बचपन से ही महेश और रोहन के बीच प्रगाढ़ मित्रता थी।रहते तो दोनों एक ही कस्वे में थे।लेकिन दोनों के घरों के बीच काफी दूरी थी।फिर भी उन्हें एक-दूसरे से मिले बिना चैन नहीं।
लेकिन,'कभी-कभी खुबियाँ भी अभिशाप बन जाती हैं।'
ऐसी ही कुछ बातें उनकी मित्रता में भी ग्रहण लगा गई।क्योंकि महेश एक कुशल कलाकार था।उसे लेखन,गायन ,वादन ,चित्रकारी,नृत्य इत्यादि में महारत हासिल थी।रोहन उससे उन कलाओं को सीखता और उसकी सराहना भी खूब करता।किन्तु जब महेश को उसकी कलाओं के लिए प्रसिद्धि मिलने लगी तो रोहन के मन में ईर्ष्या अपना फन फैलाने लगा।वह महेश से चिढ़ने लगा और बात-बात में उसे बेवकूफ बनाकर उसका मजाक उड़ाने लगा।सराहना की जगह उसका अपमान और दुष्प्रचार करने लगा।
इस बात से दोनों मित्रों में हमेशा कहा-सुनी होने लगी। बात इतनी बढ़ गई कि दोनों के मन में प्यार की जगह कड़वाहट ने ले ली।रोहन हमेशा ताक मे रहता कि किस तरह उसे नीचा दिखा कर अपमानित करें। एक बार काव्य गोष्ठी में जब उसे सम्मानित किया गया , तब रोहन चिढ़कर महेश को भला बुरा कहने लगा।दोनों में तू-तू ,मैं-मैं होते-होते हाथा-पाई होने लगी।मौका देखकर रोहन महेश को उठाकर पत्थर पर पटक दिया।महेश का सिर जख्मी हो गया और काफी खून बहने लगा।उसे कई दिनों तक अस्पताल में इलाजरत रहना पड़ा।
इस घटना से महेश के मन में रोहन के प्रति नफरत और बदले की आग धधक उठी।उसके अन्तर्मन में हमेशा यह विचार कौंधता - खून का बदला खून से लेना है ।लेकिन स्वभावतः वह अपने मन के कुविचारों का दमन कर देता।
कुछ दिन बाद वह किसी खास रोगी से मिलने अस्पताल गया तो देखा रोहन को स्ट्रेचर पर लेटाकर इमरजेंसी बार्ड में ले जाया जा रहा है ।पीछे से डॉक्टरों की टीम दौड़ी जा रही है।उसने पूछ-ताछ की तो पता चला कार दुर्घना में वह बुरी तरह धायल हो चुका है।उसी समय नर्स ने आकर उसके परिजनों से कहा।तुरंत खून का इंतजाम करिए नहीं तो उनको बचा पाना मुश्किल हो जाएगा।खून ज्यादा बह गया है।और ब्लड बैंक में उनके ग्रुप का खून नहीं है।
यह सुनकर महेश का मन विचलि हो उठा।उसे विद्यालय का वह दिन याद आया जब दोनों का ब्लड ग्रुप एक रहने के कारण उनके दोस्त उन्हें 'खून का दोस्त' बुलाते थे।
उसके मन में 'खून के बदले खून' का विचार फिर कौंध गया।वह रोहन 'द्वारा दिए गए जख्म को सहलाते हुए बुदबुदाया - हाँ मै खून का बदला खून से ही लूँगा। वह तेजी से रोहन के परिजनों एवं नर्सों के निकट जाकर बोला मेरा और रोहन का खून एक ही ग्रुप का है ।कृपया आप मेरा खून उसे चढ़ाकर मेरे दोस्त की जान बचा दें। नर्स उसे लेकर आगे बढ़ गई।रोहन के परिजन महेश की महानता देख हतप्रभ रह गए ।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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Monday, June 15, 2020
,खून के बदले खून'(लघुकथा)
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