बेटियाँ (दोहे )
बेटियों से दुर्भावना, क्यों करते हैं लोग।
जन्म लेते ही बेटियांँ,लगती कोईर्रट रोग।
बेटी रखती मान है, दोनों कुल-परिवार।
जग वालों को बेटियांँ, फिर लगती क्यूँ भार।
बेटियांँ भी होती है,मात-पिता का अंश।
फिर बेटी को देखकर, क्यों है मारे दंश।।
क्यों बेटी को देखकर, चुभता मन में शूल।
बेटी तो परिवार की, होती कोमल फ़ूल।।
बेटी लक्ष्मी -शारदा, दुर्गा की अवतार।
पढ़-लिख देखो बेटियांँ,कर रहीं रोजगार।।
बेटियाँ भी होती हैं,अपनी ही संतान।
उसको भी हमने जना, दिया न कोई दान।।
पढ़ा लिखा काबिल बना,दो इसको सम्मान।
बिटिया हमको है दिया, ईश्वर ने वरदान ।।
बेटियों के विवाह में,लेते लोग दहेज।
बेटी पा न खुश रहते,रखते नहीं सहेज।।
बेटी को ना मानिए,कभी मही पर भार।
बेटी से घर शोभता, शोभित है संसार।।
बेटियों से होते हैं,जीवन का कल्याण।
कल की जननी है सुता,तू बात हमारी मान।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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