दिन बीता जाए रे
दिन बीता जाए रे ! दिन बीता जाए।
तम घिरता जाए रे! तम घिरता जाए।
दिन भर चलकर सूरज लौटा, फैल रहा है अंधेरा।
खग कलरव कर उड़ते जाते,खोज रहे हैं बसेरा।
तुम भी अपने घर को पहुंचो, मधु रजनी का बेरा।
मन का दीप जलाओ, सुख से रैन बिताओ।
जीवन को रंगी बनाओ, जो मन भाये रे !
दिन बीता जाए !
वस्ती-वस्ती घूम- घूम कर, देख ले दुनिया सारी।
दुनिया की है चाल निराली, कुछ तीखी कुछ प्यारी।
दोनों को जब ग्रहण करो तो, हो जाएगी न्यारी।
दिल में सफाई लाओ, जीवन में सच्चाई लाओ।
मन में अच्छाई लाओ,इससे जग जीता जाए रे।
जग जीता जाए।
दिन बीता जाए रे
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'