रथ-यात्रा पर भी रोक है।
हा यह कैसा संयोग है।
मानव जन की मनमानी का,
लगता जैसे यह भोग है।
चपेट में जिसकी दुनियाँ सारी।
कर दिया सबका जीना भारी।
हे भगवान,कर कल्याण,
छाया यह कैसा रोग है।
मिटा दो जन के सारे पाप।
दूर करो सबके संताप।
कृपा करो हे कृपा निधान।
भयभीत यहाँ सब लोग हैं।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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