Monday, December 16, 2024

दिन बीता जाए रे


दिन बीता जाए रे

दिन बीता जाए रे ! दिन बीता जाए। 
तम घिरता जाए रे! तम घिरता जाए। 

दिन भर चलकर सूरज लौटा, फैल रहा है अंधेरा। 
खग कलरव कर उड़ते जाते,खोज रहे हैं बसेरा। 
तुम भी अपने घर को पहुंचो, मधु रजनी का बेरा। 
मन का दीप जलाओ, सुख से रैन बिताओ। 
जीवन को रंगी बनाओ, जो मन भाये रे !
दिन बीता जाए !
वस्ती-वस्ती घूम- घूम कर, देख ले दुनिया सारी। 
दुनिया की है चाल निराली, कुछ तीखी कुछ प्यारी। 
दोनों को जब ग्रहण करो तो, हो जाएगी न्यारी। 
दिल में सफाई लाओ, जीवन में सच्चाई लाओ। 
मन में अच्छाई लाओ,इससे जग जीता जाए रे। 
जग जीता जाए। 
दिन बीता जाए रे 

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, December 14, 2024

रंग-बिरंगे फूल हैं हम

रंग-बिरंगे फूल हैं हम

भारत मांँ की फुलवारी के, रंग-बिरंगे फूल हैं हम। 
वैर द्वेष हम कभी न करते, रहते सबसे मिल-जुल हम। 

नाम हमारा हिन्दू- मुस्लिम, जैना बुद्ध, सिख ईसाई। 
आपस में हम कभी न लड़ते, रहते मिल भाई- भाई। 

सुगंध फैलाते दिशा-दिशा,शोभित कर क्यारी- क्यारी। 
महकाएँगें माँ का आँचल, यह धरती प्राणों से प्यारी। 

देश हमारा चमन बिहंसता,हम बच्चे इसके माली। 
सींचेंगे हम क्यारी- क्यारी, महकाएँगें डाली-डाली। 

दमकेगा यह देश हमारा, नव प्रसून मुस्काएँगे। 
करके तन-मन-प्राण निछावर, सुंदर स्वर्ग बसाएँगे। 

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, December 13, 2024

सच्चाई तेरा हथियार

सच्चाई तेरा हथियार

कहते थे गाँधीजी बारम्बार। 
    सादा जीवन, ऊँच्च विचार। 
         अहिंसा ही जीवन का सार। 
              कर इसको मन से स्वीकार। 

मिथ्या ही  है बस तेरी हार। 
    सच्चाई ही है तेरा हथियार। 
        तुझपर जन्मभूमि का भार। 
            कभी न जाना हिम्मत हार।

सहन  करो  मत अत्याचार। 
    स्वतंत्रता  तेरा है अधिकार। 
        यही है जीवन  का  आधार।             
            भारत माँ से तू करना प्यार। 

                  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

बापू को नमन

बापू को नमन

जन्मदिवस है दो अक्टूबर। 
    जन्मस्थान  था  पोरबन्दर। 
         पुतली  वाई  इनकी माता। 
            करमचंद  गाँधी  थे  पिता। 

देश -सेवा  का  व्रत लिया। 
    आजादी  का   यज्ञ किया। 
        करो  या मरो इनका नारा। 
            जिससे जागा भारत सारा। 

सत्य-अहिंसा का ले हथियार। 
    मिटाए अँग्रेजों का अत्याचार। 
        दिलाई  भारत  को आजादी। 
            नमन  बापू  महात्मा  गॉंधी। 

                   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

माता रानी से विनती

माता रानी की विनती 

करुँ नमन मैं बारंबार,कष्ट से दो मांँ उबार।
भँवर में नैना मेरी,कर दे माँ उस पार।।
निश दिन करुँ पुकार,हृदय से करुँ गुहार,
भंवर में नैया मेरी......
जीवन नैया तुम ही खेवैया,
अब तो पार करो हे मैया,
सारे जगत की तुम रखबैया,
तुझ बिन कोई नहीं खेबैया।
मुझ पर भी कर उपकार ।
दुनियाँ मेरी दे संवार,
भंवर में नैया मेरी......
बिगड़ी मेरी बना दो हे माता !
हे जग-जननी हे जगमाता।
द्वार तुम्हारे जो भी है आता।
पूर्ण मनोरथ सब सुख पाता।
आई हूंँ मैं तेरे द्वार, 
मुझको भी दे अपना प्यार ।
भंवर में नैया मेरी......
मांँ मैं तेरे चरणों की दासी।
आज मिटा दो सभी उदासी।
तेरी दया की मैं अभिलाषी।
तेरी कृपा की हूँ प्रत्याशी।
कर रही मैं पुकार,मेरी भी सुनो गुहार।
भँवर में नैया मेरी.......
आई हूँ मैं तेरे द्वार.......
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

कौवे की नादानी

कौए की नादानी

एक कौआ प्यास से व्याकुल
               मुश्किल से पानी पाया। 
घडे़ में थोड़ा पानी देख, 
                   उसके मन में आया। 
मेरे पूर्वज बड़े मूर्ख थे जो, 
             कठिन परिश्रम करते थे। 
एक-एक कंकड़ लाकर, 
                 घडे़ में डाला करते थे। 
मैं तो एक बड़ा-सा पत्थर, 
               उठाकर घड़े में डालूँगा।
थोड़ी-सी मेहनत कर ही, 
                   मैं पानी को पा लूंगा।
जोर लगा बड़ा-सा पत्थर, 
                 चोंच में उसने उठाया। 
झट जाकर उसने उसको, 
                  घडे़ के अंदर गिराया। 
भारी पत्थर से घटतल टूटा, 
                लगा पानी अब बहने। 
प्यासा कौआ अति विकल हो, 
                      लगा चोंच रगड़ने। 
इसीलिए करो सब काम, 
           थोड़ा तुम सोंच-समझकर, 
बड़े-बुजुर्गों के अनुभव का, 
                        पूरा लाभ लेकर। 
  
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Tuesday, December 10, 2024

अकड़

अकड़ 

दो बकरियाँ पतले पुल पर, 
आमने सामने आ रही थीं। 
मैं तो उसे रास्ता नहीं दूंगी, 
सोंच दोनों इठला रही थी। 

           पहली बोली बायें हट कर, 
           तुम पहले मुझको जाने दे। 
           दूसरी बोली मै नहीं हटती,
           पहले मुझको तुम जाने दे। 

पहली बकरी अकड़ दिखा, 
बीच रास्ते पर खडी़ रही। 
दूजी भी क्या कम थी उससे, 
अपनी जिद्द पर अड़ी रही। 

        पहली बकरी ताव में आकर, 
           सींग घुमा दूसरी को मारी। 
            दूसरी भी गुस्से में आकर, 
            दे दूलत्ती पहली को मारी। 

लड़ते-लड़ते दोनों गिर गई, 
नहर के बहते जलधार में। 
डूब मरीं वे आन-शान में, 
उनकी जान गयी बेकार में। 

         सुन बच्चों!अकड़ दिखाकर।
          लड़- झगड़ मत देना जान। 
          समझदारी से ही काम लेना 
        बुद्धिमानी की होती पहचान। 
   
    सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

सहयोग और समझदारी

सहयोग और समझदारी

दो बकरियाँ पतले पुल पर, 
आमने- सामने आ रही थी। 
कैसे  रास्ता मैं पार करूँगी, 
मन में सोंच घबरा रही थी। 

           जब  दोनों  पास आईं तब, 
         पहली बोली  बहन  नमस्ते। 
          उन बकरियों- सा नहीं करेंगे, 
          मरी गिरकर जो लड़ते लड़ते। 

दूसरी बोली बहन बता दो। 
तुमने क्या सोचा है उपाय। 
रास्ता दोनों को मिल जाए, 
जान भी दोनों की बच जाय। 

            पहली बोली- मैं बैठती हूँ, 
            तुम मेरी पीठ पर चढ़कर। 
            पार कर जा रास्ता अपना, 
            चली जाऊँगी मैं भी उठकर। 

ऐसे उन्होंने सहयोग देकर, 
एक-दूजे की जान बचाई। 
समझदारी से काम किया, 
नहीं किया उन्होंने लड़ाई। 

           राह बनाना जिस तरह से, 
           बुद्धिमानी का होता काम। 
           रास्ता देना भी उसी तरह
           समझदारी का होता नाम। 

              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

श्रवण कुमार

श्रवण कुमार

माता-पिता को तीर्थ कराने,
                बहंगी लेकर चल पड़ा। 
सोलह बरस का बालक था वह
       नाम था उसका श्रवण कुमार। 

राह में माता-पिता जी बोले, 
                 प्यास लगी है जोर से। 
बेटा जाकर पानी लाना, 
              घडा़ भर किसी ओर से। 
वृक्ष के नीचे बहंगी रखकर, 
                  पानी लाने चल पड़ा। 
सोलह.बरस का बालक....... ....
घडा़ डुबाया पानी में जब, 
              आवाज हुई तब जोर से। 
दशरथ राजा हाथी समझकर, 
                    मारे उसको तीर से। 
मरणासन्न हो गिरा धरा पर, 
         मुँह से निकल पड़ा चित्कार। 
सोलह बरस का बालक................... 
मामा पहुंचे सुन चित्कार, 
              हाय रे! मैंने क्या किया। 
हाथी समझकर भांजे को ही, 
              तीर चलाकर मार दिया। 
मन ग्लानि में डूब गया और, 
            मुँह से निकला हा-हाकार, 
सोलह बरस का बालक...... 

कहा श्रवण ने व्यर्थ में मामा! 
                  आप यहाँ रुआंसे  हैं। 
पानी पिला दें जाकर मामा, 
                माँ- पिताजी प्यासे हैं। 
प्यासे रहेंगे अगर वे मामा, 
                 अटके रहेंगे मेरे प्राण। 
सोलह बरस का बालक............. 
पाँव दबाकर दशरथ पहुंचे, 
                 उन दोनों के नजदीक। 
पानी पिलाया मुक होकर के, 
                 बेचारे को नहीं थे दृग। 
बोले -बेटा तू क्यों चुप है, 
              लगता है तुम थक गया। 
सोलह बरस का........ 
अंधे माता पिता ने सुनी जब, 
         दशरथ से यह करुण- कथा। 
बोले जला दो हम दोनों को, 
                 बेटे के संग बना चिता। 
पुत्र वियोग में तुम भी मरोगे,
              मर रहे हम जिस प्रकार। 
सोलह बरस का ...... 
   सुजाता प्रिय समृद्धि

Sunday, December 8, 2024

बुद्धिमानी

बुद्धिमानी

नहर पार के अमरूद पेड़ पर, बैठा था एक बंदर। 
उस पेड़ में अमरूद के फल, लगे हुए थे सुंदर। 
इस पार से राजू ने सोचा,कैसे अमरूद खा पाऊंँगा।
हट भी जाए बंदर तो क्या,नहर पार कर पाऊंँगा ? 
उसके मन में उपजी एक, तत्काल योजना प्यारी। 
झट उठा एक नन्हा-सा पत्थर, बंदर पर दे मारी। 
बदले हेतु बंदर को जब,मिला न पेड़ पर पत्थर। 
झट से अमरूद तोड़ पेड़ से, फेका राजू के ऊपर। 
पहले से तैयार था राजू,लपक लिया अमरूद को। 
मीठा अमरूद खा मन से,धन्यवाद दिया बंदर को। 
बुद्धिमान लोग किसी काम में,जब दिमाग लगाते। 
बुद्धि-कौशल व चतुराई से, मनचाहा फल हैं पाते। 

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, December 7, 2024

बांझ (लघुकथा)

बांझ

तुम चुमापन करने लायक नहीं हो। तुझ मनहुस का साया भी किसी पर पड़ेगा वह भी नि: संतान रह जाएगा।अभी सगुन के लिए दुल्हन की गोद में बच्चा डाला जाता है वह दम भी तुममें नहीं है।सांस ने नफरत और घृणा से मुँह बनाकर अपनी शोले उगलती आँखों से देखते हुए कहा उसके हाथों से चावल छीन कर फेंक दिया। 
दीवार पर रचित सुंदर रंगोलीनुमा कोहबर के आगे बैठी नवेली देवरानी घूँघट की ओट से उसे देखने लगी। देवर सिर झुकाए बैठा था। 
मुहल्ले और परिवार की स्त्रियों की सहानुभूति पूर्ण नजरें देख रचना की सुंदर मुखड़े पर दुख, छोभ और अपमान के मिले जुले भाव उत्पन्न हुए।डबडबा आई सुन्दर नयनों से आसुओं की धार ढलक आई। 
  क्ष अचानक उसके चेहरे पर कुछ निर्णायात्मक भाव उभरे।फिर रणचंडी- सी हाथ उठाकर रोती हुई बोली- हाँ s s s मैं चुमापन करने लायक नहीं हूँ।
लेकिन होती ! यदि आप का बेटा नामर्द नहीं होता। आपके बेटे और घर की इज्जत की खातिर मैंने अपने मन से मातृत्व भाव को भी मार दिया। बहू की जगह मुझे ऐसा कलंकित नाम देकर प्रताड़ित किया सभी कुछ सहन किया।लेकिन भरे समाज में............ 
      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, December 6, 2024

मुझे पता है

                          मुझे 
                     पता है प्रिय 
                तुम्हें मेरी इच्छा नहीं 
              फिर भी मुझे सदैव ही 
          तुम्हारी प्रतीक्षा लगी रहती है
       तुम आओगे तो मेरी परछाई से भी
     दूर रहोगे, मगर एक बार मुझे निहारोगे।
नाम लेना स्वीकार नहीं पर,मन-ही-मन पुकारोगे 
      क्योंकि, न तो मैं फूलों- सी कोमल हूँ
      न सुंदर ! बस रंग- रूप-सुगंध विहिन
      तब भी  तुम आकर्षित  हो  कर यहाँ
      कुछ पल  का  सांनिध्य पाने के लिए 
      अनजानी डोर-से खिंचे चले आओगे
      फिर संकोच के आगोश में पलकें मुंद,
      मन- ही -मन कुछ तराने गुनगुनाओगे
                 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'