Wednesday, June 10, 2020

गजल

अभी तो खुद पड़ी बीमार दुनियाँ।
लगाए क्या कोई बाजार दुनियाँ।

कभी थी दुनियाँ में जीनेे की चाहत,
अभी तो लग रही बेकार दुनियाँ।

अभी तो दाने के मुहताज हैं सब,
करे क्या अब कोई व्यापार दुनियाँ।

कभी अकड़ दिखा रहती खड़ी थी,
अभी तो है बड़ी लाचार दुनियाँ।

विपदा कब टलेगी भगवान जाने,
अभी तो है पड़ी मजधार दुनियाँ।

ईश्वर अब तुम्हीं इससे उबारो,
विनय में कर रही चित्कार दुनियाँ।
             सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित

4 comments:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 11 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



    आपकी रचना की पंक्ति-

    "अभी तो दाने के मुहताज हैं सब..."

    हमारी प्रस्तुति का शीर्षक होगी।

    ReplyDelete
  2. जी सुप्रभात। धन्यबाद भाई! मेरी रचना को पाँच लिकों के आनंद में साझा करने के लिए तथा मेरी पंक्तियो को शीर्षक बनाने के लिए।सादर नमन

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर सार्थक समय के दर्द उकेरती सुंदर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  4. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।सादर

    ReplyDelete