आजादी की ओर बढ़ो तुम,
उठो नारियों भारत की।
झूठे बंधन तोड़ बढ़ो तुम,
उठो नारियों भारत की।
कपटी-रावण हर ले जाए,
ऐसे पल मत आने दे।
राम अग्नि में तुझे जलाए,
ऐसे पल मत आने दे।
प्रतिकार मुंह खोल करो तुम,
उठो नारियों भारत की।
चीर- हरण करे दुशासन,
ऐसे पल मत आने दे।
पत्थर तुमको कर दे गौतम,
ऐसे पल मत आने दे।
बलात् अंधी मत बनो गंधारी-सी
उठो नारियों भारत की।
असुरों को मार गिराने वाली,
दुर्गा-सी बन जाओ तुम।
यमराज से टकराने वाली,
सावित्री बन दिखाओ तुम।
अहिल्या-सी पालने डाल दुष्टों को,
उठो नारियों भारत की।
गार्गी-सी रच वेद ऋचाएं,
मैत्रेई-सी बन ब्रह्मज्ञानी।
शबरी-सी बन जा सुहृदया,
यशोदा मां-सी बलिदानी।
बनो अरूंधति-सी आदर्श देवी,
उठो नारियों भारत की।
स्वतंत्र भारत में भी तेरे,
जंजीर पड़ी है पांव में।
क्यों भोली-नादान बन बैठी,
डुबने वाली नाव में।
घूंघट के पट खोल बढ़ो तुम,
उठो नारियों भारत की।
मत स्वयं को तुम कैद करो,
कुरीति की सलाखों में।
दिल करुणा से भरा हुआ है,
नीर भरा है आंखों में।
अंधविश्वास को पीछे छोड़ बढ़ो तुम,
उठो नारियों भारत की।
आजादी तुम अगर चाहती,
कुछ करतब दिखलाना होगा।
अंग्रेजों से टकराने वाली,
लक्ष्मी-सी टकराना होगा।
हैवानों से लो डटकर टक्कर,
उठो नारियों भारत की।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
सार्थक आह्वान ...
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया
ReplyDeleteबेहतरीन रचना सखी 👌👌
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सखी।
Deleteबहुत ओज भरा आह्वान नारियों के नाम प्रिय सुजाता नवयुग की शौर्य गाथा लिखने के लिए ये परिवर्तन अपेक्षित है | हार्दिक स्नेह और शुभकामनाएं आपके लिए |
ReplyDeleteआ० सखी रेणु जी सभी नारियों के साथ-साथ आपको भी मेरी यह रचना पसंद आएगी,यह मुझे पूर्ण विश्वास था। आपके स्नेहाशीष और शुभकामनाओं की मुझे बेसब्री से प्रतीक्षा थी जिसे पाकर हृदय में प्रेम और विश्वास का संचार हो गया। सादर नमन सखी आपको। इस तरह की अपनी दूसरी रचना आपकी समक्ष प्रस्तुत करती हूं।
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