Sunday, June 21, 2020

धरती की चिट्ठी वर्षा के नाम

आषाढ़ शुक्ल,दिनांक द्वितीया
    बादलों से बने घर के पते पर।
       सूर्य किरण की तप्त कलम से,
           कड़ी धूप की तपते पन्नें पर।

अपने गरम कर-कमलों से,
    धरती ने लिखी एक चिट्ठी।
        रूठी वर्षा को मनाने को,
         लिखकर बातें मीठी-मीठी।

हे प्रिय सहेली बरखा रानी,
   तुम्हें मेरा पहुँचे शुभ-प्यार।
       बहुत दिन हुए तुमसे मिले,
          मिला न तेरा कोई समाचार।

समय निकाल मिलने आओ,
    मैं राह तुम्हारी हूँ देख रही।
        नयन बिछा राहों में मैं तेरी,
           चहुँ ओर नजरें हूँ फेक रही।

सावन की सौगात देने को,
     सखी तुम्हें आना ही होगा।
        बादल-बिजली घोर-घटा को,
            अपने संग लाना  ही होगा।

झम-झम पानी की बुँदी भी,
    लेकर आना अपने साथ में।
        फुहारों की रसभरी मिठाई,
            संदेशा लाना तुम  हाथ में।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
  स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

10 comments:

  1. वाह!लाजवाब सृजन ..आषाढ़ शुक्ल,दिनांक द्वितीया
    बादलों से बने घर के पते पर।
    सूर्य किरण की तप्त कलम से,
    कड़ी धूप की तपते पन्नें पर।...हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति .

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  2. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।भावों को समझने और भावपूर्ण प्रतिक्रिया देने के लिए।नमन

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  3. वाह! अद्भुत बिम्बों को मीठे शब्दों की चाशनी में छान लिया। बहुत सुंदर। बधाई!!!

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  4. सादर धन्यबाद भाई ! नमन।

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२८-०६-२०२०) को शब्द-सृजन-२७ 'चिट्ठी' (चर्चा अंक-३७४६) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  6. जी सादर धन्यबाद। मेरी प्रविष्टि के लिंक की चर्चा शब्द सृजन में करने के लिए।

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  7. सादर धन्यबाद

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  8. वाह!!!!
    धरती का पत्र बरखा के नाम ...बहुत ही सुन्दर अद्भुत कल्पना।
    लाजवाब सृजन।

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  9. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी

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