राजभक्तिन तुझसा नहीं कोई,
हे मां वीरांगना पन्ना धाय।
अपने पुत को बलि चढ़ाकर,
राजकुंवर को लिया बचाय।
तुम पद्मिनियों से भी बढ़कर,
जला मरी जो जौहर-ज्वाला।
मीरा से भी तू बढ़कर हो,
भक्ति में पी गई विष का प्याला।
षड्यंत्रों से घिरा हुआ था,
राजकिला चितौड़ गढ़ का।
अभी बालक था भावी राजा,
उदय सिंह चितौड़गढ़ का।
पिता का हत्यारा चचेरा चाचा,
उसे मार गिराने को उद्धत।
राज माता ने पन्ना धाय से,
बोल उठी हों नतमस्तक।
इसे बचाना तुम हे पन्ना,
धाय नहीं तुम माता हो।
इसको अपना दूध पिलाया,
इसके जीवन दाता हो।
विक्रमादित्य का वंश मिटाने,
आया वनवीर उसे मारने।
पन्ना उदय की हत्या को,
सोंच रही थी टालने।
झूठे पत्तलों की टोकरी में,
रख भगा दिया सेवक के साथ।
पुत्र चंदन को सुला पलंग पर,
मुंह दिया चादर से ढाप।
धोखे में वनवीर ने उसके,
टुकड़े -टुकड़े कर मार दिया।
राज पता न चले वनवीर को,
पन्ना ने आंसू टाल दिया।
मृत बेटे का मस्तक चुमकर,
कुंवर को बचाने दौड़ पड़ी।
कर्तव्य परायण देवी तूने,
लाश भी बेटे की छोड़ चली।
किस तरह पत्थर किया कलेजा,
बलि दे अपने लाल को।
पुत्र शोणित से सींच बचाया,
राजवंश के भाल को।
हे वीरांगना मां भारत की,
तुमको बारम्बार नमन।
स्वामी भक्ति पर बलि चढ़ाई,
तुझे हृदय से अभिनंदन।
स्वरचित, मौलिक
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
रांची, झारखण्ड
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