Sunday, October 16, 2022

आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया

आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया

आमदनी है पाँच सौ,खर्चा करो हजार।
सोचो तेरे जेब की,कितना होगा भार।।

सदा पड़ोसी-दोस्त से,लेना होगा कर्ज।
कर्ज लेने वाले तुम,सदा रहोगे मर्ज।।

कुछ भी लेने के लिए,जाओगे बाजार।
नगद नदारद होयगा,लेना पड़ा उधार।।

अपनी जेब की जिसको,तनिक नहीं हो भान।
समय पड़े तो लोग से,लेना पड़ता दान।।

दिखावे हेतु जो सदा,बनते लोग अमीर।
उनका कहीं-ना-कहीं,लुटता सदा ज़मीर।।

धरा से पांव छोड़कर,उड़ते हैं आकाश।
मुसीबत लगती आ गले,खतरे आते पास।।

अपनी बड़ाई के लिए,करो न ऊंँची बात।
सब लोगों को ज्ञात है,क्या तेरी औकात।।

सुजाता प्रिय समृद्धि

3 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-10-22} को "यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:"(चर्चा अंक-4585) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  2. प्रशंसनीय प्रयास। थोड़ी और मेहनत से अच्छे दोहे बन सकते हैं।

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