Friday, September 16, 2022

पाती ढाई आखर की

पाती ढाई आखर की

ढाई आखर की पाती लिखकर,
            भेजूँ तुझको ओ हरजाई।
लिख निर्मोही कब आओगे,
           समझ न पाते प्रीत पराई।

इस ढाई आखर में छिपे हैं,
          जाने कितने कोमल भाव।
तेरे मन में मोल न इसका,
          भूल गए तुम खाकर ताव।
व्याकुल मन ये तड़प रहा है,      
              डस रही है यह तन्हाई।
लिख निर्मोही कब आओगे,
           समझ न पाते प्रीत पराई।

बहुत पढ़ें तुम पोथी-पुस्तक,
              पढ़ें ना ढाई आखर को।
गागर का तुम मोल न जाने,
                 ढूंढ रहे हो सागर को।
निज विरह में तड़पाते हो,
          तूने यह कैसी प्रीत लगाई।
लिख निर्मोही कब आओगे,
           समझ न पाते प्रीत पराई।

ढाई आखर में समाया,
           प्रेम,प्रीत और प्यार सुनो।
ढाई आखर में समाया,
             जीवों का व्यवहार सुनो।
देख हुआ व्याकुल मन मेरा,
     चंचल चितवन ने ली अंगड़ाई।
लिख निर्मोही कब आओगे,
           समझ न पाते प्रीत पराई।

          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

6 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-9-22} को विश्वकर्मा भगवान का वंदन" (चर्चा अंक 4555) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  2. पूरी पाती ढाई आखर की
    जो तूने धार बहाई।
    और न कुछ, मैं ही वह ढाई,
    मूढ़! तू अबतक समझ न पायी!

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  3. बहुत सुंदर सृजन।
    ढाई आखर जो न समझे वो क्या समझे इन भावों को।

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  4. ढाई आखर का महत्व बताती सुंदर रचना

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  5. सुन्दर प्रस्तुति

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  6. ढाई आखर में समाया,
    प्रेम, प्रीत और प्यार सुनो।
    सुंदर रचना! हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेन्द्र नाथ

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