जो कल गरीबी का पर्याय था,
आज वही है फैशन।
जिसे पहनने में हीन भाव था,
वे आज कहते नो मेंशन।
फटे-चिटे परिधान है बिकते,
दुकानों में खुले आम।
रंग-उड़े धब्बेदार कपड़ों के,
होते हैं ऊंचे दाम।
चिथड़े तन पर डाल सेठ भी,
चलते हैं सीना तान।
आज चिथड़ा बन गया है देखो,
अमीरी की पहचान।
इसे पहन आज हैं लोग,
फैशनेबल कहलाते।
भिखारियों-सा वेश पहन हैं,
मन-ही- मन इतराते।
आर्थिक गरीबी की इलाज है,
गरीबों को देना दान।
मानसिक गरीबी लाइलाज है,
बात मेरी तू मान।
व्यर्थ ही अपना खून सुखाते,
देख वसन बदहाल।
जो जन ऐसे वसन पहनते,
उनको न कोई मलाल।
सुजाता प्रिय 'समद्धि'
स्वरचित, मौलिक
चिथड़े तन पर डाल सेठ भी,
ReplyDeleteचलते हैं सीना तान।
आज चिथड़ा बन गया है देखो
फैशन की पहचान
सही में फटे कपड़े फैशन बन गए हैं सुजाता जी😃खूब लिखा आपने 👌👌👌
सादर नमन सखी! बहुत दिन बाद आपसे बात हुई। आपकी टिप्पणी उर्जा प्रदान करती है। बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteयथार्थ को कहती अच्छी रचना ...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सखी
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