए।
जमाई को रोता देख बेचारी,
सास बड़ी घबराई।
चिट्ठी में कैसी बुरी खबर है,
बताएँ मुझे जमाई।
रोते-रोते बड़ी देर में,
जमाई राजा ने मुँह खोला।
'क' दुबला हो गया सासु-माँ,
बिलख-बिलख वह बोला।
जब मैं लिखता था पट्टी पर,
'क' दिखता था मोटा।
आज देखिए इस चिट्ठी में,
'क' है दुबला-छोटा।
सास-ससूर ने सिर पीटा,
पाकर जमाई साक्षर।
ऐसी साक्षरता से भला है,
रहना हमें निरक्षर।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित (मौलिक)