Friday, June 26, 2020

गज़ल

ना ही रहने को आलिशान घर चाहिए।
ना ही बसने को बड़ा-सा शहर  चाहिए।

जिसकी गलियों में कूड़े की ढेर न हो,
हमको गंदगी से परे वो नगर चाहिए।

जिसमें छल - कपट का निवास न हो,
मुहब्बत से भरा हमें वो जिगर चहिए।

जिसकी नजरों में हर चीज प्यारा लगे,
परखने वालों की ऐसी नजर चाहिए।

जिसे सुनकर दिल में उमंग भर उठे,
मुझको सुनने को ऐसी खबर चाहिए।

बेखटक पहुँचाए जो मंजिल हमें,
वह सीधी, सरल- सी डगर चाहिए।

जो कर दूसरे की सेवा को तत्पर रहे,
स्वयंसेवकों का ऐसा ही कर चहिए।

जो दूसरे का हित में जीये उम्र भर,
दिल वालों को लम्बी उमर चाहिए।
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 27 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सादर धन्यबाद सखी! मेरी रचना को सांध्य मुखरित मौन में साझा करने के लिए।

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  3. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यबाद सर ! सादर नमन।

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    2. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी सादर नमन।

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  5. प्रेरक रचना जो इंसानियत का पाठ पढाती है। शुभकामनायें सुजाता जी 🌹🌹🙏🌹

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    1. सादर धन्यबाद सखी।आभार

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  6. बेहतरीन व लाजवाब सृजन सुजाता जी ।

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  7. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।सादर

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