Wednesday, March 17, 2021

पत्र-पेटी



एक जमाना वो था जब हम,
        पत्र निकालते थे बोरे भर।
एक जमाना यह है देखो,
    पत्र निकलते हैं गिन-चुनकर।
पोस्ट कार्ड, अंतर्देशीय-लिफाफे से,
      भरी रहती थी यह पत्र-पेटी।
लेकिन आज नहीं मिलती है,
            इस पेंटी में कोई चिट्ठी।
नहीं अब कोई पत्र लिखता,
नहीं किसी को पाती की जरूरत।
हर घड़ी काल और मैसेज होता,
        नहीं पाती पढ़ने की फुर्सत।
फिर भी आज बनी हुई है,
    कुछ जगह उपयोगिता हमारी।
क्योंकि मोबाइल निपटा नहीं है,
        दफ्तर की कुछ बातें प्यारी।
आज भी हम संदेश-वाहक हैं।
मोबाइल जगह मेरी ले नहीं सकता।
आज भी लोगों को होती है,
           पाती पढ़ने  की आतुरता।
सरकारी दफ्तर में बनी हुई है,
  संदेश-प्रेषण में डाक की महत्ता ‌।
आज भी सभी जन को होती है,
            पत्र पाने की व्याकुलता।
         सुजाता प्रिय 'समृ‌द्धि'

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2071...मिले जो नेह की गिनती, दहाई पर अटक जाए। ) पर गुरुवार 18 मार्च 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सादर धन्यवाद भाई!

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  3. चिट्ठी पत्री ज़माना ही कुछ और था . जितना डाकिये का इंतज़ार रहता था शायद किसी का नहीं . आज कल तो रेडीमेड सन्देश होते हैं .थोक के भाव में भेज दिया जाता सबको . सच कितने मन से लिखी जाती थी चिट्ठी .... हमको तो वो ज़माना याद है .

    कार्यालयों में पाती का चलन भी कम ही हो रहा .
    काफी कुछ याद दिला दिया आपने .

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  4. बहुत सुंदर सृजन।
    सादर प्रणाम 🙏

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    1. हार्दिक शुभकामनाएं बहना!

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  5. सच में वो भी और ही जमाना था..इंतजार...
    बहुत बढ़िया

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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  6. उस जमाने की क्या कहिये, उसकी यादें बाकी है। सुंदद रचना सुजाता जी।

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    1. हार्दिक आभार सखी रेणु जी!नमन

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