फुक्कन थुक्कन दोनों भाई,
खाने में थे माहिर।
दूर-दूर तक दावत होती,
दोनों रहते हाजिर।
पहन लखनवी धोती-कुरता,
बांध सिर पर साफा।
एक हाथ में रूमाल पकड़ कर,
दूजे में खाली लिफाफा।
कोई उनसे अगर पूछता ,
भाई आप किधर से हैं।
कभी वे कहते कन्या पक्ष से,
कभी कहते हम वर से हैं।
इस तरह रोज चटकीले व्यंजन,
खूब छककर खाते।
बिना मेहनत के खा-पीकर वे,
सुख से दिन बिताते।
एक दावत में लोगों ने पूछा-
भाई जी आप कहां से आये।
माफ़ करेंगे आप कौन हैं,
पहचान नहीं हम पाये।
फुक्कन बोले कन्या पक्ष से हूं,
थुक्कन बोले बारात से आया।
यह सुनते ही दावत वालों ने,
झन्नाटेदार चपत लगाया।
यहां श्राद्ध का भोज चल रहा,
और तुम आए हो बारात।
कन्या के भाई और बाराती,
खा रहे हो बैठकर साथ।
सिर पर पैर रख दोनो भाई,
भागे जान बचाकर।
कभी भूलकर न दावत में खाते,
बुलाने पर भी जाकर।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
यथार्थपूर्ण हास्य रचना..सच ऐसे बहुत लोग होते हैं,जो बिन बुलाए मेहमान बन के व्यंजन छंकते हैं, परंतु आजकल लोग अलर्ट हो गए हैं,ऐसे कई प्रसंग इधर सुनने को मिले, आपने बखूबी शब्दचित्र रच दिया..सादर शुभकामनाएं। समय मिले तो कभी मेरे ब्लॉग पर अवश्य पधारें ।
ReplyDeleteजी सादर धन्यवाद।
ReplyDeleteहा हा हा ... बेचारे . क्या खाका खींचा है . बढ़िया .
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सखी प्रसंशा के लिए।
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