मौसम की पालकी पर सज सँवरकर ।
आया है वसंत देखो जी दुल्हा बनकर।
नव पल्लवों ने वंदनवार सजाए।
मंजरियों ने स्वागत द्वार सजाए।
कोयल गा रही स्वागत गान।
भौंरों ने मीठे छोड़े तान।
पंखुड़ियों की घुंघट डाल।
फूलों ने पहनाये जयमाल।
पलास सिर पर तिलक लगाकर।
नव कोंपलों से लाया परछकर ।
बेला - जूही औ चंपा-चमेली ।
आगे बढ़कर करी ठिठोली।
चिड़ियाँ चहकी कलियाँ महकी।
चली हवा कुछ बहकी-बहकी।
पत्ते बजा रहे हैं झूमकर ताली।
थिरक-थिरक कर डाली-डाली ।
जन-जन का अब मन है हर्षित।
सरस-सलिल जीवन है पुलकित।
सुजाता प्रिय