Thursday, March 25, 2021

होली के रंग (लघुकथा )



होली में अब चार दिन शेष हैं। लेकिन इस बार मुहल्ले में वह उल्लास नहीं जो विगत वर्षों में हुआ करता था। जिसका खास वजह कोरोना काल था।
उससे भी खास वजह
पिछली होली में स्मृति भाभी को रंग लगाने के कारण हुई प्रतिक्रिया थी।
नई नवेली स्मृति भाभी के गालों पर मुहल्ले के लड़के-लड़कियों ने इतना रंग लगाया था कि उनके चेहरे की चमड़ी पर जलन होने लगा और बड़े-बड़े फसलें पड़ गये‌। महीने भर चिकित्सा कराने के बाद घाव ठीक हुआ। कमला चाची ने गुस्से में कहा दिया। कितना घटिया रंग लगाया मेरी बहू को ? अब तुम लोग इसे रंग लगाने मत आना।उस दिन से सभी चाची से नजरें चुराने लगी थी।
आज चाची अचानक मिल गई और बोली तुम लोगों को स्मृति ने बुलाया है।
सभी सहेलियां सशंकित हो उठी। पता नहीं क्या बबाल खड़ा हो जाए। लेकिन चाची ने कहा था इसलिए भाभी से मिलने गयीं।
उनमें से एक ने भाभी को नमस्ते करते हुए कहा-पिछली होली में हमने भाभी को बहुत परेशान किया था। इसलिए भाभी नाराज हैं।
स्मृति भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा-अरे ऐसी बात नहीं, मैं नाराज क्यों रहुंगी।आपलोग ने जान-बूझकर ऐसा थोड़े ना किया था।वह तो बाजार के रंग ही घटिया किस्म के थे। इस बार हम प्राकृतिक रंगों से होली खेलेंगी।आप सभी जरूर आइएगा।एक दिन तो मिलने-खेलने का इतना सुनहरा अवसर मिलता है।
फिर क्या था , भाभी के बताए नियमों से सभी ने होली के लिए प्राकृतिक रंग तैयार किये।
पलाश के फूलों को पीसकर उसका रस निचोड़कर लाल रंग बने।पालक अथवा सेम की पत्तियों को पीसकर हरा, चुकंदर के रस से गुलाबी,गेंदे के फूलों तथा हल्दी से पीला, और इन मुख्य रंगों के मिश्रण से नीला, नारंगी और बैंगनी।
स्म‌ति भाभी के संग सभी सखियों ने एक दूसरे के गालों में खूब रंग लगाया।
न किसी को कोई नुक़सान।
इन्हें छुड़ाना भी है आसान।
सभी ने खूब मस्ती किए।
बुरा न मानो होली है।
जोगिरा सा रा रा रा रा रा रा रा रा
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
                स्वरचित, मौलिक

5 comments:

  1. जानकारी देती अच्छी पोस्ट .

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  2. सादर धन्यवाद एवं आभार

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  3. सादर आभार सखी!

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  4. सार्थक प्रस्तुति ।

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  5. सुंदर सार्थक सृजन।
    कथा के माध्यम से सुंदर प्रेरक कथ्य।
    होली पर हार्दिक शुभकामनाएं सखी।

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