सुनाऊं क्या तुझे किस्सा,
जो अबतक ही अधूरा है।
किया जो प्रेम है तुझसे,
हुआ अबतक न पूरा है।
बसाया है तुझे दिल में,
बनाकर फूल तुम समझो।
सदा तुम याद रहते हो,
सकी न भूल तुम समझो।
प्रेम के शीर्ष पर मैंने,
अनोखी डोर बांधी है।
उसी डोरी से अपने दिल,
के चारों ओर बांधी है।
अपने प्रेम की मोती,
पिरोकर प्रीत धागे में।
बनाकर हार मैं उसको,
रख दी तेरे आगे में।
प्रेम पूरा नहीं होता,
घड़ी-पल, दिन-महीने तक।
प्रेम तो दिल में होता है,
मीत से अपने जीने तक।
तब-तक यह अधूरा है,
सनम यह बात तुम मानो।
यह पूरा नहीं होता,
पते की बात तुम जानो।
चलेगी जब तलक सांसें,
रहेगा प्रेम यह तुझसे।
रहुंगी जब तलक जिंदा,
जुदा ना होना तुम मुझसे।
मेरे सांसों की डोरी मैं,
बंधी है प्रेम की डोरी।
जब तक जान है तन में,
अधूरी प्रीत यह कोरी।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
रांची, झारखण्ड
स्वरचित, मौलिक
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