Wednesday, June 24, 2020

हम दो, हमारे दो ( लघु-कथा )

आज अर्चना का मन बड़ा बेचैन था।उसकी माँ की तवियत ज्यादा खराब है।लेकिन मोहन को छुट्टी नहीं।वह अकेली चली जाती।लेकिन दोनों बच्चों की परीक्षा चल रही है। उन्हें वह ले भी नहीं जा सकती।ना ही छोड़ सकती है।
मोहन अकेले उन्हें सम्हाल नहीं सकते।किसके पास उन्हें छोड़कर जाए।पिछली बार जब वह खुद बीमार पड़ी थी तो मोहन ने पड़ोस में उन्हें छोड़ दिया था।उन्होंने उन्हें ठीक से खिलाया-पिलाया।किन्तु उनके बच्चों ने उन्हें जाने कैसी-कैसी गंदी हरक्कतें , शैतानियाँ एवं गालियाँ  सिखा दी।इसीलिए जब मोहन का एक्सीडेण्ट हुआ तो उन्हें घर में ही एक कमरे में बंद कर चली गई ।लेकिन जब वापिस आई तो देखी उतनी देर में उन्होंने कितने सारे सामान तोड़-फोड़ डाले।शरीर में कितनी जगह चोटें लगा ली।आपस में लड़कर एक-दूजे का शारीरिक नुकसान भी कर लिया।
     काश कोई घर में उन्हें देख-भाल करने वाला होता।
पर कोई देख-भाल करने वाला होता कैसे ? उसकी अंतरात्मा ने उससे पूछते हुए याद दिलाया। तुम तो किसी को अपने साथ रहने नहीं देती।अभी भी घर से आते वक्त मोहन साथ में अपनी माँ को लाना चाहता था तो तुमने उसेे मना करते हुए कहा था हमारे घर में बस हम दो , हमारे दो ही रहेंगे। कभी भी माँ-पिताजी या कोई परिवार का सदस्य आ गया तुम्हारी तवियत बिगड़ जाती है या खाना बनाना भूल जाती हो।पिछली बार पिताजी आए थे तो उन्हें बार-बार मैगी खाने दे देती थी।जबकि तुम्हें पता है कि उन्हें मैंगी नहीं पसंंद।
लेकिन उनके रहने पर मुझे अतिरिक्त जिम्मेदारियाँ निभानी पड़ती है।फिर बच्चे उनसे चिपके रहते हैं और समय पर पढ़ाई -लिखाई नहीं कर पाते।उसने अपने आप से कहा।
तो फिर तुम्हारी मदद कोई कैसे कर सकता है। तुम एकल परिवार में रहोगी तो बच्चों को संयुक्त परिवार की सुरक्षा कैसे मिलेगी ?
              सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

5 comments:

  1. बहुत-बहुत धन्यबाद श्वेता।कल देखुँगी तुम्हारी सुंदर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  2. संयुक्त परिवार के खंडहरों पर उगते एकल परिवार की विसंगतियों के सच का बयान!

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर धन्यबाद भाई।

      Delete
  3. वक्त के हिसाब से बचा कौन है ... पर सार्थक लेखन

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।

      Delete