Friday, June 12, 2020

स्वतंत्र रूप को नमन

स्वतंत्र है धरा- गगन,
पाताल , अग्नि और पवन।
सृष्टि के  रचनाकार के ,
स्वतंत्र रूप को नमन ।

स्वतंत्र अपना भाव हो ,
स्वतंत्र मन की चेतना।
स्वतंत्र ही विचार हो ,
स्वतंत्र हो् सेवा-साधना।
स्वतंत्र परोपकार हो,
स्वतंत्र भाव लिए हो मन।
सृष्टि के रचनाकार के ,
स्वतंत्र रूप को नमन।

स्वतंत्र हृदय में धारणा,
समस्त जीवों के लिए।
स्वतंत्र नगर-गाँव में सभी,
स्वतंत्र रूप में जीएँ।
स्वतंत्र अपना लक्ष्य हो,
स्वतंत्र के लिए जनम।
सृष्टि के. रचनाकार के ,
स्वतंत्र रूप को नमन।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

4 comments:

  1. स्वतंत्रता को विहंगमता से नापती रचना | बहुत खूब सुजाता जी | जय हो इस स्वतंत्र सृष्टि की | ये स्वतंत्र है तभी सब आराम से जी पा रहें हैं यहाँ | उस रचनाकार की सदैव ही जय हो |

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  2. बहुत-बहुत धन्यबाद सखी रेणु जी।सृष्टि की स्वतंत्रता से हम स्वतंत्र हैं।नमन आपको।

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 15 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. जी दीदीजी सादर नमन।मेरी रचना को पाँच लिकों के आनंद पर साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद।

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